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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस : आगामी पीढ़ियों तक सांस्कृतिक विरासत पहुंचाने में मातृभाषा का अहम योगदान - पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव

हमें अपनी मातृभाषाओं की ओर लौटना होगा। दुनिया की ज्ञान परंपरा से जुड़ने के लिए अन्य भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए, लेकिन मातृभाषा की अपनी अलग ही अहमियत है। मातृभाषा 'हम' की अवधारणा पर कार्य करती है 'अहम्' की नहीं जो कि वसुधैव कुटुम्बकम का मूल प्राणतत्व है। उक्त उद्गार चर्चित साहित्यकार एवं वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' पर भोजपुरी अध्ययन केंद्र में आयोजित 'मौलिकता और मातृभाषा' विषय पर आयोजित परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किये। 

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि, अपनी विरासत को संरक्षित रखने और अगली पीढ़ियों तक सभ्यता और संस्कृति की थाती पहुंचाने में मातृभाषा का योगदान अतुलनीय है। भारत में भाषाओं और बोलियों की बहुलता है, अत: इनके बीच सामंजस्य और समन्वय की आवश्यकता है। अमृत काल के दौर में एक दूसरे के सम्मान से हम अपनी मातृभाषाओं का संरक्षण और संवर्द्धन कर सकते हैं। मातृभाषा के विकास के लिए इसको रोजगार और व्यापार से जोड़ने की जरूरत है। 

मुख्य अतिथि पद्मभूषण प्रो. देवी प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि भाषा के माध्यम से हमें यथार्थ का बोध होता है कि हम क्या हैं तथा मातृभाषा के माध्यम से हमें अपने यथार्थ व्यक्तित्व का बोध होता है। व्यक्ति के मौलिक भाव उसके मौलिक विचार उसे उसकी अपनी मातृभाषा में ही आते हैं, उसके नवीन ज्ञान के स्रोत उसकी मातृभाषा से प्रस्फुटित होते हैं। मातृभाषा नवीन मार्ग दिखलाती है।

मुख्य वक्ता के रूप में अपना वक्तव्य देते हुए सोच-विचार पत्रिका के सम्पादक डॉ. जितेन्द्रनाथ मिश्र ने भाषा का अर्थ लक्षण बताया जिसमें उसका अस्तित्व उसकी अस्मिता आदि सम्मिलित होते हैं जिससे वह व्यक्ति को प्रकाशित करती है। मातृभाषा व्यक्ति के समस्त को समाज के सम्मुख प्रस्तुत करती है। मातृभाषा संस्कृति का लक्षण है। उसमें मौलिकता, क्षमता तथा प्रतिभा है। 


स्वागत वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ कवि व केंद्र समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि भोजपुरी को मान्यता दिलाने के प्रयास 1960 से शुरू हुए थे लेकिन अभी तक उसे अपना सम्मान नहीं मिल पाया है अतः भोजपुरी को उसको अपना सम्मान मिलना चाहिए तथा 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' के साथ साथ एक 'राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' की भी घोषणा होनी चाहिए। डॉ. शुक्ल ने कहा कि मौलिक चिंतन स्वाभाविक, स्वाधीन तथा स्वविवेक से तय भाषा में ही हो सकता है अर्थात उसमें कोई औपनिवेशिक दबाव नहीं हो और मातृभाषाओं में यह शक्ति होती है। मातृभाषा अन्य नहीं अनन्य होती है, वह स्वाधीनता और विवेक से युक्त होती है। 

विशिष्ट वक्ता अध्यक्ष वैदिक दर्शन विभाग प्रो. श्रीकृष्ण त्रिपाठी ने कहा कि मातृभाषा वह भाषा है जो एक बच्चे को उसकी माँ सिखाती है। मातृभाषा हमारे संस्कृति एवं संस्कारों को लेकर चलती है तथा उससे बंधुत्व व प्रेम बढ़ता है। मातृभाषा का प्रयोग, उसका परिष्कार और विकास ही देश को प्रतिष्ठा दिलाता है। 

हिंदी विभाग में सहायक आचार्य डॉ. अशोक ज्योति ने कहा कि मातृभाषा में वह शक्ति है जो राष्ट्रों का निर्माण कर सकती है। बांग्लादेश का निर्माण हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं। व्यक्ति को अपने समाज का व्यवहार अपनी मातृभाषा में करना चाहिए तथा अपनी मातृभाषा के व्यवहार में हमें हीनता का बोध बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। भाषा के प्रति जो समाज जितना चैतन्य रहेगा वो समाज अपनी जड़ों से उतना ही मजबूत होगा। 


कार्यक्रम का संचालन केंद्र की शोधार्थी शिखा सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन उदय प्रताप पाल ने किया। कार्यक्रम में केंद्र के संगीत शोधार्थियों ने रघुवीर नारायण के 'बटोहिया' तथा लोकगीत 'रेलिया बैरन' की सांगीतिक प्रस्तुति भी दी। इस अवसर पर प्रो. देवेश त्रिपाठी, प्रो.धनंजय पाण्डेय, डॉ. प्रभात कुमार मिश्र, डॉ. विवेक सिंह, डॉ. महेंद्र कुशवाहा, डॉ. प्रीति त्रिपाठी, डॉ विंध्याचल यादव के साथ तमाम साहित्यकार, प्राध्यापक, बुद्धिजीवी और शोधार्थी उपस्थिति रहे।










काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भोजपुरी अध्ययन केंद्र में 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' पर आयोजित हुई परिचर्चा

आगामी पीढ़ियों तक सांस्कृतिक विरासत पहुंचाने में मातृभाषा का अहम योगदान - पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव

मातृभाषा के माध्यम से होता है यथार्थ व्यक्तित्व का बोध - पद्मभूषण प्रो. देवी प्रसाद द्विवेदी

रविवार, 12 फ़रवरी 2023

बनारस लिट् फेस्ट- 2023 : काशी साहित्य कला उत्सव

काशी दुनिया का सबसे प्राचीन व जीवंत शहर है। पूरे विश्व में साहित्य, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान की धारा काशी से ही प्रवाहित हुई है। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही काशी देश-दुनिया के लिए शक्ति का केंद्र रही है। साहित्य का मुख्य कार्य अंधेरे में उजाला फैलाना है। बीएचयू के स्वतंत्रता भवन में 11 फरवरी को आयोजित दो दिवसीय बनारस लिट् फेस्ट- 2023 (काशी साहित्य कला उत्सव) के उद्घाटन सत्र में हुए विचार मंथन का यही निष्कर्ष रहा। काशी साहित्य कला उत्सव के उद्घाटन समारोह में साहित्यकारों, विद्वानों ने साहित्य और कला से युवाओं को रूबरू कराया। वहीं, नृत्य नाटिका, कवि सम्मेलन, लोक गायन में कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से उत्सव को यादगार बना दिया। 






नव भारत निर्माण समिति की ओर से आयोजित काशी साहित्य कला उत्सव के उद्घाटन सत्र में पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने कहा कि काशी अनंत शिव की अनादि गाथा है। मानसिक उदार चेतना वाली काशी में किसी को कभी छोटा मत समझना। न जाने कब कहां कोई ज्ञानी मिल जाए। काशी में संस्कृति और पद्धति में अंतर है। काशी सत्व में एकत्व  बनाने का महत्व देता है। 

समाजशास्त्री प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि काशी ने विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा है। ऐसे में काशी को अपनी शक्ति से दुनिया को जोड़ने की जरूरत है, जो इसी तरह  के महोत्सव से संभव है। अध्यक्षता करते हुए पं. हरिराम द्विवेदी ने कहा कि काशी में शास्त्रीय व लोक दोनों है। सहित्यकारों, कवियों व गलियों का यह शहर भी है। अंतर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र के निदेशक प्रो. प्रेमनारायण सिंह ने कहा कि युवाओं को कला, साहित्य, संस्कृति से जोड़े रखना बहुत जरूरी है। 




वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव  ने कहा कि काशी में साहित्य, कला, संस्कृति की त्रिवेणी बहती है। आजादी के अमृत काल   में इसकी प्रासंगिकता और बढ़ जाती है।  काशी की परंपराओं को समृद्ध करना ही बनारस लिट् फेस्ट की सफलता होगी। साहित्य अपने समय का सबसे बड़ा दस्तावेज होता है। 

लोक गायिका पद्मश्री अजिता श्रीवास्तव, पद्मश्री चंद्रशेखर, आकाशवाणी निदेशक श्री राजेश गौतम ने उत्सव को साहित्य, कला को संजोने का एक बेहतर माध्यम बताया। संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राम  सुधार सिंह ने किया। संचालन नव भारत निर्माण समिति के सचिव बृजेश सिंह ने किया।


सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

"काशी-वाराणसी साहित्य महोत्सव" में पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव "काशी साहित्य" सम्मान से विभूषित



वाराणसी में पहली बार आयोजित हो रहे त्रिदिवसीय "काशी-वाराणसी साहित्य महोत्सव" (3-5 फरवरी, 2023) में चर्चित साहित्यकार एवं ब्लॉगर, वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव को साहित्य तथा राजभाषा हिन्दी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान, समर्पण तथा उपलब्धि के लिए "काशी साहित्य" सम्मान से विभूषित किया गया। श्री यादव को यह सम्मान महोत्सव के प्रधान संरक्षक एवं पूर्व सांसद (राज्यसभा) श्री रवींद्र किशोर सिन्हा ने प्रदान किया। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर धाम के कॉरिडोर सभागार में आयोजित उक्त कार्यक्रम में श्री काशी विश्वनाथ न्यास के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पाण्डेय, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति प्रो. के.जी सुरेश, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी, लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा चेन्नई के पूर्व कुलपति प्रो. राम मोहन पाठक सहित तमाम विद्वतजन मौजूद रहे।





गौरतलब है कि कृष्ण कुमार यादव लोकप्रिय प्रशासक के साथ ही सामाजिक, साहित्यिक और समसामयिक मुद्दों से सम्बंधित विषयों पर प्रमुखता से लेखन करने वाले साहित्यकार, विचारक और ब्लॉगर भी हैं। विभिन्न विधाओं में आपकी सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और आपके जीवन पर भी एक पुस्तक "बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव" प्रकाशित हो चुकी है। 


देश-विदेश में विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु आपको शताधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं। उ.प्र. के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव द्वारा ’’अवध सम्मान’’, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री केशरीनाथ त्रिपाठी द्वारा ’’साहित्य-सम्मान’’, छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री शेखर दत्त द्वारा ’’विज्ञान परिषद शताब्दी सम्मान’’ से विभूषित आपको अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मेलन, नेपाल, भूटान और श्रीलंका में भी सम्मानित किया जा चुका है। विभागीय दायित्वों और हिन्दी के प्रचार-प्रसार के क्रम में अब तक श्री यादव  लंदन, फ़्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया, भूटान, श्रीलंका, नेपाल जैसे देशों की यात्रा कर चुके हैं। आपके परिवार को यह गौरव प्राप्त है कि साहित्य में तीन पीढ़ियाँ सक्रिय हैं। आपके पिताजी श्री राम शिव मूर्ति यादव के साथ-साथ आपकी पत्नी श्रीमती आकांक्षा भी चर्चित ब्लॉगर और साहित्यकार हैं, वहीं बड़ी बेटी अक्षिता (पाखी) अपनी उपलब्धियों हेतु भारत सरकार द्वारा सबसे कम उम्र में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित हैं।






Kashi Varanasi Literary Festival : काशी-वाराणसी साहित्य महोत्सव


वाराणसी में पहली बार आयोजित हो रहे 'काशी-वाराणसी साहित्य महोत्सव' में शामिल हुआ। इस त्रिदिवसीय महोत्सव (3-5 फरवरी, 2023) का शुभारंभ श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर धाम के कॉरिडोर सभागार में हुआ तो समापन मुंशी प्रेमचंद जी की जन्मस्थली लमही में। साहित्य तथा राजभाषा हिन्दी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान, समर्पण तथा उपलब्धि के लिए 'काशी साहित्य' सम्मान से विभूषित होने का सुअवसर मिला, वहीं देश के विभिन्न प्रांतों से आये साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों से संवाद कर सुखद अनिभूति हुई। 












महोत्सव के प्रधान संरक्षक एवं पूर्व सांसद (राज्यसभा) श्री रवींद्र किशोर सिन्हा, श्री काशी विश्वनाथ न्यास के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पाण्डेय, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति प्रो. के.जी सुरेश, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी, लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित, जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया की कुलपति प्रो. कल्पलता पाण्डेय, केंद्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय, सारनाथ के कुलपति प्रो. गेशे नवांग सामतेन, राज्यसभा सांसद श्रीमती सीमा द्विवेदी के अलावा पुराने परिचित साहित्यकारों में डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, श्री कमलेश भट्ट कमल, श्री गिरीश पंकज, श्री ओम धीरज इत्यादि सहित तमाम विद्वतजनों और साहित्यकारों से रूबरू होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस शानदार महोत्सव के सूत्रधार प्रो. राम मोहन पाठक रहे, जो कि नेहरू ग्राम भारती नामित विश्वविद्यालय, प्रयागराज एवं दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा चेन्नई के पूर्व कुलपति भी रह चुके हैं !!