मांमाँमाँ
माँ ने बच्चे को खाना दिया, और जल्दी-जल्दी काम में लग गयी, बच्चे से बोली- बेटा, जल्दी खाले, मुझे आफिस जाना है।
चीं चीं चीं की आवाज से बच्चे का ध्यान ट्यूबलाइट पर बैठी चिडिया पर गया, वो मुंह में दाना दबाये थी और घोंसले से बच्चे चोंच निकालकर चीं चीं चीं कर रहे थे, चिडिया ने मुंह का दाना बारी-बारी से बच्चों के मुंह में डाल दिया और फिर से दाना लेने उड गयी।
बच्चे ने मां को दिखाया, देखो मां, चिडिया कैसे प्यार से अपने बच्चों को दाना ला लाकर खिला रही है। काश! मैं भी चिडिया का बच्चा होता!
माँ ने बच्चे को खाना दिया, और जल्दी-जल्दी काम में लग गयी, बच्चे से बोली- बेटा, जल्दी खाले, मुझे आफिस जाना है।
चीं चीं चीं की आवाज से बच्चे का ध्यान ट्यूबलाइट पर बैठी चिडिया पर गया, वो मुंह में दाना दबाये थी और घोंसले से बच्चे चोंच निकालकर चीं चीं चीं कर रहे थे, चिडिया ने मुंह का दाना बारी-बारी से बच्चों के मुंह में डाल दिया और फिर से दाना लेने उड गयी।
बच्चे ने मां को दिखाया, देखो मां, चिडिया कैसे प्यार से अपने बच्चों को दाना ला लाकर खिला रही है। काश! मैं भी चिडिया का बच्चा होता!
((तारा निगम जी की यह लघुकथा पिछले दिनों दैनिक जागरण में पढ़ी थी. पसंद आई, सो यहाँ पर भी प्रस्तुत कर रहा हूँ.)
25 टिप्पणियां:
बड़ा ही भावनात्मक अवलोकन।
चिडिया कैसे प्यार से अपने बच्चों को दाना ला लाकर खिला रही है। काश! मैं भी चिडिया का बच्चा होता!....सुन्दर भाव..बधाई.
बहुत सुन्दर लघुकथा. तारा निगम जी को बधाई और के.के. यादव जी को इस शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई.
बहुत सुन्दर लघुकथा. तारा निगम जी को बधाई और के.के. यादव जी को इस शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई.
पढ़कर सोचने पर मजबूर...लाजवाब.
कम शब्दों में बड़ी बात. यही तो लघुकथा का मर्म है.
Fantastic...
मर्म को पकड़ा इस लघु कथा ने..लाजवाब.
माँ को लेकर सुन्दर लघु कथा...शुभकामनायें.
वाह-वाह..क्या बात लिखी. मन प्रसन्न हो गया.
सुन्दर शब्द...गहरे भाव...शानदार लघुकथा..बधाई.
माँ पर जितना भी कहें कम ही है..सारगर्भित लघुकथा के लिए बधाई.
खूबसूरत अहसास...साधुवाद.
Nice.
आधुनिक विकास की कीमत बचपन को चुकानी पड़ रही है ।
अच्छी भावपूर्ण लघु कथा ।
दरल साहब की बात मेरी भी समझें..
आजकल के भागम भागी युग में एक बच्चे की मनोदशा दर्शाती सशक्त कथा.
काश! मैं भी चिडिया का बच्चा होता! बहुत कुछ कह रही है यह कहानी..... धन्यवाद
बच्चे की भावनाएं दर्शा रही है यह लघुकथा....
पर माँ भी तो चिड़िया की ही तरह दाने लाने जा रही है....
..पाखी माने भी तो चिड़िया...
चिड़िया और इंसान में फर्क समझ आ गया...सच्ची लघु कथा..
नीरज
Tezi se kritrim rup dharan karte ja rahe manviya rishton ki pol kholti laghukatha.
सुन्दर मार्मिक लघुकथा ...
सुन्दर भावाभिव्यक्ति है।
भावनात्मक...
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