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सोमवार, 5 जुलाई 2010

भारत बंद की दुहाई


मुट्ठियाँ ताने चंद लोग
हवाओं में नारेबाजी करते
बड़े-बड़े बैनर और दफ्तियाँ संभाले
पल भर में
पूरा भारत बंद कर देते हैं
वे दुहाई देते हैं
जनता के हितों की
आश्वासन देते हैं
एक सुखद भविष्य का
पर नहीं दिखता उन्हें
इस बंद में फंसे लोगों का हित
जिनका आज का भविष्य
शायद यही होगा कि
बच्चों की कक्षायें
छूट गयी होंगी
आॅफिस लेट पहुँचने वालों को
बाॅस की डाँट सुननी होगी
कोई मरीज अस्पताल न पहुँचने पर
दम तोड़ रहा होगा
या कोई बेरोजगार युवा
साक्षात्कार में शामिल न हो पाने पर
अपना सिर पीट रहा होगा !!
(आज भारत-बंद की घोषणा की गई है. पर क्या वाकई इसका कोई अर्थ है. इस कविता के माध्यम से महसूस कीजिये उन लोगों का दर्द जो आज इसके शिकार होने जा रहे हैं )

18 टिप्‍पणियां:

Sudhir ने कहा…

भईया बहुत अच्छी कविता लगी आपकी | पर ऐसा नहीं लगता की इस महंगाई में महात्मा गाँधी भी कुछ ऐसा ही करते और अवश्य नेहरु भी साथ देते उनका? अगर आज कुछ लोग जोर जबरदस्ती से बंद करते हैं तो इसके पीछे हम भी हैं| हम मान लेते हैं कि कोई न कोई तो विरोध करेगा ही| हम घर पर कुछ जरूरी काम निपटा लें| तब वह बंद करने वाले जबरदस्ती साथ ले लेते हैं हमे| हमारी दुकाने, हमारे ऑफिस बंद कराके|

आज ही एक समाचार पढ़ा कि दाल खाना भी एक विलाषिता ( Luxury) बन गयी है| कुछ तो करना परेगा चाहे हम कर लें या वह जो कि अपनी रोटियां सेंकते हैं इसी बहाने और उनके कार्यकर्ताओं को भी दो टाइम कि दाल मिल जाती है बंद कराकर |

Amit Kumar Yadav ने कहा…

सब राजनीति का खेल है. जो सत्ता में नहीं होते, ऐसे ही अपनी राजनीति चमकाते हैं. उम्दा कविता लिखा आपने.

Shahroz ने कहा…

समसामयिक व प्रासंगिक कविता..बधाई.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

किसी का फायदा , किसी का नुकसान । जनता को तो पिसना ही है ।

माधव( Madhav) ने कहा…

यहाँ मै आपसे सहमत नहीं हूँ. महंगाई के विरोध में केवल बाते करने और टी वी पर बाते करने से सरकार सुनने वाली नहीं है , कुछ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन होना ही चाहिए . मै तो कहता हूँ की ये विरोध राजनितिक पार्टियो के बजाय , आम आदमी , मजदुर, किसान और समाज के शोषित बर्ग की ओर से होना चाहिए था , आखिरकार महंगाई का सबसे ज्यादा असर तो इन्ही पर होता है .
सरकार आज कहती है की salary बढ़ा दिया है इसलिए मूल्य वृधी जायज है पर उन organised sector जिसमे दिहाड़ी मजदुर आते है उनकी salary में कोई बदलाव नहीं आया है .

आज से अस्सी साल पहले भगत सिंह ने विरोध के रूप में संसद में बम फेका था , आज उस धमाके की एक बार फिर जरुरत है ,

बहरो को सुनाने के लिए धमाके की जरुरत होती है

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भारत बंद का यहाँ खेल नेता खेल रहे हैं...काश आम जनता विरोध करती तो कुछ असर भी होता....राजनैतिक दल तो सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं..

कविता अच्छी है

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

लोग कुछ भी कहें,
पर कविता में निहित संवेदना स्तुत्य है!

दीनदयाल शर्मा ने कहा…

भारत बंद से आम आदमी ज्यादा प्रभावित होता है..इससे देश का नुक्सान तो होता ही है.. सरकार को इस ध्यान देना चाहिए..केवल कुर्सी ही सब कुछ नहीं होना चाहिए....विपक्षी पार्टियों के प्रबुद्द लोगों को भी अपने सशक्त सुझाव सरकार को देने चाहिएँ ..पार्टियाँ एक दूसरे के विचारों का सम्मान करें..तभी कुछ हल हो सकता है.. कविता बहुत ही बढ़िया लिखी है...और आम आदमी की पीड़ा को बड़े सुन्दर ढंग से उठाया है...बधाई...

KK Yadav ने कहा…

@ Sudhir,

मित्रवर बहुत सही लिखा आपने, पर क्या वाकई आपको लगता है कि ऐसे बंद को गाँधी जी समर्थन देते. हम जिनके लिए बंद की घोषणा कर रहे हैं, यदि उन्हीं को उस बंद से कष्ट देने लगें तो सोचना पड़ेगा न. ईश्वर न करे कभी कोई इस बंद का शिकार हो.. ...खैर, आपको रचना अच्छी लगी..आभार !!

KK Yadav ने कहा…

@ माधव,
आज से अस्सी साल पहले भगत सिंह ने विरोध के रूप में संसद में बम फेका था , आज उस धमाके की एक बार फिर जरुरत है, बहरो को सुनाने के लिए धमाके की जरुरत होती है......यह बड़ा समावेशी तर्क है. इसी तर्क का इस्तेमाल तो नक्सली से लेकर आतंकवादी तक कर रहे हैं. पर उससे क्या हासिल हो जाता है. एक लोकतान्त्रिक प्रणाली में जब मंहगाई से लेकर धरना-बंद-हड़ताल की कीमत अंतत: जनता को ही चुकानी पड़े तो जरुर कहीं न कहीं कुछ खोट है. उस खोट को समझने की जरुरत है.

माधव( Madhav) ने कहा…

but what is the solution? if people are affecting by the un -populist decision of Govt then what should a Common person Do?

Unknown ने कहा…

बच्चों की कक्षायें
छूट गयी होंगी
आॅफिस लेट पहुँचने वालों को
बाॅस की डाँट सुननी होगी
कोई मरीज अस्पताल न पहुँचने पर
दम तोड़ रहा होगा
...यथार्थ कहा आपने...शुक्रिया.

Unknown ने कहा…

तेरह हजार करोड़ का चूना लग गया, महंगाई जस की तस.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

अब तो बंद भी तमाशा बन गया है. सब सत्ता का खेल है.

S R Bharti ने कहा…

मुट्ठियाँ ताने चंद लोग
हवाओं में नारेबाजी करते
बड़े-बड़े बैनर और दफ्तियाँ संभाले
पल भर में
पूरा भारत बंद कर देते हैं

समसामयिक रचना..बधाई.

बेनामी ने कहा…

कविता बड़ी दमदार है..बधाई स्वीकारें.

Akanksha Yadav ने कहा…

सत्ता में आने की सीढ़ी है ये भारत बंद...

S R Bharti ने कहा…

भारत बंद से आम आदमी ज्यादा प्रभावित होता है..इससे देश का नुक्सान तो होता ही है.. सरकार को इस ध्यान देना चाहिए