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रविवार, 28 फ़रवरी 2010

विविधता में एकता की प्रतीक : होली

होली को लेकर देश के विभिन्न अंचलों में तमाम मान्यतायें हैं और शायद यही विविधता में एकता की भारतीय संस्कृति का परिचायक भी है। उत्तर पूर्व भारत में होलिका दहन को भगवान कृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना के वध दिवस से जोड़कर पूतना दहन के रूप में मनाया जाता है तो दक्षिण भारत में मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल भस्म कर दिया था और उनकी राख को अपने शरीर पर मल कर नृत्य किया था। तत्पश्चात कामदेव की पत्नी रति के दुख से द्रवित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे प्रसन्न हो देवताओं ने रंगों की वर्षा की। इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में अग्नि प्रज्जवलित कर उसमें गन्ना, आम की बौर और चन्दन डाला जाता है। यहाँ गन्ना कामदेव के धनुष, आम की बौर कामदेव के बाण, प्रज्वलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन एवं चन्दन की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन हेतु शांत करने का प्रतीक है।

मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में अवस्थित धूंधड़का गाँव में होली तो बिना रंगों के खेली जाती है और होलिकादहन के दूसरे दिन ग्रामवासी अमल कंसूबा (अफीम का पानी) को प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं और सभी ग्रामीण मिलकर उन घरों में जाते हैं जहाँ बीते वर्ष में परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो चुकी होती है। उस परिवार को सांत्वना देने के साथ होली की खुशी में शामिल किया जाता है।

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

यूँ आरंभ हुआ होलिका-दहन व होली

होली भारतीय समाज का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसका लोग बेसब्री के साथ इंतजार करते हैं। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में होली मनाई जाती है। रबी की फसल की कटाई के बाद वसन्त पर्व में मादकता के अनुभवों के बीच मनाया जाने वाला यह पर्व उत्साह और उल्लास का परिचायक है। अबीर-गुलाल व रंगों के बीच भांग की मस्ती में फगुआ गाते इस दिन क्या बूढे व क्या बच्चे, सब एक ही रंग में रंगे नजर आते हैं।

नारद पुराण के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप को यह घमंड था कि उससे श्रेष्ठ दुनिया में कोई नहीं, अत: लोगों को ईश्वर की पूजा करने की बजाय उसकी पूजा करनी चाहिए। पर उसका बेटा प्रहलाद जो कि विष्णु भक्त था, ने हिरण्यकश्यप की इच्छा के विरूद्ध ईश्वर की पूजा जारी रखी। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को प्रताड़ित करने हेतु कभी उसे ऊंचे पहाड़ों से गिरवा दिया, कभी जंगली जानवरों से भरे वन में अकेला छोड़ दिया पर प्रहलाद की ईश्वरीय आस्था टस से मस न हुयी और हर बार वह ईश्वर की कृपा से सुरक्षति बच निकला। अंतत: हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका जिसके पास एक चमत्कारी चुनरी थी, जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि में भस्म न होने का वरदान प्राप्त था, की गोद में प्रहलाद को चिता में बिठा दिया ताकि प्रहलाद भस्म हो जाय। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था, ईश्वरीय वरदान के गलत प्रयोग के चलते चुनरी ने उड़कर प्रहलाद को ढक लिया और होलिका जल कर राख हो गयी और प्रहलाद एक बार फिर ईश्वरीय कृपा से सकुशल बच निकला। दुष्ट होलिका की मृत्यु से प्रसन्न नगरवासियों ने उसकी राख को उड़ा-उड़ा कर खुशी का इजहार किया। मान्यता है कि आधुनिक होलिका दहन और उसके बाद अबीर-गुलाल को उड़ाकर खेले जाने वाली होली इसी पौराणिक घटना का स्मृति प्रतीक है।

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

लौट रही है ईस्ट इण्डिया कंपनी

ईस्ट इण्डिया कंपनी के नाम से भला कौन अपरिचित होगा। इसी कंपनी के माध्यम से अंग्रेजों ने भारत को गुलामी के बंधन में जकड़ा था. तब किसी ने नहीं सोचा था कि व्यापार के बहाने भारत आई ईस्ट इण्डिया कंपनी एक दिन ब्रिटिश सरकार की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का भी जरिया बनेगी, पर अंतत: यही हुआ. व्यापार करने वाले कब भारत में अपनी सरकार बना बैठे, पता ही नहीं चला.

वक़्त बड़ा बलवान होता है, सो ईस्ट इण्डिया कंपनी को अब से पाँच साल पहले एक भारतीय उद्यमी संजीव मेहता ने खरीद लिया. स्वयं संजीव मेहता के लिए वाकई यह एक रोचक अनुभव रहा कि जिस कंपनी ने कभी हमारे ऊपर राज किया था उस पर राज करना एक तरह से इतिहास का वो पन्ना ही खरीद लेने जैसा था. फ़िलहाल संजीव मेहता इस कंपनी को अभयदान देने के मूड में हैं और शीघ्र ही 1.5 करोड़ पौंड के निवेश के साथ-साथ लन्दन में इसका पहला स्टोर खोलने जा रहे हैं. वाकई यह उस ब्रिटिश-हूकुमत की नाक तले ही होगा, जिसने इसी कंपनी की आड में कभी भारत पर राज किया था. सिर्फ लन्दन ही नहीं, इसी साल संजीव मेहता भारत में भी इस कंपनी के बैनर तले चीजें बेचने की सोच रहे हैं. बस आशा की जानी चाहिए की जिस ईस्ट इण्डिया कंपनी ने कभी व्यापार के बहाने हमारी अस्मिता को रौंदा था, ऐसा कुछ यह नए रूप वाली ईस्ट इण्डिया कंपनी नहीं करेगी !!

ब्लागिंग का सफरनामा : 100 पोस्ट का सफ़र

''शब्द-सृजन की ओर'' पर 100 पोस्ट का सफ़र पूरा हो चुका है और यह 101वीं पोस्ट है. आप सभी ने समय-समय पर अपनी टिप्पणियों व सुझावों से प्रोत्साहित किया और राह दिखाई. यह आप सभी का स्नेह ही है, जो मुझे प्रशासनिक व्यस्तताओं के बीच भी ब्लॉग पर लिखने को तत्पर करता है. आने वाली पोस्टों में भी आप सभी का स्नेह यूँ ही बना रहेगा, ऐसा विश्वास है...धन्यवाद !!

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

प्रेम (वेलेंटाइन दिवस पर विशेष)

प्रेम एक भावना है
समर्पण है, त्याग है
प्रेम एक संयोग है
तो वियोग भी है
किसने जाना प्रेम का मर्म
दूषित कर दिया लोगों ने
प्रेम की पवित्र भावना को
कभी उसे वासना से जोड़ा
तो कभी सिर्फ उसे पाने से
भूल गये वे कि प्यार सिर्फ
पाना ही नहीं खोना भी है
कृष्ण तो भगवान थे
पर वे भी न पा सके राधा को
फिर भी हम पूजते हैं उन्हें
पतंगा बार-बार जलता है
दीये के पास जाकर
फिर भी वो जाता है
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता !!

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

खिड़कियाँ

खोल देता हूँ खिड़कियों को
बाहर धूप खिल रही है
चारों तरफ हरी मखमल-सी घास
उन पर मोती जैसी ओस की बूँदें
चिड़ियों का कलरव शुरू हो गया
शरीर पर एक शाल डाल
बाहर चला आता हूँ
कुछ दूर तक टहलता हूँ
कितने दिनों बाद
इस सुबह को जी रहा हूँ
कितने एकाकी हो गये हैं हम
बस अपने ही कामों में लगे रहते हैं
शायद इसी तरह किसी दिन
मन की खिड़कियों को भी खोल सकूँ
और फिर देख सकूँ
कि बाहर कितनी धूप है !!