जोधपुर से रावण का बड़ा अभिन्न नाता है। लोक मान्यता है कि रावण का विवाह मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मंडोर निवासी मंदोदरी के साथ हुअा था। इस कारण मारवाड़ को रावण का ससुराल माना जाता है। मंडोर की पहाड़ी पर स्थित प्राचीन किले के निकट एक स्थान को रावण का विवाह स्थल के रूप में माना जाता है। रावण के साथ विवाह समारोह में भाग लेने उसके कुछ वंशज जोधपुर में ही रह गए। ये लोग बाकायदा रावण की पूजा-अर्चना करते है। इसके लिए उन्होंने रावण का मंदिर तक बनाया हुआ है। जोधपुर में दवे गोधा समाज के लोग अपने आप को रावण का वंशज मानते हैं, इसलिए ये लोग रावण दहन को नहीं देखते।
एक तरफ रावण की ससुराल में उसकी पूजा होती है, वहीँ दूसरी तरफ उसे बुराई का प्रतीक मानकर दहन भी किया जाता है। यहाँ जोधपुर में रामलीला होती हो, पर संभवत: जोधपुर ही ऐसा शहर है, जहाँ दशहरे पर रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण के साथ ही सूर्पनखा और ताड़का के पुतलों दहन किया जाता है। जोधपुर में रावण दहन के मुख्य स्थल रावण का चबूतरा मैदान में दशहरा पर दहन करने को तैयार किए गए रावण व उसके परिजनों के पुतलों को खड़ा किया जाता है।
विजयदशमी बुराई पर अच्छाई की जीत प्रतीक है। यह दर्शाता है कि बुराई के भले कितने भी सिर क्यों न हो, अच्छाई के आगे सब झुक भी जाते हैं और कट भी जाते हैं। विजय दशमी के इस पर्व पर आइए हम दसों बुराईयों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अन्याय, स्वार्थ, अहंकार और क्रूरता) पर यथासम्भव विजय प्राप्त करने को संकल्पित हों ! आप सभी विजय के पथ पर अग्रसर हों और आपका जीवन उन्नति और प्रगति के पथ पर सदैव बढ़ता रहे !!
- कृष्ण कुमार यादव @ शब्द-सृजन की ओर
Krishna Kumar Yadav @ www.kkyadav.blogspot.com/
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