आज 10 मई है। इस दिन का भारतीय इतिहास में एक विशिष्ट स्थान है। 1857 में भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम इसी दिन आरंभ हुआ था. 1857 वह वर्ष है, जब भारतीय वीरों ने अपने शौर्य की कलम को रक्त में डुबो कर काल की शिला पर अंकित किया था और ब्रिटिश साम्राज्य को कड़ी चुनौती देकर उसकी जडे़ं हिला दी थीं। 1857 का वर्ष वैसे भी उथल-पुथल वाला रहा है। इसी वर्ष कैलिफोर्निया के तेजोन नामक स्थान पर 7.9 स्केल का भूकम्प आया था तो टोकियो में आये भूकम्प में लगभग एक लाख लोग और इटली के नेपल्स में आये 6.9 स्केल के भूकम्प में लगभग 11,000 लोग मारे गये थे। 1857 की क्रान्ति इसलिये और भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि ठीक सौ साल पहले सन् 1757 में प्लासी के युद्ध में विजय प्राप्त कर राबर्ट क्लाइव ने अंग्रेजी राज की भारत में नींव डाली थी। विभिन्न इतिहासकारों और विचारकांे ने इसकी अपने-अपने दृष्टिकोण से व्याख्यायें की हैं। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री और महान चिन्तक पं0 जवाहरलाल नेहरू ने लिखा कि- ‘‘यह केवल एक विद्रोह नहीं था, यद्यपि इसका विस्फोट सैनिक विद्रोह के रूप में हुआ था, क्योंकि यह विद्रोह शीघ्र ही जन विद्रोह के रूप में परिणित हो गया था।’’ बेंजमिन डिजरायली ने ब्रिटिश संसद में इसे ‘‘राष्ट्रीय विद्रोह’’ बताया। प्रखर विचारक बी0डी0सावरकर व पट्टाभि सीतारमैया ने इसे ”भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम”, जाॅन विलियम ने ”सिपाहियों का वेतन सुविधा वाला मामूली संघर्ष“ व जाॅन ब्रूस नाॅर्टन ने ‘‘जन-विद्रोह’’ कहा। माक्र्सवादी विचारक डा0 राम विलास शर्मा ने इसे संसार की प्रथम साम्राज्य विरोधी व सामन्त विरोधी क्रान्ति बताते हुए 20वीं सदी की जनवादी क्रान्तियों की लम्बी श्रृंखला की प्रथम महत्वपूर्ण कड़ी बताया। प्रख्यात अन्तर्राष्ट्रीय राजनैतिक विचारक मैजिनी तो भारत के इस प्रथम स्वाधीनता संग्राम को अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखते थे और उनके अनुसार इसका असर तत्कालीन इटली, हंगरी व पोलैंड की सत्ताओं पर भी पड़ेगा और वहाँ की नीतियाँ भी बदलेंगी।
1857 की क्रान्ति को लेकर तमाम विश्लेषण किये गये हैं। इसके पीछे राजनैतिक-सामाजिक-धार्मिक-आर्थिक सभी तत्व कार्य कर रहे थे, पर इसका सबसे सशक्त पक्ष यह रहा कि राजा-प्रजा, हिन्दू-मुसलमान, जमींदार-किसान, पुरूष-महिला सभी एकजुट होकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े। 1857 की क्रान्ति को मात्र सैनिक विद्रोह मानने वाले इस तथ्य की अवहेलना करते हैं कि कई ऐसे भी स्थान थे, जहाँ सैनिक छावनियाँ न होने पर भी ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध क्रान्ति हुयी। इसी प्रकार वे यह भूल जाते है कि वास्तव में ये सिपाही सैनिक वर्दी में किसान थे और किसी भी व्यक्ति के अधिकारों के हनन का सीधा तात्पर्य था कि किसी-न-किसी सैनिक के अधिकारों का हनन, क्योंकि हर सैनिक या तो किसी का पिता, बेटा, भाई या अन्य रिश्तेदार है। यह एक तथ्य है कि अंगे्रजी हुकूमत द्वारा लागू नये भू-राजस्व कानून के खिलाफ अकेले सैनिकों की ओर से 15,000 अर्जियाँ दायर की गयी थीं। डाॅ0 लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के शब्दों में- ‘‘सन् 1857 की क्रान्ति को चाहे सामन्ती सैलाब या सैनिक गदर कहकर खारिज करने का प्रयास किया गया हो, पर वास्तव में वह जनमत का राजनीतिक-सांस्कृतिक विद्रोह था। भारत का जनमानस उसमें जुड़ा था, लोक साहित्य और लोक चेतना उस क्रान्ति के आवेग से अछूती नहीं थी। स्वाभाविक है कि क्रान्ति सफल न हो तो इसे ‘विप्लव’ या ‘विद्रोह’ ही कहा जाता है।’’ यह क्रान्ति कोई यकायक घटित घटना नहीं थी, वरन् इसके मूल में विगत कई सालों की घटनायें थीं, जो कम्पनी के शासनकाल में घटित होती रहीं। एक ओर भारत की परम्परा, रीतिरिवाज और संस्कृति के विपरीत अंग्रेजी सत्ता एवं संस्कृति सुदृढ हो रही थी तो दूसरी ओर भारतीय राजाओं के साथ अन्यायपूर्ण कार्रवाई, अंग्रेजों की हड़पनीति, भारतीय जनमानस की भावनाओं का दमन एवं विभेदपूर्ण व उपेक्षापूर्ण व्यवहार से राजाओं, सैनिकों व जनमानस में विद्रोह के अंकुर फूट रहे थे।
इसमें कोई शक नहीं कि 1757 से 1856 के मध्य देश के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न वर्गों द्वारा कई विद्रोह किये गये। यद्यपि अंग्रेजी सेना बार-बार इन विद्रोहों को कुचलती रही पर उसके बावजूद इन विद्रोहों का पुनः सर उठाकर खड़ा हो जाना भारतीय जनमानस की जीवटता का ही परिचायक कहा जायेगा। 1857 के विद्रोह को इसी पृष्ठभूमि में देखे जाने की जरूरत है। अंग्रेज इतिहासकार फॅारेस्ट ने एक जगह सचेत भी किया है कि- ‘‘1857 की क्रान्ति हमें इस बात की याद दिलाती है कि हमारा साम्राज्य एक ऐसे पतले छिलके के ऊपर कायम है, जिसके किसी भी समय सामाजिक परिवर्तनों और धार्मिक क्रान्तियों की प्रचण्ड ज्वालाओं द्वारा टुकडे़-टुकडे़ हो जाने की सम्भावना है।’’ अंग्रेजी हुकूमत को भी 1757 से 1856 तक चले घटनाक्रमों से यह आभास हो गया था कि वे अब अजेय नहीं रहे। तभी तो लाॅर्ड केनिंग ने फरवरी 1856 में गर्वनर जनरल का कार्यभार ग्रहण करने से पूर्व कहा था कि - ‘‘मैं चाहता हूँ कि मेरा कार्यकाल शान्तिपूर्ण हो। मैं नहीं भूल सकता कि भारत के गगन में, जो अभी शान्त है, कभी भी छोटा सा बादल, चाहे वह एक हाथ जितना ही क्यों न हो, निरन्तर विस्तृत होकर फट सकता है, जो हम सबको तबाह कर सकता है।’’ लाॅर्ड केनिंग की इस स्वीकारोक्ति में ही 1857 की क्रान्ति के बीज छुपे हुये थे।
1857 की क्रान्ति की सफलता-असफलता के अपने-अपने तर्क हैं पर यह भारत की आजादी का पहला ऐसा संघर्ष था, जिसे अंग्रेज समर्थक सैनिक विद्रोह अथवा असफल विद्रोह साबित करने पर तुले थे, परन्तु सही मायनों में यह पराधीनता की बेड़ियों से मुक्ति पाने का राष्ट्रीय फलक पर हुआ प्रथम महत्वपूर्ण संघर्ष था। अमरीकी विद्वान प्रो0 जी0 एफ0 हचिन्स के शब्दों में-‘‘1857 की क्रान्ति को अंग्रेजों ने केवल सैनिक विद्रोह ही कहा क्योंकि वे इस घटना के राजद्रोह पक्ष पर ही बल देना चाहते थे और कहना चाहते थे कि यह विद्रोह अंग्रेजी सेना के केवल भारतीय सैनिकों तक ही सीमित था। परन्तु आधुनिक शोध पत्रों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह आरम्भ से सैनिक विद्रोह के ही रूप में हुआ, परन्तु शीघ्र ही इसमें लोकप्रिय विद्रोह का रूप धारण कर लिया।’’ वस्तुतः इस क्रान्ति को भारत में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध पहली प्रत्यक्ष चुनौती के रूप में देखा जा सकता है। यह आन्दोलन भले ही भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति न दिला पाया हो, लेकिन लोगों में आजादी का जज्बा जरूर पैदा कर गया। 1857 की इस क्रान्ति को कुछ इतिहासकारों ने महास्वप्न की शोकान्तिका कहा है, पर इस गर्वीले उपक्रम के फलस्वरूप ही भारत का नायाब मोती ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथों से निकल गया और जल्द ही कम्पनी भंग हो गयी। 1857 के संग्राम की विशेषता यह भी है कि इससे उठे शंखनाद के बाद जंगे-आजादी 90 साल तक अनवरत चलती रही और अंतत: 15 अगस्त, 1947 को हम आजाद हुए !!
24 टिप्पणियां:
अच्छा याद दिलाया आपने....शहीदों का पुनीत स्मरण.
1857 वह वर्ष है, जब भारतीय वीरों ने अपने शौर्य की कलम को रक्त में डुबो कर काल की शिला पर अंकित किया था और ब्रिटिश साम्राज्य को कड़ी चुनौती देकर उसकी जडे़ं हिला दी थीं।....शानदार विश्लेषण...वाकई १८५७ की जंग के चलते ही अंग्रेजों के हौसले पस्त हुए.
1857 की क्रान्ति को मात्र सैनिक विद्रोह मानने वाले इस तथ्य की अवहेलना करते हैं कि कई ऐसे भी स्थान थे, जहाँ सैनिक छावनियाँ न होने पर भी ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध क्रान्ति हुयी। इसी प्रकार वे यह भूल जाते है कि वास्तव में ये सिपाही सैनिक वर्दी में किसान थे और किसी भी व्यक्ति के अधिकारों के हनन का सीधा तात्पर्य था कि किसी-न-किसी सैनिक के अधिकारों का हनन, क्योंकि हर सैनिक या तो किसी का पिता, बेटा, भाई या अन्य रिश्तेदार है। ....Sahi likha apne.
आज के दिन बेहद प्रासंगिक व सामयिक पोस्ट...यह दिन हमारी आजादी की आधारशिला रखता है.
‘‘मैं चाहता हूँ कि मेरा कार्यकाल शान्तिपूर्ण हो। मैं नहीं भूल सकता कि भारत के गगन में, जो अभी शान्त है, कभी भी छोटा सा बादल, चाहे वह एक हाथ जितना ही क्यों न हो, निरन्तर विस्तृत होकर फट सकता है, जो हम सबको तबाह कर सकता है।’’ लाॅर्ड केनिंग की इस स्वीकारोक्ति में ही 1857की क्रान्ति के बीज छुपे हुये थे।
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अंग्रेज भी अपनी कमजोरियां और अपनी औकात जानते थे...बेहतरीन पोस्ट के लिए साधुवाद.
...वह, आज इसी दिन की बदौलत हम आजादी की साँस ले रहे हैं..१८५७-१९४७ की लड़ाई !!
1857 के संग्राम की विशेषता यह भी है कि इससे उठे शंखनाद के बाद जंगे-आजादी 90 साल तक अनवरत चलती रही और अंतत: 15 अगस्त, 1947 को हम आजाद हुए.
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आज ही आरंभ हुआ था. आज का दिन गौरव का दिन है..बधाई.
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आज ही आरंभ हुआ था. आज का दिन गौरव का दिन है..बधाई.
Badhiya likha...yadagar.
नमन है वीर सपूतों तुमको
शीश कटाए माँ की खातिर
गर न होता ग़दर सत्तावन
आजादी ना मिलती हमको
matri divas ke bad aapne matribhumi ki yad dilakar bahut achcha kiya dhanyvad
bahut hi sundar likha hai...........aaj ke din ki yaad dila kar bahut achcha kiya........aabhar.
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! सभी शहीदों को मेरा शत शत नमन!
इस गौरवमयी दिवस की अच्छी जानकारी दी है आपने । इन ९० सालों में जाने कितने ही वीरों ने अपनी कुर्बानी दी होगी तब जाकर हमें आजादी हासिल हुई । आज लोग आज़ादी के मायने भूल से गए हैं ।
सामयिक पोस्ट के लिए बधाई।
आप का धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये
यह अंगरेज़ों का लिखा इतिहास है जो हमारी आज़ादी की पहली लड़ाई को सिपाही विद्रोह का नाम देता है...नमन उन वीरों को...
और एक बात का उल्लेखः अब आप भी आकांक्षा जि और पाखी के बाद हमारे परिवार में शामिल हो गए.
Shahidon ko shat shat naman.
सभी शहीदों को मेरा शत शत नमन!
बहुत ही अच्छा पोस्ट.आपका आभार.
@ कृष्ण कुमार जी
आओ नम आंखों से उनका हम सभी वंदन करें, देश की आहुति में जो जन समर्पण कर गये।
पोस्ट रविवार को ही करता हूँ इसलिए इस विषय पर लेख पोस्ट नही कर पाने का दुख है
बेहद प्रासंगिक व सामयिक पोस्ट.
हर सच्चे भारतीय कि ओर से धन्यवाद देता हूँ आपको ......
आज हम आजाद हैं, इसका कारण यही है कि 1857 से ही हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए जान की बाजियाँ लगानी शुरू कर दी थीं। उन असंख्य शहीदों को हार्दिक नमन।
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बूझ सको तो बूझो- कौन है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
सारगर्भित पोस्ट...अच्छी जानकारी...
नीरज
सुन्दर उद्धरणों के साथ यह लेख बड़ा प्रासंगिक व महत्वपूर्ण है. कृष्ण कुमार जी को बधाई !!
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