चाय की चुस्कियों के बीच
सुबह का अखबार पढ़ रहा था
अचानक
नजरें ठिठक गईं
गौरैया शीघ्र ही विलुप्त पक्षियों में।
वही गौरैया,
जो हर आँगन में
घोंसला लगाया करती
जिसकी फुदक के साथ
हम बड़े हुये।
क्या हमारे बच्चे
इस प्यारी व नन्हीं-सी चिड़िया को
देखने से वंचित रह जायेंगे!
न जाने कितने ही सवाल
दिमाग में उमड़ने लगे।
बाहर देखा
कंक्रीटों का शहर नजर आया
पेड़ों का नामोनिशां तक नहीं
अब तो लोग घरों में
आँगन भी नहीं बनवाते
एक कमरे के फ्लैट में
चार प्राणी ठुंसे पड़े हैं।
प्रकृति को
निहारना तो दूर
हर कुछ इण्टरनेट पर ही
खंगालना चाहते हैं।
आखिर
इन सबके बीच
गौरैया कहाँ से आयेगी
शायद गौरैया नाराज है !
- कृष्ण कुमार यादव-
(''विश्व गौरैया दिवस'' 20 मार्च पर खास प्रस्तुति)
6 टिप्पणियां:
छोटी सी उड़ती जान, जिसने सदा ही बचपन को रोमांचित किया है।
गौरैया तो नराज होंगी ही,हम जो उनका बसेरा जो उजाड रहें हैं.बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,धन्यबाद.
हमारा बचपन गौरैया के साथ जुडा था.वह पहली चिडिया थी जिससे हम परिचित होते थे और चिडिया का पर्याय उसी को समझते थे.शायद आज के बच्चों के साथ ऐसा नही है.निसंदेह इसके लिए कहीं हम दोषी हैं.सुंदर प्रस्तुति.
वह पहली चिडिया थी जिससे हम परिचित होते थे,सुन्दर प्रस्तुति
गौरैया ! तुम कभी दूर न जाना
गौरैया पर बहुत ही सुन्दर रचना प्रस्तुत की है आपने।
गौरैया के लिए छत पर दाना-पानी रखिये फिर देखिएगा कैसे रूठा दोस्त वापस आएगा। यही आशा है आप सबसे :)
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