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परंपरागत वेशभूषा में सजे-धजे हुरियारों की कमर में अबीर-गुलाल की पोटलियाँ बंधी होती हैं तो दूसरी ओर बरसाना की हुरियारिनों के पास मोटे-मोटे तेल पिलाए लट्ठ होते हैं। बरसाना की रंगीली गली में पहुँचते ही हुरियारों पर चारों ओर से टेसू के फूलों से बने रंगों की बौछार होने लगती है। परंपरागत शास्त्रीय गान ‘ढप बाजै रे लाल मतवारे को‘ का गायन होने लगता है। हुरियारे ‘फाग खेलन बरसाने आए हैं नटवर नंद किशोर‘, का गायन करते हैं तो हुरियारिनें ‘होली खेलने आयै श्याम आज जाकूं रंग में बोरै री‘, का गायन करती हैं। भीड़ के एक छोर से गोस्वामी समाज के लोग परंपरागत वाद्यों के साथ महौल को शास्त्रीय रुप देते हैं। ढप, ढोल, मृदंग की ताल पर नाचते-गाते दोनों दलों में हंसी-ठिठोली होती है। हुरियारिनें अपनी पूरी ताकत से हुरियारों पर लाठियों के वार करती हैं तो हुरियार अपनी ढालों पर लाठियों की चोट सहते हैं। हुरियारे मजबूत ढालों से अपने शरीर की रक्षा करते हैं एवं चोट लगने पर वहाँ ब्रजरज लगा लेते हैं।
बरसाना की होली के दूसरे दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को सायंकाल ऐसी ही लट्ठमार होली नन्दगाँव में भी खेली जाती है। अन्तर मात्र इतना है कि इसमें नन्दगाँव की नारियाँ बरसाने के पुरूषों का लाठियों से सत्कार करती हैं। इसमें बरसाना के हुरियार नंदगाँव की हुरियारिनों से होली खेलने नंदगाँव पहुँचते हैं। फाल्गुन की नवमी व दशमी के दिन बरसाना व नंदगाँव के लट्ठमार आयोजनों के पश्चात होली का आकर्षण वृन्दावन के मंदिरों की ओर हो जाता है, जहाँ रंगभरी एकादशी के दिन पूरे वृंदावन में हाथी पर बिठा राधावल्लभ लाल मंदिर से भगवान के स्वरुपों की सवारी निकाली जाती है। बाद में भी ठाकुर के स्वरूप पर गुलाल और केशर के छींटे डाले जाते हैं। ब्रज की होली की एक और विशेषता यह है कि धुलेंडी मना लेने के साथ ही जहाँ देश भर में होली का खूमार टूट जाता है, वहीं ब्रज में इसके चरम पर पहुँचने की शुरुआत होती है।
17 टिप्पणियां:
अच्छी जानकारी देती बढ़िया पोस्ट
धन्यवाद संगीता जी.
बहुत सुन्दर जानकारी दी है आपने ... बरसाने की लठ्ठमार होली तो विश्व प्रसिद्द है ...
बरसाने की इस लट्ठमार होली के बारे में सीमित जानकारी तो रही है आपने विस्तार से बताया । धन्यवाद...
ब्लागराग : क्या मैं खुश हो सकता हूँ ?
अरे... रे... आकस्मिक आक्रमण होली का !
आप सब को होली मंगलमय हो.
अनोखी होली, बरसाने वाले की।
होली खेलने के परम्परागत ढंग अभी भी कायम हैं । यही हमारी खूबी है ।
Jaankari ke liya shukriya.
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का विनम्र प्रयास।
भाई के० के० यादव जी आपको होली की सपरिवार होली की शुभकामनाएं |
बहुत सुना है बरसाने की होली के बारे में..कभी देखने की इच्छा है.
वाकई बरसाने की होली के बिना तो होली का रंग ही फीका है.
होली पर्व की बधाइयाँ !!
krishna kr. yadav ji
आप के ब्लाग पर मथुरा का जिक्र दिल को छू गया।
होली तो बरसाने की, बाकी तो सब जगह तो होली के नाम पर रंगोली होती है। बडे शहरो मे कही कही पर तो होली का मतलब सिर्फ पियक्कडो को ही समझ आता है। सीधा इंसान तो घर मे बैठकर कैद हो जाता है और होली बिना किसी समस्या के गुजर जाये तो अपने को धन्य समझता है।
आपके बरसाने के रेंज बहुत ही असर्दार है।
मुझे भी तो देखना है बरसाने की होली..
मुझे भी तो देखना है बरसाने की होली..
यही तो हमारी सुन्दर संस्कृति का परिचायक है..शानदार लेख..बधाई.
वाह, अच्छी जानकारी मिली..आभार.
देर से आने के लिए माफ़ी..होली की असीम मुबारकवाद.
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