रिश्तों के बदलते मायने
अब वे अहसास नहीं रहे
बन गये अहम् की पोटली
ठीक अर्थशास्त्र के नियमों की तरह
त्याग की बजाय माँग पर आधारित
हानि और लाभ पर आधारित
शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव
की तरह दरकते रिश्ते
ठीक वैसे ही
जैसे किसी उद्योगपति ने
बेच दी हो घाटे वाली कम्पनी
बिना समझे किसी के मर्म को
वैसे ही टूटते हैं रिश्ते
आज के समाज में
और अहसास पर
हावी होता जाता है अहम्।
22 टिप्पणियां:
रिश्तों के बदलते मायने
अब वे अहसास नहीं रहे
बन गये अहम् की पोटली
...Nice one.Beautiful expressions.
रिश्तों को जीने के लिए यह अर्थशास्त्र समझना आवश्यक है।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
बदलते रिश्तों पर बेहद करीने एवं संजीदगी से लिखी कविता.
सटीक। अब शायद हर रिश्ता अर्थशास्त्र से हो कर गुजरता है, सुंदर कविता।
एक नई तरह की कविता पढ़ रहा हूँ...अच्छा लगा.
एक नई तरह की कविता पढ़ रहा हूँ...अच्छा लगा.
वर्तमान दौर में आपने कविता के माध्यम से रिश्तों की सही व्याख्या की है.
शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव
की तरह दरकते रिश्ते
ठीक वैसे ही
जैसे किसी उद्योगपति ने
बेच दी हो घाटे वाली कम्पनी
बिना समझे किसी के मर्म को
Behad sundar bhav.
...के.के. जी आप लिखते ही नहीं बल्कि गहराई में जाकर लिखते हैं. इस कविता से मैं इतना प्रभावित हूँ की यह मेरी डायरी की शोभा बन चुकी है.
बेहद उम्दा भावों से रची कविता....दिल को छूती है.
आज अर्थशास्त्र कहाँ नहीं है. हर रिश्ते का आधार ही अर्थ हो गया है. अर्थ के बिना सारा जग ही सूना हो गया है.
अर्थ की महिमा ना होती तो कौटिल्य को "अर्थशाश्त्र" लिखने की जरुरत ही क्यों पड़ती....
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ...अच्छा लगा. ये रचनाएँ आपके व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब है.
Risto ka arthshastra pda, padne par aaj ke waqt ki sachchai se rubru hua.
बेहद सार्थक और समसामयिक मुद्दा उठती कविता
जीवन को सटीक ढंग से चलाने के लिए रिश्तों का अर्थशास्त्र समझना अति आवश्यक है।
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TSALIIM.
-SBAI-
Apki agali rachna ka intzar.
बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने ......
एक श्वेत श्याम सपना । जिंदगी के भाग दौड़ से बहुत दूर । जीवन के अन्तिम छोर पर । रंगीन का निशान तक नही । उस श्वेत श्याम ने मेरी जिंदगी बदल दी । रंगीन सपने ....अब अच्छे नही लगते । सादगी ही ठीक है ।
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