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शुक्रवार, 31 मई 2024

Baobab, Parijat and Kalpvriksha Tree : बाओबाब, पारिजात और कल्प वृक्ष...


'पारिजात' और 'कल्प वृक्ष' के नाम से प्रसिद्ध एवं प्रयागराज के झूंसी में पवित्र नदी गंगा के बाएं किनारे पर मिट्टी के एक विशाल टीले पर स्थित अफ्रीका के एडानसोनिया डिजिटाटा प्रजाति के दुर्लभ एवं प्राचीन 'बाओबाब' वृक्ष (Baobab tree of the Adansonia Digitata species) पर प्रयागराज प्रधान डाकघर में आयोजित एक समारोह में 30 मई, 2024 को एक विशेष आवरण व विरूपण का विमोचन किया गया। शेख तकी की मजार के पास मौजूद इस ऐतिहासिक दुर्लभ वृक्ष की आयु  750 से 1350 वर्ष के बीच मानी जाती है और इसके साथ तमाम किवदंतियां और लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। इसके तने की मोटाई 17.3 मीटर है और इस वृक्ष का फूल बड़ा तथा फल लंबा और हरे रंग का होता है। कुछ लोग इसे 'विलायती इमली' के नाम से जानते हैं। माघ मास में देश-विदेश  से आने वाले श्रद्धालु इसकी परिक्रमा करके पूजते हैं। यह वृक्ष प्रयागराज की पंचकोसी परिक्रमा के अंतर्गत आता है। ऐसे में इस पर विशेष डाक आवरण और विरूपण के माध्यम से इसकी ऐतिहासिकता, आध्यात्मिकता, वैज्ञानिकता और औषधीय गुणों के बारे में देश-दुनिया में प्रसार होगा और इसे शोध और पर्यटन से भी जोड़ने में सुविधा होगी। 

'द ट्री ऑफ लाइफ' के नाम से प्रसिद्ध 'बाओबाब' वृक्ष मूलतः मैडागास्कर, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं। बाओबाब बेशकीमती वृक्ष है, जिसे अफ्रीका में 'द वर्ल्ड ट्री' की उपाधि दी गई है और वहां के आर्थिक विकास में इन वृक्षों का विशेष महत्व है। साल में नौ महीने तक बिना पत्ते के रहने वाला दुनिया का यह अद्भूत वृक्ष मेडागास्कर का राष्ट्रीय वृक्ष होने का गौरव प्राप्त कर चुका है। इन्हें एशिया और अन्य भागों में संभवतः पुर्तगालियों द्वारा प्रसारित किया गया। 'बाओबाब' वृक्ष का वैज्ञानिक नाम एडानसोनिया डिजिटाटा है, जो फ्रांसीसी प्रकृति विज्ञानी मिशेल एडनसन के नाम पर आधारित है। एडनसन ने ही सर्वप्रथम इस वृक्ष की विशेषताओं का अध्ययन किया था और उनका वर्णन किया था। इसमें वसन्त ऋतु से लेकर छह महीने तक ही पत्तियाँ रहती हैं, शेष छह महीने तक यह ठूँठ रहता है। इसलिए इसे उल्टा वृक्ष भी कहते हैं। ठूँठ अवस्था में इसे देख कर ऐसा लगता है जैसे इसकी जड़ें ऊपर और डालियाँ नीचे की ओर कर दी गई हैं। बाओबाब के मोटे तने में वर्षा जल को संग्रहीत करने का अनूठा गुण होता है। यह विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रह सकता है। इसकी प्रमुख विशेषता अतिजीविता है। यह वृक्ष अपने जीवन काल में लगभग 1,20,000 लीटर तक का पानी संग्रह कर सकता है। कहते हैं कि यदि इसे क्षति न पहुँचाई जाय तो यह छह हजार साल तक जीवित रह सकता है। संभवतः इसकी अतिजीविता और विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रहने की विशेषता के कारण इसे 'कल्पवृक्ष' या 'पारिजात' कहा गया है। 










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