(आज 12 दिसंबर, 2010 के जनसत्ता अख़बार के रविवारी पृष्ठ पर 'सोने के डाक टिकट' शीर्षक से मेरा एक लेख प्रकाशित है. आप इस लेख को यहाँ भी पढ़ सकते हैं. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा)
डाक टिकटों के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन सोने के डाक-टिकट की बात सुनकर ताज्जुब होता है। हाल ही में भारतीय डाक विभाग ने 25 स्वर्ण डाक टिकटों का एक संग्रहणीय सेट जारी किया है। इसके लिए राष्ट्रीय फिलेटलिक म्यूजियम (नई दिल्ली) के संकलन से 25 ऐतिहासिक व विशिष्ट डाक टिकट इतिहासकारों व डाक टिकट विशेषज्ञों द्वारा विशेष रूप से भारत की अलौकिक कहानी का वर्णन करने के लिए चुने गए हैं, ताकि भारत की सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी धरोहरों की जानकारी दी जा सके और महापुरूषों को सच्ची श्रद्धांजलि।
सोने के इन डाक टिकटों को जारी करने के लिए डाक विभाग ने लंदन के हाॅलमार्क ग्रुप को अधिकृत किया है। हाॅलमार्क ग्रुप द्वारा हर चुनी हुई कृति के अनुरूप विश्व प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा समान आकार व रूप के मूल टिकट के अनुरूप ही ठोस चांदी में डाक टिकट ढाले गये हैं और उन पर 24 कैरेट सोने की परत चढ़ायी गयी है। ‘‘प्राइड आफ इण्डिया‘‘ नाम से जारी किये गए ये डाक टिकट डायमण्ड कट वाले छिद्र के साथ 2.2 मि0मी0 मोटा है। 25 डाक टिकटों का यह पूरा सेट 1.5 लाख रूपये का है यानि हर डाक टिकट की कीमत 6,000 रूपये है। इन डाक टिकटों के पीछे भारतीय डाक और हाॅलमार्क का लोगो है।
इन 25 खूबसूरत डाक टिकटों में स्वतंत्र भारत का प्रथम डाक टिकट ‘जयहिन्द‘, थाणे और मुंबई के बीच चली पहली रेलगाड़ी पर जारी डाक टिकट, भारतीय डाक के 150 साल पर जारी डाक टिकट, 1857 के महासंग्राम के 150वें साल पर जारी डाक टिकट, प्रथम एशियाई खेल (1951), क्रिकेट विजय-1971, मयूर प्रतिरूप: 19वीं शताब्दी मीनाकारी, राधा किशनगढ़, कथकली, भारतीय गणराज्य, इण्डिया गेट, लालकिला, ताजमहल, वन्देमातरम्, भगवदगीता, अग्नि-2 मिसाइल पर जारी डाक टिकट शामिल किये गये हैं। इनके अलावा महात्मा बुद्ध, महात्मा गांधी, रवीन्द्र नाथ टैगोर, जे.आर.डी.टाटा, होमी जहांगीर भाभा, मदर टेरेसा, सत्यजित रे, अभिनेत्री मधुबाला और धीरूभाई अम्बानी पर जारी डाक टिकटों की स्वर्ण अनुकृति भी जारी की जा रही है।
भूटान ने 1996 में 140 न्यू मूल्य वर्ग का ऐसा विशेष डाक टिकट जारी किया था जिसके मुद्रण में 22 कैरेट सोने के घोल का उपयोग किया गया था। विश्व के पहले डाक टिकट ‘पेनी ब्लैक‘ के सम्मान में जारी किये गये इस टिकट पर ‘22 कैरेट गोल्ड स्टेम्प 1996‘ लिखा है। इस टिकट की स्वर्णिम चमक को देखकर इसकी विश्वसनीयता के बारे में कोई संदेह नहीं रह जाता। यह खूबसूरत डाक टिकट अब दुर्लभ डाक टिकटों की श्रेणी में माना जाता है क्योंकि अब यह आसानी से उपलब्ध नहीं है।
भारतीय डाक विभाग ने हाॅलमार्क ग्रुप के साथ जारी किये जा रहे इन डाक टिकटों के बारे में सबसे रोचक तथ्य यह है कि ये स्वर्ण डाक टिकट डाकघरों में उपलब्ध नहीं हैं और न ही किसी शोरूम में। इन्हें प्राप्त करने के लिए विशेष आर्डर फार्म भर कर हाॅलमार्क को भेजना होता है। इसके साथ संलग्न विवरणिका जो इसकी खूबसूरती की व्याख्या करती है, आपने आप में एक अनूठा उपहार है। साथ ही वैलवेट लगी एक केज, ग्लब्स व स्विस निर्माणकर्ता द्वारा सत्यापित शुद्धता का प्रमाण पत्र इन डाक टिकटों को और भी संग्रहणीय बनाते हैं। इन डाक टिकटों की ऐतिहासिकता बरकरार रखने और इन्हें मूल्यवान बनाने के लिए सिर्फ 7,500 सेट ही जारी किया गया है।
सोने के ये डाक टिकट न सिर्फ डाक टिकट संग्रहकर्ताओं बल्कि अपनी सभ्यता व संस्कृति से जुड़े हर व्यक्ति के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं. इसीलिए डाक टिकटों के पहले सेट को नई दिल्ली के राष्ट्रीय फिलेटलिक म्यूजियम में भी प्रदर्शन के लिए सुरक्षित रखने का फैसला किया गया है ।
32 टिप्पणियां:
वाह क्या बात हे अब हमारी अपनी सभ्यता व संस्कृति का ठेका भी यह अग्रेज लेने लग गये, क्या यह डाक टिकट भारत मे नही ढल सकते,किसी विदेशी कम्पनी को ठेका क्यो दिया जाये, या उस से क्यो खरीदे जाये?
सोने के डाक टिकटों पर रोचक और ज्ञानवर्धक लेख...के.के. जी को बधाई.
सोने के डाक टिकटों पर रोचक और ज्ञानवर्धक लेख...के.के. जी को बधाई.
भैया, आज सुबह ही जनसत्ता में आपका सोने के डाक टिकट लेख पढ़ा. वाकई ये भारतीय सभ्यता और संस्कृति की धरोहर को रखने का डाक विभाग का सुन्दर प्रयास है. अख़बार की प्रति आपने पास सुरक्षित रख ली है.
अच्छी जानकारी ...राजीव भाटिया जी की कही बात मेरे मन में भी आई ..
फिर भी राष्ट्र की धरोहर रहेंगे यह टिकट यह अच्छी जानकारी है
यहाँ एक बार फिर से मुबारकवाद. हमें तो इन सोने के डाक टिकटों को देखने का सौभाग्य भी प्राप्त है. वाकई संग्रहणीय डाक टिकट.
टिकट चिपका दिया तो गया काम से।
सोने के डाक टिकटों पर रोचक और ज्ञानवर्धक लेख|
रोचक और ज्ञानवर्धक लेख....डाक विभाग का सुन्दर प्रयास.
सोने के डाक टिकट...ये तो मैंने भी देखे हैं कानपुर में.
भाई, अपने पास इतने पैसे तो नहीं हैं कि इन्हें खरीद सकूँ. पर जब आपसे मुलाकात होगी तो अवश्य देखना चाहूँगा इन्हें.
आज अख़बार वाले से जनसत्ता मंगवाकर इसे फिर से पढता हूँ...बहुत-बहुत बधाई.
आज अख़बार वाले से जनसत्ता मंगवाकर इसे फिर से पढता हूँ...बहुत-बहुत बधाई.
आज अख़बार वाले से जनसत्ता मंगवाकर इसे फिर से पढता हूँ...बहुत-बहुत बधाई.
आज अख़बार वाले से जनसत्ता मंगवाकर इसे फिर से पढता हूँ...बहुत-बहुत बधाई.
बहुत ही जानकारीपरक लेख। किसी जमाने में मुझे भी डाक टिकट संग्रह का शौक था पर समय के साथ छूटता गया।
सोमेश
डॉक्टर की दुकान में ग्राहकों की भीड़
सर बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक लेख.
बधाई
बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने, आभार !
सोने के गहने तो जानती थी, अब यह डाक टिकट...रोचक !!
सोणा ही होगा जी. अब तो डाक टिकट भी तिजोरी में छुपाकर रखने होंगे.
आपका यह लेख जनसत्ता में देखा था. अच्छा लगा वहाँ पढ़कर, पुन: यहाँ..बधाई.
सर जी, डाक सेवाओं पर आपके इस उत्तम और अच्छे काम से विभाग और देश दोनों का नाम रोशन होता है...बधाइयाँ.
क्या जनसत्ता का ई-संस्करण भी उपलब्ध है. लिंक दीजियेगा.
@ Bhatiya Ji,
बात तो आपने खरी पर सच कही. सब भूमंडलीकरन का चक्कर है.
@ मन मयूर जी,
आपकी बधाइयाँ पाकर मेरा भी मन मयूर हो गया..आभार.
राज भाटिया जी ने सही कहा है। अच्छी जानकारी के लिये आभार।
सर , जब आप कानपुर में थे तो आपके सौजन्य से ही हमें भी सोने के डाक टिकटों को देखने का मौका मिला था. आपके जाने के बाद तो सारी क्रियेटिविटी ही मानो ख़त्म हो गई है.
के.के. सर जी,
जिस तरह से आप डाक विभाग से जुडी बातों और रचनाओं को स्थान दे रहे हैं, आपकी सक्रियता को सिर्फ नमन ही कर सकता हूं .
सोने के डाक टिकट...देखकर प्रसन्नता हुई.
जनसत्ता में तो नहीं, पर यहाँ जरुर पढ़ लिया...बेहद रोचक जानकारी.
आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .
* किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?
हाँ ! क्यों नहीं !
कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.
सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.
इसमें भी एक अच्छी बात है.
अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?
सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.
पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.
सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.
आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.
सोने के डाक -टिकट मेरी कल्पना से बाहर थे लेकिन इससे सम्बन्धित लेख पढ़कर अचम्भा भी हुआ और बुद्धि के संसार को विस्तार भी मिला।
सुधा भार्गव
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