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सोमवार, 16 दिसंबर 2013

भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा कृष्ण कुमार यादव ‘’भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान-2013‘‘ से सम्मानित

भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ एवं युवा साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव को दिल्ली में 12-13 दिसम्बर, 2013 को आयोजित 29वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मेलन में सामाजिक समरसता सम्बन्धी लेखन, विशिष्ट कृतित्व एवं समृद्ध साहित्य-साधना और सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान हेतु ‘’भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान-2013‘‘ से सम्मानित किया। इससे पूर्व श्री यादव को विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु 50 से ज्यादा सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं। 

सरकारी सेवा में उच्च पदस्थ अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्य, लेखन, ब्लागिंग व सोशल मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय 36 वर्षीय श्री कृष्ण कुमार यादव की अब तक कुल 6 पुस्तकें- ”अभिलाषा” (काव्य संग्रह), ”अभिव्यक्तियों के बहाने” व ”अनुभूतियाँ और विमर्श” (निबंध संग्रह), इण्डिया पोस्ट: 150 ग्लोरियस ईयर्ज (2006) एवं ”क्रांतियज्ञ: 1857-1947 की गाथा” (2007), ”जंगल में क्रिकेट” (बालगीत संग्रह) प्रकाशित हैं। इनकी रचनाधर्मिता को देश-विदेश की प्रायः अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, इंटरनेट पर वेब पत्रिकाओं व ब्लॉग पर निरंतर देखा-पढा जा सकता हैं। 

गौरतलब है कि वर्ष 1984 में बाबू जगजीवन राम द्वारा दलित साहित्य के संवर्धन और प्रोत्साहन हेतु भारतीय दलित साहित्य अकादमी की स्थापना की गयी थी।

 साभार :

 कृष्ण कुमार यादव को 'भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप' 
(अमर उजाला' 14 दिसंबर, 2013 में चर्चा)

के.के. यादव को 'भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप' सम्मान
 ( 'पंजाब केसरी',15 दिसंबर, 2013 में चर्चा।)

निदेशक केकेयादव 'भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप' सम्मान से सम्मानित। 
('स्वतंत्र चेतना' 14 दिसंबर, 2013 में चर्चा।)

कृष्ण को मिला बुद्ध  फेलोशिप सम्मान 
( अमृत प्रभात,16 दिसंबर, 2013 में चर्चा)

कृष्ण कुमार यादव को 'भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप' सम्मान 
( कैनविज टाइम्स, 14 दिसंबर, 2013 में चर्चा)

कृष्ण कुमार यादव 'भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप सम्मान-2013' से सम्मानित। 
( 'युनाइटेड भारत' 14 दिसंबर, 2013 में चर्चा)

'भगवान बुद्ध फेलोशिप' से नवाजे गए कृष्ण कुमार यादव 
( जनसंदेश टाइम्स, 14 दिसंबर, 2013 में चर्चा)


The Pioneer (14 Dec. 2013) talking about :
 Director Postal Services Krishna Kumar Yadav felicitated.


Director Postal Services Krishna Kumar Yadav felicitated :
 Times of India, 14 Dec. 2013


Northern India Patrika (15 Dec. 2013) talking about :
 KK Yadav felicitated with "Lord Buddha National Fellowship Award-2013"









शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

एक और गाँधी 'मंडेला' का जाना

नस्लवाद के खिलाफ जंग के मसीहा और दक्षिण अफ्रीका के महान अश्वेत नेता नेल्सन मंडेला नहीं रहे। मंडेला  ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिनसे आज की  पीढ़ी भी उतनी ही शिद्दत से  प्रेरणा पाती थी। 27 साल से अधिक अवधि तक जेल में रहे दक्षिण अफ्रीका के इस नेता ने दुनिया को नैतिक नेतृत्व देने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तभी तो सारी दुनिया उनमें गाँधी जी का अक्स ढूंढती थी।  आखिर हो भी क्यों न, मंडेला महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों, विशेषकर वकालत के दिनों में दक्षिण अफ्रीका के उनके आंदोलनों से प्रेरित थे। महात्मा गांधी की ही भांति नेल्सन मंडेला भी युद्ध के खिलाफ थे। वह राष्ट्रीय सहमति तथा सुलह के पक्षधर थे। मंडेला ने भी हिंसा पर आधारित रंगभेदी शासन के खिलाफ अहिंसा के माध्यम से संघर्ष किया। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को खत्म करने में अग्रणी भूमिका निभाकर दुनिया भर में अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन चुके नेल्सन मंडेला ने न सिर्फ पूरे अफ्रीकी महाद्वीप को, बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों को भी स्वतंत्रता की भावना से ओत-प्रोत किया था। अपनी जिंदगी के 27 साल जेल की अंधेरी कोठरी में काटने वाले मंडेला अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे, जिससे देश पर अब तक चले आ रहे अल्पसंख्यक श्वेतों के अश्वेत विरोधी शासन का अंत हुआ और एक बहु-नस्ली लोकतंत्र का उद्भव हुआ।

      दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला की लड़ाई को भारत में अंग्रेजों के शासन के खिलाफ गांधी की लड़ाई के समान समझा जाता है। मंडेला ने कहा था, गांधी का सबसे ज्यादा आदर अहिंसा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए किया जाता है और कांग्रेस (अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस) का आंदोलन गांधीवादी दर्शन से बहुत ज्यादा प्रभावित था, इसी दर्शन ने 1952 के अवज्ञा अभियान के दौरान लाखों दक्षिण अफ्रीकियों को एकजुट करने में मदद की। इस अभियान ने ही एएनसी को लाखों जनता से जुड़े एक संगठन के तौर पर स्थापित किया। 'सत्य और अहिंसा' के लिए गांधी की हमेशा प्रशंसा करने वाले मंडेला ने 1993 में दक्षिण अफ्रीका में गांधी स्मारक का अनावरण करते हुए कहा था, गांधी हमारे इतिहास का अभिन्न हिस्सा हैं, क्योंकि उन्होंने यहीं सबसे पहले सत्य के साथ प्रयोग किया, यहीं उन्होंने न्याय के लिए अपनी दृढ़ता जताई, यहीं उन्होंने एक दर्शन एवं संघर्ष के तरीके के रूप में सत्याग्रह का विकास किया।

    नेल्सन मंडेला का जन्म 1918 में केप ऑफ साउथ अफ्रीका के पूर्वी हिस्से के एक छोटे से गांव के थेंबू समुदाय में हुआ था। उन्हें अक्सर उनके कबीले 'मदीबा' के नाम से बुलाया जाता था। मंडेला का मूल नाम रोलिहलाहला दलिभुंगा था। उनके स्कूल में एक शिक्षक ने उन्हें उनका अंग्रेजी नाम नेल्सन दिया। मंडेला नौ साल के थे जब उनके पिता का निधन हो गया। उनके पिता थेंबू के शाही परिवार के सलाहकार थे। 1941 में 23 साल की उम्र में जब उनकी शादी की जा रही थी, तब मंडेला सब कुछ छोड़ कर जोहानिसबर्ग भाग गए। दो साल बाद वह अफ्रीकानेर विटवाटरस्रांड विश्वविद्यालय में वकालत की पढ़ाई करने लगे, जहां उनकी मुलाकात सभी नस्लों और पृष्टभूमि के लोगों से हुई। इस दौरान वह उदारवादी, कट्टरपंथी और अफ्रीकी विचारधाराओं के संपर्क में आए, साथ ही उन्होंने नस्लभेद और भेदभाव को महसूस किया, जिससे राजनीति के प्रति उनमें जुनून पैदा हुआ।

   1943 में मंडेला अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) में शामिल हुए और बाद में एएनसी यूथ लीग की सह-स्थापना की। 1944 में एवेलिन मैसे के साथ उनकी पहली शादी हुई, जिनसे उनके चार बच्चे हुए। 1958 में दोनों का तलाक हो गया। इसके बाद मंडेला ने वकालत शुरू कर दी और 1952 में ओलिवर टांबो के साथ मिलकर देश के पहले अश्वेत वकालत संस्था की शुरुआत की। 1956 में 155 अन्य कार्यकर्ताओं के साथ मंडेला पर देशद्रोह का मामला चला, लेकिन चार साल की सुनवाई के बाद उनके खिलाफ लगे आरोप हटा लिए गए। 1958 में मंडेला ने विनी मादीकीजेला से शादी की, जिन्होंने बाद में अपने पति को कैद से रिहा कराने के लिए चलाए गए अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    1960 में एएनसी को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया और मंडेला भूमिगत हो गए। 1960 में रंगभेदी शासन के साथ तनाव बहुत बढ़ गया, जब शारपेविले नरसंहार में पुलिस ने 69 अश्वेतों की गोली मारकर हत्या कर दी। इससे अब तक चले आ रहे शांतिपूर्ण प्रतिरोध का अंत हो गया और एएनसी के तत्कालीन उपाध्यक्ष मंडेला ने आर्थिक कार्रवाई शुरू कर दी। सन् 1964 में रंगभेदी शासन का तख्ता पलटने की तैयारियां करने के आरोप में उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा दी गई। उन्हें रोबेन द्वीप पर स्थित एक जेल में बंद कर दिया गया। मंडेला रोबेन द्वीप पर 18 साल कैद रहे और 1982 में उन्हें यहां से पोल्समूर जेल में स्थानांतरित किया गया।  नेल्सन मंडेला ने अदालत के सामने बोलते हुए कहा था कि वह दक्षिणी अफ्रीका में एक ऐसे लोकतांत्रिक समाज का निर्माण करना चाहते हैं जिसमें सभी जातियों और नस्लों के लोग शांति और सद्भाव से रह सकें। पर जेल उन्हें न तोड़ सकी, न ही उनमें कड़वाहट भर सकी। उन्होंने कभी भी आशा का दमन नहीं छोड़ा। यहाँ तक कि कानून की शिक्षा उन्होंने जेल में ही पाई थी। कारावास के दिनों में उन्होंने एक साथ कई विश्वविद्यालयों से विधिशास्त्र की शिक्षा पाई। अंतत: अपनी जिंदगी के 27 साल जेल की अंधेरी कोठरी में काटने वाले मंडेला सन् 1990 में  रिहा हुए। रिहाई पर भारी भीड़ ने उनका स्वागत कर बदलाव की पूर्व भूमिका का इशारा कर दिया था।

   मंडेला  की रिहाई पर पूरी दुनिया की  निगाहें टिकी हुई थीं।  उन का नाम भारत से लेकर पूरी दुनिया में व्याप्त हो चुका  था।  रंगभेदियों की क़ैद से छूटने के बाद मंडेला जब एक निजी दौरे पर हिंदुस्तान आए थे तो गाँधी जी से जुड़ी जगहों पर जाना उनके लिए तीर्थयात्रा सा रहा। 1990 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था। मंडेला पूरी दुनिया में शांति के दूत बनकर उभरे थे और दिसंबर 1993 में मंडेला और अफ्रीका के तत्कालीन राष्ट्रपति एफ डब्ल्यू डी क्लार्क को नोबल शांति पुरस्कार भी दिया गया। इसके अगले वर्ष ही  1994 में मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति चुने गए। सन् 1994 से 1999 तक वह दक्षिणी अफ्रीका के राष्ट्रपति रहे। नेल्सन मंडेला एक समय पर गुट-निरपेक्ष आंदोलन के अध्यक्ष भी रहे ।

मंडेला में अंत तक जीजिविषा बनी रही।  उनके जीवन काल में दुनिया के पचास सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों ने उन्हें अपना मानद सदस्य बनाया हुआ है।  दुनिया भर के कई शहरों में बने स्मारक नेल्सन मंडेला को समर्पित हैं, कई सड़कों और चौराहों, स्टेडियमों और स्कूलों को उनका नाम दिया गया है। यदि उनके कारावास की सभी अवधियों को जोड़ लिया जाए तो उनके कारावास की कुल अवधि 31 साल बनती है। आधुनिक युग के किसी भी राष्ट्रपति ने अपने जीवन-काल में जेलें की इतनी लंबी सज़ा नहीं काटी। यद्यपि उनका पारिवारिक जीवन बहुत सुखमय नहीं कहा जा सकता। उनकी पहली पत्नी एवेलिन का सन् 2004 में देहांत हो गया। दूसरी पत्नी विन्नी को सन् 1991 में हत्या के मामले में एक सह-अपराधी के नाते छह साल जेल की सज़ा हुई। उनका अंतिम, तीसरा विवाह मोज़म्बीक के नेता समोरा माशेल की विधवा ग्रेस माशेल से हुआ था।| उनके बड़े बेटे मकगाहो की 2005 में एड्स से मृत्यु हो गई। छोटा बेटा तेम्बेकिले कार-दुर्घटना में मारा गया। सन् 2010 में उनकी परपोती की मृत्यु भी ऐसे ही हुई थी। मंडेला की तीन बेटियां उनके पीछे रह गई हैं।

  नेल्सन मंडेला पिछले कुछ समय से बहुत बीमार रहते थे। जून माह में उन्हें फेफड़ों में संक्रमण होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डाक्टरों का कहना था कि यह संक्रामक रोग उस तपेदिक से ही सीधा जुड़ा हुआ था जो उन्हें केप ऑफ गुड होप के नज़दीक स्थित रोबेन द्वीप पर 27 वर्ष के कारावास के दौरान हुआ था। एक लम्बे समय से फेफड़ों के संक्रमण से ग्रस्त मंडेला ने अंतत: 6 दिसंबर, 2013 को अंतिम सांस ली, पर इसी के साथ छोड़ गए एक दीर्घ परम्परा।


नेल्सन मंडेला ने एक आम आदमी और एक नेता के तौर पर बेहद सरल और प्रंशसनीय ढंग से यह साबित किया कि घृणा, हिंसा और नस्लभेद से बाहर निकला जा सकता है। मेल, शांति और न्याय की मिसाल  मंडेला सिर्फ अपनी पीढ़ी के लिए ही नहीं, बल्कि अब तक की सभी मिसालों में सबसे कद्दावर नेता थे। रंगभेद समाप्त करने में उन्होंने निजी तौर पर जो भूमिका निभाई, वह अतुलनीय रही। उनकी बातों से हमें यह सोचना चाहिए कि आजादी अपने आप नहीं मिल जाती, उसे बचाकर अपने पास रखना पड़ता है।  उनका चमत्कारी व्यकित्व, हास्य विनोद क्षमता और अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को लेकर कड़ुवाहट न होना, उनकी अद्भुत जीवन गाथा से उनके असाधारण वैश्विक अपील का पता चलता है। उन्होंने शांति और स्वतंत्रता की जो झलक दिखाईसामंजस्य बनाने और संवेदनशीलता से लोगों के साथ पेश आने की बात कही, यह बातें दुनिया भर में लोगों के लिए प्रेरणा और उम्मीद का स्रोत बनी रहेंगी। अहिंसा की उनकी राजनीतिक विरासत और उनका हर तरह के नस्लभेद की निंदा करना आने वाले कई सालों तक दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करता रहेगा।

कृष्ण कुमार यादव @ www.kkyadav.blogspot.com/ 

बुधवार, 27 नवंबर 2013

दाम्पत्य और रचनाधर्मिता की युगलबंदी





सृष्टि  में नव-रत्नों की  बड़ी महिमा गाई गई है और हम भी अपने जीवन में नौ अंक के बहुत करीब हैं. 28 नवम्बर का दिन हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान  है.  28 नवम्बर, 2013  को हमारी (कृष्ण कुमार यादव-आकांक्षा यादव) शादी की 9 वीं सालगिरह है। दाम्पत्य के साथ-साथ साहित्य और ब्लागिंग में भी सम्मिलित सृजनशीलता की युगलबंदी करते हुए जीवन के इस सफ़र में दिन, महीने और फिर साल कितनी तेजी से पंख लगाकर उड़ते चले गए, पता ही नहीं चला। आज हम वैवाहिक जीवन के 9  वर्ष पूरे करके 10 वें वर्ष में प्रवेश करेंगें। वैसे भी 9 हमारा पसंदीदा नंबर है।


जीवन के इस प्रवाह में सुख-दुःख के बीच सफलता के तमाम आयाम हमने एक साथ छुए. कभी जिंदगी सरपट दौड़ती तो कई बार ब्रेक लग जाता. एक-दूसरे के साथ बिताये गए ये नौ साल सिर्फ इसलिए नहीं महत्वपूर्ण हैं कि हमने जीवन-साथी के संबंधों का दायित्व प्रेमपूर्वक निभाया, बल्कि इसलिए भी कि हमने एक-दूसरे को समझा, सराहा और संबल दिया. अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि प्रशासनिक व्यस्तताओं के बीच कैसे समय निकल लेते हैं तो इसके पीछे आकांक्षा जी का ही हाथ है. यदि उन्होंने मेरी रचनात्मकता को सपोर्ट नहीं किया होता तो मैं आज एक अदद सिविल सर्वेंट मात्र होता, लेखक-कवि-साहित्यकार के तमगे मेरे साथ नहीं लगे रहते. यह हमारा सौभाग्य है कि हम दोनों साहित्य प्रेमी हैं और कई सामान रुचियों के कारण कई मुद्दों पर खुला संवाद भी कर लेते हैं। एक-दूसरे की रचनात्मकता को सपोर्ट करते हुए ही आज हम इस मुकाम पर हैं...!!









मंगलवार, 26 नवंबर 2013

चुनावी बेला में 'मताधिकार'



लोकतंत्र की इस चकरघिन्नी में
पिसता जाता है आम आदमी
सुबह से शाम तक
भरी धूप में कतार लगाये
वह बाट जोहता है
अपने मताधिकार का
वह जानता भी नहीं
अपने इस अधिकार का मतलब
बस एक औपचारिकता है
जिसे वह पूरी कर आता है
और इस औपचारिकता के बदले
दे देता है अधिकार
चंद लोगों को
अपने ऊपर
राज करने का
जो अपने हिसाब से
इस मताधिकार का अर्थ निकालते हैं
और फिर छोड़ देते हैं
आम आदमी को
इंतजार करने के लिए
अगले मताधिकार का।

शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

दीपावली पर पटाखे नहीं, दीये जलाएँ

दीपावली भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख त्यौहार है जिसका बेसब्री से इंतजार किया जाता है। दीपावली माने ''दीपकों की पंक्ति'' । दीपावली पर्व के पीछे मान्यता है कि रावण- वध के बीस दिन पश्चात भगवान राम अनुज लक्ष्मण व पत्नी सीता के साथ चैदह वर्षों के वनवास पश्चात  अयोध्या वापस लौटे  थे। जिस दिन श्री राम अयोध्या लौटे, उस रात्रि कार्तिक मास की अमावस्या थी अर्थात आकाश में चाँद बिल्कुल नहीं दिखाई देता था। ऐसे माहौल में नगरवासियों ने भगवान राम के स्वागत में पूरी अयोध्या को  दीपों के प्रकाश से जगमग करके मानो धरती पर ही सितारों को उतार दिया। तभी से दीपावली का त्यौहार मनाने की परम्परा चली आ रही है। 

वक्त के साथ दीपावली का स्वरूप भी बदला है। पारम्परिक सरसों के तेल की दीपमालायें न सिर्फ प्रकाश व उल्लास का प्रतीक होती हैं बल्कि उनकी टिमटिमाती रोशनी के मोह में घरों के आसपास के तमाम कीट-पतंगे भी मर जाते हैं, जिससे बीमारियों पर अंकुश लगता है। इसके अलावा देशी घी और सरसों के तेल के दीपकों का जलाया जाना वातावरण के लिए वैसे ही उत्तम है जैसे जड़ी-बूटियां युक्त हवन सामग्री से किया गया हवन। पर वर्तमान में जिस प्रकार बल्बों और झालरों का प्रचलन बढ़ रहा है, वह दीपावली के परम्परागत स्वरूप के ठीक उलटा है। 

समाज में अपनी हैसियत दिखाने हेतु एवं प्रदर्शन करने हेतु करोड़ों रुपये के पटाखे लोग जला डालते है तो दूसरी ओर न जाने  कितने लोग सिर्फ एक समय का खाना खाकर पूरा दिन बिता देते हैं। एक अनुमानानुसार हर साल दीपावली की रात पूरे देश में करीब तीन हजार करोड़  रूपये के पटाखे जला दिए जाते हैं और करोड़ों रूपये जुए में लुटा दिए जाते हैं। क्या हमारी अंतश्चेतना यह नहीं कहती कि करोड़ों रुपये के पटाखे छोड़ने के बजाय भूखे-नंगे लोगों हेतु कुछ प्रबन्ध किए जायें? क्या पटाखे फोड़कर  हम पर्यावरण को प्रदूषित नहीं कर रहे हैं? 

निश्चिततः इन सभी प्रश्नों का जवाब अगर समय रहते नहीं दिया गया तो अगली पीढि़याँ शायद त्यौहारों की वास्तविक परिभाषा ही भूल जायें।  दीपावली दीये  का त्यौहार  है न कि पटाखों का। अत: दीपावली पर दीये जलाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखें, न कि पटाखों और आतिशबाजी द्वारा इसे प्रदूषित करें ..दीपावली पर्व पर आप सभी को शुभकामनाएँ !!

गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

नवोदय विद्यालय समिति द्वारा आयोजित ’प्रज्ञानम-2013’ का कृष्ण कुमार यादव ने किया उद्घाटन

शिक्षा साहित्य, कला और संस्कृति किसी भी राष्ट्र को अग्रगामी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। ऐसे में जरुरत है कि युवा पीढ़ी इनसे अपने को जोड़े और राष्ट्र की प्रगति में अपना योगदान स्थापित करे। उक्त उद्गार इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने नवोदय विद्यालय समिति, लखनऊ सम्भाग द्वारा 21 अक्टूबर 2013 को लखनऊ में गोमती नगर स्थित संगीत नाटक अकादमी के प्रेक्षागार में आयोजित ”प्रज्ञानम-2013” में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि किताबी शिक्षा को व्यवहारिक ज्ञान से जोड़ना बहुत जरूरी है और इसके लिए जरूरी है अभिरुचियाँ विकसित की जाये।

नवोदय विद्यालय समिति द्वारा आयोजित ”प्रज्ञानम-2013” कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं ने सृजनात्मक और रचनात्मक प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। प्रज्ञानम में छात्र-छात्राओं की एक से बढ़कर एक प्रतिभा उभरकर सामने आयी। जहां एक ओर छात्राओं ने मंच पर आकर्षण नृत्य प्रस्तुत कर ’प्रज्ञानम-2013’ को यादगार बनाया, वहीं अपने हाथों से बनायी मूर्तियों, फ्लावर पाट एवं अन्य सजावटी समानों से शिल्पकारी का भी बखूबी परिचय दिया। इसके अलावा छात्र-छात्राओं ने कविता पाठ, वाद-विवाद, गायन, वादन, निबंध लेखन, आन द स्पाट पेंटिंग जैसी अन्य कलात्मक प्रतियोगिताओं में भी जमकर हाथ आजमाया। कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 19 जवाहर नवोदय विद्यालयों के विद्यार्थियों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में विजयी छात्रों को अगले महीने दिल्ली में होने वाली राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिलेगा। 

    इस अवसर पर नवोदय विद्यालय समिति, लखनऊ संभाग द्वारा आयोजित चित्र प्रदर्शनी का फीता काटकर इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं, कृष्ण कुमार यादव ने उद्घाटन किया। इस दौरान छात्र-छात्राओं ने रंगारंग कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए। इससे पूर्व श्री यादव ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर और दीप प्रज्वलित कर ’प्रज्ञानम-2013’ कार्यक्रम का औपचारिक रूप से उद्घाटन किया। गौरतलब है कि कृष्ण कुमार यादव जवाहर नवोदय विद्यालय, जीयनपुर-आज़मगढ़ के पूर्व छात्र रहे हैं, ऐसे में उनकी उपस्थिति प्रेरणास्पद रही। 

नवोदय विद्यालय समिति, लखनऊ सम्भाग की ओर से इस अवसर पर इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं, कृष्ण कुमार यादव को सम्मानित किया गया।
सम्मान प्रदान करते हुए नवोदय विद्यालय समिति, लखनऊ सम्भाग के उपायुक्त श्री अशोक कुमार शुक्ला ने कहा कि बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न कृष्ण कुमार यादव जवाहर नवोदय विद्यालय से सिविल सेवाओं में सफल होने वाले प्रथम व्यक्ति हैं, वहीं प्रशासन के साथ-साथ अपनी साहित्यिक व लेखन अभिरुचियों के चलते भी उन्होंने कई उपलब्धियाँ अपने खाते में दर्ज की हैं । उन्होंने श्री यादव को तमाम विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बताया और इस बात पर हर्ष जताया कि मुख्य अतिथि के रूप में नवोदय के ही एक पूर्व विद्यार्थी को पाकर हम सब अभिभूत हैं । इस अवसर पर श्री यादव ने जहाँ नवोदय में बिताए गए दिनों को लोगों के साथ साझा किया, वहीं जीवन में प्रगति के लिए विद्यार्थियों को तमाम टिप्स भी दिए।

इस अवसर पर नवोदय विद्यालय समिति, लखनऊ सम्भाग के उपायुक्त श्री अशोक कुमार शुक्ला ने कहा कि प्रज्ञानम के माध्यम से बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ सशक्त सांस्कृतिक, तत्वपूर्ण एवं मूल्यपरक शिक्षा पर्यावरण और शारीरिक शिक्षा के साथ आधुनिक शिक्षा प्रदान करना ध्येय है। कार्यक्रम का संचालन जवाहर नवोदय विद्यालय, फिरोजाबाद की प्रधानाचार्या श्रीमती सुमनलता द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर तमाम विद्यालयों के प्रधानाचार्य, अध्यापकगण, शिक्षाविद, इत्यादि मौजूद थे। 

(पंकज मौर्य, सी-4 पोस्टल स्टाफ कालोनी, एल्गिन रोड इलाहाबाद-211001)

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

हाड़-माँस का वह मनस्वी



गाँधी जैसे इतिहास पुरूष
इतिहास में कब ढल पाते हैं 
बौनी पड़ जाती सभी उपमायें
शब्द भी कम पड़ जाते हैं ।

सत्य-अहिंसा की लाठी
जिस ओर मुड़ जाती थी
स्वातंत्र्य समर के ओज गीत
गली-गली सुनाई देती थी।

बैरिस्टरी का त्याग किया
लिया स्वतंत्रता का संकल्प
बन त्यागी, तपस्वी, सन्यासी
गाए भारत माता का जप।

चरखा चलाए, धोती पहने
अंग्रेजों को था ललकारा
देश की आजादी की खातिर
तन-मन-धन सब कुछ वारा।

हो दृढ़ प्रतिज्ञ, संग ले सबको
आगे कदम बढ़ाते जाते
गाँधी जी के दिखाये पथ पर
बलिदानी के रज चढ़ते जाते।

हाड़-माँस का वह मनस्वी
युग-दृष्टा का था अवतार
आलोक पुंज बनकर दिखाया
आजादी का तारणहार।

भारत को आजाद कराया
दुनिया में मिला सम्मान
हिंसा पर अहिंसा की विजय
स्वातंत्र्य प्रेम का गायें गान।


मंगलवार, 24 सितंबर 2013

हिंदी में वैश्विक भाषा बनने की क्षमता

भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में हिंदी का बहुत बड़ा योगदान है। जरूरत इस बात की है कि हम इसके प्रचार-प्रसार और विकास के क्रम में आयोजनों से परे अपनी दैनिक दिनचर्या से भी जोड़ें। हिन्दी-पखवाड़ा के अवसर पर पोस्टमास्टर जनरल, इलाहाबाद परिक्षेत्र कार्यालय में ’’बदलते परिवेश में हिन्दी की भूमिका’’ विषय पर 20 सितम्बर 2013 को  आयोजित संगोष्ठी में  इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं एवं चर्चित ब्लागर व साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव  ने कहा कि हिंदी में वैश्विक भाषा बनने की पूरी क्षमता है और आज 150 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। विज्ञान-प्रौद्योगिकी से लेकर तमाम विषयों पर हिन्दी की किताबें अब उपलब्ध हैं, क्षेत्रीय अखबारों का प्रचलन बढ़ा है, इण्टरनेट पर हिन्दी की बेबसाइटों में बढ़ोत्तरी हो रही है, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कई कम्पनियों ने हिन्दी भाषा में परियोजनाएं आरम्भ की हैं । गूगल से हिन्दी में जानकारियाँ धड़ल्ले से खोजी जा रही हैं।

 श्री यादव ने कहा कि पहले जहाँ तमाम फाण्ट के चलते हिन्दी का स्वरूप एक जैसा नहीं दिखता था, वहीं वर्ष 2003 में यूनीकोड हिंदी में आया और इसके माध्यम से हिन्दी को अपने विस्तार में काफी सुलभता हासिल हुई। उन्होंने  कहा कि इंटरनेट के इस दौर में महत्वपूर्ण हिन्दी किताबों के ई प्रकाशन के साथ-साथ तमाम हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं भी अपना ई-संस्करण जारी कर रही हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर  हिन्दी भाषा व साहित्य को नए आयाम मिले हैं। श्री यादव ने हिंदी-दिवस की आलोचना करने वालों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि, जब लोग जन्मदिन मनाते हैं, नवरात्र मनाते हैं, अष्टमी-पूजन करते हैं तो फिर सवाल नहीं उठता। लेकिन जब  हिंदी को लेकर उत्सव मनते हों तो लोग कहते हैं यह खाना-पूर्ति है, इस सोच से बाहर निकलने की जरुरत है।

कार्यक्रम की  अध्यक्षता कर रहे प्रवर डाक अधीक्षक, इलाहाबाद मंडल श्री रहमतउल्लाह ने कहा कि हिंदी हमारी मातृ भाषा के साथ-साथ राजभाषा भी है और लोगों तक पहुँच स्थापित करने के लिए टेक्नॅालाजी स्तर पर इसका व्यापक प्रयोग करने की जरूरत है। 

कार्यक्रम के आरंभ में अपने सम्बोधन में सहायक निदेशक (हिंदी) टी. बी. सिंह ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर कि निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव स्वयं हिन्दी के सम्मानित लेखक और साहित्यकार हैं, ऐसे में डाक विभाग में राजभाषा हिन्दी के प्रति लोगों को प्रवृत्त करने में उनका पूरा मार्गदर्शन मिल रहा है। उन्होंने कहा कि राजभाषा हिंदी अपनी मातृभाषा है, इसलिए इसका सम्मान करना चाहिए और बहुतायत में प्रयोग करना चाहिए। 

सहायक डाक अधीक्षक विनय कुमार ने कहा कि हिंदी को भाषा के साथ-साथ प्रयोजनीयता से भी जोड़ने की जरूरत है। डाक निरीक्षक ए. के. सिंह ने कहा कि, हिंदी साहित्य के साथ-साथ बोलचाल की भी भाषा है अतः इसे सरलीकरण रूप में आगे बढ़ाने की जरूरत है। 

इस अवसर पर डाक निरीक्षक दीपक कुमार, विनीत टन्डन, पंकज मौर्य, विक्रम सिंह, कु0 लक्ष्मी सहित तमाम कर्मचारियों ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में स्वागत भाषण सहायक निदेशक (राज भाषा) श्री टी बी सिंह आभार सहायक निदेशक तृतीय श्री तेज बहादुर सिंह व कार्यक्रम का संचालन श्री बृजेश कुमार शर्मा, निरीक्षक डाक द्वारा किया गया। 



इस अवसर पर निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने हिंदी पखवाड़े के दौरान आयोजित प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित भी किया। इनमें टंकण प्रतियोगिता में सर्वश्री विनीत टन्डन, राजेन्द्र प्रसाद, जगदीश कुशवाहा, निबन्ध प्रतियोगिता में अजय प्रकाश, स्वप्न कुमार, आर के श्रीवास्तव व हिंदी स्लोगन में जगदीश कुशवाहा, इजलेश कुमार, रामबहादुर ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार प्राप्त किया।

हिन्दी-पखवाड़ा के अवसर पर पोस्टमास्टर जनरल, इलाहाबाद परिक्षेत्र कार्यालय में ’’बदलते परिवेश में हिन्दी की भूमिका’’ विषय पर एक संगोष्ठी एवं विजेताओं को पुरस्कृत करने का कार्यक्रम 20 सितम्बर 13 को आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं एवं चर्चित ब्लागर व साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव उपस्थित थे। कार्यक्रम के आंरभ में प्रवर डाक अधीक्षक, इलाहाबाद मंडल श्री रहमतउल्लाह ने श्री यादव का शाल ओढ़ाकर व स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया।

प्रस्तुति- तेजबहादुर सिंह, सहायक निदेशक (राजभाषा) कार्यालय-पोस्टमास्टर जनरल, इलाहाबाद परिक्षेत्र, इलाहाबाद.

(हिन्दुस्तान, 21 सितम्बर 2013 )

सोमवार, 23 सितंबर 2013

बेटियाँ सिर्फ बेटियाँ नहीं होतीं

कल डाटर्स-डे था। भला बेटियों को भी किसी दिन में बांधा जा सकता है। बेटियों का तो सारा जहां है, उनके बिना यह जग ही अधूरा है। तभी तो कहते हैं कि बेटे भाग्य से मिलते हैं और बेटियाँ सौभाग्य से। बेटियों को लेकर लिखी गई जीवन-संगिनी आकांक्षा जी की यह कविता  बहुत अपील करती है-


हमारी बेटियाँ 
घर को सहेजती-समेटती
एक-एक चीज का हिसाब रखतीं
मम्मी की दवा तो
पापा का आफिस
भैया का स्कूल
और न जाने क्या-क्या।

इन सबके बीच तलाशती
हैं अपना भी वजूद
बिखेरती हैं अपनी खुशबू
चहरदीवारियों से पार भी
पराये घर जाकर
बना लेती हैं उसे भी अपना
बिखेरती है खुशियाँ
किलकारियों की गूंज  की ।

हमारी  बेटियाँ 
सिर्फ बेटियाँ  नहीं होतीं
वो घर की लक्ष्मी
और आँगन की तुलसी हैं
मायके में आँचल का फूल
तो ससुराल में वटवृक्ष होती हैं 
हमारी बेटियाँ ।


रविवार, 22 सितंबर 2013

'हिंदी ब्लागिंग' और अंग्रेजी अख़बार

ब्लागिंग और सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने हिंदी को खूब बढ़ावा दिया है। यद्यपि इसे कई बार देवनागरी लिपि की बजाय  रोमन लिपि में लिखने और भाषा की अशुद्धता को लेकर लम्बी बहसें भी हुई हैं, पर यह तो मानना ही पड़ेगा की इसके बहाने हिंदी का प्रयोग बढ़ा है। यही कारण है कि अब हिंदी को अंग्रेजी मीडिया भी इग्नोर नहीं कर पाता।अंग्रेजी अख़बारों में हिंदी के विज्ञापन धड़ल्ले से दिखने लगे हैं और कई बार हिंदी की बातें भी। हिंदी ब्लागिंग भी इससे अछूती नहीं है। अंग्रेजी अख़बार हिंदी ब्लागिंग से जुडी ख़बरों/रिपोर्ताज को भरपूर स्थान दे रहे हैं, आप भी देखिये-पढ़िए :




ALLAHABAD: Krishna Kumar Yadav and Akanksha Yadav, the blogger couple from city known for popularising the national language Hindi through New Media, were honoured at the International Bloggers Conference held in Kathmandu, Nepal.

While Krishna Kumar was awarded with Parikalpana Sahitya Samman, his wife Akanksha was felicitated with Parikalpana Blog Vibhushan. The awards were conferred upon the couple by former education and health minister of Nepal government and president of constituent assembly Arjun Narsingh Kesi. Akshitaa, a student of class 1 at Girls High School, Allahabad, also participated in this programme as the only young blogger.

Besides the Yadav couple, a number of bloggers in other languages like Nepali, Bhojpuri, Awadhi, Chattisgarhi, and Maithili from across the world were felicitated on the occasion. The programme was organized by Parikalpana Group at Sorahkhute Auditorium of Lekhnath Sahitya Sadan in Central Kathmandu from September 13-15.

During the session on New Media and its social concerns, Krishna Kumar Yadav elaborated on the role of New Media and its role in changing times, whereas Akanksha Yadav discussed the role of blogging in literature.



Hindustan Times (19 Sept. 2013) speaks : Postal Officer, wife get award for Hindi Blogging.

Northern India Patrika (19 Sept. 2013) says : Another feather in Blogger Couple's cap.




शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

अख़बारों की सुर्खियाँ बना काठमांडू में हुआ अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन

नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुए  'अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन' को प्रिंट-मीडिया ने भी हाथों-हाथ लिया। ब्लॉग को न्यू मीडिया के विकल्प रूप में नागरिक-पत्रकारिता का पर्याय माना जाता है, पर सच्चाई यही है कि कोई भी एक मीडिया अपने में अधूरा है। आपस में बिना सामंजस्य के मीडिया अग्रगामी नहीं हो सकता। यही कारण  है कि कभी अखबारी सुर्खियाँ फेसबुक और ब्लॉग पर छाती हैं तो कभी ब्लॉग जगत अख़बारों की सुर्खियाँ बनता है। 


'द पायनियर',19 सितम्बर 2013 में चर्चा :  इलाहाबाद के ब्लॉगर दम्पति का नेपाल में सम्मान। डाक निदेशक केके यादव एवं उनकी पत्नी आकांक्षा को स्वास्थ्य मंत्री ने किया सम्मानित। 


चर्चा में : ब्लॉगर दम्पति का नेपाल में सम्मान। काठमांडू में आयोजित ब्लॉगर  सम्मलेन  में कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव सम्मानित। (साभार : अमर उजाला, इलाहाबाद, 19 सितम्बर 2013) 



'पंजाब केसरी',19 सितम्बर 2013 में चर्चा : केके और  उनकी पत्नी को मिला सम्मान।


'श्री टाइम्स',19 सितम्बर 2013 में चर्चा : प्रयाग के ब्लॉगर दम्पति डाक निदेशक को नेपाल में मिला सम्मान।


'हिन्दुस्तान',19 सितम्बर 2013 में चर्चा : कृष्ण कुमार यादव को मिला परिकल्पना साहित्य सम्मान।


'स्वतंत्र चेतना',19 सितम्बर 2013 में चर्चा :  डाक निदेशक केके यादव व आकांक्षा को नेपाल में मिला सम्मान


'अमर उजाला काम्पैक्ट',19 सितम्बर 2013 में चर्चा : डाक निदेशक केके यादव आकांक्षा सम्मानित ।


'दैनिक जागरण',19 सितम्बर 2013 में चर्चा : जिले के दम्पति को मिला ब्लॉग विभूषण सम्मान।


'अमर उजाला', जौनपुर 19 सितम्बर 2013 में चर्चा : डाक निदेशक को ब्लॉग विभूषण सम्मान।
प्रयाग में हुआ हिंदी ब्लागर्स का जमावड़ा : काठमांडू में अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन के बाद इलाहाबाद में भी हिंदी ब्लागर्स का जमावड़ा हुआ। दरअसल हुआ यूँ कि काठमांडू से लौटते हुए गिरीश पंकज जी, बी एस पाबला जी और ललित शर्मा जी हमारे मेहमान बनकर रुके और फिर उन्होंने महफूज अली को भी बुला लिया ....फिर क्या था, खबर तो बननी ही थी और बन भी गई। इसमें तमाम ब्लागर्स का जिक्र है। (जनसंदेश टाइम्स, 17 सितम्बर 2013 इलाहाबाद संस्करण के पेज संख्या 5 पर आप भी देख-पढ़ सकते हैं।)