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गुरुवार, 8 जुलाई 2010

पाश्चात्य नहीं खुद के अन्दर झांकें

भारतीय संस्कृति की एक अक्षुण परम्परा है. दुनिया के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद, वेदों की एक लाख श्रुतियों, उपनिषदों के ज्ञान, महाभारत के राजनैतिक दर्शन, गीता की समग्रता, रामायण के रामराज्य, पौराणिक जीवन दर्शन एवं भागवत दर्शन से लेकर संस्कृति के तमाम अध्याय और योग जैसी विधाओं के जनक भारत की उसी संस्कृति को आज पाश्चात्य संस्कृति से खतरा बताया जा रहा है. जिस योग की महिमा आज पूरे दुनिया में गई जा रही है, वह भारत की ही देन है. योगासनों का सबसे पहले उल्लेख पतंजलि योग सूत्र में मिलता है जिसकी रचना करीब दो हजार साल पहले हुई थी। हम योग को भले ही भुला बैठे पर पश्चिमी देशों ने उसे लपक लिया. यहाँ तक कि अमेरिका में प्राचीन भारतीय विद्या योग के आसनों के करीब 150 पेटेंट, 2,000 ट्रेडमार्क और 150 काॅपीराइट करा लिए गए हैं। यही नहीं अमेरिकी और यूरोप के पेटेंट कार्यालयों में योगासनों पर पेटेंट कराने के 250 दावे अब भी लंबित हैं।

वस्तुतः हम भारतीय अपनी परम्परा, संस्कृति, ज्ञान और यहाँ तक कि महान विभूतियों को तब तक खास तवज्जो नहीं देते जब तक विदेशों में उसे न स्वीकार किया जाये। यही कारण है कि आज यूरोपीय राष्ट्रों और अमेरिका में योग, आयुर्वेद, शाकाहार, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, होम्योपैथी और सिद्धा जैसे उपचार लोकप्रियता पा रहे हैं जबकि हम उन्हें बिसरा चुके हैं। हमें अपनी जड़ी-बूटियों, नीम, हल्दी और गोमूत्र का ख्याल तब आता है जब अमेरिका उन्हें पेटेंट करवा लेता है। योग को हमने उपेक्षित करके छोड़ दिया पर जब वही ‘योगा’ बनकर आया तो हम उसके दीवाने बने बैठे हैं। अब जब योरोप और अमेरिका में योगासनों का धड़धड़ पेटेंट कराया जा रहा है, तो भारत को अपनी धरोहर का ख्याल आया और इसके बाद आरम्भ हुआ योग की संस्कृत भाषा की शब्दावली को विभिन्न विदेशी भाषाओं में अनुवाद करने का ताकि हम जोर देकर कह सकें कि योग विदेशों का नहीं बल्कि हमारी संस्कृति का अंग है। अब डिपार्टमेन्ट आफ आयुर्वेद, योग और नैचुरोपैथी, यूनानी, सिद्ध तथा होम्योपैथी के साथ मिलकर मोरारजी देसाई नेशनल इंस्टीट्यिूट आफ योग एवं पुणे का केवल धाम मिलकर योग के विभिन्न आसनों और योगिक क्रियाओं के संस्कृत नामों का अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मनी सहित पाँच भाषाओं में अनुवाद कर रहे हैं। यही नहीं इससे सतर्क हुई भारत सरकार अब आसनों की वीडियोग्राफी करा रही है जिन्हें अमेरिकी और यूरोप के पेटेंट, कार्यालयों को मुहैया कराया जाएगा ताकि और नुकसान रोका जा सके. पारंपरिक ज्ञान डिजीटल लाइब्रेरी (TKDL) द्वारा 900 योगासनों की वीडियोग्राफी कर उन्हें डिजीटल रूप दिया जा रहा रहा है। इनमें दो हजार वर्ष पुराने पंतजलि योग सूत्र, भगवद् गीता, अष्टांग हृदय, हठ प्रदीपिका, घेरंड संहिता और सांद्र सत्कर्म जैसे प्राचीन ग्रंथों से संदर्भ लिए गए हैं।


गौरतलब है कि हाल ही में मानव संसाधन विकास पर संसद की एक स्थायी समिति ने भी स्कूलों में योग शिक्षा आरम्भ करने पर जोर दिया था. आँकड़ों पर गौर करें तो 2005-06 के एक अनुमान के मुताबिक पश्चिमी देशों में तब योग विद्या विद्या से जुड़ा कारोबार अरबों डालर का था। अमेरिका में करीब 1.65 करोड़ लोग योगाभ्यास करते हैं और वहाँ की जनता हर वर्ष योग पर लगभग तीन अरब डालर का खर्च करती है। इसी तरह विदेशों में दिनों-ब-दिन आयुर्वेदिक दवाओं की माँग बढ़ती जा रही है। मौजूदा समय में प्रतिवर्ष 3000 करोड़ रुपये की आयुर्वेदित दवाइयाँ और इससे सम्बन्धित उत्पादों का भारत द्वारा विदेशों को निर्यात किया जा रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, रूस और आस्ट्रेलिया को किये जाने वाले निर्यात में औसतन 25 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो रही है। पाश्चात्य संस्कृति में पले-बसे लोग भारत आकर संस्कार और मंत्रोच्चार के बीच विवाह के बन्धन में बँधना पसन्द कर रहे हैं और हमें अपने ही संस्कार दरियाकनूसी और बकवास लगते हैं। वर्ष 2007 में अमेरिका के तमाम प्रान्तों की विधानसभाओं का सत्र और अमेरिकी सीनेट का सत्र हिन्दू वैदिक मंत्रोच्चार की गूँज के साथ आरम्भ हुआ। यही नहीं अमेरिकी गिरजाघरों में भी ऋग्वेद के मंत्र और भगवद्गीता के श्लोक गूंजने लगे हैं. इन सबसे प्रभावित होकर अमेरिका के रूट्जर्स विश्वविद्यालय ने हिन्दू धर्म से सम्बन्धित छः पाठ्यक्रम आरम्भ करने का फैसला लिया , जिसमें वाचन परम्परा, हिन्दू संस्कार महोत्सव, हिन्दू प्रतीक, हिन्दू दर्शन एवं हिन्दुत्व तथा आधुनिकता जैसे पाठ्यक्रम शामिल हैं तथा नान क्रेडिट कोर्स में योग और ध्यान तथा हिन्दू शास्त्रीय और लोकनृत्य शामिल किये गए हैं. और-तो-और अमेरिका में ‘रामायण रिबोर्न’ श्रृंखला वाली कामिक्स ने बैटमैन, सुपरमैन और स्पाइडरमैन को पीछे छोड़कर धूम मचा रखी है। अमेरिका की वरजिन कामिक्स द्वारा गाथम कामिक्स के साथ मिलकर 30 हिस्सों वाली इस श्रृखंला के प्रकाशन में सिर्फ रामायण आधारित कामिक्स ही नहीं अपितु भारतीय पात्रों जैसे साधू और देवी तथा नागिन को लेकर बनी कामिक्स भी धूम मचा रही हैं। निश्चिततः कर्म, भाग्य और समय जैसी भारतीय अवधारणाओं ने फन्तासियों पर आधारित अमेरिकी कामिक्स बाजार में भूचाल पैदा कर दिया।


पश्चिमी विज्ञान भी अब यह स्वीकारने लगा है कि भारतीय जीवन प्रतीको में दम है. एक दौर में पश्चिमी देशों के लोग भारत को सपेरों व जादूगरों के देश के रूप में पहचानते थे। धर्म व अध्यात्म के रस में लिपटे प्रतीकों को वे उपहास की वस्तु समझते थे। पर अब चीजें बदल रही हैं. वे हमारे अध्यात्म की तरफ उन्मुख हो रहे हैं. हाल ही में अमेरिका के रिसर्च ऐंड एक्सपेरीमेंटल इंस्टीट्यूट आॅफ न्यूरो साइंसेज के वैज्ञानिकों ने ऊँ के उच्चारण से शरीर में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया और पाया कि इसके नियमित प्रयोग से अनेक असाध्य रोग दूर हो गए।......अब जरुरत है कि हम भी अपनी संस्कृति को समझें और पश्चिम कि तरफ मुँह करके देखने की बजाय खुद के अन्दर झांकें !!

15 टिप्‍पणियां:

Mrityunjay Kumar Rai ने कहा…

eye openar post. i am fully agreed with your view. i should harness our own value in ore productive and creative manner rather looking at West.

Unknown ने कहा…

अब जरुरत है कि हम भी अपनी संस्कृति को समझें और पश्चिम कि तरफ मुँह करके देखने की बजाय खुद के अन्दर झांकें....काश ऐसा सभी लोग सोचते.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

आपने तो ऑंखें ही खोल दीं के. के. जी ...लाजवाब पोस्ट.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

सही लिखा आपने, भारतीय संस्कृति काफी दृढ है.

S R Bharti ने कहा…

वस्तुतः हम भारतीय अपनी परम्परा, संस्कृति, ज्ञान और यहाँ तक कि महान विभूतियों को तब तक खास तवज्जो नहीं देते जब तक विदेशों में उसे न स्वीकार किया जाये। यही कारण है कि आज यूरोपीय राष्ट्रों और अमेरिका में योग, आयुर्वेद, शाकाहार, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, होम्योपैथी और सिद्धा जैसे उपचार लोकप्रियता पा रहे हैं जबकि हम उन्हें बिसरा चुके हैं। हमें अपनी जड़ी-बूटियों, नीम, हल्दी और गोमूत्र का ख्याल तब आता है जब अमेरिका उन्हें पेटेंट करवा लेता है।...True !

बेनामी ने कहा…

आगाह करती, तथ्यों के आधार पर पक्ष प्रस्तुत करती सारगर्भित पोस्ट.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

अब तो हम एलोपेथी में भी किसी से कम नहीं है । बल्कि यहाँ इलाज़ का खर्च विकसित देशों के मुकाबले काफी कम पड़ता है ।
बेशक ज्ञान का भण्डार है यहाँ ।
अच्छी पोस्ट ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच है, अपनी अच्छी बातें पहले अंगीकार हों ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट..स्वयं में झांकने के लिए प्रेरित करती हुई....कहा जाता है की महाभारत काल में विज्ञान अपने चरम पर था...और जो शोध अभी पश्चिम देशों में हो रहे हैं और वैज्ञानिक खोज कर रहे हैं वो सब महाभारत के समय भारत में मौजूद थे...
अब आप टेस्ट ट्यूब बेबीस को ही लीजिए....इसका उदाहरण कौरवों के जन्म से जुड़ा हुआ है..

अच्छी जानकारी का शुक्रिया

raghav ने कहा…

सच है हम अपनी कदर ही नही जानते we have to care for our creeds customs, knowledge of vaidanta, jyotish. Ayurveda,

ZEAL ने कहा…

nice and informative post !

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

पश्चिम की मुहर लगे बिना किसी भी वस्तु, ज्ञान, व्यक्ति या विचार को हम महत्व नहीं देते. एक और बात जो सोचने वाली है, वो ये कि गवार पाठा जो हमारे घर के पिछ्वाड़े फालतू में उगा करता था, आज अलो वेरा कहलाता है और बड़ा महत्वपूर्ण अंग बन गया है हमारे जीवन का. लेकिन जब तक मैदान में उगता था, कोई नहीं पूछता था, मगर जब बोतल में आने लगा तो लाभकारी हो गया. बेहतरीन पोस्ट!!

Akanksha Yadav ने कहा…

युवा पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण पोस्ट...

editor : guftgu ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट. मुबारकवाद.

editor : guftgu ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट. मुबारकवाद.