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शनिवार, 19 अगस्त 2017

साहित्यकार, लेखक व ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव का एक साक्षात्कार

भोपाल (मध्य प्रदेश) से प्रकाशित हिंदी मासिक पत्रिका "समागम" (सम्पादक : मनोज कुमार) का अंक पिछले दिनों डाक से प्राप्त हुआ। पहली बार इस पत्रिका को देखा। देखकर ख़ुशी हुई कि 'समागम' के मई-2017 अंक में हमारा एक साक्षात्कार प्रकाशित हुआ है, पर समग्र साक्षात्कार का शीर्षक "हिंदी ब्लॉगिंग में प्रोफ़ेशनलिज़्म की कमी" थोड़ा अटपटा और अधूरा जरूर लगा। ख़ैर, इसे 'मीडिया मिरर' के सम्पादक प्रशांत राजावत ने लिया था, जिसे इस लिंक पर जाकर पढ़ा जा सकता है। 







साहित्यकार, लेखक और ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव का साक्षात्कार : 'हिंदी ब्लॉगिंग में प्रोफ़ेशनलिज़्म की कमी' 
हिंदी मासिक पत्रिका "समागम" (सम्पादक : मनोज कुमार), 
मई 2017 अंक (ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता बनाम टारगेटेड जर्नलिज़्म)
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मीडिया मिरर की साक्षात्कार श्रृंखला बात-मुलाकात में इस बार अतिथि हैं आईएएस अधिकारी और प्रसिद्ध ब्लॉगर व् लेखक कृष्ण कुमार यादव। कृष्ण कुमार  यादव जी का साक्षात्कार किया मीडिया मिरर के सम्पादक प्रशांत राजावत ने। इस साक्षात्कार श्रृंखला में देश के प्रसिद्ध लेखकों और पत्रकारों से आपको रूबरू करवाया जाता है।

कृष्ण कुमार यादव जी का परिचय:-

कृष्ण कुमार यादव एक प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ-साथ साहित्यकार, लेखक, विचारक और ब्लॉगर हैं। वे सामाजिक, साहित्यिक और समसामयिक मुद्दों से सम्बंधित विषयों पर प्रमुखता से लेखन करते हैं। 10 अगस्त, 1977 को तहबरपुर, आजमगढ़ (उ.प्र.) में जन्मे श्री यादव की आरम्भिक शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, जीयनपुर, आजमगढ़ में हुई। आप इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वर्ष 1999 में राजनीति शास्त्र में परास्नातक हैं। वर्ष 2001 में भारत की प्रतिष्ठित सिविल सेवा में चयन पश्चात ‘भारतीय डाक सेवा’ के अधिकारी रूप में 2 सितम्बर, 2001 को नियुक्त हुए। इस दौरान सूरत (गुजरात), लखनऊ (उ.प्र.), कानपुर (उ.प्र), पोर्टब्लेयर (अंडमान-निकोबार द्वीप समूह), इलाहाबाद (उ.प्र.), में नियुक्ति के पश्चात फिलहाल राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर में निदेशक डाक सेवाएँ पद पर आसीन हैं।

देश-विदेश की प्रायः अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट पर वेब पत्रिकाओं, ब्लॉग और फेसबुक पर रचनाओं के निरंतर प्रकाशन के साथ शताधिक  पुस्तकों/ संकलनों में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं । आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, जोधपुर व पोर्टब्लेयर, और दूरदर्शन से कविताएँ, वार्ता, साक्षात्कार का समय-समय पर प्रसारण। विभिन्न विधाओं में आपकी कुल 7 पुस्तकें प्रकाशित हैं, वहीं व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक 'बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव' (सं.- दुर्गाचरण मिश्र, 2009) प्रकाशित हो चुकी है। 

विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु शताधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त श्री यादव की अभिरूचियों में रचनात्मक लेखन व अध्ययन, चिंतन, ब्लॉगिंग, पर्यटन, सामाजिक व साहित्यिक कार्यों में रचनात्मक भागीदारी, बौद्धिक चर्चाओं में भाग लेना शामिल है। अब तक आप ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैण्ड, द. कोरिया, श्रीलंका, भूटान, नेपाल जैसे देशों की यात्रा कर चुके हैं।

प्रशांत राजावत के सवाल : कृष्ण कुमार  यादव जी के जवाब

मेरी पत्नी मेरी जीवन संगिनी ही नहीं साहित्य संगिनी भी है: कृष्ण कुमार यादव 

सवालः आप ब्लॉगर हैं। आपकी पत्नी और बेटी भी। कैसा लगता है जब लोग ब्लॉगर दम्पत्ति या ब्लॉगर परिवार के नाम से जानते हैं?

जवाब : हमारे परिवार की तीन पीढ़ियाँ एक साथ ब्लॉगिंग में सक्रिय हैं - मेरे पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव जी, पत्नी आकांक्षा, बिटिया अक्षिता (पाखी) और स्वयं मैं। ऐसे में ब्लॉगर परिवार कहा जाना एक सुखद अनुभूति देता है।

सवालः आपने वर्ष 2008 से ब्लॉगिंग की शुरूआत की और अब आप देशभर में श्रेष्ठ ब्लॉगर के रूप में प्रसिद्ध हैं। ब्लॉग जगत में उतरने का ख्याल कैसे आया?

जवाब : मैंने वर्ष 2008 में हिंदी ब्लॉगिंग में पदार्पण किया। उस समय तक मैं तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित हो रहा था। अपनी अभिव्यक्तियों को विस्तार देने के क्रम में एक नए माध्यम के रूप में ब्लॉगिंग की तरफ उन्मुख हुआ। जहाँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन की अपनी सीमाएं और बंदिशें हैं, वहीं ब्लॉग अपनी भावनाओं, अभिव्यक्तियों और रचनाओं को खुलकर कहने-लिखने का अवसर देता है। इसके अलावा ब्लॉगिंग से जुड़कर एक नया पाठक वर्ग भी मिला और बहुत कुछ नया सीखने का मौका भी। ब्लॉगिंग मुझे इसलिए भी भाया कि यहाँ अपनी रचनाओं और अभिव्यक्तियों को सहेजकर रखा जा सकता है, वहीं अन्य लोग जब चाहें-जैसे चाहें, इसे पढ़ सकते हैं।

सवाल : ‘शब्द - सृजन की ओर’ और ‘डाकिया डाक लाया’ आपके लोकप्रिय ब्लॉग हैं । सुना है ‘डाकिया डाक लाया’ को 100 से ज्यादा देशों में पढ़ा जाता है। क्या इसका डाक विभाग से कोई वास्ता है ?

जवाब : ब्लागिंग से मैं सर्वप्रथम 13 जून, 2008 को जुड़ा, जब मैंने अपना पहला ब्लॉग ‘शब्द सृजन की ओर’ (http://www.kkyadav.blogspot.com/) बनाया। इस ब्लॉग पर मेरी बहुविधविधाओं में रचनाएं हैं, संस्मरण हैं, जानकारियाँ हैं, जीवन के अनुभव हैं। चूँकि मैं डाक विभाग से जुड़ा हुआ हूँ और यह विभाग भारत के सबसे पुराने विभागों में है, अत: मेरा दूसरा ब्लॉग विषय आधारित है-‘डाकिया डाक लाया‘ (http://dakbabu.blogspot.com/)। इस ब्लॉग की शुरूआत 1 नवम्बर 2008 को डाक सेवाओं के तमाम अनछुए आयामों और अनेकानेक ज्ञानवर्धक व रोचक जानकारियों एवं संस्मरणों को सहेजने और लोगों के साथ शेयर करने के लिए मैंने किया।

सवाल : आपकी पत्नी आकांक्षा जी और बेटी अक्षिता (पाखी) भी ब्लॉगिंग में सक्रिय हैं। वे ब्लॉग पर किस तरह का लेखन करती हैं ?

जवाब : आकांक्षा ब्लॉगिंग में काफी सक्रिय हैं और 'शब्द-शिखर' (http://shabdshikhar.blogspot.com/) नामक ब्लॉग का सञ्चालन करती हैं। इस पर उनकी तमाम रचनाओं के साथ-साथ समसामयिक विषयों और नारी-विमर्श विषयक तमाम पोस्ट हैं। युगल रूप में हम तीन ब्लॉग ‘उत्सव के रंग’ (http://utsavkerang.blogspot.com/), ‘सप्तरंगी प्रेम’ (http://saptrangiprem.blogspot.com/), एवं ‘बाल-दुनिया’ (http://balduniya.blogspot.com/) का भी संचालन करते हैं। ‘उत्सव के रंग’ में भारतीय उत्सवी परम्परा को रेखांकित करते विभिन्न पर्व-त्यौहारों और विशिष्ट दिवसों पर प्रविष्टियाँ हैं तो ‘सप्तरंगी-प्रेम’ में रचनाकारों की किसी भी विधा में लिखी प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं का संपादन-प्रकाशन किया जाता है। ‘बाल-दुनिया’ बाल-साहित्य और बच्चों की गतिविधियों और उनसे जुड़े विषयों पर केन्द्रित ब्लॉग है। इसके अलावा बिटिया अक्षिता (पाखी) की ‘पाखी की दुनिया’ (http://pakhi-akshita.blogspot.com/) पर उसकी ड्राइंग, फोटो, उसकी स्कूल की बातें, घूमने-फ़िरने से जुड़े संस्मरण इत्यादि शामिल हैं। अक्षिता को ब्लॉगिंग और कला के लिए वर्ष-2011 में भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय बाल पुरस्कार‘ से नवाजा जा चुका है। जहाँ इस पुरस्कार को सबसे कम उम्र में पाने का गौरव उसे प्राप्त है, वहीं ब्लॉगिंग के लिए प्रथम राजकीय सम्मान पाने का भी गौरव उसके खाते में दर्ज है।

सवालः आपकी पत्नी भी ब्लॉगर हैं और बेटी भी और आप भी। और तीनों ही सम्मानित और लोकप्रिय ब्लॉगर। क्या कभी परस्पर होड़ रहती है कि आकांक्षा जी कहती हों नहीं आपसे बेहतर ब्लॉग लेखन करना है या अक्षिता (पाखी) ही कभी कहती हो पापा मैं आपसे बेहतर करूंगी या कर रही हूँ। हाहाहा....!

जवाब: हम अपने जीवन में कई भूमिकाएं निभाते हैं, पर इनमें एक संतुलन होना बेहद जरूरी है। हम लोग एक-दूसरे के संपूरक हैं, बेहतर लेखन में अपने-अपने आइडियाज़ से एक-दूसरे की मदद ही करते हैं। बिना परिवार के समर्थन के लेखन तो हमारे लिए कठिन कार्य है। यहाँ मुझे पाश्चात्य विचारक फ्रैंज स्कूबर्ट के शब्द याद आ रहे हैं, ’’जिसने सच्चा दोस्त पा लिया, वह सुखी है। लेकिन उससे भी सुखी वह है जिसने अपनी पत्नी में सच्चा मित्र पा लिया है।’’ इस रूप में आकांक्षा सिर्फ मेरी जीवन संगिनी नहीं, साहित्य-संगिनी भी हैं। अक्षिता (पाखी) बिटिया से भी कई नए विचार मिलते हैं।

सवालः- इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़े हैं आप। इलाहाबाद विश्वविद्यालय तो साहित्य का गढ़ है। तमाम बड़े साहित्यकार, लेखक और पत्रकार इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने दिए। क्या वहाँ से कुछ प्रेरणा मिली आपको। क्या कुछ माहौल था आपके दौर में पठन-पाठन का, साहित्यिक रुचि का ?

जवाब : इलाहाबाद विश्वविद्यालय की बात ही निराली है। यहाँ से शिक्षा प्राप्त कर देश-विदेश में इसका नाम ऊँचा करने वालों की एक समृद्ध परंपरा है। ऐसे में यहाँ से प्रेरणा मिलना स्वाभाविक ही है। हमारे दौर में इस विश्वविद्यालय में पढ़ना और फिर सिविल सर्विसेज़ परीक्षा में चयनित होकर निकलना तमाम लोगों का सपना हुआ करता था। दर्शन शास्त्र और राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी रूप में विश्विद्यालय में अध्ययन के दौरान तमाम चीजें मुझे उद्धेलित करती थीं,तब इन सब वैचारिक भावों को मैंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के ‘पाठकों के पत्र’ स्तम्भ में भेजना आरंभ किया। मेरे लेखन में इन पत्रों का बड़ा अहम योगदान रहा । इस आरंभिक लेखन से जहाँ एक तरफ भाषा और शैली पर पकड़ मजबूत हुई, वहीं सिविल सर्विसेज की परीक्षा के दौरान भी इसका काफी फायदा मिला।

सवालः- आपके ब्लॉग का मुख्य आकर्षण क्या है। जिसको आप ज्यादा तरजीह देते हों, जैसे- कविता, कहानी, निबंध आदि।

जवाब : अपने ब्लॉग को मैंने किसी विधा विशेष में बांधने की कोशिश नहीं की, बल्कि विभिन्न विधाओं और विषयों पर लिखता हूँ।पर इनमें भी कविताएँ एवं विभिन्न साहित्यिक व समसामयिक विषयों पर लेख लिखना मुझे बहुत प्रिय लगता है। चूँकि, अध्ययन का मेरा क्रम अभी भी बना हुआ है, अत: जब भी कोई चीज वैचारिक रूप में मुझे उद्धेलित करती है, अपने आप लेख लिखने के लिए प्रवृत्त हो जाता हूँ। अपने लेखों में मैं तथ्य और वैचारिकता, दोनों का समन्वय करने की कोशिश करता हूँ। यहाँ तक कि समय-समय पर उन्हें परिमार्जित भी करता रहता हूँ।

सवालः मैंने आपकी कुछ कविताएँ पढ़ीं। आपकी कविताओं में अन्तर्मन की वेदना छिपी होती है। आप अतीत और वर्तमान को तुलनात्मक रूप से जोड़ते हुए भी कविताएं लिखते हैं। वैसे आपकी कविताओं का पसंदीदा विषय क्या है- ओज, प्रेम, पर्यावरण या कुछ और।

जवाब : कविता आत्म अनुभूति का सबसे सुन्दर एवं उत्कृष्ट रूप है, जिसकी उत्पति हृदय से होती है। कभी-कभी जिन्दगी में जब आवेग या भावनायें काबू में नहीं रह पातीं, तो कविता उन्हें अभिव्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम बनती है। कविता एक ऐसा माध्यम है जो बहुत कुछ कह कर भी अनकहा छोड़ देती है। इस अनकहे को ढूँढने की अभिलाषा ही कवि मन को अन्य से अलग करती है। मेरे लिए कविता सिर्फ एक माध्यम नहीं वरन् भूमिका और कर्तव्य भी है। यही कारण है कि मेरी कविताएँ भिन्न-भिन्न विषयों को अपने में समेटती हैं।प्रेम, पर्यावरण,नारी, ईश्वर, समकालीन समाज के अंतर्विरोध व सरोकारों से लेकर ऑफिस की फाइलें तक मेरी कविताओं का विषय बनी हैं।

सवालः देश-विदेश में आपको श्रेष्ठ ब्लॉगर के लिए कई सम्मान मिले। इन सम्मानों को कैसे देखते हैं। क्या कभी पद्म पुरस्कारों की कामना भी की ?

जवाब : ब्लॉगिंग के लिए मुझे उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा ‘जी न्यूज का अवध सम्मान’, परिकल्पना समूह द्वारा ‘दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगर दम्पति’ सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, भूटान में ’सार्क शिखर सम्मान’ जैसे तमाम सम्मान प्राप्त हुये हैं। सम्मान जहाँ आपकी उपलब्धियों में वृद्धि करते हैं, वहीं ये जिम्मेदारी का एहसास भी कराते हैं। सम्मान के बाद आपसे लोगों की आशाएँ बढ़ जाती हैं, और स्वाभाविक रूप से इनसे और बेहतर करने की प्रेरणा भी मिलती है। फिलहाल, सम्मान या पुरस्कार की सोचकर मैं लेखन कार्य नहीं करता, इन्हें सहज और स्वाभाविक रूप में ही लेना चाहिए।

सवालः ब्लॉग अभिव्यक्ति का बेहतर माध्यम हैपर अब ब्लॉग गैरजरूरी सामग्री भी परोस रहे हैं। गुणवत्ता के लिहाज से ब्लॉग इतने सम्पन्न नहीं। कोई कुछ भी लिख रहा है, जो महत्वहीन सा है। इस प्रवृत्ति पर आप क्या कहेंगे ?

जवाब : ब्लॉग अभिव्यक्ति का एक ऐसा खुला मंच है, जहाँ आप ही लेखक, संपादक, प्रूफ रीडर, प्रकाशक सभी की भूमिकाएँ निभाते हैं। अपने समय के कई चर्चित लेखक, साहित्यकार, राजनेता व अभिनेता तक इससे जुड़े हुये हैं। इसके माध्यम से अपने व्यक्तित्व के छुपे हुये पहलुओं को सामने लाने में लोगों को मदद मिलती है। ब्लॉग कई बार स्थापित मीडिया के लिए भी खबर और विचारों का स्रोत बनता है। सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों के आने के बाद विशेषकर हिन्दी ब्लॉगर्स के रुझान में तबदीली आई है। अभिव्यक्ति के इस नए प्रवाह में कई लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए ब्लॉग तो आरम्भ कर दिए पर उन पर कुछेक पोस्ट लिखकर शांत हो गए। आज हिन्दी ब्लॉगिंग को टाइम पास नहीं बल्कि भावनाओं व विचारों के सशक्त अभिव्यक्ति वाला प्लेटफार्म बनाने की जरूरत है।

सवालः भारत में ब्लॉगर बहुत हैं, संख्या बढ़ती जा रही है। पर कोई क्रांतिकारी ब्लॉग नजर नहीं आता। जिसने सरकार को चुनौती दी हो। समाजिक कुरीतियों के खिलाफ खड़ा हुआ हो। जैसे बांग्लादेश में देखने में आता है कि ब्लॉग वहाँ कट्टरपंथियों को चुनौती दे रहे हैं। कई ब्लॉगरों की हत्या हुई। भारत में इतने संवेदनशील ब्लॉग नहीं, और न ही ब्लॉगर। यहाँ ट्रैवल, ब्यूटी, फिल्म, इंटीरियर, फैशन जैसे विषयों पर ब्लॉग ज्यादा हैं। अपने यहां संवेदनशील ब्लॉग क्यों नहीं हैं ?

जवाब : ब्लॉगिंग का दायरा आज व्यक्ति से समाज, समाज से राष्ट्र, राष्ट्र से अंतर्राष्ट्रीय फलक तक विस्तृत हो रहा है। हाल के दिनों में दुनिया के तमाम देशों में हुए आंदोलनों एवं क्रांति में तमाम सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के साथ ब्लॉगिंग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन आन्दोलनों को सत्ता द्वारा भले ही कुचले जाने के प्रयास किए गए हों, प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया को मैनेज करने के प्रयास किए गए हों पर अभिव्यक्ति की नई क्रांति के रूप में विभिन्न ब्लॉगरों ने इन आंदोलनों व क्रांति के पक्ष में जनमत तैयार किया एवं लोगों को इससे वैचारिक रूप से जोड़ने में भी पहल की। जिस ब्लॉग की भूमिका को साहित्यिक व सामाजिक विषयों तक सीमित माना जाता था, वहाँ वह एक ‘नागरिक पत्रकार’ की भूमिका में खुलकर सामने आया। आज ब्लॉगिंग को सिर्फ साहित्यिक या काव्यशास्त्रीय नजरिए से नहीं बल्कि समाजशास्त्रीय नजरिए से भी देखे जाने की जरूरत है, जहाँ ब्लॉगर्स अपने समय के समाज एवं उस पर आने वाली विपत्तियों व षडयंत्रों को समय रहते पहचान सकें । यह कहना उचित नहीं होगा कि भारत में संवेदनशील ब्लॉग या ब्लॉगर्स नहीं हैं। नारी-सशक्तिकरण से लेकर दलित व आदिवासी विमर्श एवं समकालीन सरोकारों को लेकर तमाम ऐसे ब्लॉग्स मिलेंगे, जहाँ बहस व विमर्शों का अंतहीन दौर चलता है। पर यह अवश्य कहा जा सकता है कि हिंदी ब्लॉगिंग में कविता-कहानी से जुड़े तो तमाम ब्लॉग दिखते हैं, पर विषयगत ब्लॉग कम ही दिखते हैं। विषयगत ब्लॉगों से जहाँ किसी विषय विशेष पर एक साथ ही सामग्री मिल जाती है, वहीं यह ज्ञान का अनुपम संग्रहण भी हो सकता है। ऐसे में हिन्दी ब्लॉगिंग में कहीं न कहीं प्रोफेशनलिज्म की कमी अखरती है।

सवालः भारत में संवेदनशील विषयों पर ब्लॉग बहुत कम हैं। क्या यहाँ ऐसा लगता है ब्लॉगरों को कि भारत में ब्लॉग की जनता के बीच पहुँच नहीं है।

जवाब : आज ब्लॉगिंग की भूमिका सिर्फ वर्चुअल-लाइफ तक सीमित नहीं रही बल्कि इसने आम जन-जीवन को भी अपने दायरे में ले लिया है। ब्लॉग सिर्फ जानकारी देने का माध्यम नहीं बल्कि संवाद, प्रतिसंवाद, सूचना विचार और अभिव्यक्ति का भी सशक्त ग्लोबल मंच है। साहित्यिक और सामाजिक सरोकारों से परे अन्य मुद्दों पर भी हिंदी ब्लॉगर्स जन-चेतना पैदा कर रहे हैं। इधर हाल के राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम पर नजर डालें तो हिंदी ब्लॉगिंग ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिंदी ब्लॉगिंग को लेकर अकादमिक-बहसें और शोध हो रहे हैं, सम्मलेन हो रहे हैं, सम्मान प्राप्त हो रहे हैं, और यहाँ तक कि अब इसे भी क़ानूनी दायरे में लाया गया है। यह सब इसीलिए संभव हो प रहा है कि ब्लॉग जनता कि नब्ज़ को बखूबी समझ रहे हैं। यहाँ तक कि सामान्यजन जिनकी आवाज को मुख्यधारा में स्थान नहीं मिलता, वे भी ब्लॉगिंग के जरिये अपनी आवाज को बुलंद कर रहे हैं।

सवालः कहते हैं ब्लॉग कमाई का भी अच्छा खासा जरिया हैं। कई बड़े ब्लॉगर लाख रुपए तक प्रतिमाह कमा रहे हैं एड के मार्फत। आप कितना कमा लेते हैं अपने ब्लॉग से। आपका ब्लॉग तो बहुत लोकप्रिय है।

जवाब : ब्लॉग मेरे लिए रचनात्मक अभिव्यक्ति और चीजों को डिजिटल रूप में सहेजने का एक सुंदर प्लेटफॉर्म है । फिलहाल इसे आर्थिक नज़रिये से देखने का ख्याल मन में नहीं आया, पर एक नियमित ब्लॉगर के रूप में इस पर विज्ञापनों द्वारा अच्छी कमाई हो सकती है ।

सवालः आपने कई किताबें लिखी हैं। किस विषय पर हैं आपकी किताबें। कुछ बताएं।

जवाब : अब तक विभिन्न विधाओं में मेरी सात पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं- 'अभिलाषा' (काव्य-संग्रह, 2005), 'अभिव्यक्तियों के बहाने' व' अनुभूतियाँ और विमर्श' (निबंध-संग्रह, 2006 व 2007), 'India Post : 150 Glorious Years' (2006), 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा', 'जंगल में क्रिकेट' (बाल-गीत संग्रह, 2012) व' 16 आने 16 लोग' (निबंध-संग्रह, 2014)।

सवालः डेली न्यूजपेपर में अंग्रेजी के पेपर पढ़ते हैं या हिन्दी के। चूंकि अभी आप जोधपुर में पदस्थ हैं, ऐसे में राजस्थान में कौन सा अखबार आपकी नजर में बेहतर है ?

जवाब : अधिकतर मैं हिन्दी के ही समाचार पत्र पढ़ता हूँ । राजस्थान में ‘राजस्थान पत्रिका’ और ‘दैनिक भास्कर’ हिन्दी के प्रमुख समाचार-पत्र हैं।

सवालः साहित्य जगत विस्तृत हो रहा है। प्रकाशक बढ़ रहे हैं। हर रोज एक लेखक सामने आता है। नई-नई किताबें आ रही हैं पर ये श्रेष्ठ सामग्री प्रस्तुत कर रही हैं, इस पर संशय है। साहित्य के इस संक्रमण काल को आप किस तरह लेते हैं ?

जवाब : हिन्दी साहित्य में पाठकों की कमी नहीं है, यही कारण है कि लेखक और प्रकाशक खूब बढ़ रहे हैं। सिर्फ प्रिन्ट माध्यम ही नहीं, नेट पर भी साहित्य का विस्तृत संजाल है । साहित्य और लेखन किसी निर्वात में कार्य नहीं करते अपितु इनमें लोकजीवन के प्रति समर्पण भाव और उत्तरदायित्व का प्रवाह भी होता है। इसीलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। अच्छा साहित्य समाज को सही राह दिखा सकता है। श्रेष्ठ सामग्री के संबंध में कुछेक अपवाद हो सकते हैं, पर उसके आधार पर सभी पर संशय करना उचित नहीं कहा जा सकता। मेरा मानना है कि आज भूमण्डलीकरण एवं उपभोक्तावाद के इस दौर में साहित्य और लेखन को संवेदना के उच्च स्तर को जीवंत रखते हुए समकालीन समाज के विभिन्न अंतर्विरोधों को अपने आप में समेटकर देखना चाहिए एवं साहित्यकार के सत्य और समाज के सत्य को मानवीय संवेदना की गहराई से भी जोड़ने का प्रयास करना चाहिये।

सवालः आप आई.ए.एस. अधिकारी हैं और लेखक भी। क्या कभी लगता है कि अगर अधिकारी नहीं होते तो और बेहतर लेखक होते और अगर लेखक नहीं होते तो और बेहतर अधिकारी साबित होते। 

जवाब : अधिकारी और लेखक एक ही व्यक्तित्व के दो पहलू हैं और दोनों ही एक-दूसरे को समृद्ध और व्यापक बनाते हैं । मेरी रचनात्मकता मुझे संवेदनशील अधिकारी बनाती है, समाज के अंतिम तबके से जोड़ती है, चीजों को देखने-समझने और निर्णय करने की व्यापक दृष्टि प्रदान करती है । इसी प्रकार एक अधिकारी के रूप में प्राप्त दैनंदिन अनुभव व फील्ड का व्यापक अनुभव हमारी रचनाधर्मिता को विस्तृत फ़लक प्रदान करते हुये उसमें नए आयाम जोड़ती है।

सवालः क्या कभी सरकारी नौकरी सृजन में बाधा नहीं बनती? ऐसा नहीं लगता कि और समय होता तो और बेहतर कर पाते।

जवाब : साहित्य-सृजन मेरे लिये कार्य नहीं वरन् जीवन का एक अभिन्न अंग है। सामान्यतः लोग नौकरशाहों को असंवेदनशील समझते हैं पर एक उच्च पद पर रहने के कारण समाज के बारे में हमारे सरोकारों में और भी वृद्धि हो जाती है। समाज के तमाम क्षेत्रों से हमें अच्छे-बुरे जो अनुभव प्राप्त होते हैं, वे अंततः प्रक्रियागत रूप में लेखनी को धारदार शक्ति देते हैं। आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में मेरे लिए साहित्य आक्सीजन का कार्य करता है।

सवालः चूंकि साहित्य में दिलचस्पी है क्या आपको नहीं लगता कि सरकार आपको किसी साहित्य से जुड़े सरकारी उपक्रम की कमान सौंपे। क्या कभी कोई प्रयास नहीं किया इसके लिए।

जवाब: साहित्य मेरे लिए आजीविका का स्रोत नहीं बल्कि मेरी अभिरुचि है, जिसे मैं भरपूर इंजाय करता हूँ। इसे किसी पद विशेष या उपक्रम विशेष के दायरे में नहीं देखता। मेरा साहित्य स्वत:फूर्त है और इसे मैं इसी रूप में बढ़ाना चाहता हूँ।

सवालः ‘मीडिया मिरर’ भारत की एकमात्र वेबसाइट है साहित्य और मीडिया खबरों की जो सकारात्मक सामग्री प्रस्तुत करती है। क्या कहना चाहेंगे हमारी रूपरेखा पर।

जवाब: समकालीन सरोकारों से लेकर समाज की विसंगतियों तक को वैचारिक व साहित्यिक रूप में परोसते हुये अपने नाम के अनुरूप ही ‘मीडिया मिरर’ समाज में एक प्रभावी भूमिका निभा रहा है। सनसनीखेज ख़बरों की बजाय सकारात्मक सामग्री पर ज़ोर देने से इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। अपने कलेवर और तेवर दोनों स्तर पर यह साधुवाद का पात्र है।

सवालः आप आई.ए.एस. अधिकारी हैं। लोगों को एक बारगी ऐसा लग सकता है कि इतने बड़े अधिकारी हैं तो इनके लिए तो सबकुछ आसान है। क्योंकि आपके पास पद है, सम्मान से लेकर प्रकाशक और प्रशंसक सभी सुलभ हैं। कभी लगता है लोग आपके पद के चलते आपके साहित्य श्रम को गंभीरता से नहीं लेते।

जवाब : मैंने अपने साहित्यिक जीवन और अधिकारी के जीवन को सिक्के के दो पहलू की भाँति पृथक रखा है। अधिकारी तो मैं बाद में बना, जबकि लेखन से मैं विद्यार्थी काल से ही जुड़ा हुआ हूँ। आज भी अपने को सतत सीखने के इच्छुक विद्यार्थी के रूप में ही देखता हूँ, इस पर कभी भी पद को हावी नहीं होने देता। वैसे, सच कहूँ तो लेखन और चिंतन की इस अभिरुचि ने ही मुझे सिविल सर्विसेज के करीब पहुँचाया।

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