टेम्पो या ट्रक इत्यादि के पीछे लिखे शब्द/वाक्य कई बार गौरतलब होते हैं। यूँ ही उन पर नजर पड़ती है और मुस्कुराकर रह जाते हैं। याद आता है बाबा नागार्जुन की एक रचना में अवतरित वह ट्रक ड्राइवर, जो अपनी बेटी की छोटी-छोटी चूड़ियाँ अपने ट्रक में हमेशा सामने टांगा रहता है, कितनी संवेदना उसमें छुपी हुई है। कई बार इन वाक्यों/शब्दों में हास्य बोध छुपा होता है, प्यार को लेकर कोई अहसास छुपा होता है और कुछेक बार तो इनमें जीवन का कोई सूत्र वाक्य छुपा होता है। कुछेक अपने वजूद का अहसास कराते हैं, कुछ अपने व्यक्तित्व का। जब भी इन्हें पढता या देखता हूँ तो सोचता हूँ कि आखिर यह पेंटर की कारस्तानी होती है या उस वाहन के ड्राइवर की। कॉलेज के दिनों में तो हमारे एक मित्र इन तमाम बातों को अपनी डायरी में लिखने का शौक भी रखते थे, पता नहीं कब और कहाँ सृजन हो जाये !!
इस ब्लॉग पर आप रूबरू होंगे कृष्ण कुमार यादव की साहित्यिक रचनात्मकता और अन्य तमाम गतिविधियों से...
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मंगलवार, 30 सितंबर 2014
मंगलवार, 16 सितंबर 2014
हिन्दी के क्षेत्र में सम्मान का सैकड़ा
आज के दौर में प्रशासनिक सेवा में रहकर राजभाषा हिंदी के विकास के लिए चिंतन मनन करना अपने आप में एक उपलब्धि है। राजकीय सेवा के दायित्वों का निर्वहन और श्रेष्ठ कृतियों की सर्जना का यह मणिकांचन योग विरले ही मिलता है। समकालीन साहित्यकारों में उभरते चर्चित कवि, लेखक एवं चिंतक तथा जौनपुर जिले के बरसठी विकास खंड के सरावां गांँव निवासी और मौजूदा समय में डाक निदेशक इलाहाबाद परिक्षेत्र कृष्ण कुमार यादव इस विरले योग के ही प्रतीक हैं। श्री यादव को इसके लिए अब तक 102 बार सम्मान व मानद उपाधियाँ प्राप्त हो चुकी हैं।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक गणराज्य देश भारत के पास अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला, पर आधुनिक दौर में हर व्यक्ति अंग्रेजी की ओर भाग रहा है। खासकर प्रोफेशनल और सरकारी नौकरियों में अंगे्रजी को महत्वपूर्ण अंग के रूप में लिया जा रहा है। ऐसे में श्री यादव लोगों को बताते हैं कि कक्षा छह से ही हिंदी के सहारे मंजिल पाने का सपना देखना शुरू किया। इस सपने को साकार कराने में उनके पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव का विशेष योगदान रहा है। जिसकी बदौलत उन्हें वर्ष 2001 में सिविल सेवा में सफलता मिली। इसके बाद तमाम पत्र-पत्रिकाओं में लेखन के साथ ही उन्होंने ब्लाॅगिंग के सहारे हिंदी के विकास के लिए कार्य करना शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी जीवन संगिनी आंकाक्षा यादव और पुत्री अक्षिता (पाखी) भी लेखन ब्लाॅगिंग में सक्रिय हो गईं। परिणाम रहा कि तीन पीढि़यों संग हिन्दी के विकास में जुटे कृष्ण कुमार यादव को 102 बार हिंदी के विकास हेतु विभिन्न सम्मान व मानद उपाधियांँ प्राप्त हुई।
दो बार मिला अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लाॅगर पुरस्कार
हिंदी के विकास में जुटे डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव को उत्कृष्ट कार्य के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी सम्मानित कर चुके हैं। उन्होंने 'अवध सम्मान’ से श्री यादव को नवाजा था। लखनऊ में आयोजित द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लाॅगर सम्मलेन में ’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लाॅगर दंपती’ का सम्मान श्री यादव को प्रदान किया गया। इसके अलावा काठमांडू में हुए तृतीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लाॅगर सम्मेलन में नेपाल के संविधान सभा के अध्यक्ष नरसिंह केसी ने उन्हें ’परिकल्पना साहित्य सम्मान’ दिया था।
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हिन्दी के क्षेत्र में सम्मान का सैकड़ा
तीन पीढि़यों संग हिन्दी के विकास में जुटे हैं डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव
102 बार मिल चुका है पुरस्कार और मानद उपाधियाँ
(साभार : दैनिक जागरण, जौनपुर-वाराणसी संस्करण, 15 सितंबर, 2014)
शनिवार, 13 सितंबर 2014
'हिंदी' हमारे रोजमर्रा की भाषा है, सिर्फ 'दिवस' या 'पखवाड़ा' की नहीं
14 सितम्बर को 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन संविधान सभा ने 1949 में हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता दी थी। पूरा सितम्बर माह हिंदी दिवस से लेकर हिंदी सप्ताह, पखवाड़ा और हिंदी माह के रूप में मनाया जाता है। वस्तुत: हिंदी हमारे रोजमर्रा की भाषा है और इसे सिर्फ दिवस या पखवाड़ा से जोड़कर देखने की जरूरत नहीं है। संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है और हिंदी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यंत वैज्ञानिक है। दुनिया में चीनी मंदारिन के बाद सर्वाधिक भाषा हिंदी ही बोली जाती है। हिन्दी को संस्कृत शब्द-संपदा एवं नवीन शब्द रचना सामर्थ्य विरासत में मिली है। यह देशी भाषाओं एवं अपनी बोलियों के साथ-साथ अन्य भाषाओं से भी शब्द लेने में संकोच नहीं करती। यही कारण है कि अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है। ऐसे में हिंदी का महत्व सर्वविदित है। हिंदी को जितना नुकसान अन्य ने नहीं पहुँचाया है, उससे ज्यादा स्वयं हिंदी वालों ने पहुँचाया है। जिस दिन हर हिंदी भाषी हिंदी से प्रेम करने लगेगा, उस दिन हिंदी खुद ही सिरमौर हो जाएगी !!
(चित्र : कानपुर में पदस्थ रहने के दौरान 'हिंदी पखवाड़ा' के दौरान सम्मान। साथ में पं. बद्री नारायण तिवारी, बाल-साहित्यकार डा. राष्ट्रबंधु, गीतकार श्री शतदल)
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गुरुवार, 4 सितंबर 2014
मास्टर जी की छड़ी
स्कूल के दिनों में मास्टर जी की छड़ी याद है न। आज का परिवेश भले ही बदल गया हो, पर हमारे दौर में मास्टर जी की छड़ी बड़ी अहमियत रखती थी। कभी इस छड़ी को लेकर एक कविता लिखी थी, जिसे आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ। संयोगवश कल 'शिक्षक दिवस' भी है -
बचपन में खींच दी थी
मास्टर जी ने हाथों में लकीर
बाँस की ताजी टहनियों से बनी
उस दुबली-पतली छड़ी का साया
चुप कराने के लिए काफी था
जब कभी पड़ती वो किसी के हाथों पर
तो बन जाती लकीरें आड़ी-तिरछी
शाम को घर लौटते हुये
ढूँढ़ने की कोशिश करते
उन लकीरों में अपना भविष्य
कुछ की लकीरें तो
रात भर में ही गायब हो जातीं
कुछ की लकीरें
दे जातीं जिंदगी का एक अर्थ
जो कि उस लकीर की कडि़याँ बना
रचते जिंदगी का एक फलसफाँ।
( यह चित्र जवाहर नवोदय विद्यालय, जीयनपुर-आजमगढ़ में कक्षा 6 में पढाई के दौरान का है। इसमें हम भी हैं, कोशिश करिये, शायद पहचान पाएँ)
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