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शुक्रवार, 25 मार्च 2011

बिटिया अक्षिता (पाखी) के जन्मदिन पर कानपुर से एक कविता

वक़्त बहुत तेजी से चलता है. पता ही नहीं चला कि देखते ही देखते हमारी बड़ी बिटिया रानी आज पाँच साल की हो गईं.दूसरी बिटिया तन्वी दो दिन बाद पाँच माह की हो जायेंगीं. पाखी का जन्म कानपुर में हुआ, सो कानपुर के लोगों से अभी भी लगाव बना हुआ है. पाखी के लिए कानपुर से डा0 दुर्गाचरण मिश्र जी ने एक प्यारी सी कविता भेजी है. इसे उन्होंने हमारे कानपुर में रहने के दौरान लिखा था, पर अब इसे परिमार्जित करते हुए नए सिरे से भेजा है. आप भी इसका आनंद लें और पाखी को ढेर सारा आशीर्वाद और प्यार दें-

प्यारी-न्यारी पाखी

अक्षिता (पाखी) मेरा नाम है
सब करते मुझको प्यार
मम्मी-पापा की लाडली
मिलता जी भर खूब दुलार।

कानपुर नगर में जन्म लिया
25 मार्च 2007, दिन शनिवार
मम्मी-पापा हुए प्रफुल्लित
पूरा हुआ सपनों का संसार।

दादा-दादी, नाना-नानी
सब देखने को हुए बेकरार
मौसी, बुआ, मामा-मामी,
चाचू लाए खूब उपहार।

नन्हीं सी नटखट गुडि़या
सब रिझायें बार-बार
कितनी प्यारी किलकारी
घर में आये खूब बहार ।

मम्मी-पापा संग आ गई
अब, अण्डमान-निकोबार
यहाँ की दुनिया बड़ी निराली
प्रकृति की छाई है बहार ।

कार्मेल स्कूल में हुआ एडमिशन
प्लेयिंग, डांसिंग, ड्राइंग से प्यार
एल.के.जी. में पढ़ने जाती
मिला नए दोस्तों का संसार ।

समुद्र तट पर खूब घूमती
देखती तट और पहाड़
खूब जमकर मस्ती करती
और जी भरकर धमाल ।

मिल गई इक प्यारी बहना
खुशियों का बढ़ा संसार
तन्वी उसका नाम है
करती उसको मैं खूब प्यार ।

डा0 दुर्गाचरण मिश्र
अर्थ मंत्री- उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मलेन, अध्यक्ष- साहित्य मन्दाकिनी (साहित्यिक संस्था)
248 सी-1 इंदिरानगर, कानपुर-208026
पाखी आज पांचवें साल में प्रवेश कर गईं, अत: यह पाँच कैंडल वाला प्यारा सा केक भी...

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

होली में रामलीला ..है न अजूबा !!

भारत में त्यौहारों का संबंध विभिन्न प्रसंगों से जोड़ा जाता है। हर त्यौहार के पीछे मिथक व मान्यताएं होती हैं, पर कई बार ये त्यौहार आपस में इतने जुड़ जाते हैं कि वे उत्सवी परंपरा के ही अभिन्न अंग लगने लगते हैं। मसलन, फागुन में जब रंगों की फुहारें भगवान श्री कृष्ण के बरसाने के होली उत्सव की याद दिलाती हैं तो रामलीला का आयोजन कुछ अजीब लगता है, लेकिन बरेली शहर में होली के रंगो में भगवान राम के आदर्श भी गूंजते हैं। 150 से भी अधिक साल से यहाँ फागुन में वमनपुरी की रामलीला होती आ रही है। संभवतः देश में यह अकेला ऐसी रामलीला है जो होली के उपलक्ष्य में होती है।

इस रामलीला की अपनी दीर्घ ऐतिहासिक परंपरा है। वमनपुरी की यह रामलीला 1861 में शुरु हुई थी। तब इस क्षेत्र के उत्साही बच्चे टीन-गत्ते आदि के मुकुट और बालों की दाढ़ी-मूँछ लगाकर रामलीला का मंचन करते थे। पात्रों का श्रृंगार राजसी शैली में प्राकृतिक रंगो और सितारों से होता था। ये रामलीलाएं वमनपुरी और उसके आसपास के मोहल्लों की गलियों-चैराहों पर होती थीं। उन्हीं परंपराओं के तहत आज भी रामलीला के कई प्रसंगों का मंचन वमनपुरी व आसपास के मोहल्लों की गलियों में होता है। ‘शबरी लीला’ चटोरी गली में होती है। वमनपुरी में रामलीला का मुख्य मंचन श्री नृसिंह मंदिर में होता है। इस रामलीला को नया स्वरूप मिला 1888-89 में, जब उस समय के प्रतिष्ठित एवं गणमान्य हकीम कन्हैया लाल, गोपेश्वर बाबू, जगन रस्तोगी, पंडित जंगबहादुर, बेनी माधव, लाला बिहारी लाल, पंडित राधेश्याम कथावाचक एवं मिर्जा जी रामलीला का मंचन कराने लगे। पंडित रघुवर दयाल और पंडित रज्जन गुरु भी चैपाइयों का वाचन करते थे। सन् 1935-38 के बीच शहरवासियों ने रामलीला के लिए खुले हाथ से सहयोग देना प्रारंभ कर दिया। 1949 में साहूकारा के शिवचरन लाल ने राम एवं केवट संवाद को सजीव बनाने के लिए लकड़ी की नाव बनवाकर रामलीला सभा को भेंट की थी। तब से ही भगवान राम- केवट संवाद का मंचन इसी नाव के जरिए साहूकारा स्थित भैरो मंदिर में होता है।

यहांँ चैत्र कृष्ण एकादशी पर रामलीला का मंचन शुरु हो जाता है और धुलंडी के दिन तक रोज विभिन्न प्रसंगों का मंचन होता है। रामलीला का समापन नृसिंह भगवान की शोभा यात्रा के साथ होता है। होली के दिन रामलीला से निकलने वाली राम बारात शहर में अनूठे रंग बिखेरती है। इसमें सौहार्द के फूल बरसते हैं। हिन्दू हो या मुस्लिम सभी पुष्पवर्षा कर राम बारात का स्वागत करते हैं। फागुनी फिजाओं में रामलीला का यह उत्सव वाकई अद्भुत है।

गुरुवार, 17 मार्च 2011

बरसाने की लट्ठमार होली के रंग

होली के रंग अभी से फगुनाहट में रंग बिखेरने लगे हैं. होली की रंगत बरसाने की लट्ठमार होली के बिना अधूरी ही कही जायेगी। कृष्ण-लीला भूमि होने के कारण फाल्गुन शुल्क नवमी को ब्रज में बरसाने की लट्ठमार होली का अपना अलग ही महत्व है। ब्रज में तो वसंत पंचमी के दिन ही मंदिरों में डांढ़ा गाड़े जाने के साथ ही होली का शुभारंभ हो जाता है। बरसाना में हर साल फाल्गुन शुक्ल नवमी के दिन होने वाली लट्ठमार होली देखने व राधारानी के दर्शनों की एक झलक पाने के लिए यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु व पर्यटक देश-विदेश से खिंचे चले आते हैं। इस दिन नन्दगाँव के कृष्णसखा ‘हुरिहारे’ बरसाने में होली खेलने आते हैं, जहाँ राधा की सखियाँ लाठियों से उनका स्वागत करती हैं। यहाँ होली खेलने वाले नंदगाँव के हुरियारों के हाथों में लाठियों की मार से बचने के लिए मजबूत ढाल होती है।

परंपरागत वेशभूषा में सजे-धजे हुरियारों की कमर में अबीर-गुलाल की पोटलियाँ बंधी होती हैं तो दूसरी ओर बरसाना की हुरियारिनों के पास मोटे-मोटे तेल पिलाए लट्ठ होते हैं। बरसाना की रंगीली गली में पहुँचते ही हुरियारों पर चारों ओर से टेसू के फूलों से बने रंगों की बौछार होने लगती है। परंपरागत शास्त्रीय गान ‘ढप बाजै रे लाल मतवारे को‘ का गायन होने लगता है। हुरियारे ‘फाग खेलन बरसाने आए हैं नटवर नंद किशोर‘, का गायन करते हैं तो हुरियारिनें ‘होली खेलने आयै श्याम आज जाकूं रंग में बोरै री‘, का गायन करती हैं। भीड़ के एक छोर से गोस्वामी समाज के लोग परंपरागत वाद्यों के साथ महौल को शास्त्रीय रुप देते हैं। ढप, ढोल, मृदंग की ताल पर नाचते-गाते दोनों दलों में हंसी-ठिठोली होती है। हुरियारिनें अपनी पूरी ताकत से हुरियारों पर लाठियों के वार करती हैं तो हुरियार अपनी ढालों पर लाठियों की चोट सहते हैं। हुरियारे मजबूत ढालों से अपने शरीर की रक्षा करते हैं एवं चोट लगने पर वहाँ ब्रजरज लगा लेते हैं।

बरसाना की होली के दूसरे दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को सायंकाल ऐसी ही लट्ठमार होली नन्दगाँव में भी खेली जाती है। अन्तर मात्र इतना है कि इसमें नन्दगाँव की नारियाँ बरसाने के पुरूषों का लाठियों से सत्कार करती हैं। इसमें बरसाना के हुरियार नंदगाँव की हुरियारिनों से होली खेलने नंदगाँव पहुँचते हैं। फाल्गुन की नवमी व दशमी के दिन बरसाना व नंदगाँव के लट्ठमार आयोजनों के पश्चात होली का आकर्षण वृन्दावन के मंदिरों की ओर हो जाता है, जहाँ रंगभरी एकादशी के दिन पूरे वृंदावन में हाथी पर बिठा राधावल्लभ लाल मंदिर से भगवान के स्वरुपों की सवारी निकाली जाती है। बाद में भी ठाकुर के स्वरूप पर गुलाल और केशर के छींटे डाले जाते हैं। ब्रज की होली की एक और विशेषता यह है कि धुलेंडी मना लेने के साथ ही जहाँ देश भर में होली का खूमार टूट जाता है, वहीं ब्रज में इसके चरम पर पहुँचने की शुरुआत होती है।

रविवार, 13 मार्च 2011

भगोरिया की मस्ती और आदिवासी समाज

भारतीय संस्कृति प्रेम की उपासक रही है। कभी यह राधा-कृष्ण के आध्यात्मिक प्रेम के रुप में उद्दीपत होता है तो कभी लौकिक प्रेम के रुप में। सभ्य समाज में भले ही खाप पंचायतें प्रेम के आड़े आ रही हों पर आदिवासी समाज तो अभी भी बकायदा प्रेम का उत्सव मनाता है। इसके लिए उन्हें किसी वेलेंटाइन-डे की जरुरत नहीं पड़ती। पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी युवाओं के पारंपरिक प्रणय पर्व, ‘भगोरिया‘ की मस्ती तो देखते ही बनती है। इस साल प्रमुख भगोरिया हाटों की शुरुआत 13 मार्च से हो रही है और यह सिलसिला हफ्ते भर तक चलेगा।

प्रेम का यह परंपरागत पर्व म०प्र० के झाबुआ, धार, खरगोन और बड़वानी जैसे आदिवासी बहुल जिलों में मनाया जाता है। सदियों से मनाए जा रहे भगोरिया उत्सव के जरिए आदिवासी युवा अनूठे ढंग से अपना जीवन साथी चुनते आ रहे हैं। हर साल टेसू (पलाश) के पेड़ों पर खिलने वाले सिंदूरी फूल पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासियों को फागुन आने की खबर दे देते हैं और वे ‘भगोरिया‘ मनाने के लिए तैयार हो जाते हैं। आदिवासी टोलियाँ ढोल और मांदल (एक तरह का बाजा) की थाप और बांसुरी की स्वर लहरियों पर भगोरिया हाट में सुध-बुध बिसराकर झूमती हैं। भगोरिया हाट को आदिवासी युवक-युवतियों का ‘मिलन समारोह‘ भी कहा जा सकता है। परंपरा के मुताबिक भगोरिया हाट में आदिवासी युवक, युवती को पान का बीड़ा पेश करके अपने प्रेम का मौन इजहार करता है। युवती का बीड़ा लेने का मतलब है कि वह भी युवक को पसंद करती है। उसके बाद वह युवक भगोरिया हाट से ‘भाग‘ जाता है और तब तक घर नहीं लौटता, जब तक दोनों के परिवार उनकी शादी के लिए रजामंद नहीं हो जाते।

प्रेम की इस सदियों पुरानी जनजातीय परंपरा पर भी आधुनिकता का रंग अब गहरा रहा है। जनजातीय संस्कृति के जानकार बताते हैं कि भगोरिया हाट अब मेलों में तब्दील हो गए है। जनजाति के परंपरागत सुरों में डीजे साउंड भी खूब घुल-मिल गया है। इनमें परंपरागत तरीके से जीवन साथी चुनने के दृश्य उतनी प्रमुखता से नहीं दिखते। पर तमाम बदलावों के बावजूद भगोरिया का उल्लास लोगों में जस का तस बना हुआ है। यही कारण है कि भगोरिया की विश्व प्रसिद्ध मस्ती को आंखों में कैद करने के लिए पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी उमड़ते और आदि-प्रेम का बखूबी लुत्फ़ उठाते हैं।

बुधवार, 9 मार्च 2011

काला पानी के 105 साल

सेलुलर जेल की 105 वीं वर्षगाँठ पर : क्रान्तिकारियों के बलिदान का साक्षी- सेल्युलर जेल

यह तीर्थ महातीर्थों का है.
मत कहो इसे काला-पानी.
तुम सुनो, यहाँ की धरती के
कण-कण से गाथा बलिदानी (गणेश दामोदर सावरकर)

भारत का सबसे बड़ा केंद्रशासित प्रदेश अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह सुंदरता का प्रतिमान है और सुंदर दृश्यावली के साथ सभी को आकर्षित करता है। बंगाल की खाड़ी के मध्य प्रकृति के खूबसूरत आगोश में विस्तृत 572 द्वीपों में भले ही मात्र 38 द्वीपों पर जन-जीवन है, पर इसका यही अनछुआपन ही आज इसे प्रकृति के स्वर्ग रूप में परिभाषित करता है। यहीं अंडमान में ही ऐतिहासिक सेलुलर जेल है। सेलुलर जेल का निर्माण कार्य 1896 में आरम्भ हुआ तथा 10 साल बाद 10 मार्च 1906 को पूरा हुआ। सेलुलर जेल के नाम से प्रसिद्ध इस कारागार में 698 बैरक (सेल) तथा 7 खण्ड थे, जो सात दिशाओं में फैल कर पंखुडीदार फूल की आकृति का एहसास कराते थे। इसके मध्य में बुर्जयुक्त मीनार थी, और हर खण्ड में तीन मंजिलें थीं।

1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम ने अंग्रेजी सरकार को चैकन्ना कर दिया। व्यापार के बहाने भारत आये अंग्रेजों को भारतीय जनमानस द्वारा यह पहली कड़ी चुनौती थी जिसमें समाज के लगभग सभी वर्ग शामिल थे। जिस अंग्रेजी साम्राज्य के बारे में ब्रिटेन के मजदूर नेता अर्नेस्ट जोंस का दावा था कि-‘‘अंग्रेजी राज्य में सूरज कभी डूबता नहीं और खून कभी सूखता नहीं‘‘, उस दावे पर ग्रहण लगता नजर आया। अंग्रेजों को आभास हो चुका था कि उन्होंने युद्ध अपनी बहादुरी व रणकौशलता की वजह से नहीं बल्कि षडयंत्रों, जासूसों, गद्दारी और कुछेक भारतीय राजाओं के सहयोग से जीता था। अपनी इन कमजोरियों को छुपाने के लिए जहाँ अंग्रेजी इतिहासकारों ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम को सैनिक गदर मात्र कहकर इसके प्रभाव को कम करने की कोशिश की, वहीं इस संग्राम को कुचलने के लिए भारतीयों को असहनीय व अस्मरणीय यातनायें दी गई। एक तरफ लोगों को फांसी दी गयी, पेड़ों पर समूहों में लटका कर मृत्यु दण्ड दिया गया व तोपों से बांधकर दागा गया वहीं जिन जीवित लोगों से अंग्रेजी सरकार को ज्यादा खतरा महसूस हुआ, उन्हें ऐसी जगह भेजा गया, जहाँ से जीवित वापस आने की बात तो दूर किसी अपने-पराये की खबर तक मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं रख सकते थे और और यही काला पानी था। एक तरफ हमारे धर्म समुद्र पार यात्रा की मनाही करते थे, वहीँ यहाँ मुख्यभूमि से हजार से भी ज्यादा किलोमीटर दूर लाकर देशभक्तों को प्रताड़ित किया जाता था। अंग्रेजी सरकार को लगा था कि सुदूर निर्वासन व यातनाओं के बाद स्वाधीनता सेनानी स्वतः निष्क्रिय व खत्म हो जायेंगे पर यह निर्वासन व यातना भी सेनानियों की गतिविधियों को नहीं रोक पाया। वे तो पहले से ही जान हथेली पर लेकर निकले थे, फिर भय किस बात का। अंग्रेजी हुकूमत ने काला पानी द्वारा इस आग को बुझाने की जबरदस्त कोशिश की पर वह तो चिंगारी से ज्वाला बनकर भड़क उठी। सेलुलर जेल, अण्डमान में कैद क्रांतिकारियों पर अंग्रेजों ने जमकर जुल्म ढाये पर जुल्म से निकली हर चीख ने भारत माँ की आजादी के इरादों को और बुलंद किया।

क्रान्तिकारियों का मनोबल तोड़ने और उनके उत्पीड़न हेतु सेल्यूलर जेल में तमाम रास्ते अख्तियार किये गये। स्वाधीनता सेनानियों और क्रातिकारियों को राजनैतिक बंदी मानने की बजाय उन्हें एक सामान्य कैदी माना गया। यही कारण था कि क्रांतिकारियों को यहीं सेलुलर जेल की काल-कोठरियों में कैद रखा गया और यातनाएं दी गईं। यातना भरा काम और पूरा न करने पर कठोर दंड दिया जाता था। पशुतुल्य भोजन व्यवस्था, जंग या काई लगे टूटे-फूटे लोहे के बर्तनों में गन्दा भोजन, जिसमें कीड़े-मकोड़े होते, पीने के लिए बस दिन भर दो डिब्बा गन्दा पानी, पेशाब-शौच तक पर बंदिशें कि एक बर्तन से ज्यादा नहीं हो सकती। ऐसे में किन परिस्थितियों में इन देश-भक्त क्रांतिकारियों ने यातनाएं सहकर आजादी की अलख जगाई, वह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सेलुलर जेल में बंदियों को प्रतिदिन कोल्हू (घानी) में बैल की भाँति घूम-घूम कर 20 पौंड नारियल का तेल निकालना पड़ता था। इसके अलावा प्रतिदिन 30 पौंड नारियल की जटा कूटने का भी कार्य करना होता। काम पूरा न होने पर बेंतों की मार पड़ती और टाट का घुटन्ना और बनियान पहनने को दिए जाते, जिससे पूरा बदन रगड़ खाकर और भी चोटिल हो जाता। अंग्रेजों की जबरदस्ती नाराजगी पर नंगे बदन पर कोड़े बरसाए जाते। जब भी किसी को फांसी दी जाती तो क्रांतिकारी बंदियों में दहशत पैदा करने के लिए तीसरी मंजिल पर बने गुम्बद से घंटा बजाया जाता, जिसकी आवाज 8 मील की परिधि तक सुनाई देती थी। भय पैदा करने के लिए क्रांतिकारी बंदियों को फांसी के लिए ले जाते हुए व्यक्ति को और फांसी पर लटकते देखने के लिए विवश किया जाता था। वीर सावरकर को तो जान-बूझकर फांसी-घर के सामने वाले कमरे में ही रखा गया था। गौरतलब है कि सावरकर जी के एक भाई भी काला-पानी की यहाँ सजा काट रहे थे, पर तीन सालों तक उन्हें एक-दूसरे के बारे में पता तक नहीं चला। इससे समझा जा सकता है कि अंग्रेजों ने यहाँ क्रांतिकारियों को कितना एकाकी बनाकर रखा था। फांसी के बाद मृत शरीर को समुद्र में फेंक दिया जाता था। अंग्रेजों के दमन का यह एक काला अध्याय था, जिसके बारे में सोचकर अभी भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

सेल्यूलर जेल आजादी का एक ऐसा पवित्र तीर्थस्थल बन चुका है, जिसके बिना आजादी की हर इबारत अधूरी है। इसके प्रांगन में रोज शाम को लाइट-साउंड प्रोग्राम उन दिनों की यादों को ताजा करता है, जब हमारे वीरों ने काला पानी की सजा काटते हुए भी देश-भक्ति का जज्बा नहीं छोड़ा। गन्दगी और सीलन के बीच समुद्री हवाएं और उस पर से अंग्रेजों के दनादन बरसते कोड़े मानव-शरीर को काट डालती थीं। पर इन सबके बीच से ही हमारी आजादी का जज्बा निकला। पर इस इतिहास को वर्तमान से जोड़ने की जरूरत है। सेलुलर जेल अपने अंदर जुल्मों की निशानी के साथ-साथ वीरता, अदम्य साहस, प्रतिरोध, बलिदान व त्याग की जिस गाथा को समेटे हुए है, उसे आज की युवा पीढ़ी के अंदर भी संचारित करने की आवश्यकता है। सेलुलर जेल की खिड़कियों से अभी भी जुल्म की दास्तां झलकती है। ऐसा लगता है मानो अभी फफक कर इसकी दीवालें रो पड़ेंगी।

वाकई आज देश के हरेक व्यक्ति विशेषकर बच्चों को सेल्युलर जेल के दर्शन करने चाहिए ताकि आजादी की कीमत का अहसास उन्हें भी हो सके। देशभक्ति के जज्बे से भरे देशभक्तों ने सेल्युलर जेल की दीवारों पर अपने शब्द चित्र भी अंकित किये हैं। दूर-दूर से लोग इस पावन स्थल पर आजादी के दीवानों का स्मरण कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं व इतिहास के गर्त में झांककर उन पलों को महसूस करते हैं जिनकी बदौलत आज हम आजादी के माहौल में सांस ले रहे हैं। बदलते वक्त के साथ सेल्युलर जेल इतिहास की चीज भले ही बन गया हो पर क्रान्तिकारियों के संघर्ष, बलिदान एवं यातनाओं का साक्षी यह स्थल हमेशा याद दिलाता रहेगा कि स्वतंत्रता यूँ ही नहीं मिली है, बल्कि इसके पीछे क्रान्तिकारियों के संघर्ष, त्याग व बलिदान की गाथा है।

आज सेलुलर जेल की गाथा को लोगों तक पहुँचाने के लिए तमाम श्रव्य-दृश्य साधनों का उपयोग किया जा रहा है, पर इसे लोगों की भावनाओं व जज्बातों से भी जोड़ने की जरूरत है। 10 मार्च 2011 को सेलुलर जेल अपनी स्थापना के 105 वर्ष पूरे कर रहा है और इसी के साथ इसके वैचारिक विस्तार की भी आवश्यकता है ताकि देश के अन्य भागों में भी उस भावना को प्रवाहित किया जा सके, जिस हेतु हमारे सेनानियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। आजादी का यह तीर्थ किसी मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे-चर्च से कम नहीं। यह हमारी वो विरासत है जो सदियों तक आजादी की उस कीमत का अहसास कराती रहेगी, जिसके लिए बलिदानियों ने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।

कल सेलुलर जेल की 105 वीं वर्षगाँठ पर उन सभी नाम-अनाम शहीदों और कैद में रहकर आजादी का बिगुल बजाने वालों को नमन !!

कृष्ण कुमार यादव

मंगलवार, 8 मार्च 2011

नहीं हूँ मैं एक शरीर मात्र : अन्तर्राष्ट्रीय नारी दिवस पर


नहीं हूँ मैं माँस-मज्जा का एक पिंड
जिसे जब तुम चाहो जला दोगे
नहीं हूँ मैं एक शरीर मात्र
जिसे जब तुम चाहो भोग लोगे
नहीं हूँ मैं शादी के नाम पर अर्पित कन्या
जिसे जब तुम चाहो छोड़ दोगे
नहीं हूँ मैं कपड़ों में लिपटी एक चीज
जिसे जब तुम चाहो तमाशा बना दोगे।

मैं एक भाव हूँ, विचार हूँ
मेरा एक स्वतंत्र अस्तित्व है
ठीक वैसे ही, जैसे तुम्हारा
अगर तुम्हारे बिना दुनिया नहीं है
तो मेरे बिना भी यह दुनिया नहीं है।

फिर बताओं
तुम क्यों अबला मानते हो मुझे
क्यों पग-पग पर तिरस्कृत करते हो मुझे
क्या देह का बल ही सब कुछ है
आत्मबल कुछ नहीं
खामोश क्यों हो
जवाब क्यों नहीं देते........?

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

एक पोस्ट जागरूकता के लिए...

कई बार हमारे सामने ऐसी परिस्थियाँ खड़ी हो जाती हैं कि हमारा विवेक काम नहीं करता. हम लोगों की मदद तो करना चाहते हैं, पर आपने को असहाय समझते हैं. ऐसी ही एक मेल को आप लोगों के साथ शेयर कर रहा हूँ, शायद कुछ लोगों को मदद मिल सके-



1. If you see children Begging anywhere in INDIA , please contact:
"RED SOCIETY" at 9940217816. They will help the children for their studies.

2.Where you can search for any BLOOD GROUP, you will get thousand's of donor address.
www.friendstosupport.org

3. Engineering Students can register in
www.campuscouncil.com to attend Off Campus for 40 Companies.

4. Free Education and Free hostel for Handicapped/Physically Challenged children. Contact:- 9842062501 & 9894067506.

5. If anyone met with fire accident or people born with problems in their ear, nose and mouth can get free PLASTIC SURGERY done by Kodaikanal PASAM Hospital . From 23rd March to 4th April by German Doctors.
Everything is free. Contact : 045420-240668,245732
"Helping Hands are Better than Praying Lips"

6. If you find any important documents like Driving license, Ration card, Passport, Bank Pass Book, etc., missed by someone, simply put them into any near by Post Boxes. They will automatically reach the owner and Fine will be collected from them.

7. By the next 10 months, our earth will become 4 degrees hotter than what it is now. Our Himalayan glaciers are melting at rapid rate. So let all of us lend our hands to fight GLOBAL WARMING.
-Plant more Trees.
-Don't waste Water & Electricity.
-Don't use or burn Plastics

8. It costs 38 Trillion dollars to create OXYGEN for 6 months for all Human beings on earth.
"TREES DO IT FOR FREE"
"Respect them and Save them"


9. Special phone number for Eye bank and Eye donation: 04428281919 and 04428271616 (Sankara Nethralaya Eye Bank). For More information about how to donate eyes plz visit these sites. http://ruraleye.org/


10. Heart Surgery free of cost for children (0-10 yr) Sri Valli Baba Institute Banglore. 10.
Contact : 9916737471


11. Medicine for Blood Cancer!!!!
'Imitinef Mercilet' is a medicine which cures blood cancer. Its available free of cost at "Adyar Cancer Institute in Chennai". Create Awareness. It might help someone.
Cancer Institute in Adyar, Chennai
Category: Cancer
Address:
East Canal Bank Road , Gandhi Nagar
Adyar
Chennai -600020
Landmark: Near Michael School
Phone: 044-24910754 044-24910754 , 044-24911526 044-24911526 , 044-22350241 044-22350241

12. Please CHECK WASTAGE OF FOOD
If you have a function/party at your home in India and food gets wasted, don't hesitate to call 1098 (only in India ) - Its not a Joke, This is the number of Child helpline. They will come and collect the Food.



LETS TRY TO HELP INDIA BE A BETTER PLACE TO LIVE IN
Please Save Our Mother Nature for
"OUR FUTURE GENERATIONS"
Let it reach the 110 Crores Indians and the remaining if any।


"Spend at least as much time researching a stock as you would choosing a refrigerator" - Peter Lynch

बुधवार, 2 मार्च 2011

प्यार का सफर


डायरी के पुराने पन्नों को पलटिये तो बहुत कुछ सामने आकर घूमने लगता है. ऐसे ही इलाहाबाद विश्विद्यालय में अध्ययन के दौरान प्यार को लेकर एक कविता लिखी थी. आज आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ-

दो अजनबी निगाहों का मिलना
मन ही मन में गुलों का खिलना
हाँ, यही प्यार है............ !!

आँखों ने आपस में ही कुछ इजहार किया
हरेक मोड़ पर एक दूसरे का इंतजार किया
हाँ, यही प्यार है............ !!

आँखों की बातें दिलों में उतरती गई
रातों की करवटें और लम्बी होती गई
हाँ, यही प्यार है............ !!

सूनी आँखों में किसी का चेहरा चमकने लगा
हर पल उनसे मिलने को दिल मचलने लगा
हाँ, यही प्यार है............ !!

चाँद व तारे रात के साथी बन गये
न जाने कब वो मेरी जिन्दगी के बाती बन गये
हाँ, यही प्यार है............ !!