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गुरुवार, 29 जनवरी 2009

हे राम !!

(गुजरात दंगों के दौरान लिखी यह कविता आज गाँधी जी की पुण्य-तिथि की पूर्व संध्या पर बरबस ही याद आ गई और इसे पोस्ट करने का मोह न छोड़ सका ........)

एक बार फिर
गाँधी जी खामोश थे
सत्य और अहिंसा के प्रणेता
की जन्मस्थली ही
सांप्रदायिकता की हिंसा में
धू-धू जल रही थी
क्या इसी दिन के लिए
हिन्दुस्तान व पाक के बंटवारे को
जी पर पत्थर रखकर स्वीकारा था !
अचानक उन्हें लगा
किसी ने उनकी आत्मा
को ही छलनी कर दिया
उन्होंने ‘हे राम’ कहना चाहा
पर तभी उन्मादियों की एक भीड़
उन्हें रौंदती चली गई !!!

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

लघु कथा: पागल कौन/कृष्ण कुमार यादव

शाम का समय था। लोगों का झुण्ड तेजी से अपने-अपने गंतव्य की तरफ लौट रहा था। वहीं सड़क किनारे एक अधनंगी युवती बैठी हुई थी। कभी वह बुदबुदाती तो कभी छाती को अपने दोनों हाथों से पीटती। उसके आसपास से जितने लोग गुजरते, उतनी बातें करते। कोई कहता- बेचारी सताई हुई है। कोई उसे पागल बताता। तभी उसके बगल से मनचलों का एक झुण्ड निकला और आगे जाकर इशारों ही इशारों में उसको लेकर बातें करने लगा। 

अगली सुबह सड़क के किनारे उस युवती की खून से लथपथ नंगी देह पड़ी हुई थी। लोग गुजरते हुए कहते जाते हैं- ”च्...च्...च्.. बेचारी पगली!” 

कोई नहीं सोचता कि कौन है वास्तव में पागल- हवस की शिकार वह बेबस युवती या वे वहशी, जिन्होंने उस अभागी का बलात्कार करके समूची मानवता को शर्मसार कर दिया था ?

सोमवार, 5 जनवरी 2009

गोपाल दास ‘नीरज‘ जी से मेरी प्रथम मुलाकात

.....पद्मभूषण गोपाल दास 'नीरज' जी आज ८४ साल के हो गए. मंचों के बादशाह माने जाने वाले नीरज जी आज भी हिंदी कविता की लोकप्रियता की कसौटी हैं. काव्य-साधना के ६८ वर्षीय जीवन में नीरज जी को तमाम सम्मान-पुरस्कार हासिल हुए, पर उनके गीतों ने लोकप्रियता का जो रंग बिखेरा है, वह कम ही लोगों को मिलता है. अपने गीतों में प्रेम को उन्होंने नए आयाम दिए हैं. बकौल नीरज जी-''आज भले भी कुछ कह लो तुम, पर कल विश्व कहेगा सारा, नीरज से पहले गीतों में सब कुछ था पर प्यार नहीं था." जीवन के विविध पक्षों को सहज भाषा में स्वर देने वाले नीरज जी जीवन में भी उतने ही सहज हैं. मेरी उनसे मुलाकात अब तक सिर्फ एक बार हुयी है, पर यह अविस्मरनीय याद अभी भी जेहन में मौजूद है।

अपने प्रथम काव्य-संग्रह ‘‘अभिलाषा‘‘ के प्रकाशन के सन्दर्भ में 7 मार्च 2005 को प्रख्यात गीतकार व कवि गोपाल दास ‘नीरज‘ जी से मेरी मुलाकात हुई। उस समय मैं लखनऊ में असिस्टेंट पोस्टमास्टर जनरल के पद पर तैनात था. लखनऊ के वी.वी.आई.पी. गेस्ट हाउस में हमारी मुलाकात हुयी. जिस गर्मजोशी से नीरज जी ने मेरा स्वागत किया, उससे मुझे उनके बड़प्पन का एहसास हुआ. लुंगी-बनियान में बैठे इस शख्शियत को देखकर मुझे उनकी सादगी का भी एहसास हुआ. काफी देर तक पारिवारिक और अन्य मुद्दों पर उनसे बात होती रही. बहुत संकोच में अपनी कवितायेँ मैंने उन्हें दिखायीं तो वे काफी खुश हुए और बोले - अरे! आप तो प्रशासन में होते हुए भी इतना अच्छा लिखते हैं. फिर तो बैठे-बैठे उन्होंने मेरी कई कवितायेँ सुनीं और उनकी सराहना की. जिस निश्छल भाव से वह मुझे सुनते, उसी भाव से मैं उनका मुरीद होता जाता।

इस बीच मैंने नीरज जी से अपने काव्य-संग्रह ''अभिलाषा'' की चर्चा की तो सहर्ष वे उसके लिए दो-शब्द लिखने को तैयार हो गए. लगभग एक घंटा साथ रहने के बाद मैं अपने ऑफिस लौट आया. देर शाम तक नीरज जी ने लगभग दो पृष्ठों में ''अभिलाषा'' की भूमिका लिखकर भिजवा दी. इसमें समकालीन साहित्यिक परिवेश पर भी उन्होंने प्रकाश डाला था. इसे पढ़कर नीरज जी की ही पंक्तियाँ याद आ गई-''मत उसे ढूँढिये शब्दों के नुमाइश घर में, हर पपीहा यहाँ नीरज का पता देता है.''......फ़िलहाल नीरज जी के मेरे बारे में लिखे शब्द आज भी मेरी रचनाधर्मिता की पूंजी हैं-

''कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी हैं किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरन्तर बेचैन रहता है। वे यद्यपि छन्दमुक्त कविता से जुड़े हुये हैं लेकिन उनके समकालीनों में जो अत्यधिक बौद्धिकता एवं दुरुहता दिखाई पड़ती है, उससे वे सर्वथा अलग हैं। उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व सन्तुलन है। उनकी रचनायें जहाँ हमें सोचने के लिए विवश करती हैं, वहीं हृदय को भी रसाद्र करती हैं। वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ कवि हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षडयन्त्रों और पाखण्डों का बड़ी मार्मिकता के साथ उद्घाटन करते हैं। श्री यादव की कविताएं पढ़कर भविष्य में एक श्रेष्ठ रचनाकार के जन्म की आहट हमें मिलती है।''

रविवार, 4 जनवरी 2009

पेज थ्री

मँहगी गाड़ियों और वातानुकूलित कक्षों में बैठ
वे जीते हैं एक अलग जिन्दगी
जब सारी दुनिया सो रही होती है
तब आरम्भ होती है उनकी सुबह
रंग-बिरंगी लाइटों और संगीत के बीच
पैग से पैग टकराते
अगले दिन के अखबारों में
पेज थ्री की सुर्खियाँ
बनते हैं ये लोग
देर शाम किसी चैरिटी प्रोग्राम में
भारी-भरकम चेक देते हुये
और मंत्रियों के साथ फोटो खिंचवाते हुये
तैयार कर रहे होते हैं
राजनीति में आने की सीढ़ियाँ
सुबह से शाम तक
कई देशों की सैर करते
कर रहे होते हैं डीलिंग
अपने लैपटाॅप के सहारे
वे नहीं जाते
किसी मंदिर या मस्जिद में
कर लेते हैं ईश्वर का दर्शन
अपने लैपटाॅप पर ही
और चढ़ा देते हैं चढ़ावा
क्रेडिट-कार्ड के जरिये
सुर्खियाँ बनती हैं उनकी हर बात
और दौड़ता है
मीडिया का हुजूम उनकी पीछे
क्योंकि तय करते हैं वे
सेंसेक्स का भविष्य
पर्दे के पीछे से करते हैं
सरकारों के भविष्य का फैसला
बनती है आकर्षण का केन्द्र-बिंदु
सार्वजनिक स्थलों पर उनकी मौजूदगी
और इसलिए वे औरों से अलग हैं !!!
***कृष्ण कुमार यादव***