26 दिसंबर 2004 को अंडमान-निकोबार में भयंकर सुनामी आई थी. आज उस घटना को सात साल पूरे हो गए हैं. अभी 20और 21 दिसंबर, 2011 को जब मैं निकोबार गया था तो वहाँ सुनामी मेमोरियल भी गया. सुनामी मेमोरियल के अन्दर प्रदर्शित एक पट्टिका पर उन लोगों के नाम दर्ज हैं, जो सुनामी की भेंट चढ़ गए. इस पर लगभग 700 लोगों के नाम अंकित हैं. इसमें मात्र उन्हीं लोगों के नाम शामिल हैं, जिनका मृत-शरीर पाया गया. जिनका मृत शरीर नहीं पाया गया, उनके बारे में यह पट्टिका मौन है.हमारी कार का ड्राइवर राधा-कृष्णन बता रहा था कि उसकी पत्नी और दोनों बच्चे सुनामी में ख़त्म हो गए. पर लाश सिर्फ एक बच्चे की मिली. यहाँ पट्टिका पर सिर्फ उस बच्चे का नाम दर्ज है, पत्नी और एक बच्चे का नहीं. यह कहते हुए वह फफक-फफक कर रो पड़ा. हमारी भी आँखों की कोर गीली हो गईं.सुनामी के आंसू अभी भी नहीं सूखे हैं..रह-रह कर मन में टीस देते हैं. यह भी एक अजीब विडम्बना है. हमारी तरफ से उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि, जो प्रकृति की इस क्रूर-लीला का शिकार हो गए !!
सुनामी मेमोरियल, निकोबार के मुख्य गेट के समक्ष कृष्ण कुमार यादव.
सुनामी मेमोरियल, निकोबार के समक्ष कृष्ण कुमार यादव.
सुनामी मेमोरियल, निकोबार के अन्दर प्रदर्शित पट्टिका, जिस पर लिखा है कि आगामी पीढ़ियों को इस विभीषिका को कभी नहीं भूलना चाहिए.
सुनामी मेमोरियल, निकोबार के अन्दर प्रदर्शित पट्टिका, जिस पर उन लोगों के नाम दर्ज हैं, जो सुनामी की भेंट चढ़ गए. इस पर लगभग 700 लोगों के नाम अंकित हैं. इसमें मात्र उन्हीं लोगों के नाम शामिल हैं, जिनका मृत-शरीर पाया गया. जिनका मृत शरीर नहीं पाया गया, उनके बारे में यह पट्टिका मौन है. हमारी कार का ड्राइवर राधा-कृष्णन बता रहा था कि उसकी पत्नी और दोनों बच्चे सुनामी में ख़त्म हो गए. पर लाश सिर्फ एक बच्चे की मिली. यहाँ पट्टिका पर सिर्फ उस बच्चे का नाम दर्ज है, पत्नी और एक बच्चे का नहीं. यह कहते हुए वह फफक-फफक कर रो पड़ा. हमारी भी आँखों की कोर गीली हो गईं.यह भी एक अजीब विडम्बना है. हमारी तरफ से उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि, जो प्रकृति की इस क्रूर-लीला का शिकार हो गए !!
निकोबारी गाँव में एक निकोबारी-हट में लगी उन लोगों की नाम पट्टिका, जो सुनामी की विभीषिका में ख़त्म हो गए.
निकोबारी गाँव में एक निकोबारी-हट में लगी उन लोगों की नाम पट्टिका, जो सुनामी की विभीषिका में ख़त्म हो गए. जब इस वृद्ध निकोबारी से बात किया, तो उसकी ऑंखें छलक आईं. किसने सोचा था की एक दिन सुनामी का यह कहर उनके अपनों को लील जायेगा. सुनामी की लहर में कुछेक द्वीपों से तो लोग बहते हुए समुद्र तट पर आ गये और फिर अपनी बसी-बसाई गृहस्थी की यादों और नारियल के बगान छोड़कर इधर ही बस गए. वृद्ध निकोबारी के साथ कृष्ण कुमार यादव .
निकोबारी गाँव में निकोबारी-हट के समक्ष कृष्ण कुमार यादव.
निकोबारी-हट के अन्दर कृष्ण कुमार यादव.
निकोबारी हट के समक्ष कृष्ण कुमार यादव. हर निकोबारी कबीले में ऐसी एक हट होती है, जिसे वे सामुदायिक-गृह के रूप में प्रयोग करते हैं. शादी-ब्याह, उत्सव के दौरान मेहमानों के ठहरने के लिए इसका उपयोग किया जाता है. यह दो मंजिला होती है.
सुनामी से पहले बनी निकोबारी-झोपड़ियाँ, जो अब नष्टप्राय हो गई हैं. इसके बदले में प्रशासन ने निकोबरियों को नए घर उपलध कराए हैं.
सुनामी पश्चात् निकोबरियों को सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए नए मकान.
सुनामी के दौरान पुरानी जेट्टी स्थित समुद्र तट के पास अवस्थित कई मकान इत्यादि ध्वस्त हो गए, पर मुरूगन देवता का यह मंदिर सलामत रहा. यही कारण है कि लोग इस मंदिर के प्रति काफी आस्था रखते हैं.
निकोबार में समुद्र तट के किनारे पड़ी, निकोबारी लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाती रहीं डोंगी (बोट). सुनामी के दौरान ये सब ख़राब हो गईं.
सुनामी के दौरान निकोबार में काफी नुकसान हुआ. इसी दौरान एक जलयान (Ship) पानी में डूब गया. उसके अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं.
निकोबार की पुरानी जेट्टी, जो सुनामी में नष्ट हो गई. अब यहाँ नई जेट्टी बनाने का कार्य चल रहा है.
सुनामी ने यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा और जैव विविधता को काफी नुकसान पहुँचाया. समुद्र के किनारे और जंगलों तक में नष्ट हो गई कोरल्स बिखरी पड़ी हैं.ऐसी ही कोरल्स के साथ कृष्ण कुमार यादव.
अंडमान-निकोबार के समुद्र तट (Beach) अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ मोतियों जैसे चमकते सफ़ेद बालू के लिए भी जाने जाते हैं. इनका आकर्षण ही कुछ अलग होता है.इस आकर्षण का लुत्फ़ उठाते कृष्ण कुमार यादव .
निकोबार में एक तट का रमणीक दृश्य.
निकोबार में नारियल वृक्षों का एक रमणीक दृश्य. निकोबारी नारियल-फल को इकठ्ठा कर मुख्य भूमि भेजते हैं और यह इनकी आय का प्रमुख स्रोत है.
निकोबार में मात्र दो जनजातियाँ पाई जाती हैं-निकोबारी और शौम्पेन. इनमें से निकोबारी अब सभ्य हो चुके हैं. वे बकायदा शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और तमाम रोजगारों में भी हैं. निकोबारी बालकों के साथ कृष्ण कुमार यादव.
दितीय विश्व-युद्ध के दौरान अंडमान-निकोबार पर जापानियों का कब्ज़ा रहा. उन्होंने शत्रु-राष्ट्रों से मुकाबले के लिए अंडमान-निकोबार की अवस्थिति के चलते इसे एक महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र के रूप में इस्तेमाल किया. यहाँ पर अभी भी कई बंकर और तोपों के अवशेष देखे जा सकते हैं. ऐसी ही एक तोप के समक्ष खड़े कृष्ण कुमार यादव.
1942-45 के दौरान दितीय विश्व युद्ध के समय जापानियों का अंडमान-निकोबार पर कब्ज़ा रहा. इस दौरान उन्हें सबसे ज्यादा भय अंग्रेजी बोलने वालों और शिक्षित लोगों से था. ऐसे लोगों को वे अंग्रेजों का मुखबिर समझते थे. ऐसे तमाम लोगों को जापानियों ने न्रीशन्षता -पूर्वक मौत के घाट उतार दिया. सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार के समक्ष ऐसे लोगों की सूची, जिन्हें जापानियों ने ख़त्म कर दिया.
सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार के समक्ष बिशप डा. जान रिचर्डसन (1884- 3 जून 1978) की मूर्ति. बिशप डा. जान रिचर्डसन को निकोबरियों को सभ्य बनाने का श्रेय जाता है. भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित बिशप जान रिचर्डसन संसद हेतु अंडमान-निकोबार से प्रथम मनोनीत सांसद भी थे.
सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार के समक्ष बिशप डा. जान रिचर्डसन (1884- 3 जून 1978) की समाधि.
सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार में एक निकोबारी बालक और अपने मित्र के साथ कृष्ण कुमार यादव.
कार-निकोबार में अवस्थित जान रिचर्डसन स्टेडियम. इसका उद्घाटन 15 अप्रैल, 1994 को तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री पी. वी. नरसिम्हा राव जी द्वारा किया गया था.
अंडमान-निकोबार लोक निर्माण विभाग के अतिथि-गृह में कृष्ण कुमार यादव.
अंडमान-निकोबार लोक निर्माण विभाग के अतिथि-गृह के समक्ष कृष्ण कुमार यादव.
कार-निकोबार में किमूस-नाला के ऊपर बने इस 180 फीट के वैली-ब्रिज का उद्घाटन दिसंबर माह में ही अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के मुख्य सचिव श्री शक्ति सिन्हा द्वारा किया गया है. इस पुल के बन जाने से आवागमन में काफी सुविधा उत्पन्न हो गई है.
-कृष्ण कुमार यादव