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लगा रहता फाइलों का अम्बार
कभी -कभी तो फाइलों के बीच
साहब का चेहरा तक देखना
मुश्किल हो जाता
औपचारिकताओं और आपत्तियों के बीच
जूझती फाइलें
पर उन फाइलों में कैद
व्यक्तियों की दास्तां का क्या ?
बाबू से लेकर अधिकारी तक
हर किसी ने उनकी दास्तां को
फाइल पर लगे नम्बरों में
कैद कर दिया है
शायद उनका वश चले तो
हर व्यक्ति के चेहरे पर भी
एक नम्बर चस्पा कर दें
फाइलों व नम्बरों के इस खेल में
न जाने कितनों का भाग्य घुटता है
पर बाबू और अधिकारी
अपनी धीमी रफ्तार से
फाइलों को सरकाते रहते
इसीलिये कभी-कभी
फाइलों में कैद व्यक्ति को
दीमक भी चाटने से बाज नहीं आता
शायद हर दफ्तर में है
फाइलों की यही दास्तां।
***कृष्ण कुमार यादव***