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शनिवार, 28 नवंबर 2009

कृष्ण की आकांक्षा : पाँच वर्षों का सुखद वैवाहिक सफर

28 नवम्बर का दिन हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है. इस वर्ष इस तिथि को सबसे महत्वपूर्ण बात रही कि हमारी शादी के पाँच साल पूरे हो गए। 28 नवम्बर, 2004 (रविवार) को मैं और आकांक्षा जीवन के इस अनमोल पवित्र बंधन में बंधे थे. वक़्त कितनी तेजी से करवटें बदलता रहा, पता ही नहीं चला. सरकारी भाषा में कहें तो एक पंचवर्षीय योजना मानो पूरी हो गई. सुख-दुःख के बीच सफलता के तमाम आयाम हमने छुए. कभी जिंदगी सरपट दौड़ती तो कई बार ब्रेक लग जाता. पिछले साल का हादसा अभी भी नहीं भूलता. जब शादी की सालगिरह के अगले दिन ही मेरा एक एक्सिडेंट हुआ और बाएं हाथ का आपरेशन करना पड़ा. एक सप्ताह के लिए मैं हॉस्पिटल में भी रहा. इस बार भी शादी की सालगिरह पर हम साथ नहीं थे, मैं ट्रेनिंग के सिलसिले में बाहर था....पता नहीं यह कैसा संयोग है, पर पाँच साल के इस सफ़र में सालगिरह का दिन हमारे लिए बहुत अजीब रहा. दो बार ट्रेनिंग, एक बार बॉस के साथ एक मीटिंग में काफी रात हो जाना, एक बार सालगिरह के अगले दिन एक्सिडेंट....कुल मिला-जुलाकर अब तक एक ही सालगिरह हम लोग कायदे से उसी दिन सेलिब्रेट कर पाए हैं. हमेशा अपनी सालगिरह सेलिब्रेट करने के लिए हमें किसी अगली तिथि का चुनाव करना पड़ता है, पर वह दिन सिर्फ हमारा होता है. कई बार हम लोग मजाक में कहते भी हैं की विभाग वालों ने हमारी सालगिरह की तारीख नोट कर रखी है, कोई भी ट्रेनिंग और महत्वपूर्ण मीटिंग इसी दिन होगी।


ऐसा ही अजीब संयोग हमारी शादी के बारे में भी है. मैं जहाँ भी पोस्टिंग पर जाता, वहाँ आकांक्षा जी के भ्राता श्री लोगों की भी पोस्टिंग होती. जब मैं पोस्टल स्टाफ कालेज, गाज़ियाबाद में ट्रेनिंग कर रहा था तो इनके बड़े भ्राता श्री नोएडा में एक मल्टीनेशनल कंपनी में थे, पहली पोस्टिंग पर सूरत गया तो इनके भ्राता श्री गुजरात कैडर के IAS अधिकारी थे, वहां से ट्रांसफर होकर लखनऊ में असिस्टेंट पोस्टमास्टर जनरल बना तो इनके एक भ्राता श्री वहां पुलिस उपाधीक्षक थे.....फिर ये रिश्ता होने से कौन रोक सकता था. खैर हम लोगों की शादी 28 नवम्बर, 2004 को धूमधाम के साथ सारनाथ-बनारस में हुई, एक साथ भगवान शंकर जी और भगवान बुद्ध जी का आशीर्वाद मिला। कानपुर में पोस्टिंग के दौरान वर्ष प्यारी बिटिया अक्षिता का जन्म हुआ।


एक-दूसरे के साथ बिताये गए ये पाँच साल सिर्फ इसलिए नहीं महत्वपूर्ण हैं कि हमने पति-पत्नी का सम्बन्ध निभाया, बल्कि इसलिए भी कि हमने एक-दूसरे को समझा, सराहा और संबल दिया. अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि प्रशासनिक व्यस्तताओं के बीच कैसे समय निकल लेते हैं तो इसके पीछे आकांक्षा जी का ही हाथ है. यदि उन्होंने मेरी रचनात्मकता को सपोर्ट नहीं किया होता तो मैं आज एक अदद सिविल सर्वेंट मात्र होता, लेखक-कवि-साहित्यकार के तमगे मेरे साथ नहीं लगे रहते. यह हमारा सौभाग्य है कि हम दोनों साहित्य प्रेमी हैं और कई सामान रुचियों के कारण कई मुद्दों पर खुला संवाद भी कर लेते हैं।


शादी की सालगिरह पर तमाम मित्रजनों-सम्बन्धियों की शुभकामनायें तमाम माध्यमों से प्राप्त हुई...आप सभी का आभार. हिंदी ब्लॉगरों के जन्मदिन ब्लॉग पर भी इस दिन शुभकामनायें दी गईं, आभारी हैं हम दोनों। आप सभी का स्नेह बना रहे ....!!



रविवार, 8 नवंबर 2009

माँस का लोथड़ा

खामोश व वीरान-सी आँखें
आसपास कुछ ढूँढती हैं
पर हाथ में आता है
सिर्फ माँस का लोथड़ा

किसी के लिए वह हिन्दू का है
किसी के लिए मुसलमां का
किसी ने उसे सांप्रदायिकता
का उन्माद बताया
किसी ने धर्मनिरपेक्षता
का राग अलापा

पर उस दुधमुंहे मासूम
का क्या दोष
माँ की छाती समझ
वह लोथड़े को भी मुँह
लगा लेता है
मुँह में दूध की बजाय
खून भर आता है

लाशों के बीच
खून से सना मुँह लिये
एक मासूम का चेहरा

वह इस देश का भविष्य है !!