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सोमवार, 22 जून 2009

भारतीय साहित्य में कानपुर के योगदान पर गोष्ठी

कानपुर सिर्फ एक नगर का नाम नहीं है, बल्कि सभ्यता-संस्कृति-साहित्य की लम्बी परम्परा का नाम है। इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए होरी एवं यूएसएम पत्रिका के तत्वाधान में मर्चेंट चेम्बर्स सभागार, कानपुर में 21 जून, 2009 को ‘‘भारतीय साहित्य में कानपुर क्षेत्र का योगदान‘‘ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गौरतलब है कि आदि कवि बाल्मीकि द्वारा बिठूर में रचित रामायण, कवि भूषण, बीरबल से लेकर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रताप नारायण मिश्र, गया प्रसाद शुक्ल ‘स्नेही’, जगदम्बा प्रसाद ‘हितैषी’, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, हसरत मोहानी, गणेश शंकर विद्यार्थी, श्याम लाल गुप्त ‘पार्षद‘, भगवती चरण वर्मा की गौरवशाली विद्वत परम्परा यहीं की देन है। साहित्य के तमाम दिग्गजों ने विभिन्न क्षेत्रों से आकर कानपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया तो यहाँ के तमाम साहित्यकार-पत्रकार देश भर में घूम-घूम कर अलख जगाते रहे।


मुख्य वक्ता के रूप में चर्चित कथाकार पद्मश्री गिरिराज किशोर ने कानपुर में साहित्य एवं पत्रकारिता की परम्परा पर विस्तृत प्रकाश डाला एवं युवा पीढ़ी को इनसे जोड़ने की अपील की। उन्होंने कानपुर के साहित्यिक इतिहास को उद्धृत करते हुए कहा कि यह शहर बालकृष्ण शर्मा नवीन, सनेही जी, गणेश शंकर विद्यार्थी एवं पार्षद जी जैसी विभूतियों का है पर हमारी नई पीढ़ी इनके कार्यों को आगे बढ़ाने में सफल नहीं रही। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद, लखनऊ, बनारस जैसे शहरों की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाली कालजयी रचनाएं भला कौन नहीं जानता होगा, पर कानपुर दुर्भाग्यशाली ही रहा। मूर्धन्य साहित्यकारों और पत्रकारों के शहर का होने के बाद भी अब तक कानपुर (कम्पू) पर कालजयी रचना प्रकाशित नहीं हुई। मुख्य अतिथि एवं कबीर शांति मिशन के संस्थापक राकेश कुमार मित्तल, आई0ए0एस0 ने साहित्य की प्रत्येक विधा में कानपुर के योगदान को सराहा और जीवन मूल्यों की स्थापना में साहित्य के अप्रतिम योगदान की चर्चा की। अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रभाषा प्रचार समिति- उत्तर प्रदेश के संयोजक व मानस संगम के संयोजक पं0 बद्री नारायण तिवारी ने कानपुर की गौरवशाली परम्परा को दोहराते हुए कहा कि नगर के साहित्य ने वैश्विक पहचान बनाई है। जरूरत इसके प्रचार-प्रसार की है। उन्होंने इस कड़ी में नगर में मानस संगम द्वारा स्थापित शहीद उपवन की भी चर्चा की, जिसके माध्यम से क्रान्तिकारियों एवं क्रान्तिकारी रचनाओं को संजोया गया है।

संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए चर्चित युवा साहित्यकार एवं भारतीय डाक सेवा के अधिकारी कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि साहित्य की यात्रा वहीं से आरम्भ होती है, जहाँ से संस्कृति की यात्रा और कानपुर आदिकाल से ही साहित्य एवं संस्कृति का प्रणेता रहा है। कानपुर में क्रान्तिकारी साहित्य को उद्धृत करते हुए श्री यादव ने कहा कि व्यवस्था बदलाव के लिए सियासी नारे की जरूरत नहीं होती, सियासी नारे तो हर साल बदल जाते हैं। जरूरत इन्सान की सोच बदलने की है और साहित्य यह सोच बदलने की काबिलियत रखता है। आकाशवाणी दिल्ली के निदेशक लक्ष्मीशंकर बाजपेई ने कानपुर के रचनाकारों की रचनाओं को विलुप्त होने से बचाने की बात कही तो कवयित्री व लेखिका डा0 प्रभा दीक्षित ने कानपुर के साहित्य में महिला लेखन एवं नारी विमर्श को आगे बढ़ाया। प्राचार्य एवं लेखक डा0 यतीन्द्र तिवारी ने साहित्य में कानपुर के ऐतिहासिक योगदान व डा0 सुरेश अवस्थी ने वर्तमान परिदृश्य पर चर्चा की। सूचना विभाग के उपनिदेशक अशोक बनर्जी ने साहित्य के साथ-साथ नौटंकी के क्षेत्र में कानपुर की विशिष्टता को उभारा तो अरूण प्रकाश अग्निहोत्री ने पुस्तक मेला की भूमिका रेखांकित की। डाॅ0 राष्ट्रबन्धु ने बाल साहित्य के क्षेत्र में कानपुर के अवदान की चर्चा करते हुए कहा कि हर रचनाकार मन से बाल साहित्यकार भी होता है। होरी पत्रिका के संपादक राज कुमार सचान ‘होरी‘ ने पूरी तरह कविता पर केन्द्रित पत्रिका के प्रकाशन के औचित्य व आज की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि होरी में काव्य की सभी विधाओं और हिन्दी-उर्दू रचनाओं को एक साथ प्रकाशित कर भाषायी एकता को मजबूत बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

इस अवसर पर ‘कैरियर मानीटर‘ पाक्षिक समाचार पत्र के प्रवेशांक का लोकार्पण भी किया गया। होरी और यूएसएम पत्रिका पर परिचर्चा में डा0 गायत्री सिंह इत्यादि ने समीक्षात्मक टिप्पणियाँ की। मानस संगम व उत्कर्ष अकादमी द्वारा उमाशंकर मिश्र एवं राज कुमार सचान ‘होरी‘ का अभिनन्दन किया गया तो घाटमपुर पुखरांया नागरिक परिषद ने ‘होरी‘ को कवि कुलभूषण उपाधि दी। डा0 नारायणी शुक्ला ने सरस्वती गान द्वारा कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई तो 6 सगी अनवरी बहनों ने वन्देमातरम् वं राष्ट्रगान द्वारा कार्यक्रम में ओज भरा। यूएसएम पत्रिका के संपादक उमाशंकर मिश्र ने इस अवसर पर कानपुर पर एक विशेषांक निकालने की घोषणा की, जिसे नगर के साहित्यकारों-बुद्धिजीवियों द्वारा सराहा गया। मानस संगम, उत्कर्ष अकादमी एवं डा0 महमूद रहमानी के सौजन्य से आयोजित इस कार्यक्रम के अन्त में कानपुर के साहित्य को अपनी गरिमामयी साधना से गौरवान्वित करने हेतु साहित्यकारों-कलाकारों को सम्मानित किया गया। तात्याराव टोपे के वंशज विनायक राव टोपे का भी सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन उत्कर्ष अकादमी के निदेशक डा0 प्रदीप दीक्षित ने किया। इस अवसर पर दुर्गा चरण मिश्र, सत्यकाम पहारिया, मनोज सेंगर, अनिल दीक्षित, हिन्दुस्तान अकेला, कमल मुसद्दी, एस0पी0 सिंह, मुकुल नारायण तिवारी, पवन तिवारी, श्रीराम तिवारी, अभिनव नारायण तिवारी, गीता सिंह सहित तमाम साहित्यकार, पत्रकार, बुद्विजीवी एवं नागरिक जन उपस्थित रहे।

6 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप का लेख पढ कर अच्छा लगा आप ने बहुत अच्छी जान कारी दी है,
धन्यवाद

cartoonist anurag ने कहा…

bahut hi achha lekh hai....
dher sari badhaiyan......

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

बड़ा खूबसूरत बैक ग्राउंड और भव्य मंच है. इसी से कार्यक्रम के बारे में अंदाज लगाया जा सकता है.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

KK Sir ! looking very smart.

drishtipat ने कहा…

यादव साहब आप जितने खुबसूरत हैं, आप का साहित्य मन भी उतना ही खुबसूरत है, आपसे चाट पट बाते तो होती है, लेकिन आपका परिचय तो शब्द-सृजन को देखने के बाद हुआ, आप इतने सुरुचिसम्पन्न इन्सान हैं, यह भी आपके ब्लॉग से जाना, आशा है मेरी पत्रिका दृष्टिपात आपको मिल गई होगी, १५ अगस्त के अंक में लोकतंत्र का अयाम छापा है, शीघ्र आपको मिल जायेगी. आपका ब्लॉग साहित्य प्रेमियों के लिए एक तीर्थ स्थल से कम नहीं है.
आपका मित्र अरुण कुमार झा
www.drishtipat.com

inqlaab.com ने कहा…

nice one u can give ur view in


www.inqlaab.com