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शनिवार, 30 जुलाई 2011

आज का दिन कुछ खास है : जन्मदिन आकांक्षा का

आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है हमारे लिए। आज ही के दिन ईश्वर ने हमारी जीवन साथी आकांक्षा जी को इस दुनिया में भेजा था. वैसे कभी सोचा है कि हर किसी के लिए ईश्वर एक न एक पसंद बनाकर रखते हैं. तभी तो कहते हैं शादियाँ स्वर्ग में तय होती हैं. मैं भी शादी से पहले इसे नहीं मानता था, तब लगता था सफलता मिलेगी, अच्छे रिश्ते आपने आप मिलेंगे. खैर मैं सौभाग्यशाली लोगों में था.

सरकारी सेवा में आने के 10 साल बाद, अब भी कुछ ऐसे मित्रों को देखता हूँ जो सौभाग्यशाली नहीं हैं. 2-3 साल पहले तो अपने एक मित्र जो एक जिला के कलेक्टर भी थे, शादी के लिए बहुत परेशान थे. चूँकि उनकी लम्बाई थोड़ी कम थी, सो कोई अपनी आगामी पीढियां उस तरह की नहीं देखना चाहता था. भाई जी दिन भर कलेक्टरी करते और शाम को शादी के सपने देखते....जब सलेक्सन हुआ था तो दरवाजे पर लाल-नीली बत्तियों वालों का हुजूम था, पर जनाब तो टरकाते गए. दो साल बाद दो रिजल्ट निकल चुके थे और कुंवारी लड़कियों की शादी हो गई. भाई साहब फ्लैश-बैक में चले गए. अब जाकर कहीं एक लड़की ढूंढ़ पाए हैं....ऐसे न जाने कितने वाकये समाज में हैं.

पर वो लोग नसीब वाले हैं जिन्हें जीवन साथी के रूप में अच्छे लोग मिलते हैं. मैं भी अपने को उनमें से एक समझता हूँ और सौभाग्यवश आज मेरी जीवन-संगिनी आकांक्षा जी का जन्म-दिन भी है. दिन भी बढ़िया है, वीकेंड का माहौल है, सैलरी-डे भी कल ही था. फिर क्या सोचना, ईश्वर मेहरबान हैं. पत्नी आकांक्षा और बिटिया अक्षिता (पाखी) और तान्या को जितनी खुशियाँ दे सकूँ...वही आज की उपलब्धि होगी. वैसे भी खुशियों को सेलिब्रेट करने का बहाना चाहिए और आज तो इतनी बड़ी ख़ुशी का दिन है. दस दिन बाद मेरा भी जन्मदिन है...सो, यह खुशियाँ चलती रहें !!




सोमवार, 18 जुलाई 2011

सावन आया झूम के....

सावन मास की अपनी महत्ता है। सावन मास को श्रावण भी कहा जाता है। यह महीना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दौरान भक्ति, आराधना तथा प्रकृति के कई रंग देखने को मिलते हैं। श्रावण मास त्रिदेव और पंच देवों में प्रधान भगवान शिव की भक्ति को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस मास में विधिपूर्वक शिव उपासना करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता है कि देव-दानव द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकले हलाहल यानि जहर का असर देव-दानव सहित पूरा जगत सहन नहीं कर पाया। तब सभी ने भगवान शंकर से प्रार्थना की। भगवान शंकर ने पूरे जगत की रक्षा और कल्याण के लिए उस जहर को पीना स्वीकार किया। विष पीकर शंकर नीलकंठ कहलाए। मान्यता है कि भगवान शंकर ने विष पान से हुई दाह की शांति के लिए समुद्र मंथन से ही निकले चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया। यह भी धार्मिक मान्यता है कि इस विष के प्रभाव को शांत करने के लिए भगवान शंकर ने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया। इसी धारणा को आगे बढ़ाते हुए भगवान शंकराचार्य ने ज्योर्तिलिंग रामेश्वरम पर गंगा जल चढ़ाकर जगत को शिव के जलाभिषेक का महत्व बताया।


शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान श्रावण मास में ही किया था। धार्मिक दृष्टि से यही कारण है कि इस मास में शिव आराधना का विशेष महत्व है। यह काल शिव भक्ति का पुण्य काल माना जाता है। शिव भक्तों द्वारा पूरी श्रद्धा, भक्ति और आस्था के साथ भगवान शिव की पूजा-अर्चना, अभिषेक, जलाभिषेक, बिल्वपत्र सहित अनेक प्रकार से की जाती है। इस काल में शिव की उपासना भौतिक सुखों को देने वाली होती है। व्यावहारिक रुप से देखें तो भगवान शंकर द्वारा विष पीकर कंठ में रखना और उससे हुई दाह के शमन के लिए गंगा और चंद्रमा को अपनी जटाओं और सिर पर धारण करना इस बात का प्रतीक है कि मानव को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। खास तौर पर कटु वचन से बचना चाहिए, जो कंठ से ही बाहर आते हैं और व्यावहारिक जीवन पर बुरा प्रभाव डालते हैं। किंतु कटु वचन पर संयम तभी हो सकता है, जब व्यक्ति मन को काबू में रखने के साथ ही बुद्धि और ज्ञान का सदुपयोग करे। शंकर की जटाओं में विराजित गंगा ज्ञान की सूचक है और चंद्रमा मन और विवेक का। गंगा और चंद्रमा को भगवान शंकर ने उसी स्थान पर रखा है जहां मानव का भी विचार केन्द्र यानि मस्तिष्क होता है।


सावन मास के दौरान ही कई प्रमुख त्योहार जैसे- हरियाली अमावस्या, नागपंचमी तथा रक्षा बंधन आदि भी आते हैं। सावन में प्रकृति अपने पूरे शबाब पर होती है इसलिए यह भी कहा जाता कि यह महीना प्रकृति को समझने व उसके निकट जाने का है। सावन की रिमझिम बारिश और प्राकृतिक वातावरण बरबस में मन में उल्लास व उमंग भर देती है। सावन में ही महिलाएं कजरी-गायन कर खूब रंग बिखेरती हैं. सावन का महीना पूरी तरह से शिव तथा प्रकृति को समर्पित है. तो आप भी हर-हर महादेव के जयकारे के साथ गाइए- सावन आया झूम के !!

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

बचपन के दिन


बचपन के दिन
कितने मस्ती भरे थे
गाँव भर में हुड़दंग मचाना
जामुन के पेड़ पर चढ़कर
गुठलियों से दूसरों को मारना
ऐसा लगता है
मानो कल की ही बात हो।

एक लंबे अंतराल के बाद
घर जा रहा हूँ
पता नहीं बचपन के साथी
किस हाल में होंगे
पहचान भी पाऊँगा कि नहीं
वो जामुन का पेड़
कहीं काट न दिया गया हो!޶

यही सब सोचते-सोचते गाँव आ गया
तभी हवा का एक तेज झोंका आया
मिट्टी की खुशबू नथुनों में भर गई
सामने जामुन का पेड़
हवाओं के बीच लहरा रहा था
दूर से ही हाथ मिलाकर
मेरा स्वागत करता हुआ।

बुधवार, 6 जुलाई 2011

जनसत्ता में 'शब्द-सृजन की ओर' की पोस्ट : 'धुंए का जहर'


'शब्द सृजन की ओर' पर 30 मई, 2011 को प्रस्तुत पोस्ट 'मानवीय सभ्यता को लीलता तम्बाकू' को प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक पत्र 'जनसत्ता' ने 5 जुलाई, 2011 को अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर नियमित स्तम्भ 'समान्तर' में 'धुंए का जहर' शीर्षक से स्थान दिया ... आभार ! इससे पूर्व जनसत्ता के इसी स्तम्भ में 'शब्द सृजन की ओर' पर 22 अप्रैल, 2010 को प्रस्तुत पोस्ट प्रलय का इंतजार और 6 अक्तूबर, 2010 को प्रस्तुत पोस्ट अस्तित्व के लिए जूझते अंडमान के आदिवासी को भी स्थान दिया गया था...बहुत-बहुत आभार !!

इससे पहले 'शब्द सृजन की ओर' ब्लॉग की पोस्टों की चर्चा जनसत्ता, अमर उजाला, LN स्टार इत्यादि में हो चुकी है.मेरे दूसरे ब्लॉग 'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग और इसकी प्रविष्टियों की चर्चा दैनिक हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, राजस्थान पत्रिका, उदंती, LN STAR पत्र-पत्रिकाओं में हो चुकी है.

इस प्रोत्साहन के लिए सभी का आभार !!

चित्र साभार : Blogs in Media

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

परिकल्पना ब्लागोत्सव में साक्षात्कार..

आजकल ब्लॉग पर लिखने में भले ही कोताही कर रहा हूँ, पर पत्र-पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर जरुर लिख-छप रहा हूँ.

-‎'समकालीन भारतीय साहित्य' के ताजा अंक (मई-जून-2011) में अंडमान के आदिवासियों पर आधारित मेरी दो कविताएँ- 'सभ्यता की आड़ में' और 'ग्रेट अंडमानीज़' पढ़ सकते हैं !!

-'अक्षर पर्व' के मई-2011 अंक में टैगोर जी की 150 वीं जयंती पर मेरा आलेख 'कवीन्द्र रवीन्द्र और उनके विमर्श' पढ़ सकते हैं !

-परिकल्पना ब्लागोत्सव में आज मेरा साक्षात्कार "अंधविश्वास की बजाय उद्देश्यमूलक साहित्य-सृजन की जरूरत:कृष्ण कुमार यादव '' पढ़ सकते हैं और अपनी प्रतिक्रिया भी वहाँ दर्ज कर सकते हैं !