वसंत को ऋतुराज कहा गया है। इस समय पंचतत्त्व जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। इस दौरान सर्वत्र हरियाली दृष्टोगोचर होती है और उनमें पीली वस्तुओं का सम्मिलन इसे और भी मोहक बनाता है। भारतीय संस्कृति में पीले रंग को शुभ माना गया है। बसंत पंचमी पर न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, अपितु खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है, जिसे बच्चे तथा बड़े-बूढ़े सभी पसंद करते हैं। अतः इस दिन सब कुछ पीला दिखाई देता है और प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंग से सज़ा देती है, तो दूसरी ओर घर-घर में लोग के परिधान भी पीले दृष्टिगोचर होते हैं। नवयुवक-युवती एक -दूसरे के माथे पर चंदन या हल्दी का तिलक लगाकर पूजा समारोह आरम्भ करते हैं। तब सभी लोग अपने दाएं हाथ की तीसरी उंगली में हल्दी, चंदन व रोली के मिश्रण को माँ सरस्वती के चरणों एवं मस्तक पर लगाते हैं, और जलार्पण करते हैं। धान व फलों को मूर्तियों पर बरसाया जाता है। गृहलक्ष्मी बेर, संगरी, लड्डू इत्यादि बांटती है।
बसंत में न तो ज्यादा गर्मी होती है और न ही ठंडी। आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती, उसका तो कहना ही क्या वह तो मानो साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाते। बसंत की ऋतु हो तो सरसों नाम अनायास ही ओंठों पर आ जाता है। आर्युवेदिक ग्रंथ भावप्रकाश के अनुसार सरसों के बीज उष्ण, तीखे और त्वचा रोगों को हरने वाले होते हैं तथा ये वात, पित्त और कफ जनित दोषों को शांत करते हैं। होलिकोत्सव में सरसों के चूर्ण से उबटन लगाने की परंपरा है, ताकि ग्रीष्म ऋतु में त्वचा की सुरक्षा रहे। सरसों प्रकृति के सौंदर्य का प्रतीक तो है ही आर्थिक दृष्टि से भी यह भारत के सामाजिक जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो वहीं निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने पर सुख की अनुभूति करने लगते हैं। सच! प्रकृति तो मानो उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! पुनर्जन्म जो हो जाता है। श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्लव, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षण बना देता है।
आया वंसत आया वसंत
छाई जग में शोभा अनंत।
सरसों खेतों में उठी फूल
बौरें आमों में उठीं झूल
बेलों में फूले नए फूल
पल में पतझड़ का
हुआ अंत
आया वसंत आया वसंत।
(कविवर सोहन लाल द्विवेदी)
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