आज मैंने मौत को देखा!
अर्द्धविक्षिप्त अवस्था में हवस की शिकार
वो सड़क के किनारे पड़ी थी!
ठण्डक में ठिठुरते भिखारी के
फटे कपड़ों से वह झांक रही थी!
किसी के प्रेम की परिणति बनी
मासूम के साथ नदी में बह रही थी!
नई-नवेली दुल्हन को दहेज की खातिर
जलाने को तैयार थी!
साम्प्रदायिक दंगों की आग में
वह उन्मादियों का बयान थी!
चंद धातु के सिक्कों की खातिर
बिकाऊ ईमान थी!
आज मैंने मौत को देखा!
24 टिप्पणियां:
बहुत गहरा चित्रण किया आपने .....
ये पढ़िए .
मौत के होते है कितने सारे रूप ...
करूप बनाती जीवन की धूप...
इस धुप से खुद को बचाएं...
चलो अध्यात्म का छाता लगायें ...
अत्यन्त संवेदनशील और भावपूर्ण कविता....बेहतरीन भाव..धन्यवाद जी
बहुत संवेदनशील, भावपूर्ण और मार्मिक कविता.....
मौत के रूप में बहुत संवेदन बात कह दी है....सोचने पर मजबूर करती रचना
मार्मिक/// संवेदनशील!
महत्वपूर्ण पोस्ट, साधुवाद
उफ़्………बहुत ही गहन और मार्मिक चित्रण्।
बहुत गहरा चित्रण किया आपने ..
साम्प्रदायिक दंगों की आग में
वह उन्मादियों का बयान थी!
चंद धातु के सिक्कों की खातिर
बिकाऊ ईमान थी!
आज मैंने मौत को देखा!
महोदय , सच्ची अभिब्यक्ति
ऐ आसमान तेरे,
खुदा का नहीं है खौफ।
डरते हैं ऐ ज़मीन,
तेरे इन्सान से हम।
ऐ आसमान तेरे,
खुदा का नहीं है खौफ।
डरते हैं ऐ ज़मीन,
तेरे इन्सान से हम।
जिंदगी के ये रूप मौत के प्रयायवाची ही तो हैं ।
अच्छा है ।
अदभुत...नि:शब्द !!
मार्मिक रचना...झकझोर दिया अंतर्मन को.
बहुत सही लिखा आपने के.के. जी, मौत के ये रूप ही तो आज समाज को दहला रहे हैं.
बढ़िया है ये कविता पापा.
बेहद मार्मिक कविता. काश यह स्थिति हम बदल पाते..
कृष्ण कुमार भाई, पढ़कर शांत हूँ..मौत के इतने रूप देखकर हैरान हूँ.
बहुत संवेदनशील, भावपूर्ण और मार्मिक कविता.
साम्प्रदायिक दंगों की आग में
वह उन्मादियों का बयान थी!
च्ंाद धातु के सिक्कों की खातिर
बिकाऊ ईमान थी!
आज मैंने मौत को देखा!
...बहुत सुन्दर व संवेदनशील रचना..बधाई.
कविता के बहाने सच को उकेरती कविता...शानदार.
कविता के माध्यम से समाज की भयावहता को दर्शाती मार्मिक कविता..बधाई.
आप सभी लोगों को हमारी यह कविता पसंद आई, आपने इसे सराहा..आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें !!
मर्मस्पर्शी कविता...दुखद पर सच.
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