अंडमान में बहुत सी ऐसी चीजें हैं, जो प्राय: बहुत कम ही लोगों को पता होती हैं. इन्हीं में से एक है-पैरट-आइलैंड. पोर्टब्लेयर से बाराटांग की यात्रा में बहुत कुछ देखने को मिलता है. रास्ते में पाषाण कालीन सभ्यता में रह रहे तीर-धनुष से लैस जारवा आदिवासी, बाराटांग में कीचड़ के ज्वालामुखी, लाइम स्टोन केव. चारों तरफ घने वृक्षों से आच्छादित हरे-भरे जंगल और समुद्र की अठखेलियाँ. समुद्र का सीना चीरते हमारी स्टीमर-बोट शाम को साढ़े चार बजे आगे बढती है, साथ में मेरा परिवार और कुछेक स्टाफ के लोग.
मैन्ग्रोव-क्रीक के बीच से गुजरते हुए शाम की समुद्री हवाएँ ठण्ड का अहसास कराती हैं. जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, आस-पास दसियों छोटे-छोटे द्वीप दिखने लगते हैं. मौसम सुहाना सा हो चला है. गंतव्य नजदीक है. आखिर हम पैरट-आइलैंड के करीब पहुँच ही जाते हैं. बोट को धीमे-धीमे वह किनारे लगाता है. उतरने की कोई जगह नहीं, बोट में बैठकर ही नजारा लेना है.
बिटिया पाखी चारों तरफ टक-टकी सी निगाह लगाए हुए है. बार-बार पूछती है कि तोते कब दिखेंगें. कानपुर में हमारे आवास-प्रांगन में एक विशाल वट वृक्ष था, शाम को उस पर अक्सर ढेर सारे तोते आते थे. तोतों की टें-टें सुनना मनोरंजक लगता था.
...चारों तरफ ठहरी हुई शांति, समुद्र भी मानो थक कर आराम कर रहो हो. एक-दो मछुहारे नाव के साथ मछली पकड़ते दिख जाते हैं. अचानक एक चीख सी पूरे माहौल का सन्नाटा तोड़ती है. हम चौंकते हैं कि क्या हुआ ? नाविक ने बताया कि जंगल में किसी ने हिरण का शिकार कर पकड़ लिया है. यद्यपि यहाँ हिरण को मारना जुर्म है, पर ये तथाकथित शिकारी जंगलों में कुत्तों के साथ जाते हैं और कुत्ते दौड़कर हिरण को पकड़ लेते हैं. अंडमान में अवैध रूप से हिरण के मांस की बिक्री कई बार सुनने को मिलती है. यह भी एक अजीब बात है की यहाँ के आदिवासी हिरणों को पवित्र आत्मा मानते हैं और उनका शिकार नहीं करते, पर बाहर से आकर बसे लोग हिरणों के शिकार में अवैध रूप से लिप्त हैं.
पैरट आईलैंड वास्तव में समुद्र के बीच मैंग्रोव की झाड़ियों पर अवस्थित है. यहाँ कोई जमीन नहीं, इसीलिए चाहकर भी बोट से नहीं उतर सकते. इन मैंग्रोव की झाड़ियों को तोतों ने कुतर-कुतर कर सम बना दिया है, ताकि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा न हो. दूर से देखने पर यह हरे रंग का गलीचा लगता है. न तो एक पत्ती ऊपर, न एक पत्ती नीचे. वाकई, प्रकृति का अद्भुत नजारा.
...तभी एक तोते की टें-टें सुनाई दी. वह चारों तरफ एक चक्कर मरता है, फिर आवाज़ देता है-टें-टें. यह इशारा था सभी तोतों को बुलाने का. तभी दूसरी दिशा से आते दो तोते दिखाई दिए..टें-टें. फिर तो देखते ही देखते चारों तरफ से तोतों का झुण्ड दिखने लगा. बमुश्किल 15 मिनट के भीतर हजारों तोते आसमान में दिखने लगे. आसमान में कलाबाजियाँ करते, विभिन्न तरह की आकृति बनाते, एक झुण्ड से दुसरे झुण्ड में मिलते और फिर बड़ा झुण्ड बनाते तोते मानो अपनी एकता और कला का जीवंत प्रदर्शन कर रहे हों.
सबसे बड़ा अजूबा तो यह था कि कोई भी तोता मैंग्रोव पर नहीं बैठता, बस उसके चारों तरफ चक्कर लगाता और फिर आसमान में कलाबाजियाँ, मानो सब एक अनुशासन से बंधे हुए हों...और देखते ही देखते सारे तोते मैंग्रोव की झाड़ियों पर उतर गए. हरे रंग के मैंग्रोव पर हरे -हरे तोते, सब एकाकार से हो गए थे. चूँकि हमने उन्हें वहाँ उतरते देखा था, अत: उनकी उपस्थिति का भान हो रहा था. कोई सोच भी नहीं सकता कि मैंग्रोव की इन झाड़ियों पर हजारों तोते उपस्थित हैं. न जाने कितने द्वीपों से और दूर-दूर से ये तोते आते हैं और पूरी रात एक साथ बिताने के बाद फिर अगली सुबह मोती की तरह बिखरे द्वीपों की सैर पर निकल जाते हैं.
18 टिप्पणियां:
adbhut , jaankaari ke liye shukriya...
वाह के के जी यादे ताजा कर दी मई २००९ में गया था खूबसूरत मेगापोस्त नेस्ट रेसोर्ट में ठहरा था ,अंडमान एक बेहद खूबसूरत स्थल है हमारा परिवार बेहद खुश हुआ था, जारवा भी देखे.पैरेट आयलैंड आपने दिखा दिया अपने प्यारे-प्यारे नन्हे मुन्नों के साथ. बच्चों को स्नेह आपका आभार
कहाँ-कहा की सैर करते रहते हैं भाई. अंडमान का पूरा लुत्फ़ उठा रहे हैं. आपके साथ हम लोगों को भी नई-नई चीजें पता चल रही हैं..आभार.
कहाँ-कहा की सैर करते रहते हैं भाई. अंडमान का पूरा लुत्फ़ उठा रहे हैं. आपके साथ हम लोगों को भी नई-नई चीजें पता चल रही हैं..आभार.
कोई सोच भी नहीं सकता कि मैंग्रोव की इन झाड़ियों पर हजारों तोते उपस्थित हैं. न जाने कितने द्वीपों से और दूर-दूर से ये तोते आते हैं और पूरी रात एक साथ बिताने के बाद फिर अगली सुबह मोती की तरह बिखरे द्वीपों की सैर पर निकल जाते हैं...Badi achhi jankari..sundar sansmaran.
वाकई अद्भुत नजारा था...अभी भी आँखों के सामने वह रोमांचक दृश्य नाचता है !!
@ Sharda Ji,
आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
@ कुश्वंस जी,
जानकर ख़ुशी हुई की आपने भी अंडमान का भ्रमण किया है. वाकई यहाँ कई पक्ष अभी भी अनछुए हैं. आपके स्नेह के लिए आभारी हूँ.
@ Ratnesh Ji,
हम तो वैसे भी घुमक्कड़ी राहुल सांकृत्यायन के इलाके के हैं. घूमने का तो आनंद ही कुछ और है.
@ Bhanwar,
Thanks for ur nice comments.
सुन्दर तस्वीरों से सुसज्जित बहुत अच्छी जानकारी मिली! अंदमान में अब तक जाने का मौका नहीं मिला पर आपके पोस्ट के दौरान बहुत कुछ जानने को मिला और घूमना भी हो गया !
ऐसे अनछुए पहलुओं से रूबरू होना अच्छा लगता है. सुन्दर चित्रों के साथ जीवंत वर्णन.
इन मैन्ग्रूवी तोतों में तो इस पोस्ट ने काफी जिज्ञासा उत्पन्न कर दी .
बड़ा ही दिलचस्प एवं अद्भुत विवरण....तस्वीरें भी बहुत सुन्दर आई हैं.
यह तो वाकई अजूबा है. कभी मौका मिला तो हम भी सैर करेंगें.
चित्र तो सभी लाजवाब हैं. पाखी और तन्वी के क्या कहने.
वाह जी, इसे देखकर तो मेरा मन भी जाने को मचल गया.
sundar
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