सुना था दिल्ली की कई साहित्यिक पत्रिकाओं में
उसकी घुसपैठ है
सो आदतन बोल बैठा
उसकी घुसपैठ है
सो आदतन बोल बैठा
यार मेरी भी एक कहानी कहीं लगवा दे
वह हँस कर बोला
यह तो मेरे बायें हाथ का खेल है
मेरा दिल गदगद हुआ
ऐसे दोस्त को पाकर मैं धन्य हुआ
अगले ही दिन
अपनी एक नई कहानी
मित्र के पते पर भिजवा दी
और इंतजार करने लगा
उसके छपने का
दो-तीन माह बाद
सुबह ही सुबह
सुबह ही सुबह
मित्र का फोन आया
पाँच सौ रूपये का मनीआर्डर
मुझे भेजा जा रहा है
और अगले अंक में
मेरी रचना
छप कर आ रही है
रोज आॅफिस से आते ही
पहले पड़ोस की
पुस्तकों की दुकान पर जाता
और पत्रिका को न पाकर
झल्लाकर वापस चला आता
आखिर
वो शुभ दिन आ ही गया
पत्रिका के पृष्ठ संख्या पैंतीस पर
मेरी कहानी का शीर्षक जगमगा रहा था
तुरन्त उसकी दो प्रतियाँ खरिद
बगल में स्थित मिष्ठान-भंडार से
ताजा मोतीचूर का लड्डू
पैक कराया और
जल्दी से घर आकर
पत्नी को गले लगाया
प्रिये! ये देखो
तुम्हारे पति की कहानी छपी है
पत्नी ने उत्सुकतावश
पत्रिका के पन्ने फड़फड़ाये और
पृष्ठ संख्या पैंतीस पर ज्यों ही हाथ रखा
मैने उसके मुँह में लड्डू डाला
कि वह बोल उठी
पहले आपका नाम तो देख लूँ
कहीं दूसरे की कहानी को तो
अपनी नहीं बता रहे
हाँ.....हाँ.....क्यों नहीं प्रिये
पर यहाँ तो दांव ही उल्टा पड़ गया
कहानी तो मेरी थी
पर छपी किसी दूसरे के नाम से थी
अब अपने दोस्त की
घुसपैठ का माजरा
कुछ-कुछ समझ में आ रहा था
सामने पड़ा पाँच सौ रुपये का मनीआॅर्डर
और मोतीचूर का लड्डू
मुझे मुँह चिढ़ा रहा था !!
( इसे वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में भी पढ़िए)
31 टिप्पणियां:
नये लेख्को के साथ ऐसा अक़्सर होता है ...
मै खुद कई बार ठ्गा जा चुका हू
कल ही वैशाखानन्द में पढ़ लिया था. कमेंट भी कर दिया था
व्यंग्य के बहाने सुन्दर कटाक्ष...बधाई !!
bhai april fool to kabhi bhi banaya ja sakta hai....
isi dar se ham to kahi apni kritiya bhejte hi nahi,
apna blog.sabka blog...
kunwar ji,
sadhani hati..durghatna ghati...dunia ke har kadam pe andha mod hai bhai ...
बहुत खूब ।
बहुत अच्छा लेख
सच का तो ज़माना ही नही रहा सभी दूसरे का कंधा प्रयोग करते हैं।
मेरे तो दिल्ली में कई ऐसे मित्र हैं, जो पैसे लेकर किसी के नाम से भी लिख सकते हैं. उनके लिए बेरोजगारी के दौर में पैसा महत्वपूर्ण है, न कि रचना या नाम.
बहुत सुन्दर व्यंग्य रचना..बधाई !!
कृष्ण कुमार यादव जी, इस कविता के माध्यम से आपने कईयों की नींद उड़ा भी दी और कईयों की खोल भी दी...साधुवाद.
हा..हा..हा...पढ़कर मजा आ गया. एक बार मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है.
हा हा!! गहरा कटाक्ष है इस बहाने..कितने ही भुक्त भोगी हैं इस तरह की घटनाओं के.
पहले आपका नाम तो देख लूँ
कहीं दूसरे की कहानी को तो
अपनी नहीं बता रहे
हाँ.....हाँ.....क्यों नहीं प्रिये
पर यहाँ तो दांव ही उल्टा पड़ गया
.....Ye to khub Majedar rahi....!!
समझ में नहीं आ रहा क्या कहूँ इस विडम्बना पर...पर इतना जरुर समझ में आ रहा है कि नेता, उद्योगपतियों के नाम से कैसे लेखन का गोरख धंधा होता है.
शुक्र है कि ५००/- का मनीआर्डर तो मिल गया....नहीं तो वो भी जाता..शानदार व्यंग्य रचना..बधाई.
बधाई. आपकी यह व्यंग्य कविता वैशाखानन्द सम्मान प्रतियोगिता में पहले ही पढ़ ली थी....आपकी लेखनी लाजवाब व धारदार है.
खूब कही. दिल्ली में तो यह आम बात है. घोस्ट राइटिंग का खूब प्रचलन बढ़ रहा है, पर इस मामले में तो दांव ही उल्टा पड़ गया...
भैये, सब राम राज है...पत्र-पत्रिकाओं में भी दलालों का बोलबाला है. कोई सुनवाई नहीं है. अपने इसी उठाकर अच्छा ही किया. शायद इसे पढ़कर कुछ लोग सतर्क तो हो जाएँ.
सुन्दर और सार्थक व्यंग्य रचना. समाज के सच को उजागर करता कड़वा व्यंग्य.
लेखकों-कवियों की व्यथा को शब्द देती लाजवाब कविता. कृष्ण जी को बधाई !!
अच्छा बताया आपने. अब तो हमें कहीं रचना भेजने से पहले एक बार नहीं सौ बार सोचना होगा...
आपकी प्रस्तुति का अंदाज़ निराला लगा..मुबारकवाद.
आप सभी की हौसला अफजाई व स्नेह के लिए आभार !!
...हमने तो कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी होता होगा. ज्ञान चक्षु खुल गए. डबल बधाई.
प्रिंट आउट निकलकर रख लिया है. आराम से पढूँगा. पहली नजर में तो रोचक, मजेदार लगी पर इसमें कई निहित सन्देश व भाव भी हैं. उनकी मुझे तलाश है..
के.के. जी, आपके लेखन का जवाब नहीं. छाये हुए हैं आजकल..बधाई. वैशाखनंद में एक नहीं तीन बार आपकी रचनाएँ....चौके में अब एक ही रन बाकी है...अडवांस में बधाई ले लें.
और आपकी यह कविता तो धांसू है. कभी हमें भी कुछ ऐसा ही लिख भेजिए जो हम आपने नाम से प्रकाशित कराएँ...जस्ट जोक.
इस रचना में तो आपने सच्चाई के लड्डू खिला दिए....
अच्छा कटाक्ष
हद है ...........
अकेले अकेले मोती चुर के लड्डू खाओ गे तो ऎसा ही होगा, वेसे दोस्त इमान दार निकला:) उस ने रचना छपवाने का वादा किया था, नाम का नही
आप सभी लोगों को हमारी यह कविता पसंद आई, आपने इसे सराहा..आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें !!
एक टिप्पणी भेजें