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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नव वर्ष की बेला आई..


नव वर्ष की बेला आई
खुशियों की सौगातें लाई
नया कर गुजरने का मौका
सद्भावों की नौका लाई

नया वर्ष है, नया तराना
झूमो-नाचो, गाओ गाना
इस वर्ष संकल्प है अपना
नहीं किसी को है सताना

बदला साल, कैलेण्डर बदला
बदला है इस तरह जमाना
भेजो सबको स्नेह निमंत्रण
गाओ नव वर्ष का तराना।

कृष्ण कुमार यादव
चित्र साभार : वेबदुनिया

रविवार, 19 दिसंबर 2010

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण -2010 : एक अनुपम प्रयास

हिंदी ब्लागिंग में नित नए प्रयोग हो रहे हैं. कोई रचनाधर्मिता के स्तर पर तो कहीं विश्लेषण के स्तर पर. इन सबके बीच लखनऊ के ब्लागर रवीन्द्र प्रभात ने ब्लागोत्सव-2010 और परिकल्पना के माध्यम से नई पहचान बनाई है. आजकल परिकल्पना ब्लॉग के माध्यम से रवीन्द्र जी वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 पर ध्यान लगाये हुए हैं. बड़ी खूबसूरती से साल-भर चली गतिविधियों, ब्लॉग जगत की हलचलों, नए-पुराने चेहरों को आत्मसात करते हुए रवीन्द्र जी का यह व्यापक विश्लेषण यथासंभव हर सक्रिय हिंदी ब्लागर को सहेजने की कोशिश करता है. यह विश्लेषण नए ब्लागरों के लिए प्राण-वायु का कार्य करता है, तो पुरानों के लिए पीछे मुड़कर देखने का एक मौका देता है. यह हिंदी ब्लाग-जगत को आत्मविश्लेषण की शक्ति देता है तो शोधपरक रूप में प्रस्तुत सभी पोस्ट महत्वपूर्ण पोस्टों को इतिहास के गर्त में जाने से बचाते भी हैं. मुझे लगता है कि हर हिंदी ब्लागर को परिकल्पना पर प्रस्तुत इस वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 पर एक चौकन्नी नजर जरुर डालनी चाहिए और इसे प्रोत्साहित करना चाहिए. फ़िलहाल रवीन्द्र प्रभात जी को लगातार दूसरे वर्ष इस अनुपम ब्लॉग-विश्लेषण के लिए बधाइयाँ और साधुवाद !!


वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 (भाग-5) की शुरुआत रवीन्द्र प्रभात जी ने हमारे ब्लॉगों के विश्लेषण से ही की है, तो लगता है कि हम भी कुछ ठीक-ठाक कर रहे हैं. अन्यथा हम तो अपने को इस क्षेत्र में घुसपैठिया ही मानते थे. बकौल रवीन्द्र प्रभात- पिछले भाग में जो साहित्य सृजन की बात चली थी उसे आगे बढाते हुए मैं सबसे पहले जिक्र करना चाहूंगा एक ऐसे परिवार का जो पद-प्रतिष्ठा-प्रशंसा और प्रसिद्धि में काफी आगे होते हुए भी हिंदी ब्लोगिंग में सार्थक हस्तक्षेप रखता है । साहित्य को समर्पित व्यक्तिगत ब्लॉग के क्रम में एक महत्वपूर्ण नाम उभरकर सामने आया है वह शब्द सृजन की ओर , जिसके संचालक है इस परिवार के मुखिया के के यादव । ये जून -२००८ से सक्रिय ब्लोगिंग से जुड़े हैं । इनका एक और ब्लॉग है डाकिया डाक लाया । यह ब्लॉग विषय आधारित है तथा डाक विभाग के अनेकानेक सुखद संस्मरणों से जुडा है।


आकांक्षा यादव इनकी धर्मपत्नी है और ये हिंदी के चार प्रमुख क्रमश: शब्द शिखर, उत्सव के रंग, सप्तरंगी प्रेम और बाल दुनिया ब्लॉग की संचालिका हैं औरइनकी एक नन्ही बिटिया है जिसे पूरा ब्लॉग जगत अक्षिता पाखी (ब्लॉग : पाखी की दुनिया) के नाम से जानता है, इस वर्ष के श्रेष्ठ नन्हा ब्लोगर का अलंकरण पा चुकी है , चुलबुली और प्यारी सी इस ब्लोगर को कोटिश: शुभकामनाएं ! इनसे जुड़े हुए दो नाम और है एक राम शिवमूर्ति यादव और दूसरा नाम अमित कुमार यादव , जिन्होनें वर्ष -२०१० में अपनी सार्थक और सकारात्मक गतिविधियों से हिंदी ब्लॉगजगत का ध्यान खींचने में सफल रहे हैं । ये एक सामूहिक ब्लॉग भी संचालित करते हैं जिसका नाम है युवा जगत । यह ब्लॉग दिसंबर-२००८ में शुरू हुआ और इसके प्रमुख सदस्य हैं अमित कुमार यादव, कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, रश्मि प्रभा, रजनीश परिहार, राज यादव, शरद कुमार, निर्मेश, रत्नेश कुमार मौर्या, सियाराम भारती, राघवेन्द्र बाजपेयी आदि।

इसी प्रकार वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 (भाग-2) के आरंभ में लिखे वाक्य कि- वर्ष-२०१० की शुरुआत में जिस ब्लॉग पर मेरी नज़र सबसे पहले ठिठकी वह है शब्द शिखर , जिस पर हरिवंशराय बच्चन का नव-वर्ष बधाई पत्र !! प्रस्तुत किया गया ।


वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 (भाग-1) में भी रवीन्द्र जी ने हमारे ब्लॉगों की चर्चा की है. जून-२००८ से हिंदी ब्लॉगजगत में सक्रिय के. के. यादव का वर्ष-२०१० में प्रकाशित एक आलेख अस्तित्व के लिए जूझते अंडमान के आदिवासी ,वर्ष-२००८ से दस ब्लोगरों क्रमश: अमित कुमार यादव, कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, रश्मि प्रभा, रजनीश परिहार, राज यादव, शरद कुमार, निर्मेश, रत्नेश कुमार मौर्या, सियाराम भारती, राघवेन्द्र बाजपेयी के द्वारा संचालित सामूहिक ब्लॉग युवा जगत पर इस वर्ष प्रकाशित एक आलेख हिंदी ब्लागिंग से लोगों का मोहभंग ,२४ जून २००९ से सक्रीय और लोकसंघर्ष परिकल्पना सम्मान से सम्मानित वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही ब्लोगर अक्षिता पाखी के ब्लॉग पर प्रकाशित आलेख डाटर्स-डे पर पाखी की ड्राइंग... १० नवम्बर-२००८ से सक्रीय राम शिव मूर्ति यादव का इस वर्ष प्रकाशित आलेख मानवता को नई राह दिखाती कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव, .............................आदि को पाठकों की सर्वाधिक सराहना प्राप्त हुयी है .

यहाँ मुझे याद है, जब पिछले वर्ष 21 दिसंबर, 2009 को प्रस्तुत वर्ष 2009 : हिंदी ब्लाग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-21) में भी रवीन्द्र जी ने डाकिया डाक लाया ब्लॉग के माध्यम से हमें भी हिंदी ब्लॉग जगत के 9 उपरत्नों में दूसरे स्थान पर शामिल किया था. यह हमारे लिए बेहद प्रसन्नता का क्षण था.

रवीन्द्र प्रभात जी द्वारा प्रस्तुत ब्लॉगों के विश्लेषण से कम से कम हमें भी ब्लागर होने का अहसास हुआ है और लगता है कि हम भी कुछ ठीक-ठाक सा कर रहे हैं. अन्यथा हम तो अपने को इस क्षेत्र में घुसपैठिया ही मानते थे. खैर इसी बहाने सुदूर अंडमान-निकोबार की चर्चा भी ब्लागिंग में हो रही है, जो काफी उपेक्षित माना जाता है. एक बार पुन: रवीन्द्र प्रभात जी को लगातार दूसरे वर्ष इस अनुपम ब्लॉग-विश्लेषण के लिए बधाइयाँ और साधुवाद और रवीन्द्र प्रभात जी व उन सभी स्नेही ब्लोगर्स-पाठकों का आभार जिनकी बदौलत हम आज यहाँ पर हैं !!


...तो आप भी एक बार रवीन्द्र प्रभात जी की परिकल्पना में शामिल हों, और वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 की सैर कर अपने विचार वहां जरुर दें. आखिर कोई तो है जो लखनऊ की नज़ाकत, नफ़ासत,तहज़ीव और तमद्दून की जीवंतता को ब्लागिंग में भी बरकरार रखकर अपने-पराये के भेद से परे सबकी सोच रहा है !!

रविवार, 12 दिसंबर 2010

सोने के डाक टिकट


(आज 12 दिसंबर, 2010 के जनसत्ता अख़बार के रविवारी पृष्ठ पर 'सोने के डाक टिकट' शीर्षक से मेरा एक लेख प्रकाशित है. आप इस लेख को यहाँ भी पढ़ सकते हैं. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा)

डाक टिकटों के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन सोने के डाक-टिकट की बात सुनकर ताज्जुब होता है। हाल ही में भारतीय डाक विभाग ने 25 स्वर्ण डाक टिकटों का एक संग्रहणीय सेट जारी किया है। इसके लिए राष्ट्रीय फिलेटलिक म्यूजियम (नई दिल्ली) के संकलन से 25 ऐतिहासिक व विशिष्ट डाक टिकट इतिहासकारों व डाक टिकट विशेषज्ञों द्वारा विशेष रूप से भारत की अलौकिक कहानी का वर्णन करने के लिए चुने गए हैं, ताकि भारत की सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी धरोहरों की जानकारी दी जा सके और महापुरूषों को सच्ची श्रद्धांजलि।

सोने के इन डाक टिकटों को जारी करने के लिए डाक विभाग ने लंदन के हाॅलमार्क ग्रुप को अधिकृत किया है। हाॅलमार्क ग्रुप द्वारा हर चुनी हुई कृति के अनुरूप विश्व प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा समान आकार व रूप के मूल टिकट के अनुरूप ही ठोस चांदी में डाक टिकट ढाले गये हैं और उन पर 24 कैरेट सोने की परत चढ़ायी गयी है। ‘‘प्राइड आफ इण्डिया‘‘ नाम से जारी किये गए ये डाक टिकट डायमण्ड कट वाले छिद्र के साथ 2.2 मि0मी0 मोटा है। 25 डाक टिकटों का यह पूरा सेट 1.5 लाख रूपये का है यानि हर डाक टिकट की कीमत 6,000 रूपये है। इन डाक टिकटों के पीछे भारतीय डाक और हाॅलमार्क का लोगो है।

इन 25 खूबसूरत डाक टिकटों में स्वतंत्र भारत का प्रथम डाक टिकट ‘जयहिन्द‘, थाणे और मुंबई के बीच चली पहली रेलगाड़ी पर जारी डाक टिकट, भारतीय डाक के 150 साल पर जारी डाक टिकट, 1857 के महासंग्राम के 150वें साल पर जारी डाक टिकट, प्रथम एशियाई खेल (1951), क्रिकेट विजय-1971, मयूर प्रतिरूप: 19वीं शताब्दी मीनाकारी, राधा किशनगढ़, कथकली, भारतीय गणराज्य, इण्डिया गेट, लालकिला, ताजमहल, वन्देमातरम्, भगवदगीता, अग्नि-2 मिसाइल पर जारी डाक टिकट शामिल किये गये हैं। इनके अलावा महात्मा बुद्ध, महात्मा गांधी, रवीन्द्र नाथ टैगोर, जे.आर.डी.टाटा, होमी जहांगीर भाभा, मदर टेरेसा, सत्यजित रे, अभिनेत्री मधुबाला और धीरूभाई अम्बानी पर जारी डाक टिकटों की स्वर्ण अनुकृति भी जारी की जा रही है।

भूटान ने 1996 में 140 न्यू मूल्य वर्ग का ऐसा विशेष डाक टिकट जारी किया था जिसके मुद्रण में 22 कैरेट सोने के घोल का उपयोग किया गया था। विश्व के पहले डाक टिकट ‘पेनी ब्लैक‘ के सम्मान में जारी किये गये इस टिकट पर ‘22 कैरेट गोल्ड स्टेम्प 1996‘ लिखा है। इस टिकट की स्वर्णिम चमक को देखकर इसकी विश्वसनीयता के बारे में कोई संदेह नहीं रह जाता। यह खूबसूरत डाक टिकट अब दुर्लभ डाक टिकटों की श्रेणी में माना जाता है क्योंकि अब यह आसानी से उपलब्ध नहीं है।

भारतीय डाक विभाग ने हाॅलमार्क ग्रुप के साथ जारी किये जा रहे इन डाक टिकटों के बारे में सबसे रोचक तथ्य यह है कि ये स्वर्ण डाक टिकट डाकघरों में उपलब्ध नहीं हैं और न ही किसी शोरूम में। इन्हें प्राप्त करने के लिए विशेष आर्डर फार्म भर कर हाॅलमार्क को भेजना होता है। इसके साथ संलग्न विवरणिका जो इसकी खूबसूरती की व्याख्या करती है, आपने आप में एक अनूठा उपहार है। साथ ही वैलवेट लगी एक केज, ग्लब्स व स्विस निर्माणकर्ता द्वारा सत्यापित शुद्धता का प्रमाण पत्र इन डाक टिकटों को और भी संग्रहणीय बनाते हैं। इन डाक टिकटों की ऐतिहासिकता बरकरार रखने और इन्हें मूल्यवान बनाने के लिए सिर्फ 7,500 सेट ही जारी किया गया है।

सोने के ये डाक टिकट न सिर्फ डाक टिकट संग्रहकर्ताओं बल्कि अपनी सभ्यता व संस्कृति से जुड़े हर व्यक्ति के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं. इसीलिए डाक टिकटों के पहले सेट को नई दिल्ली के राष्ट्रीय फिलेटलिक म्यूजियम में भी प्रदर्शन के लिए सुरक्षित रखने का फैसला किया गया है ।

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

जनसत्ता में 'शब्द सृजन की ओर' ब्लॉग की पोस्ट की चर्चा

'शब्द सृजन की ओर' पर 6 अक्तूबर, 2010 को प्रस्तुत पोस्ट अस्तित्व के लिए जूझते अंडमान के आदिवासी को प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक पत्र 'जनसत्ता' ने २२ नवम्बर 2010 को अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर नियमित स्तम्भ 'समान्तर' में स्थान दिया ... आभार ! इससे पूर्व जनसत्ता के इसी स्तम्भ में 'शब्द सृजन की ओर' पर 22 अप्रैल, 2010 को प्रस्तुत पोस्ट प्रलय का इंतजार को भी स्थान दिया गया था...बहुत-बहुत आभार !!