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सोमवार, 7 जून 2010

ये इन्सान

यह कैसा देश है
जहाँ लोग लड़ते हैं मजहब की आड़ में
नफरत के लिए
पर नहीं लड़ता कोई मोहब्बत की खातिर।

दूसरों के घरों को जलाकर
आग तापने वाले भी हैं
पर किसी को खुद के जलते
घर को देखने की फुर्सत नहीं।

एक वो भी हैं जो खुद को जलाकर
दूसरों को रोशनी देते हैं
पर नफरत है उन्हें उस रोशनी से भी
कहीं इस रोशनी में उनका चेहरा न दिख जाये।

फिर भी वे अपने को इंसान कहते हैं
पर उन्हें इंसानियत का पैमाना ही नहीं पता
डरते हैं वे अपने अंदर के इंसान को देखने से
कहीं यह उनको ही न जला दे।

20 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहरी चिन्ता व्यक्त कि है...अच्छी रचना

raghav ने कहा…

सुन्दर कविता । सहसा एक प्रसिदध) कवि की कविता की कुछ लाइन याद आ गयी

क्या करेगा प्यार वो भगवान को
क्या करेगा प्यार वो ईमान को
इंसान की कोख से जन्म लेकर
कर सका न प्यार जो इंसान को

सुन्दर

Udan Tashtari ने कहा…

डरते हैं वे अपने अंदर के इंसान को देखने से
कहीं यह उनको ही न जला दे

-हाँ, शायद यही वजह हो!!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सार्थक सोच ।
अंतर्मन की बात कह दी ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

पर किसी को खुद के जलते
घर को देखने की फुर्सत नहीं।
बिलकुल सही कहा, आप ने कविता मै बहुत गहरी बात कह दी धन्यवाद

एक बेहद साधारण पाठक ने कहा…

डरते हैं वे अपने अंदर के इंसान को देखने से
कहीं यह उनको ही न जला दे !

सच में, बहुत गहरी बात है

माधव( Madhav) ने कहा…

NICE COMPOSITION

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

यह कैसा देश है
जहाँ लोग लड़ते हैं मजहब की आड़ में
नफरत के लिए
पर नहीं लड़ता कोई मोहब्बत की खातिर।

....बहुत गहरी बात कही आपने..बधाई.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

बहुत शानदार कविता..दिल को छू गई.

Bhanwar Singh ने कहा…

मानो मेरे मन की बात लिख दी के. के. जी ने.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

आदमी कित्ता गन्दा हो गया है ना, पर अच्छे लोग भी तो हैं इसी समाज में.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

आज की इंसानियत पर बेजोड़ कविता.

Akanksha Yadav ने कहा…

यह कविता बहुत कुछ कह जाती है. आज समाज में जो हो रहा है, उसे बेहद सहज शब्दों में पेश करती है..बधाई.

Shahroz ने कहा…

उम्दा लिखा कृष्ण कुमार जी ने. समाज को आइना दिखाती कविता.

Unknown ने कहा…

अतिसुन्दर प्रस्तुति...कृष्ण कुमार यादव जी को बधाई.

बेनामी ने कहा…

Beautifull !!

Alpana Verma ने कहा…

बहुत अच्छी कविता है..एक तरफ वे हैं जो खुद जलकर दूसरों को रोशनी देते है..दूसरी तरफ़ वे जो दूसरों के घर जला कर हाथ तापने में आनंद लेते हैं ...इंसान इंसान में कितना फरक है..आप ने अपनी कविता में बखूबी बताया है और सही चिंता भी व्यक्त की है.

S R Bharti ने कहा…

दूसरों के घरों को जलाकर
आग तापने वाले भी हैं
पर किसी को खुद के जलते
घर को देखने की फुर्सत नहीं।
एक वो भी हैं जो खुद को जलाकर
दूसरों को रोशनी देते हैं
पर नफरत है उन्हें उस रोशनी से भी
कहीं इस रोशनी में उनका चेहरा न दिख जाये।
फिर भी वे अपने को इंसान कहते हैं
पर उन्हें इंसानियत का पैमाना ही नहीं पता
डरते हैं वे अपने अंदर के इंसान को
महोदय , सच्ची अभिब्यक्ति

KK Yadav ने कहा…

आप सभी लोगों को हमारी यह कविता पसंद आई, आपने इसे सराहा..आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें !!

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

नि:संदेह चिंतनीय...सुन्दर कविता .