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सोमवार, 21 जून 2010

सुबह का अख़बार

आज सुबह का अख़बार देखा
वही मार-काट, हत्या और बलात्कार
रोज पढ़ता हूँ इन घटनाओं को
बस पात्रों के नाम बदल जाते हैं
क्या हो गया है इस समाज को
ये घटनायें उसे उद्वेलित नहीं करतीं
सिर्फ ख़बर बनकर रह जाती हैं
कोई नहीं सोचता कि यह घटना
उसके साथ भी हो सकती है
और लोग उसे अख़बारों में पढ़कर
चाय की चुस्कियाँ ले रहे होंगे।

29 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बिलकुल सही कहा....यही हो रहा है.. आज ऐसे ही दिन की शुरुआत होती है

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

सच्चाई के बेहद करीब है आपकी यह कविता..बधाई.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

सहज शब्दों में एक सुन्दर कविता..सार्थक बात !!

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आपके ब्लॉग की नई डिजाईन तो काफी मनभावन लगी..बधाई.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

यादव जी , अफ़सोस तो इस बात का है कि इस तरह की ख़बरें ४० साल से तो हम भी पढ़ रहे हैं । आज तक कुछ नहीं बदला ।

माधव( Madhav) ने कहा…

really real but unfortunately true

राज भाटिय़ा ने कहा…

खरीना ही बंद कर दो जब ताला पडेगा इन अखवार बालो को तो अकल आ ही जायेगी इन्हे,

Shyama ने कहा…

रोज पढ़ता हूँ इन घटनाओं को
बस पात्रों के नाम बदल जाते हैं

...Bahut sahi likha apne KK Ji..abhar.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

यही तो समाज की विडंबना है.

editor : guftgu ने कहा…

अख़बार पढो तो भी समस्या , न पढो तो भी समस्या...रोग सा लग गया है जी.

Unknown ने कहा…

क्या बात है आप और आकांक्षा जी दोनों लोग आज अखबारों पर ही धावा बोले हुए हैं.

Unknown ने कहा…

कविता तो धांसू है..जबरदस्त.

बेनामी ने कहा…

बेहद संवेदनशीलता के साथ लिखी गई कविता..मुबारकवाद.

मन-मयूर ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्तियाँ..बधाई.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

ये तो सोचने वाली बात हो गई न.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

अखबार के बिना दिन सूना सूना सा लगता है।
---------
इंसानों से बेहतर चिम्पांजी?
क्या आप इन्हें पहचानते हैं?

Mrityunjay Kumar Rai ने कहा…

हादसे इतने जियादा थे वतन में अपने
खून से छप के भी अख़बार निकल सकते थे

sandhyagupta ने कहा…

क्या हो गया है इस समाज को
ये घटनायें उसे उद्वेलित नहीं करतीं
सिर्फ ख़बर बनकर रह जाती हैं

sanvedansunyata ki sthithi atyant khatarnak hai.sarthak rachna.

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

भाई के के यादव जी ब्लाग की खूबसूरत डिजाइन और सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई

मन-मयूर ने कहा…

वाह, क्या बात लिखी है. लाजवाब के. के. साहब.

KK Yadav ने कहा…

@ Rashmi Singh,
@ Tushar ji,

ब्लॉग की नई डिज़ाइन आपको पसंद आई..श्रम सार्थक हुआ..आभार.

KK Yadav ने कहा…

@ दराल जी,

...यही तो समाज की विडंबना है.

KK Yadav ने कहा…

@ राज भाटिया जी,

काश कि ऐसा संभव हो पाता ??

KK Yadav ने कहा…

@ Ratnesh ji,

काफी पारखी निगाहें हैं आपकी.

KK Yadav ने कहा…

मृत्युंजय जी,

खूबसूरत शायरी...पर भयंकर !!

KK Yadav ने कहा…

आप सभी लोगों को यह कविता पसंद आई, आपने इसे सराहा..आभार.

शरद कुमार ने कहा…

रोज पढ़ता हूँ इन घटनाओं को
बस पात्रों के नाम बदल जाते हैं
....उम्दा प्रस्तुति..आभार.

Akanksha Yadav ने कहा…

बदलनी चाहिए ये सूरत...पर कैसे ??

विनोद पाराशर ने कहा…

कहने के लिए अखबार ताजा लेकिन खबरें वही-पुरानी.इसी तरह मेरी भी एक कविता हॆ-
’ताजा-अखबार’
लूटपाट
भ्रष्टाचार
बलात्कार
बासी- खबरें
ताजा-अखबार.