बहुत दिनों बाद खतों को लेकर संजीदगी से लिखी कोई कविता पढ़ी. मन में उतर सी गई 'दीपिका रानी' की 'आउटलुक' में छपी यह कविता, सो अब आप से भी शेयर कर रहा हूँ-
एक दिन अचानक एक खत मिला
लिफाफे में थी
थोड़ी खुशबू
कुछ ताजी हवा
और पहली बारिश का सौंधापन
माँ के हाथों की बनी
रोटियों की गर्माहट थी उसमें
पिता की थपकियों सा सुकून
और एक शरारती सा बच्चा
झांक रहा था बार-बार
खत में थे दो हाथ
जो उठे थे दुआओं में
दो आँखें जिनमें दर्द था
जो मेरा था.
मुस्कराहट के पीछे
मेरी आँखों की उदासी को
वो आँखें समझती थीं
खत ने वो असर किया
कि मेरा दर्द
मुस्कराहट में बदल दिया
उसमें थी वो संजीवनी
जो मेरी डूबती सांसों में
जिन्दगी भर गई
और मेरे जीने का सामान कर गई
मैने सोचा, लिखूँ जवाबी खत
वही खुशबू वही गर्माहट
वही सुकून ,वही मुस्कराहट
बंद की लिफाफे में
मगर अब तक वो यहीं पड़ा है
क्या फरिश्तों का कोई पता होता है ?
-दीपिका रानी
(साभार : आउटलुक, मई 2011)
12 टिप्पणियां:
सचमुच, फरिश्तों का कोई पता नहीं होता।
---------
हॉट मॉडल केली ब्रुक...
नदी : एक चिंतन यात्रा।
बहुत सुन्दर कविता है, सहभागा करने के लिए धन्यवाद
वाह्……………कितना खूबसूरत खत है और सच है फरिश्तों का कोई पता नहीं होता।
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ है कविता में ,शब्द शिखर पर प्रस्तुतुती के लिए के के जी बधाई
दिल को छूती रचना....आभार शेयर करने का.
बहुत ही बढ़िया खत, बधाई और शुभकामनाएं |
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर और शानदार कविता लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
प्रभावी .....
यह ख़त तो बहुत खूबसूरत है..मुझे भी पढना है.
खतों की खुशबू फिर से ताज़ा हो गई.
खतों की खुशबू फिर से ताज़ा हो गई.
बहुत खूबसूरत रचना ,
एक टिप्पणी भेजें