अंडमान-निकोबार में प्राकृतिक विविधता हर रूप में देखने को मिलती है, फिर वह चाहे प्रकृति के अद्भुत नज़ारे हों या प्रकृति का प्रकोप. भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी जैसी जैसी चीजों से कई बार बड़ा डर लगता है, पर उनका रोमांच भी अलग है. अंडमान में ही भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी भी बैरन आइलैंड पर है तो भारत में मड-वोल्केनो (कीचड़ ज्वालामुखी) भी सिर्फ अंडमान में ही पाए जाते हैं. पिछले दिनों बाराटांग के दौरे पर गया तो वहाँ इन मड-वोल्केनो से भी रु-ब-रु होने का मौका मिला. पंक (कीचड़) ज्वालामुखी सामान्यतया एक लघु व अस्थायी संरचना हैं जो पृथ्वी के अन्दर जैव व कार्बनिक पदाथों के अपक्षय से उत्सर्जित प्राकृतिक गैस द्वारा निर्मित होते हैं। गैस जैसे-जैसे अन्दर से कीचड़ को बाहर फेंकती है, यह जमा होकर कठोर होती जाती है। वक्त के साथ यही पंक ज्वालामुखी का रुप ले लेती है, जिसके क्रेटर से कीचड़, गैस व पत्थर निकलता रहता है।
विश्व में अधिकतर पंक ज्वालामुखी काला सागर व कैस्पियन सागर के तटों पर मिलते हैं। इनमें वेनेजुएला, ताइवान, इंडानेशिया, रोमानिया और अजरबैजान के बाकू शहर प्रसिद्ध हैं। अब तक कुल खोजे गए 700 पंक ज्वालामुखी में से 300 पूर्वोतर अजरबैजान व कैस्पियन सागर में हैं। सबसे विशाल पंक ज्वालामुखी कैस्पियन सागर क्षेत्र में पाया गया है, जो कि लगभग एक कि0मी0 चैड़ा व उंचाई सैकड़ा मी0 में है। समुद्र के अंदर से तरल पदार्थ बाहर निकलने का पंक ज्वालामुखी एक प्रमुख स्रोत है। जहाँ सामान्य ज्वालामुखी में भूपटल को फोड़कर पिघले पत्थर, राख, वाष्प व लावा निकलते है, वहीं पंक ज्वालामुखी से कीचड़, गैस व पत्थर निकलते हैं। उत्सर्जन के दौरान निकला कीचड़ गर्म नहीं अपितु ठण्डा होता है।
बंगाल की खाड़ी में स्थित भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के बाराटांग द्वीप में जारवा क्रीक गाँव में 18 फरवरी 2003 की सांय 7:45 बजे सर्वप्रथम पंक ज्वालामुखी का उद्भव हुआ। जबरदस्त विस्फोट के साथ उत्पन्न इस प्रक्रिया में थोड़ा कंपन भी महसूस हुआ। इससे पूर्व 1983 में इसी जगह दरार पड़ गई थी। अंतिम बार यह 26 दिसम्बर 2004 को जबरदस्त विस्फोट व कंपन के साथ उत्सर्जित हुआ था।
फिलहाल अंडमान में इस तरह के 11 पंक ज्वालामुखी पाए गए हैं, जिनमें से 08 बाराटांग व मध्य अंडमान में एवं 03 डिगलीपुर (उत्तरी अंडमान) में अवस्थित हैं। ये पंक ज्वालामुखी 1000-1200 वर्ग मी0 के क्षेत्र में विस्तृत हैं और लगभग 30 मी0 व्यास व 2 मी0 उंचे अर्धवृत्ताकार टिब्बे का निर्माण करते हैं। इनके चलते विवर्तनिक रुप से अस्थायी भू-भागों का निर्माण होता है और कालांतर में ऐसी परिघटनाओं से ही नए द्वीपों का भी निर्माण होता है। ये मानव व मानवीय संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं। फिलहाल ये पर्यटकों के लिए आर्कषण का केद्र-बिन्दु हैं।
(जनसत्ता में 13 जून, 2010 को प्रकाशित : इसे आप पाखी की दुनिया में भी पढ़ सकते हैं )
23 टिप्पणियां:
बड़ी अच्छी जानकारी मिली मड-वोल्केनो पर के.के. जी. आपका यह आलेख हमने भी जनसत्ता में पढ़ा था.
वाह भाई, यह तो नई बात रही हमारे लिए...आभार. आप लोग तो खूब घूम रहे हैं.
...चित्र देखकर तो और भी सजीवता आ गई.
ज्वालामुखी के बारे में तो सुना था, पर कीचड़ वाले ज्वालामुखी के बारे में पहली बार सुना. कृष्ण कुमार जी को साधुवाद.
ज्ञानवर्धक बात बताई आपने सर. फोटो तो काफी जीवंत हैं.
आपका यह सारगर्भित आलेख हमने भी जनसत्ता में पढ़ा था और बिटिया पाखी के ब्लॉग पर भी देखा.
ज्वालामुखी ka to nam sunkar hi dar lagta hai...
अच्छी और नई जानकारी । क्या इनसे निकलने वाली गैस का इस्तेमाल किया जा सकता है ?
विशिष्ट जानकारी के लिए...........साधुवाद।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
useful article. i have read that there was also an active vaolcono
in Andaman islands on Barren islands .
मेरे भी ब्लॉग पर इसे पढ़ें-
http://pakhi-akshita.blogspot.com/
पाखी जी,
हमने तो आपके ब्लॉग पर भी पढ़ लिया.
@ दराल जी,
..फ़िलहाल तो इस सम्बन्ध में प्रयोग चल रहे हैं.
@ माधव,
सही सुना है आपने. यह अभी भी है और कभी भी सक्रिय हो सकता है.
आप सभी ने इस पोस्ट को पसंद किया..आभार !!
पहली बार कीचड़ वाले ज्वालामुखी के बारे में सुना..शानदार पोस्ट.
अद्भुत...नई जानकारी पर रोचक..साधुवाद
काश ये ज्वालामुखी राजनेताओं पर भी कीचड़ फेंकते, ताकि उनकी कमीज का रंग बखूबी दिखाई देने लगता.
कुदरत की भी अजीब नियामत है. इसी धरा पर न जाने क्या-क्या है, जो लोगों को पता तक नहीं...उम्दा जानकारी.
आपके अंडमान में रहने का यही तो फायदा है, कि नित नई जानकारियाँ मिलती हैं.
मड-वोल्केनो के बारे में लाजवाब जानकारी...धन्यवाद.
अंडमान की अनोखी दुनिया...नई-नई जानकारियां. मड-वोल्केनो देखकर अच्छा लगा , पर डर भी.
हमने भी तो देखा इसे....
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