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मंगलवार, 1 नवंबर 2011

जज्बात

वह फिर से ढालने लगा है
अपने जज्बातों को पन्नों पर
पर जज्बात पन्ने पर आने को
तैयार ही नहीं
पिछली बार उसने भेजा था
अपने जज्बातों को
एक पत्रिका के नाम
पर जवाब में मिला
सम्पादक का खेद सहित पत्र
न जाने ऐसा कब तक चलता रहा
और अब तो
शायद जज्बातों को भी
शर्म आने लगी है
पन्नों पर उतरने में
स्पाॅनसरशिप के इस दौर में
उन्हें भी तलाश है एक स्पाॅन्सर की
जो उन्हें प्रमोट कर सके
और तब सम्पादक समझने में
कोई ऐतराज नहीं हो।

-कृष्ण कुमार यादव

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बाजार नहीं समझते हैं ये जज्बात..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

पन्नों पर तो उतरते हैं जज़्बात पर छापते नहीं ..बाजार की रीत नहीं जानते ..

Pallavi saxena ने कहा…

sangeeta ji ki baat se poori tarah sehamat hoon....