भारत में त्यौहारों का संबंध विभिन्न प्रसंगों से जोड़ा जाता है। हर त्यौहार के पीछे मिथक व मान्यताएं होती हैं, पर कई बार ये त्यौहार आपस में इतने जुड़ जाते हैं कि वे उत्सवी परंपरा के ही अभिन्न अंग लगने लगते हैं। मसलन, फागुन में जब रंगों की फुहारें भगवान श्री कृष्ण के बरसाने के होली उत्सव की याद दिलाती हैं तो रामलीला का आयोजन कुछ अजीब लगता है, लेकिन बरेली शहर में होली के रंगो में भगवान राम के आदर्श भी गूंजते हैं। 150 से भी अधिक साल से यहाँ फागुन में वमनपुरी की रामलीला होती आ रही है। संभवतः देश में यह अकेला ऐसी रामलीला है जो होली के उपलक्ष्य में होती है।
इस रामलीला की अपनी दीर्घ ऐतिहासिक परंपरा है। वमनपुरी की यह रामलीला 1861 में शुरु हुई थी। तब इस क्षेत्र के उत्साही बच्चे टीन-गत्ते आदि के मुकुट और बालों की दाढ़ी-मूँछ लगाकर रामलीला का मंचन करते थे। पात्रों का श्रृंगार राजसी शैली में प्राकृतिक रंगो और सितारों से होता था। ये रामलीलाएं वमनपुरी और उसके आसपास के मोहल्लों की गलियों-चैराहों पर होती थीं। उन्हीं परंपराओं के तहत आज भी रामलीला के कई प्रसंगों का मंचन वमनपुरी व आसपास के मोहल्लों की गलियों में होता है। ‘शबरी लीला’ चटोरी गली में होती है। वमनपुरी में रामलीला का मुख्य मंचन श्री नृसिंह मंदिर में होता है। इस रामलीला को नया स्वरूप मिला 1888-89 में, जब उस समय के प्रतिष्ठित एवं गणमान्य हकीम कन्हैया लाल, गोपेश्वर बाबू, जगन रस्तोगी, पंडित जंगबहादुर, बेनी माधव, लाला बिहारी लाल, पंडित राधेश्याम कथावाचक एवं मिर्जा जी रामलीला का मंचन कराने लगे। पंडित रघुवर दयाल और पंडित रज्जन गुरु भी चैपाइयों का वाचन करते थे। सन् 1935-38 के बीच शहरवासियों ने रामलीला के लिए खुले हाथ से सहयोग देना प्रारंभ कर दिया। 1949 में साहूकारा के शिवचरन लाल ने राम एवं केवट संवाद को सजीव बनाने के लिए लकड़ी की नाव बनवाकर रामलीला सभा को भेंट की थी। तब से ही भगवान राम- केवट संवाद का मंचन इसी नाव के जरिए साहूकारा स्थित भैरो मंदिर में होता है।
यहांँ चैत्र कृष्ण एकादशी पर रामलीला का मंचन शुरु हो जाता है और धुलंडी के दिन तक रोज विभिन्न प्रसंगों का मंचन होता है। रामलीला का समापन नृसिंह भगवान की शोभा यात्रा के साथ होता है। होली के दिन रामलीला से निकलने वाली राम बारात शहर में अनूठे रंग बिखेरती है। इसमें सौहार्द के फूल बरसते हैं। हिन्दू हो या मुस्लिम सभी पुष्पवर्षा कर राम बारात का स्वागत करते हैं। फागुनी फिजाओं में रामलीला का यह उत्सव वाकई अद्भुत है।
इस रामलीला की अपनी दीर्घ ऐतिहासिक परंपरा है। वमनपुरी की यह रामलीला 1861 में शुरु हुई थी। तब इस क्षेत्र के उत्साही बच्चे टीन-गत्ते आदि के मुकुट और बालों की दाढ़ी-मूँछ लगाकर रामलीला का मंचन करते थे। पात्रों का श्रृंगार राजसी शैली में प्राकृतिक रंगो और सितारों से होता था। ये रामलीलाएं वमनपुरी और उसके आसपास के मोहल्लों की गलियों-चैराहों पर होती थीं। उन्हीं परंपराओं के तहत आज भी रामलीला के कई प्रसंगों का मंचन वमनपुरी व आसपास के मोहल्लों की गलियों में होता है। ‘शबरी लीला’ चटोरी गली में होती है। वमनपुरी में रामलीला का मुख्य मंचन श्री नृसिंह मंदिर में होता है। इस रामलीला को नया स्वरूप मिला 1888-89 में, जब उस समय के प्रतिष्ठित एवं गणमान्य हकीम कन्हैया लाल, गोपेश्वर बाबू, जगन रस्तोगी, पंडित जंगबहादुर, बेनी माधव, लाला बिहारी लाल, पंडित राधेश्याम कथावाचक एवं मिर्जा जी रामलीला का मंचन कराने लगे। पंडित रघुवर दयाल और पंडित रज्जन गुरु भी चैपाइयों का वाचन करते थे। सन् 1935-38 के बीच शहरवासियों ने रामलीला के लिए खुले हाथ से सहयोग देना प्रारंभ कर दिया। 1949 में साहूकारा के शिवचरन लाल ने राम एवं केवट संवाद को सजीव बनाने के लिए लकड़ी की नाव बनवाकर रामलीला सभा को भेंट की थी। तब से ही भगवान राम- केवट संवाद का मंचन इसी नाव के जरिए साहूकारा स्थित भैरो मंदिर में होता है।
यहांँ चैत्र कृष्ण एकादशी पर रामलीला का मंचन शुरु हो जाता है और धुलंडी के दिन तक रोज विभिन्न प्रसंगों का मंचन होता है। रामलीला का समापन नृसिंह भगवान की शोभा यात्रा के साथ होता है। होली के दिन रामलीला से निकलने वाली राम बारात शहर में अनूठे रंग बिखेरती है। इसमें सौहार्द के फूल बरसते हैं। हिन्दू हो या मुस्लिम सभी पुष्पवर्षा कर राम बारात का स्वागत करते हैं। फागुनी फिजाओं में रामलीला का यह उत्सव वाकई अद्भुत है।
16 टिप्पणियां:
अजूबा ही है...
औचित्य समझ नहीं आया ।
हालांकि १९६१ में बरेली में रहे ,परन्तु तब बहुत छोटे थे और इस राम लीला के बारे में नहीं सुना था.आज आपके माध्यम से नयी जानकारी हासिल हुयी.
आप सब को होली बहुत-बहुत मुबारक हो.
ज्ञानप्रद आलेख।
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.
सादर
आपको और आपके परिवार को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
होली पर रामलीला भी खेली जाती है पहली बार जाना. इस जानकारी के लिए धन्यवाद और साथ ही आपको और आपके परिवार को होली की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं.
इस रामलीला के बारे अनूठी जानकारी मिली.होली की हार्दिक शुभकामनायें
होली के कित्ते रूप..अच्छा लगा. सभी को होली की बधाई.
यही तो हमारी सुन्दर संस्कृति का परिचायक है..शानदार लेख..बधाई.
देर से आने के लिए माफ़ी..होली की असीम मुबारकवाद.
वाह, अच्छी जानकारी मिली..आभार.
something rare !
हमारा देश इस तरह के तमाम अनूठी संस्कृतियों से भरा पड़ा है, और शहर के ही पूरे लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती है, जानकारी हम लोगों तक पहुंचाने के लिए यादव जी का बहुत शुक्रिया... क्या आप इस रामलीला से जुड़े कुछ फोटोग्राफ या इसके आयोजकों के नंबर मुझे मेल कर सकते हैं, बहुत कृपा होगी ...मैं देश भर की रामलीलाओं को संकलित कर रही हूं, अगर किसी भी ऐसी ऐतिहासिक या अनूठी रामलीला आपकी जानकारी में हो तो मुझे सूचित करने की कृपा करें , हमारी संस्कृति को संजोने के इस कार्य में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है । धन्यवाद डॉ मोनिका मिश्रा (दिल्ली विश्वविद्यालय)- dr.monika001@gmail.com
हमारा देश इस तरह की तमाम अनूठी संस्कृतियों से भरा पड़ा है, और शहर के ही पूरे लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती है, जानकारी हम लोगों तक पहुंचाने के लिए यादव जी का बहुत शुक्रिया... क्या आप इस रामलीला से जुड़े कुछ फोटोग्राफ या इसके आयोजकों के नंबर मुझे मेल कर सकते हैं, बहुत कृपा होगी ...मैं देश भर की रामलीलाओं को संकलित कर रही हूं, अगर किसी भी ऐसी ऐतिहासिक या अनूठी रामलीला आपकी जानकारी में हो तो मुझे सूचित करने की कृपा करें , हमारी संस्कृति को संजोने के इस कार्य में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है । धन्यवाद डॉ मोनिका मिश्रा (दिल्ली विश्वविद्यालय)- dr.monika001@gmail.com
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