समर्थक / Followers

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

विश्वास..



ताले
यानी धातु की बनी एक वस्तु
कितने निश्चिन्त हो जाते हैं
इन्हें घरों में लगाकर
दरवाजों की कुंडियों में
मजबूती से लटकता हुआ
चोर भी एक बार देख
शरमा जाता है इसे
लेकिन
जब कभी वार
करता है इस पर
अंत तक लड़ता है
यह पहरेदार की तरह
मानो, धातु नहीं जीवंत हो
शायद वह जानता है
मालिक का कितना
विश्वास है उस पर।

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

गुलाब


गुलाब की प्यारी खुशबू
ने ऐसा रंग जमाया
फूलों में बन सर्वोत्तम
फूलांे का राजा कहलाया।

सफेद,गुलाबी,पीले,लाल
हर रंग में ये आए
एक बार जो देखे इनको
मन ही मन हर्षाये।

कांँटों में गुलाब पलता है
कष्टों में गुलाब चलता है
बच्चों अपनाओं इस गुण को
जीवन इसी तरह चलता है।

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

प्रेम (वेलेंटाइन दिवस पर विशेष)


प्रेम एक भावना है
समर्पण है, त्याग है
प्रेम एक संयोग है
तो वियोग भी है
किसने जाना प्रेम का मर्म
दूषित कर दिया लोगों ने
प्रेम की पवित्र भावना को
कभी उसे वासना से जोड़ा
तो कभी सिर्फ उसे पाने से
भूल गये वे कि प्यार सिर्फ
पाना ही नहीं खोना भी है
कृष्ण तो भगवान थे
पर वे भी न पा सके राधा को
फिर भी हम पूजते हैं उन्हें
पतंगा बार-बार जलता है
दीये के पास जाकर
फिर भी वो जाता है
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता !!

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

नए आयामों के साथ - INDIPEX 2011

दिल्ली के प्रगति मैदान में कल 12 से 18 फरवरी तक होने वाली अंतरराष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी-इंडिपेक्स 2011 'INDIPEX-2011'कई मायनों में यादगार होगी. इस दौरान डाक विभाग तमाम नए आयाम स्थापित करने की कोशिश करेगा, वहीँ डाक टिकटों के प्रति लोगों में क्रेज पैदा करने और देखने का भी यह सुनहरा अवसर है. गौरतलब है कि भारत में पहली अन्तराष्ट्रीय डाक टिकट (फिलेटलिक) प्रदर्शनी का आयोजन 1954 में डाक टिकटों की शताब्दी वर्ष में हुआ था.

इंडिपेक्स 2011 'INDIPEX-2011' का उद्घाटन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल करेंगी। इस प्रदर्शनी में 70 देशों से 595 प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं। इस प्रदर्शनी में स्वीडन के दुर्लभ डाक टिकट ट्रेस्किलिंग एलो को भी रखा जाएगा जिसका बाजार में अनुमानित मूल्य 16 लाख पौंड है। भारतीय डाक टिकटों में सबसे कीमती 1854 में जारी चार आना टिकट है।

इंडिपेक्स 2011 'INDIPEX-2011' डाक टिकट प्रदर्शनी का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि भारत ने ही दुनिया में सर्वप्रथम इलाहबाद से नैनी के मध्य प्रतीकात्मक रूप में एयर-मेल सेवा आरंभ की. यह ऐतिहासिक घटना 18 फरवरी 1911 को इलाहाबाद में हुई। अर्थात जिस दिन 'INDIPEX-2011' के आयोजन का अंतिम दिन होगा, उसी दिन इस ऐतिहासिक घटना के 100 साल भी पूरे हो जायेंगें. इस दौरान छोटे सोमर हवाई जहाज से इलाहाबाद से नैनी तक 6,500 चिठ्ठियां ले जाने वाली दुनिया की पहली आधिकारिक एयरमेल सेवा पर भी तीन विशेष डाक टिकट जारी किए जाएंगे। इस छोटे हवाई जहाज को 18 फरवरी 1911 को फ्रांस के पायलट हेनरी पेक्वेट ने उड़ाया था। इस विमान के माध्यम से भेजी गई चिठ्ठियों में पंडित जवाहरलाल नेहरू के अलावा कई गणमान्य लोगों के पत्र शामिल थे। भारतीय वायुसेना की ओर से इस अवसर पर 12 फरवरी को इलाहाबाद से नैनी तक विशेष विमान उड़ान भरेगा।

प्रदर्शनी के दौरान ग्राहकों की पसंद का डाक टिकट तैयार करने की शुरूआत भी हो रही है। माई स्टाम्प नामक इस योजना का मकसद डाक टिकटों के माध्यम से डाक विभाग की आय बढ़ाना है। ऐसे प्रत्येक स्टाम्प की कीमत 150 रूपए होगी। इस तरह की सेवा ब्रिटेन की रायल मेल, फ्रांस की ला पोस्ट, जर्मनी की डोएचे पोस्ट, अमेरिकी पोस्टल सर्विस में पहले से उपलब्ध है।

दुनिया के कई देशों ने कागज के अलावा वस्त्रों सहित अन्य वस्तुओं पर भी डाक टिकट जारी किए हैं लेकिन भारत में अब तक कागज पर डाक टिकट जारी करने का चलन है। लेकिन पहली बार कागज के अतिरिक्त खादी के वस्त्र पर डाक टिकट जारी किए जा रहे हैं। इस तरह के पहले टिकट खादी के कपड़े पर जारी किए जा रहे हैं जो महात्मा गांधी को समर्पित होंगे। इसकी कीमत 250 रूपए रखी गई है।

भारतीय डाक विभाग द्वारा समय-समय पर भारतीय अभिनेताओं पर तमाम डाक टिकट जारी किए गए हैं, मगर अभिनेत्रियों में अभी तक मात्र यह सौभाग्य नर्गिस और मधुबाला को मिला है. दिल्ली के प्रगति मैदान में कल 12 से 18 फरवरी तक होने वाली अंतरराष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी-इंडिपेक्स 2011 में छह अभिनेत्रियों पर भी डाक टिकट जारी किये जायेंगें. रूपहले पर्दे पर अपने सशक्त अभिनय और अप्रतिम सौन्दर्य से मंत्रमुग्ध करने वाली गुजरे जमाने की अदाकारा सावित्री, लीला नायडू, देविका रानी, कानन देवी, नूतन और मीना कुमारी के सम्मान में ये डाक टिकट जारी होंगे।

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

वसंत का अहसास

वसंत का आगमन हो चुका है. फिजा में चारों तरफ मादकता और उल्लास का अहसास है. यहाँ अंडमान में तो वैसे भी ठण्ड नहीं पड़ती, पर वसंत के अहसास से भला कैसे अछूते रह सकते हैं. कभी पढ़ा करते कि 6 ऋतुएं होती हैं- जाड़ा, गर्मी, बरसात, शिशिर, हेमत, वसंत. पर ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव ने इन्हें इतना समेट दिया कि पता ही नहीं चलता कब कौन सी ऋतु निकल गई. यह तो शुक्र है कि अपने देश भारत में कृषि एवम् मौसम के साथ त्यौहारों का अटूट सम्बन्ध है। रबी और खरीफ फसलों की कटाई के साथ ही साल के दो सबसे सुखद मौसमों वसंत और शरद में तो मानों उत्सवों की बहार आ जाती है। वसंत में वसंतोत्सव, सरस्वती पूजा, होली, चैत्र नवरात्र व रामनवमी तो शरद में शारदीय नवरात्र के साथ दुर्गा पूजा, दशहरा, दीपावली, करवा चैथ, गोवर्धन पूजा इत्यादि की रंगत रहती है। वास्तव में ये पर्व सिर्फ एक अनुष्ठान भर नहीं हैं, वरन् इनके साथ सामाजिक समरसता और नृत्य-संगीत का अद्भुत दृश्य भी जुड़ा हुआ है। वसंत ऋतु में चैती, होरी, धमार जैसे लोक संगीत तो माहौल को और मादक बना देते हैं.

हमारे यहाँ त्यौहारों को केवल फसल एवं ऋतुओं से ही नहीं वरन् दैवी घटनाओं से जोड़कर धार्मिक व पवित्र भी बनाया गया है।। यही कारण है कि भारतीय पर्व और त्यौहारों में धार्मिक देवी-देवताओं, सामाजिक घटनाओं व विश्वासों का अद्भुत संयोग प्रदर्शित होता है। वसंत पंचमी को त्योहार के रूप में मनाए जाने के पीछे भी कई ऐसे दृष्टान्त हैं। ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसीलिए इस दिन विद्या तथा संगीत की देवी की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार एक मान्यता यह भी है कि वसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार सरस्वती की पूजा की थी और तब से वसंत पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा करने का विधान हो गया।

किसी कवि ने कहा है कि वसंत तो अब गांवों में ही दिखता है, शहरों में नहीं. यदि शहरों में देखना है तो इस दिन पीले कपड़े पहने लड़कियां ही वसंत का अहसास कराती हैं. यह सच भी है क्योंकि क्योंकि वसंत में सरसों पर आने वाले पीले फूलों से समूची धरती पीली नजर आती है। इसी कारन इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने का चलन है.

त्यौहारों की रंगत और उल्लास अपनी जगह है, पर क्या इसे बहाने हम प्रकृति में हो रहे बदलावों के प्रति भी सचेत हैं. ऋतुओं का असमय आना-जाना यदि इसी तरह चलता रहा तो हम तारीखों में ही इन्हें ढूंढते रह जायेंगें. इन त्यौहारों के बहाने यह भी सीखने की जरुरत है कि वसंत का पीलापन और होली के टेसू कैसे बचाए जाएँ...!!

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पोर्टब्लेयर में कवि सम्मेलन

हिन्दी साहित्य कला परिषद, पोर्टब्लेयर द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 25 जनवरी को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर दक्षिण अंडमान के उप मंडलीय मजिस्ट्रेट श्री राजीव सिंह परिहार मुख्य अतिथि थे और कार्यक्रम की अध्यक्षता चर्चित युवा साहित्यकार और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने की. दूरदर्शन केंद्र पोर्टब्लेयर के सहायक निदेशक श्री जी0 साजन कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे. कार्यक्रम का शुभारम्भ द्वीप प्रज्वलन द्वारा हुआ.

इस अवसर पर द्वीप समूह के तमाम कवियों ने अपनी कविताओं से शमां बांधा, वहीँ तमाम नवोदित कवियों को भी अवसर दिया गया. एक तरफ देश-भक्ति की लहर बही, वहीँ समाज में फ़ैल रहे भ्रष्टाचार, महंगाई और अन्य बुराइयाँ भी कविताओं का विषय बनीं. कविवर श्रीनिवास शर्मा ने देश-भक्ति भरी कविता और द्वीपों के इतिहास को छंदबद्ध करते कवि सम्मलेन का आगाज किया. जगदीश नारायण राय ने संसद की स्थिति को शब्दों में ढलकर लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया. जयबहादुर शर्मा ने महंगाई को इंगित किया तो उभरते हुए कवि ब्रजेश तिवारी ने गणतंत्र की महिमा गाई. डाॅ0 एम0 अयया राजू ने आज की राजनैतिक व्यवस्था पर कविता के माध्यम से गहरी चोट की तो डाॅ0 रामकृपाल तिवारी ने यह सुनकर सबको मंत्रनुग्ध कर दिया कि नेताओं के चलते 'तंत्र' ही बचा और 'गण' गायब हो गया. श्रीमती डी0 एम0 सावित्री ने कविताओं के सौन्दर्य बोध को उकेरा तो डाॅ0 व्यासमणि त्रिपाठी ने ग़ज़लों से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया. अन्य कवियों में संत प्रसाद राय, अनिरूद्ध त्रिपाठी, बी0 के0 मिश्र, राजीव कुमार तिवारी, सदानंद राय, एस0 के0 सिंह, रामसिद्ध शर्मा, रामसेवक प्रसाद, परशुराम सिंह, डाॅ0 मंजू नायर एवं श्रीमती रागिनी राय ने अपने काव्य पाठ द्वारा काव्य संध्या को यादगार शाम बना दिया। मुख्य अतिथि श्री राजीव सिंह परिहार ने भी हिन्दी कविता की आस्वादन प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए स्वरचित कविताओं का पाठ किया।

कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए चर्चित युवा साहित्यकार और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने सामाजिक परिवर्तन में कविता की क्रांतिकारी भूमिका की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। आज के लेखन में राष्ट्रीय चेतना की कमी और राष्ट्रीयता के विलुप्त होने की प्रवृत्ति के भाव पर रचनाकारों को सचेत करते हुए उन्होंने कविता को प्रभावशाली बनाने पर जोर दिया। श्री यादव ने जोर देकर कहा कि कविता स्वयं की व्याख्या भी करती है एवं बहुत कुछ अनकहा भी छोड़ देती है। इस अनकहे को ढूँढ़ने की अभिलाषा ही एक कवि-मन को अन्य से अलग करती है। ऐसे में साहित्यकारों और कवियों का समाज के प्रति दायित्व और भी बढ़ जाता है. उन्होंने परिषद द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन की सराहना करते हुए कहा कि मुख्यभूमि से कटे होने के बावजूद भी यहाँ जिस तरह हिंदी सम्बन्धी गतिविधियाँ चलती रहती हैं, वह प्रशंसनीय है.

कार्यक्रम के आरम्भ में परिषद के अध्यक्ष श्री आर0 पी0 सिंह ने उपस्थिति का स्वागत किया, जबकि प्रधान सचिव श्री बी0 क0 मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कवि सम्मेलन का संयोजक एवं संचालन हिंदी साहित्य कला परिषद् के साहित्य सचिव डाॅ0 व्यासमणि त्रिपाठी ने किया।

डाॅ0 व्यासमणि त्रिपाठी
साहित्य सचिव- हिंदी साहित्य कला परिषद्, पोर्टब्लेयर-744101
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह.