वर्तमान उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृन्दावन में पले-बढे और रास-लीला रचाते कृष्ण-कन्हैया गुजरात में आकर द्वारकाधीश हो जाते हैं। हम लोग उनकी बाल-लीला, रास-लीला के बारे में देखते-सुनते बड़े हुए हैं, वहीं सौराष्ट्र में गुजरात की प्रथम राजधानी ‘द्वारका’ बसाने वाले रणछोड़दास श्री कृष्ण यहाँ एक राजा के रूप में श्रद्धेय हैं।
श्रीकृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, पर राज उन्होंने द्वारका में किया। यहीं बैठकर उन्होंने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। पांड़वों को सहारा दिया। धर्म की जीत कराई और शिशुपाल व दुर्योधन जैसे तमाम अधर्मी राजाओं को मिटाया। गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर बसी द्वारका चारधाम और सप्तपुरी में से भी एक है। ऐसी मान्यता है कि मथुरा छोड़ने के बाद अपने परिजनों एवं यादव वंश की रक्षा हेतु भगवान श्रीकृष्ण ने भाई बलराम तथा यादववंशियों के साथ मिलकर द्वारकापुरी का निर्माण विश्वकर्मा से करवाया था। कहा जाता है कि यह एक किलेबंद शहर के रूप में लगभग 84 किलोमीटर तक फैला हुआ था, जहाँ गोमती नदी और अरब सागर मिलते थे।
इससे बीस मील आगे कच्छ की खाड़ी में एक छोटा सा टापू है। इस पर बेट-द्वारका बसी है। मान्यता है कि यहाँ उनका राज निवास था। पहले यहाँ सिर्फ़ पानी के रास्ते जा सकते थे, परंतु अब ‘सुदर्शन सेतु’ बनने से सड़क के द्वारा जाते हैं।
वर्तमान में द्वारका में लोग द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि द्वारकाधीश मंदिर भगवान कृष्ण के परपोते वज्रनाभ द्वारा 2500 साल पहले स्थापित किया गया था। इस प्राचीन मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया है। इसके प्रांगण में अन्य मंदिर भी हैं।
कहते हैं कि, लगभग 125 वर्षों के जीवनकाल के बाद श्री कृष्ण ने अपनी लीला समाप्त की। उनके अवतार समाप्ति के तुरंत बाद परीक्षित के राज्य का कालखंड आता है। राजा परीक्षित, जो अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा अर्जुन के पौत्र थे, के समय से ही कलियुग का आरंभ माना जाता है।
द्वारका नगरी का धार्मिक महत्व तो है ही, रहस्य भी कम नहीं है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की मृत्यु के साथ उनकी बसाई हुई यह नगरी समुद्र में डूब गई, महाभारत युद्ध के लगभग 36 वर्ष पश्चात। आज भी यहां उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं।
बताते हैं कि 1963 में सबसे पहले द्वारका नगरी का ऐस्कवेशन डेक्कन कॉलेज पुणे, डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्कियोलॉजी और गुजरात सरकार ने मिलकर किया था। इस दौरान करीब 3 हजार साल पुराने बर्तन मिले थे। इसके तकरीबन एक दशक बाद आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की अंडर वॉटर आर्कियोलॉजी विंग को समुद्र में कुछ ताँबे के सिक्के और ग्रेनाइट स्ट्रक्चर भी मिले। 2005 में द्वारिका के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए पुन: अभियान शुरू किया गया। इस अभियान में भारतीय नौसेना ने भी मदद की।अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छटे पत्थर मिले और यहां से लगभग 200 अन्य नमूने भी एकत्र किए। आज भी यहां वैज्ञानिक स्कूबा डायविंग के जरिए समंदर की गहराइयों में कैद इस रहस्य को सुलझाने में लगे हैं। हाल ही में देश के प्रधानमंत्री जी भी स्कूबा डायविंग के ज़रिए द्वारका नगरी के अवशेष देखने पहुँचे थे !!
- कृष्ण कुमार यादव
!! जय श्री द्वारकाधीश !!
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