आज सुबह का अख़बार देखा
वही मार-काट, हत्या और बलात्कार
रोज पढ़ता हूँ इन घटनाओं को
बस पात्रों के नाम बदल जाते हैं
क्या हो गया है इस समाज को
ये घटनायें उसे उद्वेलित नहीं करतीं
सिर्फ ख़बर बनकर रह जाती हैं
कोई नहीं सोचता कि यह घटना
उसके साथ भी हो सकती है
और लोग उसे अख़बारों में पढ़कर
चाय की चुस्कियाँ ले रहे होंगे।
29 टिप्पणियां:
बिलकुल सही कहा....यही हो रहा है.. आज ऐसे ही दिन की शुरुआत होती है
सच्चाई के बेहद करीब है आपकी यह कविता..बधाई.
सहज शब्दों में एक सुन्दर कविता..सार्थक बात !!
आपके ब्लॉग की नई डिजाईन तो काफी मनभावन लगी..बधाई.
यादव जी , अफ़सोस तो इस बात का है कि इस तरह की ख़बरें ४० साल से तो हम भी पढ़ रहे हैं । आज तक कुछ नहीं बदला ।
really real but unfortunately true
खरीना ही बंद कर दो जब ताला पडेगा इन अखवार बालो को तो अकल आ ही जायेगी इन्हे,
रोज पढ़ता हूँ इन घटनाओं को
बस पात्रों के नाम बदल जाते हैं
...Bahut sahi likha apne KK Ji..abhar.
यही तो समाज की विडंबना है.
अख़बार पढो तो भी समस्या , न पढो तो भी समस्या...रोग सा लग गया है जी.
क्या बात है आप और आकांक्षा जी दोनों लोग आज अखबारों पर ही धावा बोले हुए हैं.
कविता तो धांसू है..जबरदस्त.
बेहद संवेदनशीलता के साथ लिखी गई कविता..मुबारकवाद.
बेहतरीन अभिव्यक्तियाँ..बधाई.
ये तो सोचने वाली बात हो गई न.
अखबार के बिना दिन सूना सूना सा लगता है।
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इंसानों से बेहतर चिम्पांजी?
क्या आप इन्हें पहचानते हैं?
हादसे इतने जियादा थे वतन में अपने
खून से छप के भी अख़बार निकल सकते थे
क्या हो गया है इस समाज को
ये घटनायें उसे उद्वेलित नहीं करतीं
सिर्फ ख़बर बनकर रह जाती हैं
sanvedansunyata ki sthithi atyant khatarnak hai.sarthak rachna.
भाई के के यादव जी ब्लाग की खूबसूरत डिजाइन और सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई
वाह, क्या बात लिखी है. लाजवाब के. के. साहब.
@ Rashmi Singh,
@ Tushar ji,
ब्लॉग की नई डिज़ाइन आपको पसंद आई..श्रम सार्थक हुआ..आभार.
@ दराल जी,
...यही तो समाज की विडंबना है.
@ राज भाटिया जी,
काश कि ऐसा संभव हो पाता ??
@ Ratnesh ji,
काफी पारखी निगाहें हैं आपकी.
मृत्युंजय जी,
खूबसूरत शायरी...पर भयंकर !!
आप सभी लोगों को यह कविता पसंद आई, आपने इसे सराहा..आभार.
रोज पढ़ता हूँ इन घटनाओं को
बस पात्रों के नाम बदल जाते हैं
....उम्दा प्रस्तुति..आभार.
बदलनी चाहिए ये सूरत...पर कैसे ??
कहने के लिए अखबार ताजा लेकिन खबरें वही-पुरानी.इसी तरह मेरी भी एक कविता हॆ-
’ताजा-अखबार’
लूटपाट
भ्रष्टाचार
बलात्कार
बासी- खबरें
ताजा-अखबार.
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