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मंगलवार, 30 सितंबर 2014

ये भी कुछ कहते हैं



टेम्पो या ट्रक इत्यादि के पीछे लिखे शब्द/वाक्य कई बार गौरतलब होते हैं। यूँ ही उन पर नजर पड़ती है और मुस्कुराकर रह जाते हैं। याद आता है बाबा नागार्जुन की एक रचना में अवतरित वह ट्रक ड्राइवर, जो अपनी बेटी की छोटी-छोटी चूड़ियाँ अपने ट्रक में हमेशा सामने टांगा रहता है, कितनी संवेदना उसमें छुपी हुई है। कई बार इन वाक्यों/शब्दों में हास्य बोध छुपा होता है, प्यार को लेकर कोई अहसास छुपा होता है और कुछेक बार तो इनमें जीवन का कोई सूत्र वाक्य छुपा होता है। कुछेक अपने वजूद का अहसास कराते हैं, कुछ अपने व्यक्तित्व का। जब भी इन्हें पढता या देखता हूँ तो सोचता हूँ कि आखिर यह पेंटर की कारस्तानी होती है या उस वाहन के ड्राइवर की। कॉलेज के दिनों में तो हमारे एक मित्र इन तमाम बातों को अपनी डायरी में लिखने का शौक भी रखते थे, पता नहीं कब और कहाँ सृजन हो जाये !!

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