हर साल रावण को जलाया जाता है और अगले साल ही रावण पुन: सज-धज के पिछली बार से भी विकराल रूप में खड़ा होकर हमारे सामने अट्ठाहस करता है। ...और सामने खड़ी भीड़ से पूछता है, "तुममें से कोई राम है क्या?'' … और हम सब नि:शब्द रह जाते हैं।
धू-धू कर जलता रावण अट्ठहास कर बोलता है, ''अगली साल मैं फिर आऊँगा। तुम ही मुझे नया आकार दोगे, मुझे सजाओगे और अपनी आने वाली पीढ़ियों को मेरे बारे में बताओगे।"
… मुझे भी उस राम का इंतज़ार है जो हमेशा के लिए मेरा वजूद ख़त्म कर दे, पर उस रावण का क्या करोगे जो तुम्हारे अंदर कहीं छिपा बैठा है। जब तक तुम्हारे अंदर का रावण जिन्दा है, मेरे पुतले को जलाकर मुझे नहीं ख़त्म कर पाओगे..!!
कृष्ण कुमार यादव की लघुकथा @ शब्द-सृजन की ओर
Short Story by Krishna Kumar Yadav.
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