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रविवार, 30 दिसंबर 2012

बच्चे की निगाह


कभी देखो समाज को
बच्चे की निगाहों से
पल भर में रोना
पल भर में खिलखिलाना।

अरे! आज लड़ाई हो गई
शाम को दोनों गले मिल रहे हैं
एक दूसरे को चूम रहे हैं।

भीख का कटोरा लिए फिरते
बूढ़े चाचा की दशा देखी नहीं गई
माँ की नजरें चुराकर
अपने हिस्से की दो रोटियाँ
दे आता है उसे।

दीवाली है, ईद है
अपनी मंडली के साथ
मिठाईयाँ खाये जा रहा है
क्या फर्क पड़ता है
कौन हिन्दू है, कौन मुसलमां।

सड़क पर कुचल आता है आदमी
लोग देखते हुए भी अनजान हैं
पापा! पापा! गाड़ी रोको
देखो उन्हें क्या हो गया ?

छत पर देखा
एक कबूतर घायल पड़ा है
उठा लाता है उसे
जख्मों पर मलहम लगाता है
कबूतर उन्मुक्त होकर उड़ता है।

बच्चा जोर से तालियाँ बजाकर
उसके पीछे दौड़ता है
मानों सारा आकाश
उसकी मुट्ठी में है।

- कृष्ण कुमार यादव (अपने काव्य-संग्रह 'अभिलाषा' से)

 
(चित्र में बिटिया अपूर्वा)

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

मेरा भी तो ब्याह रचाओ

 
राजा जी की निकली सवारी,
हाथी-घोड़ा औ' दरबारी।
हाथी दादा रूठ गए,
पीछे-पीछे छूट गए।

रानी बोली हाथी लाओ,
फिर आगे को कदम बढ़ाओ।
सारे सैनिक दौड़ पड़े,
हाथी दादा अडिग खड़े।

पहले मानो मेरी बात,
तब आऊँ मैं सबके साथ।
बोले मेरी हथिनी लाओ,
मेरा भी तो ब्याह रचाओ।

रविवार, 23 दिसंबर 2012

कुँवारी किरणें

 
सद्यःस्नात सी लगती हैं
हर रोज सूरज की किरणें।

खिड़कियों के झरोखों से
चुपके से अन्दर आकर
छा जाती हैं पूरे शरीर पर
अठखेलियाँ करते हुये।

आगोश में भर शरीर को
दिखाती हैं अपनी अल्हड़ता के जलवे
और मजबूर कर देती हैं
अंगड़ाईयाँ लेने के लिए
मानो सज धज कर
तैयार बैठी हों
अपना कौमार्यपन लुटाने के लिए।

- कृष्ण कुमार यादव-
 
 

गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

21 दिसंबर 2012 को कुछ ही दिन रह गए हैं...


21 दिसंबर 2012 को कुछ ही दिन रह गए हैं। 21 दिसंबर 2012 को धरती का अंत हो जाएगा, इस बात के कोई सबूत नहीं है लेकिन दुनिया भर में इसको लेकर लोगों में एक डर बना हुआ है कि आखिर 21 दिसंबर को होगा क्या? क्या दुनिया खत्म हो जाएगी? क्या महाप्रलय आएगी। माया कैलेंडर की मानें तो दुनिया में प्रलय आएगी, लेकिन नासा ने माया सभ्यता की इस भविष्यवाणी को गलत साबित कर दिया है। नासा के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इतनी जल्दी पृथ्वी का अंत नहीं होगा।
 
प्रलय या कयामत का दिन, शब्द भले ही अलग हों लेकिन दोनों का आशय दुनिया के भयावह अंत से ही है। हिंदू धर्म के अनुसार कलयुग के अंत के बाद प्रलय का दिन आएगा, जब सब कुछ समाप्त हो जाएगा, पूरी दुनिया विनाश के साए में सिमट जाएगी। दूसरी ओर इस्लाम और ईसाई धर्म में भी कयामत या द डे ऑफ जस्टिस (जब सभी लोगों के पाप और पुण्यों का हिसाब किया जाएगा) इस दिन का उल्लेख किया गया है।
 
क्या है माया सभ्यता
 
दुनिया खत्म होने के पीछे माया सभ्यता की भविष्यवाणी को एक बड़ा कारण माना जा रहा था। माया सभ्यता 300 से लेकर 900 ई के बीच मैक्सिको, पश्चिमी होंडूरास और अल सल्वाडोर के बीच चली आ रही पुरानी सभ्यता है, इस सभ्यता के अनुसार चले आ रहे कैलेंडर में 21 दिसंबर 2012 के आगे किसी तारीख का कोई जिक्र नहीं है, जिसकी वजह से माना जा रहा था कि इस दिन पूरी दुनिया समाप्त हो जाएगी। यह कैलेंडर इतना सटीक है कि आज के सुपर कंप्यूटर भी उसकी गणनाओं में सिर्फ 0.06 तक का ही फर्क निकाल सके हैं।
 
प्राचीन माया सभ्यता के काल में गणित और खगोल के क्षेत्र उल्लेखनीय विकास हुआ। अपने ज्ञान के आधार पर माया लोगों ने एक कैलेंडर बनाया था। हजारों साल पहले बनाए माया कैलेंडर में 21 दिसंबर 2012 के बाद की तारीख नहीं दी गई हैं, इसका अर्थ यही समझा जा रहा है कि इस दिन दुनिया पर खतरा मंडरा सकता है।
 
माया कैलेंडर की भविष्यवाणी
 
माया कैलेंडर के मुताबिक 21 दिसंबर 2012 में एक ग्रह पृथ्वी से टकराएगा, जिससे सारी धरती खत्म हो जाएगी। करीब 250 से 900 ईसा पूर्व माया नामक एक प्राचीन सभ्यता स्थापित थी। ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडूरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में इस सभ्यता के अवशेष खोजकर्ताओं को मिले हैं।
 
समय-समय पर दुनिया के खात्मे के लिए कई प्रकार की भविष्यवाणिया की जा रही हैं। नास्त्रेदमस और माया सभ्यता की दुहाई देकर जहा इस वर्ष दुनिया का अंत होने की भविष्यवाणियां की जा रही थीं, वहीं ग्वाटेमाला के जंगलों में मिले माया कैलेंडर के एक अज्ञात संस्करण से खुलासा हुआ है कि अगले कई अरब वषरें तक पृथ्वी पर मानव सभ्यता के अंत का कारण बनने वाली कोई भी प्रलयकारी आपदा नहीं आएगी। शूलतुन में माया सभ्यता के एक प्राचीन शहर के खंडहर मौजूद हैं। इन खंडहरों में मौजूद एक दीवार पर यह कैलेंडर मौजूद हैं। लगभग आधे वर्ग मीटर आकार के इस कैलेंडर के अच्छी हालात में होने की बात कही जा रही है। वैज्ञानिक इसे अब तक मिला सबसे पुराना माया कैलेंडर करार दे रहे हैं।
 
उनका दावा है कि यह कम से कम 1200 वर्ष पुराना रहा होगा। माया पुरोहितों के जिस पूजा स्थल से इस कैलेंडर को बरामद किया गया है उसमें माया राजाओं की विशालकाय भिती चित्र मौजूद हैं। पुरोहित समय की गणना करके राजाओं को शुभ मुहूर्त के बारे में सूचित किया करते थे। राजा अपने सभी फैसले शुभ मुहूर्त में ही लिया करते थे। प्राकृतिक आपदाओं से बचने और देवताओं को खुश करने के लिए माया सभ्यता में मानव बलि देने की भी प्रथा रही थी और इसके लिए आसपास के जंगलों में निवास करने वाले आदिवासियों को बड़े पैमाने पर बंदी बनाने का रिवाज था।
 
यह नया कैलेंडर पत्थर की एक दीवार में तराशा हुआ है, जबकि 2012 मे दुनिया के अंत की भविष्यवाणी करने वाले सभी माया कैलेंडर पुरानी पाडुलिपियों में मिलते हैं, जिनमें अलग-अलग चित्रों के माध्यम से अलग-अलग भविष्यवाणिया की गई हैं। दुनिया के अंत की घोषणा करने वाले सभी कैलेंडर इस पाषाण कैलेंडर से कई सौ वर्ष बाद तैयार किए गए थे। शूलतुन के खंडहरों के इस पूजा स्थल की एक दीवार पर चंद्र कैलेंडर बना हुआ है जो 13 वषरें की गणना कर सकता है।
 
इसके निकट की ही एक दीवार पर मौजूद तालिकाओं के आधार पर चार युगों की गणना हो सकती है जो वर्ष 935 से लेकर 6700 ईसवी तक हैं। शूलतुन के जंगलों में माया सभ्यता का एक महत्वपूर्ण शहर होने के बारे में पहली बार वर्ष 1915 में पता चला था। इसके बाद यहा खजाना चोरों ने कई बार सेंध लगाने का प्रयास किया लेकिन उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा। प्रोफेसर सैर्टनों के छात्र मैक्स चेम्बरिलन ने जब वर्ष 2010 में एक सुरंग से जाकर यहा कुछ भित्तीचित्रों के होने का पता लगाया तो पूरी टीम खुदाई में जुट गई और उन्होंने सदियों से गुमनामी में खोए माया सभ्यता के इस प्राचीन शहर को ढूंढ निकाला। सैटनरे का दावा है कि यह पूरा शहर 16 वर्गमील में फैला हुआ है और इसे पूरी तरह से खोदकर बाहर निकालने के लिए अगले दो दशकों का समय भी कम है।
 
दुनिया के अंत के संबंध में समय-समय पर कई प्रकार की भविष्यवाणिया की जाती रही है। इससे पहले 21 मई, 2011 को दुनिया के विनाश का दिन बताया जा रहा था लेकिन यह बात झूठी साबित हो गई। लेकिन अब माया कैलेंडर के आधार पर 21 दिसंबर, 2012 को दुनिया का आखिरी दिन मान लिया गया है।
 
साभार : जागरण

बुधवार, 12 दिसंबर 2012

12-12-12 : 12 हाइकु


 
1-
नई-नवेली
दुल्हन सी धरती
सजने लगी।

2-
पोषण कर
सुख-समृद्धि देती
पावन धरा।

3-
प्रकृति बंधी
नियमों से अटल
ललकारो ना।

4-
पर्यावरण
प्रदूषित हो रहा
रोकिए इसे।

5-
हर तरफ
कटते जंगलात
धरा रो रही।

6-
स्वच्छ जल
कहाँ से मिले अब
दूषित पानी।

7-
फैलता शोर
कनफोड़ू आवाज
घुटते लोग।

8-
संकटापन्न
विलुप्त होते प्राणी
कहाँ जाएं ये?

9-
घटती आयु
बढ़ता प्रदूषण
संकट आया।

10-
बढ़ते लोग
घटते संसाधन
पिसती धरा।

11-
पूछ रही है
धरती मदहोश
बंधन खोल।

12-
मत छेडि़ए
प्रकृति को यूँ अब
जला देगी ये।
 
-कृष्ण कुमार यादव-
 
 
 
 



 

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

पुस्तकों के बहाने..

पुस्तकें सिर्फ ज्ञान नहीं देतीं, बल्कि व्यक्तित्व का भी विस्तार करती हैं। यही कारण है कि मुझे जब भी मौका मिलता है, ढेर सारी पुस्तकें खरीद कर लाता हूँ। इस बार यह मौका मिला, 23 नवम्बर-2 दिसंबर तक संपन्न इलाहाबाद में राष्ट्रीय पुस्तक मेला में। घर से दूरी भी नहीं, सो आलस्य भी नहीं। ठण्ड का गुनगुना मौसम और पुस्तकें, धूप में बैठकर पुस्तकें पढना मुझे तो बहुत अच्छा लगता है। इलाहाबाद वैसे भी साहित्यकारों-बुद्धिजीवियों का शहर माना जाता है, अत: इसी बहाने कईयों से पुस्तक-मेले में मुलाकात भी हो गई। साहित्य की विभिन्न विधाओं के साथ-साथ कैरियर व मैनेजमेंट संबंधी पुस्तकें, पकवानों की खुशबू सहेजती पुस्तकें, धर्म-अध्यात्म, ज्योतिष, वास्तु का विस्तृत होता क्षितिज, स्वास्थ्य के प्रति सचेत करती पुस्तकें और बच्चों से जुडी पुस्तकें भी दिखीं इस पुस्तक-मेले में।

राजकमल, राधाकृष्ण, लोकभारती, वाणी, प्रभात, भारतीय ज्ञानपीठ, किताबघर, राजपाल एंड संस जैसे साहित्यिक प्रकाशनों के अलावा ओशो, सम्यक प्रकाशन, प्रतियोगिता साहित्य, स्कालर, के स्टालों पर भी खूब भीड़ रही। कौन कहता है कि हिंदी पुस्तकों के प्रति लोगों में पठनीयता घाट रही है, अकेले दस दिनों में ही एक करोड़ से ज्यादा की पुस्तकें इस मेले में बिक गईं। हर आयुवर्ग के लोग पुस्तकों के माध्यम से अपनी-अपनी जिज्ञासाएं शांत कर रहे थे। सम्यक प्रकाशन के स्टाल पर दलितों, पिछड़ों और इस वर्ग से जुड़े महापुरुषों पर आधारित पुस्तकों को लेकर दीवानगी देखते ही बनती थी। साहित्य में दलित-विमर्श का उभार देखना हो तो, इससे बेहतर जगह नहीं हो सकती थी। कुछेक किताबों को मैंने भी उलट-पलट कर देखा, स्थापित प्रतिमानों को ध्वंस करती व्याख्यायें लोगों को लुभाती हैं या और भी जिज्ञासु बनाती हैं। वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'दलित साहित्य के प्रतिमान' भले ही हिंदी दलित साहित्य के इतिहास और उसके सौंदर्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण पुस्तक हो, पर दलितों से सम्बंधित पुस्तकों के लिए भीड़ सम्यक प्रकाशन पर ही दिखी।

इलाहाबाद में कोई साहित्यिक आयोजन हो और 'गुनाहों का देवता' की चर्चा न हो तो अधूरा सा लगता है। धर्मवीर भारती ने जिस तरह से इसमें इलाहाबाद का वर्णन किया है, और उसके बाद इस उपन्यास की भाव-भूमि, वाकई बार-बार पढने को मन करता है। विद्यार्थी जीवन में तो एक रात में ही इस उपन्यास को पढ़कर ख़त्म कर दिया था। वो पहली बार खरीदी गई यह पुस्तक अभी भी मेरी लायब्रेरी में सुरक्षित है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित इस उपन्यास के लिए लोगों में यहाँ भी खूब क्रेज़ दिखा। श्रीलाल शुक्ल की 'राग दरबारी' तो अभी भी कई ग्रामीण इलाकों का सच बयां करती है। लगता है जैसे अभी यह उपन्यास जल्द ही लिखा गया हो। इस पुस्तक के प्रति भी लोगों में काफी आकर्षण रहा। भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित अखिल भारतीय लेखक संदर्शिका भी यहाँ दिखी, पर इसे हर साल अप-डेट करते रहने की जरुरत है।

लाल कृष्ण आडवानी जी के ब्लॉग पर लिखी गई पोस्ट पुस्तकाकार रूप में आ गई हैं, देखकर अच्छा लगा। हम ब्लागर्ज़ के लिए यह एक अच्छा संकेत भी है।

अपनी व्यस्तताओं के मध्य पुस्तकों से संवाद करने का भले ही मुझे कम ही अवसर मिलता है, पर इस बार मैंने कई पुस्तकों को पढने का मन बनाया है। पुस्तक-मेले के बहाने ही सही, कई नई पुस्तकों से रूबरू होने का मौका मिला। इन्हें खरीद कर लाया भी और अब इन्हें पढने की बारी है।