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रविवार, 8 नवंबर 2009

माँस का लोथड़ा

खामोश व वीरान-सी आँखें
आसपास कुछ ढूँढती हैं
पर हाथ में आता है
सिर्फ माँस का लोथड़ा

किसी के लिए वह हिन्दू का है
किसी के लिए मुसलमां का
किसी ने उसे सांप्रदायिकता
का उन्माद बताया
किसी ने धर्मनिरपेक्षता
का राग अलापा

पर उस दुधमुंहे मासूम
का क्या दोष
माँ की छाती समझ
वह लोथड़े को भी मुँह
लगा लेता है
मुँह में दूध की बजाय
खून भर आता है

लाशों के बीच
खून से सना मुँह लिये
एक मासूम का चेहरा

वह इस देश का भविष्य है !!

10 टिप्‍पणियां:

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

Behad marmik kavita.

Akanksha Yadav ने कहा…

Kavita padhkar sochne par majbur....???

राज भाटिय़ा ने कहा…

अप ने कविता मै समाज को धर्म के ठेके को अईना दिखा दिया, बहुत सुंदर
धन्यवाद

डॉ टी एस दराल ने कहा…

आतंकवाद का एक घिनोना रूप दर्शाती बेहद सुन्दर रचना.

बेनामी ने कहा…

Padh/sun kar hi man ko bahut vytha hoti hai, aapne apne dard ko bahut hi marmic dhang se prastut kiya hai.

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

पता नहीं समझ नहीं आता धर्म बने ही क्यूँ एक ही धर्म होना चाहिए था सबका वो इंसानियत का न जाने क्यूँ इतने भेद-भावः होते हैं...एक जैसे दिखने वाले इंसानों के बीच मै

माफ़ी चाहूंगा स्वास्थ्य ठीक ना रहने के कारण काफी समय से आपसे अलग रहा

अक्षय-मन "मन दर्पण" से

Unknown ने कहा…

Bahut sundar kavita. Dil ko chhuti hai.

शरद कोकास ने कहा…

इस द्र्ष्य को कविता बनाने की ज़रूरत है ।

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

लाशों के बीच
खून से सना मुँह लिये
एक मासूम का चेहरा

वह इस देश का भविष्य है !!
....गजब की अपील है इन पंक्तियों में...लाजवाब.

M VERMA ने कहा…

अत्यंत मार्मिक रचना.
वाकई यह देश का भविष्य है.
वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाई