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रविवार, 14 दिसंबर 2014

निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव सहित 12 विभूतियाँ 'प्रयाग गौरव' सम्मान से विभूषित

सामाजिक एकता एवं उन्नति का प्रतीक 'प्रयाग महोत्सव' इलाहाबाद में 13 दिसम्बर, 2014 को धूमधाम से मनाया गया। 'प्रयाग गौरव सम्मान एवं सांस्कृतिक आयोजन जनसेवा समिति' एवं 'अबुल कलाम आजाद जन सेवा संस्थान' के बैनर तले विज्ञान परिषद, प्रयाग सभागार में आयोजित समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाली विभूतियों को ''प्रयाग गौरव'' सम्मान से नवाजा गया। इस अवसर पर कुल 12 हस्तियों को सम्मानित किया गया। उक्त हस्तियों का चुनाव न्यायमूर्ति सखा राम सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी ने किया था।

कार्यक्रम के आरम्भ में प्रशासनिक उपलब्धियों हेतु इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं एवं चर्चित ब्लॉगर व साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव को ''प्रयाग गौरव'' सम्मान से विभूषित किया गया। गौरतलब है कि श्री यादव ने जहाँ इलाहाबाद में डाक सेवाओं को नए आयाम दिए हैं, वहीं विभिन्न माध्यमों द्वारा डाक सेवाओं के प्रचार-प्रसार द्वारा उन्हें लोकप्रिय भी बनाया है।  इससे पूर्व सूरत, लखनऊ, कानपुर और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में पदस्थ रहे श्री कृष्ण कुमार यादव प्रशासन में संवेदनशीलता के पर्याय हैं। श्री यादव को उक्त सम्मान बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 गिरीश चन्द्र त्रिपाठी द्वारा न्यायमूर्ति सुधीर नारायण, सदस्य, कावेरी ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में इलाहाबाद की मेयर श्रीमती अभिलाषा गुप्ता एवं श्री अशोक मेहता, अपर महासालिसिटर जनरल के विशिष्ट आतिथ्य में दिया गया। 

गौरतलब है कि सरकारी सेवा में उच्च पदस्थ अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लाॅगिंग के क्षेत्र में भी चर्चित श्री यादव की अब तक कुल 7 पुस्तकें 'अभिलाषा' (काव्य-संग्रह, 2005) 'अभिव्यक्तियों के बहाने' व 'अनुभूतियाँ और विमर्श' (निबंध-संग्रह, 2006 व 2007), India Post : 150 glorious years  (2006), 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' (संपादित, 2007), ’जंगल में क्रिकेट’ (बाल-गीत संग्रह-2012) एवं ’16 आने 16 लोग’(निबंध-संग्रह, 2014) प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ (सं0 डाॅ0 दुर्गाचरण मिश्र, 2009, आलोक प्रकाशन, इलाहाबाद) भी प्रकाशित हो चुकी  है। श्री यादव देश-विदेश से प्रकाशित तमाम पत्र पत्रिकाओं एवं इंटरनेट पर भी प्रमुखता से प्रकाशित होते रहते हैं। कृष्ण कुमार यादव को इससे पूर्व उ.प्र. के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव द्वारा ’’अवध सम्मान’’, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री केशरी नाथ त्रिपाठी द्वारा ’’साहित्य सम्मान’’, छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री शेखर दत्त द्वारा ”विज्ञान परिषद शताब्दी सम्मान”, परिकल्पना समूह द्वारा ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लाॅगर दम्पति’’ सम्मान, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाॅक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’डाॅ0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, वैदिक क्रांति परिषद, देहरादून द्वारा ‘’श्रीमती सरस्वती सिंहजी सम्मान‘’, भारतीय बाल कल्याण संस्थान द्वारा ‘‘प्यारे मोहन स्मृति सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ”महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला‘ सम्मान”, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती रत्न‘‘, अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनन्दन समिति मथुरा द्वारा ‘‘महाकवि शेक्सपियर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान‘‘, भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ द्वारा ’’पं0 बाल कृष्ण पाण्डेय पत्रकारिता सम्मान’’, सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु तमाम सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हो चुकी हैं।   

इस अवसर पर श्री कृष्ण कुमार यादव के अलावा साहित्य में इलाहाबाद विश्विद्यालय के उर्दू विभाग के संकाय प्रमुख प्रो0 अली अहमद फातमी, शिक्षा में जाने-माने दलित चिंतक एवं गोविन्द वल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में प्रो0 बद्री नारायण व टैगोर पब्लिक स्कूल  में रसायन शास्त्र के प्राध्यापक श्री संजय श्रीवास्तव, चिकित्सा में जाने-माने नेत्र शल्य चिकित्सक व प्राचार्य मेडिकल कालेज डाॅ. एस.पी.सिंह और पूर्व निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं, उत्तर प्रदेश डाॅ एस. पी. नारायण, समाज सेवा के क्षेत्र में चीफ वार्डेन सिविल डिफेन्स श्री अनिल कुमार गुप्ता, अभिनय में भारतीय लोक कला महासंघ के अध्यक्ष श्री अतुल यदुवंशी, विधि न्याय में श्री महेश चन्द्र चतुर्वेदी, पत्रकारिता में जी न्यूज के श्री दिनेश सिंह, व्यापार में प्रयाग व्यापार मंडल के संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष रहे श्री ओंकार नाथ खन्ना, व अर्चना तुलसियानी को ’’प्रयाग गौरव’’ सम्मान दिया गया। सम्मान स्वरूप सभी विभूतियों को शाल ओढ़ाने के बाद प्रशस्ति पत्र, सम्मान पत्र प्रदान किया गया।

इस अवसर पर अपने सम्बोधन में मुख्य अतिथि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जीसी त्रिपाठी ने कहा कि प्रयाग प्राचीनकाल से ही हमारी संस्कृति को संरक्षित किए है और इसे जीवंत रखना हम सबकी महती जिम्मेदारी है।  उन्होंने सभी सम्मान पाने वालों को बधाई दी। न्यायमूर्ति सुधीर नारायण ने कहा कि प्रयाग की धरती कलाकारों, शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों व साहित्यकारों को हमेशा प्रोत्साहित करती रही है। यहां सम्मानित होने वाला हर व्यक्ति अद्वितीय प्रतिभा का धनी है। भारत सरकार के अपर महासालिसिटर अशोक मेहता ने कहा कि भारत में विभिन्न संस्कृतियां समाहित हैं व प्रयाग महोत्सव में हर रंग समाहित है। महापौर अभिलाषा गुप्ता ने कहा कि अच्छे कार्य के लिए सम्मान पाना गौरव की बात है, इससे दूसरे लोगों को अच्छा काम करने की प्रेरणा मिलती है। ब्रिगेडियर एलसी पटनायक ने कहा कि मैं प्रयागवासी नहीं हूं परंतु अनेक विभूतियों को सम्मानित करके गौरव की अनुभूति कर रहा हूं। आयोजन समिति के संस्थापक अध्यक्ष श्री नाजिम अंसारी ने बताया कि इलाहाबाद में तमाम विभूतियां अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य कर रही है और इस सम्मान के माध्यम से उनकी उपलब्धियों को एक नयी पहचान देने का प्रयास है। नाजिम अंसारी ने कहा कि उनकी संस्था संस्कृति एवं कला को प्रोत्साहित करने की मुहिम में जुटी है। 

विज्ञान परिषद सभागार में हुए समारोह का संचालन नंदल हितैषी और धन्यावद ज्ञापन संयोजक राजीव आनंद ने किया। कार्यक्रम में सरदार अजीत सिंह, डॉ. प्रमोद शुक्ल, डॉ. प्रत्यूष पांडेय, राजेंद्र तिवारी, डॉ. एके रजा, संदीप सेन, आर. विकास, ज्ञान सिंह, प्रशांत पांडेय, सुरभि, विशाखा, विनोद आदि मौजूद रहे।






















शनिवार, 6 दिसंबर 2014

शोषित समाज के लिए विचारों का पुंज छोड़ गए डा. अम्बेडकर

दमन के विरुद्ध विद्रोह के प्रतीक डाॅ. भीमराव अंबेडकर का व्यक्तित्व एवं कृतित्व भारतीय समाज के लिए प्रेरणादायक है। विषमतावादी समाज में गैर बराबरी, भेदभाव, छुआछूत के विरूद्ध डाॅ. अम्बेडकर ने लोकतांत्रिक एवं वैधानिक रूप से संघर्ष किया। इसके चलते सदियों से अपने अधिकारों से वंचित वर्ग को न्याय मिला। डाॅ अंबेडकर की आधुनिक सोच की झलक भारतीय संविधान में देखने को मिलती है। अम्बेडकर ने दलितों, महिलाओं के अधिकारों को स्थापित करने के साथ-साथ अंधविश्वास, पाखंड और जाति वर्गभेद के विरूद्ध भी संघर्ष किया। डाॅ. अम्बेडकर की प्रगतिवादी सोच को रूढि़वादियों ने आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश की। उनके योगदान को कमतर आंकने की भूल और उनके विचारों को न समझने की कमजोरी से देश की सामाजिक-व्यवस्था को विश्वमंच पर अपमान झेलना पड़ता है। यदि अंबेडकर के विचारों से प्रेरणा लेकर लोकतांत्रिक सरकारों ने कार्य किया होता तो देश की दो तिहाई आबादी को भी व्यवस्था में पूर्ण भागीदारी मिल गई होती। 



(जनसंदेश टाइम्स में डा. अम्बेडकर की पुण्यतिथि ( 6 दिसंबर, 2014 ) पर उनका स्मरण करते हुए कृष्ण कुमार यादव का लेख)

!! आज डा. अम्बेडकर जी की पुण्यतिथि ( 6 दिसंबर, 2014 )  पर सादर नमन !! 

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2014

माँ और पिता


जिसकी कोख से जन्म होता : वह माँ
जिसके पेट पर खेलने में मजा आता : वह पिता !

जो धारण करती : वह माँ
जो सिंचन करता : वह पिता !

जो गोद में लेकर सहलाती : वह माँ
जो हाथों में धर कर ऊंचा उठाता : वह पिता!

जो उंगली पकड़कर चलना सिखाती: वह माँ
जो कंधों पर लेकर दौड़ना सिखाता : वह पिता!

जो डूब-डूब गगरी करती: वह माँ
जो हर-हर गंगे करता : वह पिता!

जो आँचल तले दबाती: वह माँ
जो पिंजड़े से बाहर निकालता : वह पिता!

जो व्याकुल होती : वह माँ
जो संयम सिखाता : वह पिता!

जो आशीर्वचन जैसी: वह माँ
जो नमस्कार तुल्य : वह पिता!

जिसके सिवा जीवन नहीं : वह माँ
जिसके सिवा भविष्य नहीं: वह पिता !!

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

कृष्ण के मुकुट में एक और नगीना : भूटान में मिलेगा परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान

हिंदी साहित्य और ब्लाॅग पर संस्मरणात्मक सृजन के लिए चर्चित ब्लाॅगर व साहित्यकार एवं सम्प्रति इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव को 15-18 जनवरी 2015 के दौरान भूटान में आयोजित होने वाले चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन में  “परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान’’ से सम्मानित किया जाएगा। इस सम्मान में 25,000 रूपये की धनराशि, सम्मान पत्र, प्रतीक चिन्ह, श्रीफल और अंगवस्त्र दिया जायेगा। उक्त जानकारी सम्मलेन के संयोजक श्री रवीन्द्र प्रभात ने दी। 

कृष्ण कुमार यादव ने वर्ष 2008 में ब्लाॅग जगत में कदम रखा और विभिन्न विषयों पर आधारित दसियों ब्लाॅग का संचालन-सम्पादन करके कई लोगों को ब्लाॅगिंग की तरफ प्रवृत्त किया और अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ ब्लाॅगिंग को भी नये आयाम दिये। कृष्ण कुमार यादव के दो व्यक्तिगत ब्लॉग हैं । इनमें “शब्द सृजन की ओर“ (http://kkyadav.blogspot.in/) ब्लॉग सामयिक विषयों, मर्मस्पर्शी कविताओं व जानकारीपरक, शोधपूर्ण आलेखों से परिपूर्ण है; वहीं “डाकिया डाक लाया“ (http://dakbabu.blogspot.in/) में डाक सेवाओं का इतिहास है, डाक सेवाओं से जुड़ी महान विभूतियों के बारे में जानकारी है, खतों की खुशबू है, डाक टिकटों की रोचक दुनिया सहित तमाम आयामों को यह ब्लाॅग सहेजता है। इन ब्लाॅंग को अब तक लाखों लोगों ने पढा है और करीब सौ ज्यादा देशों में इन्हें देखा-पढा जाता है।

गौरतलब है कि श्री यादव को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे पूर्व भी न्यू  मीडिया और ब्लॉगिंग हेतु  तमाम प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इनमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा “अवध सम्मान“, हिंदी ब्लॉगिंग के दशक वर्ष में सपत्नीक “दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति“ का सम्मान, नेपाल में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन में “परिकल्पना साहित्य सम्मान“ इत्यादि शामिल हैं ।  

सम्मेलन के दौरान वैश्विक परिप्रेक्ष्य विशेषकर सार्क देशों में  हिन्दी के प्रचार-प्रसार, न्यू मीडिया के रूप में ब्लाॅगिंग के विभिन्न आयामों एवं बदलते दौर में सोशल मीडिया की भूमिका इत्यादि विषयों पर भी चर्चा होगी। गौरतलब है कि अभी कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपनी भूटान यात्रा के दौरान भारत-भूटान के मध्य ऐतिहासिक व सांस्कृतिक संबंधों की चर्चा करते हुए परस्पर सद्भाव व सहयोग की बात कही थी। भूटान में आयोजित यह अन्तर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन भी निश्चिततः उसी कड़ी को आगे बढ़ाने का प्रयास करेगा।
(साभार)











रविवार, 30 नवंबर 2014

ब्लॉग और ब्लॉगर चर्चा में


कृष्ण के मुकुट में एक और नगीना : भूटान में मिलेगा परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान 


भूटान में सम्मानित होंगे कृष्ण कुमार यादव 
(हिंदुस्तान, 29 नवंबर 2014)


कृष्ण के मुकुट में एक और नगीना : भूटान में मिलेगा परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान 
(डेली न्यूज एक्टिविस्ट, 29 नवंबर 2014)


कृष्ण कुमार यादव को मिलेगा परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान 
(आई नेक्स्ट, 29 नवंबर 2014)

डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव को मिलेगा परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान 
(स्वतंत्र चेतना, 29 नवंबर 2014)

भूटान में आयोजित होने वाले चतुर्थ अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में सम्मानित किये जायेंगे  कृष्ण कुमार यादव
 (श्री टाइम्स, 29 नवंबर 2014)

निदेशक कृष्ण कुमार यादव को  परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान : भूटान में  अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में होंगे सम्मानित
(पायनियर, 29 नवंबर 2014)


Director Postal Services Krishna Kumar Yadav to get SAARC Summit Award
(Hindustan Times, 29 November 2014)


Blogger Krishna Kumar Yadav to be awarded during International Bloggers meet in Bhutan
(Times of India, 29 November 2014)




शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

दाम्पत्य जीवन का एक दशक


जीवन में एक और महत्वपूर्ण पड़ाव। दाम्पत्य जीवन का एक दशक आज पूरा हुआ। यहाँ पाश्चात्य विचारक फ्रैंज स्कूबर्ट के शब्द याद आ रहे हैं, ’’जिसने सच्चा दोस्त पा लिया, वह सुखी है। लेकिन उससे भी सुखी वह है जिसने अपनी पत्नी में सच्चा मित्र पा लिया है।’’





दाम्पत्य जीवन का एक दशक : 28 नवम्बर, 2014 को हम अपने विवाह की दसवीं वर्षगाँठ सेलिब्रेट कर रहे हैं। पर अभी भी लगता है मानो कल की ही तो बात है। वाकई समय कितनी तेजी से बीतता है, पता ही नहीं चलता।

विभिन्न माध्यमों पर आप सभी की शुभकामनाओं और स्नेह के लिए आभार !!

बुधवार, 26 नवंबर 2014

भूटान में होगा अन्तर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन : जुटेंगे भारत, नेपाल, भूटान, आस्ट्रेलिया सहित तमाम देशों के साहित्यकार व दिग्गज ब्लाॅगर्स

हिन्दी सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की अन्य देशों में भी तेजी से प्रतिष्ठित हो रही है। इसके प्रचार-प्रसार में फिल्मों और साहित्य के साथ-साथ न्यू मीडिया के रूप में ब्लागिंग ने भी महत्वपूर्ण स्थान निभाया है। ऐसे में ब्लाॅगिंग से जुड़े लोगों को एक मंच देने के उद्देश्य से लखनऊ से प्रकाशित ’परिकल्पना समय’ पत्रिका एवं ’परिकल्पना’ साहित्यिक संस्था द्वारा प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। सम्मेलन का मूल उद्देश्य दक्षिण एशिया में ब्लॉग के विकास हेतु पृष्ठभूमि तैयार करना,हिंदी-संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना, भाषायी सौहार्द्रता एवं सांस्कृतिक अध्ययन-पर्यटन का अवसर उपलब्ध कराना आदि है। दिल्ली, लखनऊ, काठमांडू में आयोजन के बाद इस बार 15-18 जनवरी 2015 के दौरान भूटान में चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा। यहाँ अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉग सम्मलेन आयोजित करने के पीछे उद्देश्य है हिंदी संस्कृति को भूटानी संस्कृति के करीब लाना और हिंदी भाषा को यहाँ के वैश्विक वातावरण में प्रतिष्ठापित करना। उक्त बातें ’परिकल्पना समय’ के प्रधान संपादक तथा ’अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन’ के संयोजक रवीन्द्र प्रभात ने कही। 

श्री प्रभात ने बताया कि इस अवसर पर हिन्दी ब्लाॅग एवं साहित्य को समृद्ध करने वाले विभिन्न देशों-भारत, नेपाल, भूटान, आस्ट्रेलिया इत्यादि के लोगों को सम्मानित भी किया जायेगा। इसमें ’’परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान’’ इलाहाबाद (उ.प्र.) के निदेशक डाक सेवाएं एवं चर्चित ब्लाॅगर श्री कृष्ण कुमार यादव को ब्लाॅग पर संस्मरणात्मक सृजन के लिए, रायपुर (छ.ग.) से श्री ललित शर्मा को पुरातत्व विषयक लेखन के लिए, तेलंगाना, हैदराबाद से श्रीमती सम्पत देवी मुरारका को यात्रा वृतांत के लिए एवं नेपाल के चर्चित साहित्यकार श्री कुमुद अधिकारी को साहित्यिक ब्लाॅग पत्रकारिता के लिए प्रदान किया जायेगा। इस सम्मान में 25,000 रूपये की धनराशि, सम्मान पत्र, प्रतीक चिन्ह, श्रीफल और अंगवस्त्र दिया जायेगा। 

इसी क्रम में सम्मेेलन में ’’परिकल्पना सार्क सम्मान’’ के लिए भूटान के श्री लिंगचेन दोरजी को उनकी चर्चित अंगे्रजी उपन्यासिक कृति ’होम संगरिला’ के लिए, ऑस्ट्रेलिया से सुश्री रेखा राजवंशी को पश्चिमी देशों में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए, औरंगाबाद, महाराष्ट्र से सुश्री सुनीता प्रेम यादव को अन्य भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद कर्म को बढ़ावा देने हेतु चयनित किया गया है। इस सम्मान के अन्तर्गत 5,000 रूपये की धनराशि, सम्मान पत्र, प्रतीक चिन्ह, श्रीफल और अंगवस्त्र दिया जायेगा। 

इस समारोह में दक्षिण एशिया के लगभग 50 ब्लॉगर्स को ’परिकल्पना सम्मान’ प्रदान किया जायेगा। इनमें असम के गुवाहाटी से श्री नीलेश माथुर, सिल्चर से श्रीमती शुभदा पाण्डेय, उ.प्र. के बाराबंकी से श्री रणधीर सिंह सुमन और डॉ विनय दास, लखनऊ से श्री राम बहादुर मिश्रा, राजस्थान के श्रीगंगानगर से श्री सुरजीत सिंह बरवाल, जयपुर से सुश्री सरस्वती माथुर,  छत्तीसगढ़ के रायपुर से श्री गगन शर्मा, नवी मुंबई से श्रीमती तारा सिंह और मुंबई से श्री आलोक भारद्वाज इत्यादि का नाम प्रमुख है।

 सम्मेलन के दौरान वैश्विक परिप्रेक्ष्य विशेषकर सार्क देशों में हिन्दी के पठन-पाठ्न, हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार, न्यू मीडिया के रूप में ब्लाॅगिंग के विभिन्न आयामों एवं बदलते दौर में सोशल मीडिया की भूमिका इत्यादि विषयों पर भी चर्चा होगी। अभी कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपनी भूटान यात्रा के दौरान भारत-भूटान के मध्य ऐतिहासिक व सांस्कृतिक संबंधों की चर्चा करते हुए परस्पर सद्भाव व सहयोग की बात कही थी। भूटान में आयोजित यह सम्मेलन भी निश्चितत: उसी कड़ी को आगे बढ़ाने का प्रयास करेगा। 

( फाइल फोटो : गत वर्ष नेपाल में हुए अन्तर्राष्ट्रीय ब्लाॅगर सम्मेलन के दृश्य)


रविवार, 23 नवंबर 2014

मासूम प्यार


साथ-आठ साल के लड़का-लड़की खेल रहे थे।

लड़की बोली -" चलो मैं छुप जाती हूँ। अगर तूने मुझे ढूंढ लिया तो हम बड़े होकर आपस में शादी करेंगे।"

लड़का बोला-"ठीक है पर अगर मैं नही ढूंढ पाया तो? "

लड़की बड़ी मासूमियत से बोली- "ओये पागल प्लीज़ ऐसे मत बोलो। मैं वहाँ उसी दरवाजे के पीछे ही छिपूंगी।

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

आप भी इस्तेमाल कीजिये 'क्राउड सोर्सिंग'

इंटरनेट की दुनिया ने बहुत सारे नए शब्द इज़ाद करा दिए हैं।  इनमें से एक है - ′क्राउड सोर्सिंग′. यह क्राउड और आउट सोर्सिंग से गढ़ा गया शब्द है, जिसका अर्थ होता है, लोगों (क्राउड) से विचार अथवा राय मांगना। यह काम आमतौर पर ऑनलाइन यानी इंटरनेट के माध्यम से होता है। आजकल अपने देश भारत में 
मोदी सरकार सहित कुछेक राज्य सरकारें भी नीतियां बनाने और सरकारी अभियानों में ′क्राउड सोर्सिंग′ का जमकर इस्तेमाल कर रही है। तमाम फिल्म स्टार से लेकर विज्ञापनों की दुनिया से जुड़े लोग एवं साहित्यकार और कॉरपोरेट जगत के लोग भी इसका यदा कदा इस्तेमाल करते रहते हैं। 

वर्ष 2005 में जेफ होवे और मार्क रॉबिन्सन ने अपनी पत्रिका वायर्ड में इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया था, मगर इसके उदाहरण 18वीं सदी में भी मिलते हैं। मसलन, वर्ष 1714 में द लॉन्गिट्यूड प्राइज के लिए ब्रिटिश सरकार ने लोगों से राय मांगी थी।

 क्राउड सोर्सिंग के पीछे सोच यह है कि किसी एक व्यक्ति के बजाय कई लोगों से विचार, राय अथवा समाधान मांगने से श्रेष्ठ मशविरा सामने आता है। इसका एक उदाहरण विकिपीडिया भी है, जो चुनिंदा लेखकों अथवा संपादकों के बजाय अधिकाधिक लेखकों को खुद से जोड़े हुए है। इस कारण आज यह दुनिया का सबसे व्यापक विश्वकोश भी है। इसके समकक्ष दो अन्य शब्द भी हैं। पहला शब्द क्राउड फंडिंग है, जिसका अर्थ होता है, इंटरनेट के माध्यम से अधिकाधिक लोगों से पैसे जुटाना। और दूसरा, क्राउड टेस्टिंग, यानी सॉफ्टवेयर की गुणवत्ता जांच करने के लिए लोगों का इस्तेमाल करना।

बुधवार, 19 नवंबर 2014

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का दुर्लभ फोटो


झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का यह दुर्लभ फोटो वर्ष 1850 में कोलकाता में रहने वाले अंग्रेज फोटोग्राफर जॉनस्टोन एंड हॉटमैन ने खींचा था। इस फोटो को वर्ष  2009 में  भोपाल में आयोजित विश्व फोटोग्राफी प्रदर्शनी में भी प्रदर्शित किया गया था। यह चित्र अहमदाबाद के एक पुरातत्व महत्व की वस्तुओं के संग्रहकर्ता अमित अम्बालाल ने भेजा था। माना जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई का यही एकमात्र फोटोग्राफ उपलब्ध है।  आज उनकी जयंती पर शत-शत नमन !!

जब भी झाँसी की रानी जिक्र आता है तो सुभद्राकुमारी चौहान जी द्वारा लिखित कविता जरूर जेहन में आती है। न जाने जाने कितनी बार पढ़ा होगा, पर हमेशा पढ़ने का मन करता है।  तो लीजिये, एक बार फिर पढ़ते/सुनते हैं

झाँसी की रानी - 

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़|

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में,

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।