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गुरुवार, 4 जून 2009

ई-पार्क

बचपन में पढ़ते थे
ई फॉर एलीफैण्ट
अभी भी ई अक्षर देख
भारी-भरकम हाथी का शरीर
सामने घूम जाता है
पर अब तो ई
हर सवाल का जवाब बन गया है
ई-मेल, ई-शॉप, ई-गवर्नेंस
हर जगह ई का कमाल
एक दिन अखबार में पढ़ा
शहर में ई-पार्क की स्थापना
यानी प्रकृति भी ई के दायरे में
पहुँच ही गया एक दिन
ई-पार्क का नजारा लेने
कम्प्यूटर-स्क्रीन पर बैठे सज्जन ने
माउस क्लिक किया और
स्क्रीन पर तरह-तरह के देशी-विदेशी
पेड़-पौधे और फूल लहराने लगे
बैकग्राउण्ड में किसी फिल्म का संगीत
बज रहा था और
नीचे एक कंपनी का विज्ञापन
लहरा रहा था
अमुक कोड नंबर के फूल की खरीद हेतु
अमुक नम्बर डायल करें
वैलेण्टाइन डे के लिए
फूलों की खरीद पर
आकर्षक गिटों का नजारा भी था
पता ही नहीं चला
कब एक घंटा गुजर गया
ई-पार्क का मजा ले
ज्यों ही चलने को हुआ
उन जनाब ने एक कम्प्यूटराइज्ड रसीद
हाथ में थमा दी
आखिर मैंने पूछ ही लिया
भाई! न तो पार्क में मैने
परिवार के सदस्यों के साथ दौड़ लगायी
न ही अपने टॉमी कुत्ते को घुमाया
और न ही मेरी पत्नी ने पूजा की खातिर
कोई फूल या पत्ती तोड़ी
फिर काहे की रसीद ?
वो हँसते हुये बोला
साहब! यही तो ई-पार्क का कमाल है
न दौड़ने का झंझट
न कुत्ता सभालने का झंझट
और न ही पार्क के चौकीदार द्वारा
फूल पत्तियाँ तोड़ते हुए पकड़े जाने पर
सफाई देने का झंझट
यहाँ तो आप अच्छे-अच्छे
मनभावन फूलों व पेड़-पौधें का नजारा लीजिये
और आँखों को ताजगी देते हुये
आराम से घर लौट जाईये !!

27 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

हर चीज़ को जब व्यापर बना लिया जाये तो ऐसा ही होता है ...लेकिन सभी जानते हैं कि कुछ चीज़ों की भरपाई किसी अन्य चीज़ से नहीं हो सकती ....जैसे प्राकृतिक धरोहर की .....अभी नहीं संभले हम तो ...हमे संभलने का मौका नहीं देगी यह प्रकृति

vandana gupta ने कहा…

bahut badhiya rachna .

RAJ SINH ने कहा…

e park ghar me hee ( computer pe ) banayen . park bhee kyoon jayen ? :)
paryavaran din pe is rachna ke liye badhaaee !

निर्मला कपिला ने कहा…

ापने तो इस अनोखी कविता मे आज का सच बहुत बडिया अन्दाज़ मे प्रस्तुत किया हर चीज़ बनावटी हो गयी है तो ये फूल क्यों ना इस नये जमाने का आनन्द लेम मगर हमे इसकी जो भारी कीमत भविश्य मे चुकानी पदेगी उस को याद करके रूह काँप जाती है आभार्

रश्मि प्रभा... ने कहा…

vyaapar,media,bhagti zindagi ka kamaal hai.....shukra hai,kavi mann sabkuch dekhta samajhta hai,bahut achhi rachna...

रंजना ने कहा…

Bahut bahut sateek sadha vyangy.....

Lajawaab likha hai aapne....

admin ने कहा…

भविष्य की त्रासदियों को बखूबी बयां किया है आपने।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

यादव जी आपने आज के बारे में इतना अच्‍छा लिख है कि तारीफ के लिए शब्‍दों की कमी है सच में बिल्‍कुल सटीक और सधा हुआ वर्णन किया है आपने बेहतरीन उपलब्धि बधाई स्‍वीकार करें

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

सही में आजकल ज़माना बहुत बदल गया है..या यूँ कहें की "ई "जमाना आ गया है..!आजकल तो कम्पूटर पर ही पूजा अर्चना से लेकर शादियाँ तक हो जाती है...!फिर भी पर्यावरण के मामले में तो हमें सज़ग रहना ही होगा...!अच्छी रचना हेतु बधाई...

Arvind Gaurav ने कहा…

achha laga padhkar..... rochak rachna hai

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…
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Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

Aj ke daur par behad sundar kavita.

sandhyagupta ने कहा…

Aage aage dekhiye aur kin kin chijon se saath 'e' judta hai!Lagatar 'tarraki' jo kar rahe hai hum.

वीनस केसरी ने कहा…

आपकी पोस्ट पढ़ कर सबसे पहला सवाल खुद से किया उत्तर नहीं मिला इसलिए आपसे पूछ रहा हूँ
ये कविता है या आलेख ?

वीनस केसरी

Abhishek Ojha ने कहा…

सच्चाई ही तो है ! कल को ऐसा हो जाय तो आर्श्चय नहीं.
हालात बयां कर रही है ये ई-रचना :)

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

@Venus Kesari !
अरे भाई यह अतुकांत लम्बी कविता है. इतना भी कन्फ्यूज होने की जरुरत नहीं नहीं है.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…
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हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

बहुत खूब...विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधा लगाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखें.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

कहना तो बहुत कुछ चाह रहा था....मगर आज नहीं....हाँ मगर आपने अत्यंत रोमांचक ढंग से तस्वीर उतारी है....आपको धन्यवाद....आदमी समझे-ना समझे....वो जाने....!!

मन-मयूर ने कहा…

आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ. आपकी लेखनी प्रभावित करती है....

Unknown ने कहा…
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Unknown ने कहा…

पर्यावरण और उससे जुड़े मुद्दों के प्रति आम धारणा बदलने में साहित्यकार/समाजसेवी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। आप यूँ ही अलख जगाते रहें कृष्ण कुमार यादव जी....शुभकामनायें.

Bhanwar Singh ने कहा…

देखते जाइये अभी क्या-क्या ई होने वाला है..सुन्दर व्यंग्य.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

के. के. भाई, ये तो बड़ा नया विषय चुना ई-पार्क..अच्छा लगा.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

व्यंग्य के माध्यम से बड़ी सच बात कही. यदि हम आज ना चेते तो कल को यही स्थिति होगी.

editor : guftgu ने कहा…

बहुत सही लिखा आपने..बेबाक.

बेनामी ने कहा…

प्रकृति व पर्यावरण से खिलवाड़ करेंगे तो यही सब होगा..शानदार रचना की बधाई के. के. यादव जी को.