मोहन बाबू हमारे पड़ोसी ही नहीं अभिन्न मित्र भी हैं। कहने को तो वे सरकारी विभाग में क्लर्क हैं पर सामान्यता क्लर्क की जो इमेज होती है, उससे काफी अलग हैं.... एकदम ईमानदार टाइप के। कभी-कभी तो महीना खत्म होने से पहले ही उधारी की नौबत आ जाती। उनकी बीबी रोज ताना देती- श्क्या ईमानदारी का अचार डालोगे? अपनेे साथ के लोगों को देखो। हर किसी ने निजी मकान बनवा लिया है, गाड़ी खरीद ली है, बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ने जाते हैं और तो और उनकी बीबियाँ कितने शानो-शौकत से रहती हंै और एक तुम हो जो साड़ियाँ खरीदने के नाम पर ही तुनक जाते हो। मुझे तो याद भी नहीं कि अन्तिम बार तुमने मुझे कब साड़ी खरीद कर दी थी। वो तो मैं अगर तुम्हारी जेब से रोज कुछ न कुछ गायब न करूँ तो रिश्तेदारी में भी जाना मुश्किल हो जाय. इधर मोहन बाबू की बीबी ने एक नई रट लगा रखी थी- मोबाइल फोन खरीदने की।
हुआ यूँ कि पिछले दिनों मोहन बाबू की बीबी अपने मायके गयीं और वहाँ अपनी भाभी के हाथ में मोबाइल फोन देखा। जब तक उनके भैया के पास मोबाइल फोन था, तब तक तो ठीक था पर अब भाभी ही नहीं उनके बच्चों के पास भी मोबाइल फोन है। ऐसा नहीं कि उनके भैया किसी बहुत बड़े पद पर हैं, वरन् पी0 डब्ल्यू0 डी0 मंे एक मामूली क्लर्क हैं। भाभी के मुँह से भैया के रूतबे के किस्से उन्होंने खूब सुन रखे हैं कि कैसे अच्छे-अच्छे ठेकेदार और नेता उनके सामने पानी भरते हंै। जिस समय मोहन बाबू से उनकी शादी हुयी, उस समय तक भैया को नौकरी नहीं मिली थी, पर नौकरी मिलने के दस साल के अन्दर ही उनके ठाठ-बाट साहबों वाले हो गए। मोहल्ले में अपना रूतबा झाड़ने के लिए उन्होंने एक सेकेण्ड हैण्ड मारूति कार खरीद ली और गेट पर एक झबरे बालों वाला कुत्ता बाँध लिया, जो भाभी की नजर में साहब लोगों की विशिष्ट पहचान होती है। एक बार भाभी के मुँह से कुत्ते के लिए कुत्ता शब्द निकल गया तो भैया झल्ला उठे थे- श्जिन्दगी भर गँवार ही रह जाओगी। अरे! कुत्ता उसे कहते हैं जो सड़कों पर आवारा फिरते हैं। इसे तो टाॅमी कहते हैं।श् फिर क्या था, तब से झबरे बालों वाला कुत्ता टाॅमी हो गया। टाॅमी जितनी बार पड़ोसियों को देखकर भौंकता, भाभी उतनी बार अपने पति की साहबी पर गुमान करतीं।
मोहन बाबू भी दिल से चाहते हैं कि एक मोबाइल फोन उनके पास हो जाय तो काफी सुविधा होगी। लैण्डलाइन फोन में वैसे भी कई समस्यायें आती हैं, मसलन- महीने में दस दिन तो डेड ही पड़ा रहता, उस पर से फोन का बिल इतना आता कि मानो आस-पड़ोस के लोगांे का भी बिल उसमें जोड़ दिया गया हो। फिर फोन का बिल सही करवाने के लिए टेलीफोन-विभाग का चक्कर काटो। एक तो बिना रिश्वत दिए वे बिल ठीक नहीं करते और उस पर से उस दिन के लिए दफ्तर से छुट्टी लेनी पड़ती है।
जब मोहन बाबू ने अपनी बीबी से मोबाइल फोन लेने की चर्चा की तो मानो उनको मुँहमाँगी मुराद मिल गयी हो। एक लम्बे अर्से बाद उस दिन मोहन बाबू की बीबी ने खूब मन से खाना बनाया और प्यार भरे हाथों से उन्हें खिलाया। मोहन बाबू की बीबी उस रात को सपने में देख रही थीं कि उनके घर में भी मोबाइल फोन आ गया है और जैसे ही मोबाइल फोन की घण्टी बजी, उन्होंने पहले से तैयार आरती की थाली को उस पर घुमाया और फिर मोबाइल फोन को स्टाइल में कानों के पास लगाकर बोलीं-हलो! ऊधर से आवाज आयी-कौन बोल रही हैं?.... मैं मिसेज मोहन बोल रही हूँ, किससे बात करनी है आपको? जी, मुझे शर्मिला से बात करनी है.... कौन शर्मिला..... अच्छा तो आवाज बदलकर पूछ रही हो, कौन शर्मिला! मेरी प्यारी बीबी शर्मिला, आई लव यू ..... दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा, दूसरों की बीबी को आई लव यू बोलते हो। अभी पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराती हूँ....... साॅरी मैडम! लगता है रांग नम्बर लग गया। सपने के साथ ही मोहन बाबू की बीबी की नींद भी खुल गयी। वे प्रसन्न थीं कि सपने में मोबाइल फोन आया अर्थात घर में मोबाइल फोन आ जाएगा। रांग नम्बर तो आते रहते हैं, उनकी क्या चिन्ता करना।
सुबह होते ही मोहन बाबू को उनकी बीबी ने याद दिलाया कि आज मोबाइल फोन लाना है। आज नहीं, कल लाना है....... पर ऐसा क्यों.... अरे! आज तो मुझे टेलीफोन विभाग के दफ्तर जाकर इस लैण्डलाइन फोन को डिसकनेक्ट करवाने के लिए आवदेन देना होगा। पर मोबाइल का इस लैण्डलाइन फोन से क्या मतलब.... अरे तुम नहीं समझोगी? जब बिल भरना पड़ता तो पता चलता। मेरी अनुपस्थिति में घण्टों बैठकर तुम अपने मायके वालों के साथ गप्पें मारती हो, क्या मुझे नहीं पता है? अब ये लैण्डलाइन फोन कटवा कर मोबाइल फोन खरीदूँगा और उसे हमेशा अपने पास रखूँगा। ..... तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है। लैण्डलाइन फोन कटवाकर मोबाइल फोन खरीदोगे तो लोग सोचेंगे कि मोबाइल फोन खरीदने की औकात नहीं है सो उसे कटवाकर मोबाइल फोन खरीदा है। और फिर मोबाइल फोन अगर तुम अपने पास रखोगे तो मैं अपने मायके वालों से बातें कैसे करूँगी!.... तो फिर अपने मायके वालों को ही बोल दो न कि तुम्हें एक मोबाइल फोन खरीदकर दे दें। हाँ... हाँ... जरूर बोल दूँगी। मेरे मायके में तो सभी के पास मोबाइल फोन हंै, यहाँ तक कि बच्चों के पास भी। पर तुम किस मर्ज की दवा हो...... इतना दहेज देकर मेरे पापा ने इसलिए तुमसे शादी नहीं की, कि शादी के बाद भी मंै उनके सामने हाथ फैलाऊँ। वो तो मेरी गलती थी जो फोटो में तुम्हारे घुँघराले बाल और मासूम चेहरा देखकर रीझ गयी, नहीं तो आज मैं किसी घर में रानी की तरह रह रही होती।
मोहन बाबू की बीबी जब गुस्सा होतीं तो वे शान्तिपूर्वक वहाँ से खिसक लेने में ही भलाई समझते और मुझसे अच्छा उनका मित्र कौन हो सकता है। सुबह-सुबह अपने दरवाजे पर मोहन बाबू को देखकर मैं पूछ उठा- श्अरे मोहन बाबू!सब ठीक तो है। कोई प्राॅब्लम तो नहीं है।श् प्राॅब्लम है, तभी तो आया हूँ आपके पास। अच्छा-अच्छा! पहले आप आराम से बैठकर गर्मा-गर्म चाय और पकौडो़ं का मजा लीजिए और उसके बाद मैं आपकी प्राॅब्लम हल करता हूँ। फिर मोहन बाबू ने चाय व पकौड़ों के साथ टेपरिकार्डर की तरह अपनी सारी प्राॅब्लम मेरे सामने रख दी। चूँंकि मैं मोहन बाबू की ईमानदारी से परिचित हूँ सो उनकी प्राॅब्लम अच्छी तरह समझता हूँ पर उनकी बीबी भी जमाने के हिसाब से गलत नहीं हैं।.... अचानक मेरी निगाह अखबार मे छपे एक विज्ञापन पर पड़ी- श्हमारे मोबाइल फोन खरीदिए और एक साल तक इनकमिंग फ्री पाईये।श् मैंने मोहन बाबू को विज्ञापन दिखाया तो वे काफी खुश हुए और हँसते हुए बोले- श्लगता है इन मोबाइल फोन वालों को मेरे जैसों का भी ख्याल है।श् मैंने उन्हें सलाह देते हुए कहा- श्मोहन बाबू मोबाइल फोन खरीदने के लिए कुछ दिन तक इन्तजार कर लीजिए तो कम्पटीशन में अन्य मोबाइल कम्पनियाँ सम्भवतः और भी आकर्षक प्लान के साथ आयें।श् खैर मोहन बाबू को मेरी बात जँची और अखबार का विज्ञापन वाला पेज उठाते हुए बोले- श्अगर बुरा न मानें तो, ये मैं अपने साथ लेते जाऊँ। आपकी भाभी को दिखाऊँगा तो शायद उसका गुस्सा कुछ ठण्डा हो जाय।
मोहन बाबू उस दिन के बाद से रोज सुबह ही सुबह मेरे दरवाजे पर आ टपकते हंै। चाय और पकौडों के साथ अखबार देखते हैं और ऐसे खुश होते हैं मानो भगवान ने उनकी सुन ली हो। पहले एक साल, दो साल, तीन साल, पाँच साल, और फिर आजीवन इनकमिंग फ्री वाले मोबाइल कम्पनियों के विज्ञापन आये पर मोहन बाबू मोबाइल खरीदने के लिए उस दिन का इन्तजार कर रहे हैं जब कोई कम्पनी अपना विज्ञापन देगी कि- श्हमारा मोबाइल फोन खरीदिए ओर अगली पीढ़ी तक इनकमिंग फ्री पाइये।श् पर अब मंै मोहन बाबू से परेशान हो गया हूँ क्योंकि वे हर सुबह मेरे घर आकर चाय व पकौडों का मजा लेते हैं और फिर विज्ञापन के बहाने पूरा का पूरा अखबार लेकर चले जाते हैं। मुझे तो डर लगता है कि कहीं अगली पीढ़ी तक इनकमिंग फ्री वाला विज्ञापन किसी मोबाइल कम्पनी ने दे भी दिया तो मोहन बाबू यह न कह उठें कि अब मैं मोबाइल फोन उसी दिन खरीदूँगा जब कोई कम्पनी अपना विज्ञापन देगी कि- श्हमारा मोबाइल फोन खरीदिए और अगले जन्म ही नहीं वरन् सात जन्मों तक इनकमिंग फ्री पाइये।
(इसे वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में भी पढ़ सकते हैं)
27 टिप्पणियां:
हाहाहाह , बहुत बढ़िया लगा यादव जी , ऐसी भी व्यस्था जल्द ही हो जायेगी ।
हम भी इसी का इंतजार कर रहे हैं..हा..हा..हा..मजेदार..बधाई.
मजेदार जी, लेकिन आप रोजाना सुबह सुबह पकोडे खाते है? जल्दी से अपने घर का पता दे, मैने भी एक मोबाईल खरीदना है... उस बारे आप से सलाह लेनी है:)
कहने को तो वे सरकारी विभाग में क्लर्क हैं पर सामान्यता क्लर्क की जो इमेज होती है, उससे काफी अलग हैं..एकदम ईमानदार टाइप के..बहुत खूब कही...सुन्दर व सटीक बात.
मोबाईल मीनिया जिस तरह से समाज मैं फ़ैल चुका है, उसे आपने बेहतरीन शब्दों में उकेरा है. ऐसी बेहतरीन रचना पढना सुखद लगा.
बहुत सुन्दर व्यंग्य रचना... बधाई.
कई बार व्यंग्य के माध्यम से भी सार्थक बातें उभरकर सामने आती हैं. के. के. यादव का यह व्यंग्य मोबाईल कंपनियों के ऐसे प्रयोजनों से लोगों को सावधान करता है.
अब मैं मोबाइल फोन उसी दिन खरीदूँगा जब कोई कम्पनी अपना विज्ञापन देगी कि- श्हमारा मोबाइल फोन खरीदिए और अगले जन्म ही नहीं वरन् सात जन्मों तक इनकमिंग फ्री पाइये।
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मोबाईल वार और लोगों की मनोस्थितियों का चित्रण करती एक विलक्षण रचना.सरकारी सेवा में उच्च पद पर रहकर लेखन कार्य करने वाले कृष्ण कुमार जी को शुभकामनायें कि वो निरंतर ऊँचाइयों पर अग्रसर हों.
मजेदार है भाई साहब...
बहुत करार व्यंग्य के. के. जी ने रचा..हम भी ऐसे ही एक सज्जन को जानते हैं.
बहुत करार व्यंग्य के. के. जी ने रचा..हम भी ऐसे ही एक सज्जन को जानते हैं.
मजेदार व्यंग ..
सप्तरंगी प्रेम ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटे रचनाओं को प्रस्तुत करेंगे. जो रचनाकार इसमें भागीदारी चाहते हैं, वे अपनी 2मौलिक रचनाएँ, जीवन वृत्त, फोटोग्राफ भेज सकते हैं. रचनाएँ व जीवन वृत्त यूनिकोड फॉण्ट में ही हों.
रचनाएँ भेजने के लिए मेल- hindi.literature@yahoo.com
आपकी यह व्यंग्य रचना पढ़कर मजा आ गया. एक कडवी सच्चाई को सुन्दर शब्दों में आपने व्यक्त किया है..कोटिश: बधाई.
आप लोगों को यह रचना पसंद आई...आप सभी के प्रोत्साहन के लिए आभार.
कहीं मोहन बाबू मैं ही तो नहीं. मैं भी कई दिन इस उधेड़ बुन में रहा हूँ..
आप एक विद्वान और यशस्वी रचनाकार है. 'सात जन्मों तक इनकमिंग फ्री' व्यंग्य रचना उन्हीं भावनाओं को शब्द देती है, जिसे हम आपने आसपास रोज देखते हैं. आप जैसा व्यक्तित्व प्रशासन व साहित्य में निहित गुणों की खान है.
प्रभु आपको ऊंचाई दे.
Interesting..!!
वैसे यदि ऐसा हो तो हम पहले ग्राहक होंगे.
बड़ी दूर तक की सोच ली मोहन बाबू ने...जबरदस्त लिखा.
मनोरंजन भी, सचेत भी कर दिया और सच भी दिखा दिया...बढ़िया रहा.
ha...ha...ha....ha...mazaa aa gayaa is vyangya par....balle...balle...
बहुत सुन्दर व्यंग्य रचना... बधाई
http://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
रोज सुबह पकौड़े खाते हैं ।
अब रोज सुबह पकौड़े खिलाओगे तो मोहन बाबू तो रोज आएंगे ही न।
बहुत बढ़िया हास्य व्यंग लेख ।
वाह बहुत ही सुन्दर, दिलचस्प और मज़ेदार व्यंग्य! बढ़िया प्रस्तुती!
very nice satire.badhai
मारा मोबाइल फोन खरीदिए और अगले जन्म ही नहीं वरन् सात जन्मों तक इनकमिंग फ्री पाइये।
कब तक इंतज़ार करना होगा?
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