आधुनिक भारत के निर्माताओं में डा0 भीमराव अम्बेडकर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है पर स्वयं डा0 अम्बेडकर को इस स्थिति तक पहुँचने के लिये तमाम सामाजिक कुरीतियों और भेदभाव का सामना करना पड़ा। डा0 अम्बेडकर मात्र एक साधारण व्यक्ति नहीं थे वरन् दार्शनिक, चिंतक, विचारक, शिक्षक, सरकारी सेवक, समाज सुधारक, मानवाधिकारवादी, संविधानविद और राजनीतिज्ञ इन सभी रूपों में उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं का निर्वाह किया। 14 अप्रैल, 1891 को इन्दौर के निकट महू कस्बे में अछूत जाति माने जाने वाले महार परिवार में जन्मे अम्बेडकर रामजी अम्बेडकर की 14वीं सन्तान थे। यह संयोग ही कहा जाएगा कि जिस वर्ष डा0 अम्बेडकर का जन्म हुआ, उसी वर्ष महात्मा गाँधी वकालत पास कर लंदन से भारत वापस आए। डा0 अम्बेडकर के पिता रामजी अम्बेडकर सैन्य पृष्ठभूमि के थे एवं विचारों से क्रान्तिकारी थे। उनके संघर्षस्वरूप सेना में महारों के प्रवेश पर लगी पाबन्दी को हटाकर सन् 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ‘महार बटालियन’ की स्थापना हुयी।
डा0 अम्बेडकर पर बुद्ध, कबीरदास और ज्योतिबाफुले की अमिट छाप पड़ी थी। बुद्ध से उन्होंने शारीरिक व मानसिक शान्ति का पाठ लिया, कबीर से भक्ति मार्ग तो ज्योतिबाफुले से अथक संघर्ष की प्रेरणा। यही नहीं अमेरिका और लन्दन में अध्ययन के दौरान वहाँ के समाज, परिवेश व संविधान का भी आपने गहन अध्ययन किया और उसे भारतीय परिवेश में उतारने की कल्पना की। अमेरिका के 14वंे संविधान संशोधन जिसके द्वारा काले नीग्रों को स्वाधीनता के अधिकार प्राप्त हुए, से वे काफी प्रभावित थे और इसी प्रकार दलितों व अछूतों को भी भारत में अधिकार दिलाना चाहते थे। 20 मार्च 1927 को महाड़ में आपने दलितों का एक विशाल सम्मेलन बुलाया और उनकी अन्तरात्मा को झकझोरते हुए अपने पैरों पर खड़ा होने और स्वचेतना से स्वाभिमान व सम्मान पैदा करने की बात कही। उन्होंने दलितों का आह्यन किया कि वे सरकारी नौकरियों में बढ़-चढ़कर भाग लें वहीं दूसरी तरफ यह भी कहा कि- ‘‘अपना घर-बार त्यागो, जंगलों की तरफ भागो और जंगलों पर कब्जा कर उसे कृषि लायक बनाकर अपना अधिकार जमाओ।’’ इस आन्दोलन से रातोंरात डा0 अम्बेडकर दलितों के सर्वमान्य नेता के रूप में उभरकर सामने आए। डा0 अम्बेडकर का स्पष्ट मानना था कि राजनैतिक स्वतंत्रता से पूर्व सामाजिक एवं आर्थिक समानता जरूरी है। अम्बेडकर का मानना था कि वर्ण व्यवस्था का सीधा दुष्प्रभाव भले ही दलितों व पिछड़ों मात्र पर दिखता है पर जब इसी सामाजिक विघटन के कारण देश गुलाम हुआ तो सवर्ण भी बिना प्रभावित हुए नहीं रह सके।
डा0 अम्बेडकर अपनी योग्यता की बदौलत सन् 1942 में वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य भी बने एवम् कालान्तर में संविधान सभा के सदस्य भी चुने गये। संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष रूप में आपने संविधान का पूरा खाका खींचा और उसमें समाज के दलितों व पिछड़े वर्गों की बेहतरी के लिए भी संवैधानिक प्रावधान सुनिश्चित किए। स्वतंत्रता पश्चात डा0 अम्बेडकर भारत के प्रथम कानून मंत्री भी बने पर महिलाओं को सम्पति में बराबर का हिस्सा देने के लिये उनके द्वारा संसद में पेश किया गया ‘हिन्दू कोड बिल’ निरस्त हो जाने से वे काफी आहत हुए और 10 अक्टूबर 1951 को मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया।
1935 में नासिक जिले के भेवले में आयोजित महार सम्मेलन में ही अम्बेडकर ने घोषणा कर दी थी कि- ‘‘आप लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैं धर्म परिवर्तन करने जा रहा हूँ। मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ, क्योंकि यह मेरे वश में नहीं था लेकिन मैं हिन्दू धर्म में मरना नहीं चाहता। बौद्ध धर्म ग्रहण करने के कुछ ही दिनों पश्चात 6 दिसम्बर 1956 को डा0 अम्बेडकर ने नश्वर शरीर को त्याग दिया पर ‘आत्मदीपोभव’ की तर्ज पर समाज के शोषित, दलित व अछूतों के लिये विचारों की एक पुंज छोड़ गए।
आज डा0 अम्बेडकर को लेकर मत-विमत में राजनीति बहुतेरे करते हैं, पर उनके दिखाए रास्ते पर बहुत कम ही लोग चलते हैं. उन्होंने दलित-पिछड़ों के समन्वय का सपना देखा था, वह असमय कल-कवलित हो गया. जब तक इस धरती पर शोषण है, छूत-अछूत की भावना है, शोषक शक्तियों द्वारा दमितों का दोहन है..तब तक डा0 अम्बेडकर की प्रासंगिकता स्वमेव बनी रहेगी.
- कृष्ण कुमार यादव
11 टिप्पणियां:
डा0 अम्बेडकर के सारगर्भित विचारों को सहेजे सारगर्भित आलेख.
अम्बेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर बाबा अम्बेडकर को शत-शत नमन.
बाबा अम्बेडकर का पुनीत स्मरण भाव विभोर कर गया.
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संविधान-निर्माता बाबा अम्बेडकर जी की जयंती पर शत-शत नमन
डा0 अम्बेडकर मात्र एक साधारण व्यक्ति नहीं थे वरन् दार्शनिक, चिंतक, विचारक, शिक्षक, सरकारी सेवक, समाज सुधारक, मानवाधिकारवादी, संविधानविद और राजनीतिज्ञ इन सभी रूपों में उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं का निर्वाह किया। ...बाबा साहब की छवि बड़ी व्यापक है..!!
डा0 अम्बेडकर के पिता रामजी अम्बेडकर सैन्य पृष्ठभूमि के थे एवं विचारों से क्रान्तिकारी थे। उनके संघर्षस्वरूप सेना में महारों के प्रवेश पर लगी पाबन्दी को हटाकर सन् 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ‘महार बटालियन’ की स्थापना हुयी।
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यह जानकारी हमारे लिए नई है..आभार. बाबा को नमन.
सारगर्भित विचार..प्रेरणास्पद.
बाबा भीमराव अंबेडर का कार्य अभी अधूरा है। उनका सपना अभी सच होना शेष है। मुझे आज गर्व होता है कि मैं दलित हूं, लेकिन मैं जब कभी भी गर्वित होता हूं तो अपने पैरों के देखकर शर्मा जाता हूं। क्योंकि जमीनी तरक्की होना अभी शेष है। गांव में रहने वाला दलित अभी भी दो जून की रोटी के लिए तड़प रहा है, पसीना बहा रहा है। लाला के कर्ज का शिकार है। ये एक कड़वी सच्चाई है। जिसपर आज हर एक दलित को सोचना चाहिए, कि क्या हम वाकई बाबा साहब के नक्शे कदमों पर चल रहे हैं। क्या वाकई हमारा पक्ष लेने वाली पार्टियां दलितों के उत्थान के लिए कार्य कर रही है। क्या वाकई हमारे लोग जो आज उच्च स्थानों पर पहुंच गये हैं अपने दलित भाईयों की मदद कर रहे हैं। एक कुंठा और एक सवाल सा है हर दलित के दिल में खुद के दलित होने पर। बाबा साहब को नमन और इस उम्मीद के साथ की बाबा साहब के जन्मदिवस पर मेरे सभी दलित भाई इस बात पर विचार अवश्य करेंगे।
स्वतंत्रता पश्चात डा0 अम्बेडकर भारत के प्रथम कानून मंत्री भी बने पर महिलाओं को सम्पति में बराबर का हिस्सा देने के लिये उनके द्वारा संसद में पेश किया गया ‘हिन्दू कोड बिल’ निरस्त हो जाने से वे काफी आहत हुए और 10 अक्टूबर 1951 को मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया..लड़ाई एक बार फिर वहीँ आ अटकी है, महिला आरक्षण को लेकर. देखिये क्या होता है आगे-आगे...
अम्बेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर बाबा अम्बेडकर को शत-शत नमन.
बेहतरीन लिखा..बाबा को नमन.
बाबा साहब को हमारा भी नमन !!
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