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शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान श्रावण मास में ही किया था। धार्मिक दृष्टि से यही कारण है कि इस मास में
शिव आराधना का विशेष महत्व है। यह काल शिव भक्ति का पुण्य काल माना जाता है। शिव भक्तों द्वारा पूरी श्रद्धा, भक्ति और आस्था के साथ भगवान शिव की पूजा-अर्चना, अभिषेक, जलाभिषेक, बिल्वपत्र सहित अनेक प्रकार से की जाती है। इस काल में शिव की उपासना भौतिक सुखों को देने वाली होती है। व्यावहारिक रुप से देखें तो भगवान शंकर द्वारा विष पीकर कंठ में रखना और उससे हुई दाह के शमन के लिए गंगा और चंद्रमा को अपनी जटाओं और सिर पर धारण करना इस बात का प्रतीक है कि मानव को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। खास तौर पर कटु वचन से बचना चाहिए, जो कंठ से ही बाहर आते हैं और व्यावहारिक जीवन पर बुरा प्रभाव डालते हैं। किंतु कटु वचन पर संयम तभी हो सकता है, जब व्यक्ति मन को काबू में रखने के साथ ही बुद्धि और ज्ञान का सदुपयोग करे। शंकर की जटाओं में विराजित गंगा ज्ञान की सूचक है और चंद्रमा मन और विवेक का। गंगा और चंद्रमा को भगवान शंकर ने उसी स्थान पर रखा है जहां मानव का भी विचार केन्द्र यानि मस्तिष्क होता है।
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सावन मास के दौरान ही कई प्रमुख त्योहार जैसे- हरियाली अमावस्या, नागपंचमी तथा रक्षा बंधन आदि भी आते हैं। सावन में प्रकृति अपने पूरे शबाब पर होती है इसलिए यह भी कहा जाता कि यह महीना प्रकृति को समझने व उसके निकट जाने का है। सावन की रिमझिम बारिश और प्राकृतिक वातावरण बरबस में मन में उल्लास व उमंग भर देती है। सावन में ही महिलाएं कजरी-गायन कर खूब रंग बिखेरती हैं. सावन का महीना पूरी तरह से शिव तथा प्रकृति को समर्पित है. तो आप भी हर-हर महादेव के जयकारे के साथ गाइए- सावन आया झूम के !!
11 टिप्पणियां:
हर हर बम बम |
बधाई ||
एक खूबसूरत पोस्ट सावन की तरह ....
शुभकामनायें !
bahut sundar monmohak sawani prastuti ke liye aabhar!
श्रावण मास की शुभकामनाएँ.
सावन पर ज्ञान की बरसात।
जानकारी देती अच्छी पोस्ट ..शुभकामनायें
सावन की छटा ही निराली है...
सावन की छटा ही निराली है...
अब तो सावन भी ढूंढने पर ही मिलता है..
सावन तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है.
यादव जी ,
नमस्कार
आपके द्वारा सम्पादित लघुकथा विशेषांक तो आ गया होंगा. मैंने दो कहानी भेजी थी . क्या वो छपी है ? अगर मुझे एक प्रति मिल जाती तो बहुत ख़ुशी होती .
धन्यवाद.
विजय सप्पत्ति
हैदराबाद
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