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बुधवार, 11 सितंबर 2013

लघु कथा: हिन्दी सप्ताह / कृष्ण कुमार यादव

हिन्दी सप्ताह का आगमन होते ही सरकारी कार्यालय में दिशा-निर्देश जारी होने लगे। पुराने बैनर और नेम प्लेटों को धो-पोंछकर  चमकाया जाने लगा, बस साल बदल जाना था। फिर तलाश आरम्भ हुई एक अदद अतिथि की, जो कि एक बाबू के पड़ोस में मिल गए। समारोह में आते ही फूल-मालाओं व उपहारों के बीच उन्होंने हिन्दी के राजभाषा बनने से लेकर अपने योगदान तक की चर्चा कर डाली। 

हिन्दी सप्ताह खत्म होते ही बाबू ने कुल खर्च की फाइल अधिकारी महोदय के सामने रखी। अधिकारी महोदय ने रोमन में लिख दिया- सेंक्सन्ड। 

बाबू ने धीमे से टोका-‘स......ऽ.....र‘

 तो अधिकारी महोदय ने नजरें तरेरते हुए कहा- ‘‘क्या तुम्हें यह भी बताना पड़ेगा कि हिन्दी सप्ताह बीत चुका है।’’

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