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गुरुवार, 9 सितंबर 2010

बिखरते शब्द


शंकर जी के डमरू से
निकले डम-डम अपरंपार
शब्दों का अनंत संसार
शब्द है तो सृजन है
साहित्य है, संस्कृति है
पर लगता है
शब्द को लग गई
किसी की बुरी नजर
बार-बार सोचता हूँ
लगा दूँ एक काला टीका
शब्द के माथे पर
उत्तर संरचनावाद और विखंडनवाद के इस दौर में
शब्द बिखर रहे हैं
हावी होने लगा है
उन पर उपभोक्तावाद
शब्दों की जगह
अब शोरगुल हावी है !!

- कृष्ण कुमार यादव

15 टिप्‍पणियां:

Asha Joglekar ने कहा…

शब्द बिखर रहे हैं
हावी होने लगा है
उन पर उपभोक्तावाद
शब्दों की जगह
अब शोरगुल हावी है !!
Too good.

ANKUR ने कहा…

वाकई में शब्दों में शोरगुल हावी होने लगा है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

शब्द बिखर रहे हैं
हावी होने लगा है
उन पर उपभोक्तावाद
शब्दों की जगह
अब शोरगुल हावी है !!

आधुनिकता का लयबद्ध चित्रण किया है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति

arvind ने कहा…

शब्द बिखर रहे हैं
हावी होने लगा है
उन पर उपभोक्तावाद
शब्दों की जगह
अब शोरगुल हावी है !! ......बढ़िया प्रस्तुति

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप से सहमत है जी

बेनामी ने कहा…

आप जैसा रचनाकार यह महसूस करता है कि शब्द बिखर रहे हैं ,उन पर दूसरी दूसरी चीजें हाबी होती जा रही हैं ! शब्द ब्रह्म है ! आपने याद दिलाया ! धन्यवाद

Urmi ने कहा…

भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें! गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर!

KK Yadav ने कहा…

आप सभी ने इस कविता को पसंद किया...आभार !!

KK Yadav ने कहा…

@ Usha Rai Ji,

कई बार चारों तरफ देखकर ही यह सोचने पर विवश होना पड़ता है. आपके ब्लॉग-आगमन पर आभार.

KK Yadav ने कहा…

@ Babli ji,

धन्यवाद, आपको भी पूरे ब्लॉग-जगत सहित शुभकामनायें.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

उत्तर संरचनावाद और विखंडनवाद के इस दौर में
शब्द बिखर रहे हैं
हावी होने लगा है
उन पर उपभोक्तावाद
शब्दों की जगह
अब शोरगुल हावी है...Bahut satik likha..badhai.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

आज हिंदी दिवस है. अपने देश में हिंदी की क्या स्थिति है, यह किसी से छुपा नहीं है. हिंदी को लेकर तमाम कवायदें हो रही हैं, पर हिंदी के नाम पर खाना-पूर्ति ज्यादा हो रही है. जरुरत है हम हिंदी को लेकर संजीदगी से सोचें और तभी हिंदी पल्लवित-पुष्पित हो सकेगी...! ''हिंदी-दिवस'' की बधाइयाँ !!

Unknown ने कहा…

शब्द को लग गई
किसी की बुरी नजर
बार-बार सोचता हूँ
लगा दूँ एक काला टीका

....इसके आगे क्या कहूँ...उत्तम रचना.

Shahroz ने कहा…

शब्द बिखर रहे हैं
हावी होने लगा है
उन पर उपभोक्तावाद
शब्दों की जगह
अब शोरगुल हावी है !! सहमत हूँ आपसे. विचारोत्तेजक कविता ...बधाई.