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शनिवार, 4 सितंबर 2010
हिन्दी पखवाड़ा
सरकारी विभागों में सितम्बर माह के प्रथम दिवस से ही हिन्दी पखवाड़ा मनाना आरम्भ हो जाता है और हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) आते-आते बहुत कुछ होता जाता है। ऐसी ही कुछ भावनाओं को इस कविता में व्यक्त किया गया है-
एक बार फिर से
हिन्दी पखवाड़ा का आगमन
पुराने बैनर और नेम प्लेटें
धो-पोंछकर चमकाये जाने लगे
बस साल बदल जाना था
फिर तलाश आरम्भ हुई
एक अदद अतिथि की
एक हिन्दी के विद्वान
एक बाबू के
पड़ोस में रहते थे
सो आसानी से तैयार हो गये
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनने हेतु
आते ही
फूलों का गुलदस्ता
और बंद पैक में भेंट
उन्होंने स्वीकारी
हिन्दी के राजभाषा बनने से लेकर
अपने योगदान तक की चर्चाकर डाली
मंच पर आसीन अधिकारियों ने
पिछले साल के
अपने भाषण में
कुछ काट-छाँट कर
फिर से
हिन्दी को बढ़ावा देने की शपथ ली
अगले दिन तमाम अखबारों में
समारोह की फोटो भी छपी
सरकारी बाबू ने कुल खर्च की फाइल
धीरे-धीरे अधिकारी तक बढ़ायी
अधिकारी महोदय ने ज्यों ही
अंग्रेजी में अनुमोदन लिखा
बाबू ने धीमे से टोका
अधिकारी महोदय ने नजरें उठायीं
और झल्लाकर बोले
तुम्हें यह भी बताना पड़ेगा
कि हिन्दी पखवाड़ा बीत चुका है !!
-- कृष्ण कुमार यादव
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23 टिप्पणियां:
हास्य व्यंग्य से परिपूर्ण तथा हिन्दी के प्रति सरकारी विभागों की असलियत को व्यक्त करती हुई सुन्दर रचना। वैसे साल में एक बार ही सही, पर हिन्दी पखवाङे से हिन्दी को कुछ तो बढावा मिलता ही है।
बहुत प्यार से वास्तविकता में डुबो दिया। वाह।
सच कहा इससे बडा हिन्दी का मज़ाक और कहाँ देखने को मिलेगा।
कटु सत्य को उजागर करती रचना ...
यहाँ बात बात में सप्ताह मनाने की रिवाज़ है । हिंदी के मामले में पूरा पखवाड़ा मनाया जाता है ।
यानि डबल मज़ाक !
बढ़िया व्यंग रचना लिखी है भाई ।
कोई भी साहित्यकार/कलाकार चाहे, कितने ही ऊंचे पद पर पहुंच जाये,यदि उसके अन्दर का कलाकार जीवित हॆ,तो वह सत्य से मुंह मोडकर अपने धर्म का पालन नहीं कर सकता.आपने सरकारी विभाग में उच्च पद पर रहते हुए-इस कविता में एक सरकारी आडंबर को उदघाटित किया हॆ.धन्यवाद.इसी संदर्भ में मॆंने एक लेख-"लो शुरु हो गयी-हिंदी की नॊटंकी"अपने ब्लाग-राजभाषा विकास मंच पर लिखा हॆ.कृपया एक नजर इधर भी डालें.
http://www.rajbhashavikasmanch.blogspot.com
बढ़िया कविता है.
हिंदी ब्लॉग संकलक हमारीवाणी
soo ooooo very true...
magar hum manate hain ise bahut prem se..is baar 14 September ko...:))
sir ji, bahut hi acha likha hai per sorry mughe ye story lagi ....kavita ke liye kahi kuch kami rah gayi hai...sorry...per kuch bhi ho bilkul sach kaha hai.....
हिन्दी के लिए आपका प्रयास सराहनीय है . आपके हिन्दी प्रेम से बहुत लोगों को प्रेरणा मिल सकती है .
एक बार फिर से
हिन्दी पखवाड़ा का आगमन
पुराने बैनर और नेम प्लेटें
धो-पोंछकर चमकाये जाने लगे
बस साल बदल जाना था
बढ़िया व्यंग रचना लिखी है भाई ।
बहुत ही सुन्दरता से आपने सच्चाई को बखूबी शब्दों में पिरोया है! शानदार रचना!
सरकारी बाबू ने कुल खर्च की फाइल
धीरे-धीरे अधिकारी तक बढ़ायी
अधिकारी महोदय ने ज्यों ही
अंग्रेजी में अनुमोदन लिखा
बाबू ने धीमे से टोका
अधिकारी महोदय ने नजरें उठायीं
और झल्लाकर बोले
तुम्हें यह भी बताना पड़ेगा
कि हिन्दी पखवाड़ा बीत चुका है !!
...Sarkari daftar ka sahi anklan kiya hai aapne rachna ke madhyam se.. kamovesh yahi haal sab jagah hai..
बढ़िया व्यंग रचना लिखी है
भाई साहब यह एक मौलिक और वास्तविक लेख है हिन्दी अपने देश मेँ ही उपेक्षा की शिकार है।आप स्वयँ भारतीय डाक सेवा मेँ निदेशक हैँ इसलिए असलियत के करीब हैँ।
@ अंकुर,
यही तो दुर्भाग्य है. हिंदी-पखवाड़े से हिंदी को उतना लाभ नहीं मिलता, जितना इसके आयोजकों और अतिथियों को.
@ Vinod Parashar,
आपकी सुन्दर अभिव्यक्तियों के लिए आभार.
@ Ashish,
सब अपना-अपना देखने का नजरिया है....
आप सभी ने इस रचना को पसंद किया...आभार !!
तुम्हें यह भी बताना पड़ेगा
कि हिन्दी पखवाड़ा बीत चुका है !! ...Lajvab.
आज हिंदी दिवस है. अपने देश में हिंदी की क्या स्थिति है, यह किसी से छुपा नहीं है. हिंदी को लेकर तमाम कवायदें हो रही हैं, पर हिंदी के नाम पर खाना-पूर्ति ज्यादा हो रही है. जरुरत है हम हिंदी को लेकर संजीदगी से सोचें और तभी हिंदी पल्लवित-पुष्पित हो सकेगी...! ''हिंदी-दिवस'' की बधाइयाँ !!
Ek Katu Satya Ko Aapne Itne Madhur Shabdon Mein Piroya Hai... Iske liye Kotishah Sadhuwaad....
हिंदी दिवस पर बदलते परिवेश में सुन्दर पोस्ट...साधुवाद स्वीकारें.
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