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शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है

भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। सामान्यतः त्यौहारों का सम्बन्ध किसी न किसी मिथक, धार्मिक मान्यताओं, परम्पराओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा होता है। प्रसिद्ध दार्शनिक लाओत्से के अनुसार- ‘‘इसकी फिक्र मत करो कि रीति-रिवाज का क्या अर्थ है? रीति-रिवाज मजा देता है, बस काफी है। जिन्दगी को सरल और नैसर्गिक रहने दो, उस पर बड़ी व्याख्यायें मत थोपो।’’
दुनिया के भिन्न-भिन्न भागों में जनवरी माह का प्रथम दिवस नववर्ष के शुभारम्भ के रूप में मनाया जाता है। भारत में भी नववर्ष का शुभारम्भ वर्षा का संदेशा देते मेघ, सूर्य और चंद्र की चाल, पौराणिक गाथाओं और इन सबसे ऊपर खेतों में लहलहाती फसलों के पकने के आधार पर किया जाता है। इसे बदलते मौसमों का रंगमंच कहें या परम्पराओं का इन्द्रधनुष या फिर भाषाओं और परिधानों की रंग-बिरंगी माला, भारतीय संस्कृति ने दुनिया भर की विविधताओं को संजो रखा है। असम में नववर्ष बीहू के रूप में मनाया जाता है, केरल में पूरम विशु के रूप में, तमिलनाडु में पुत्थंाडु के रूप में, आन्ध्र प्रदेश में उगादी के रूप में, महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा के रूप में तो बांग्ला नववर्ष का शुभारंभ वैशाख की प्रथम तिथि से होता है। भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ लगभग सभी जगह नववर्ष मार्च या अप्रैल माह अर्थात चैत्र या बैसाख के महीनों में मनाये जाते हैं। वस्तुतः वर्षा ऋतु की समाप्ति पर जब मेघमालाओं की विदाई होती है और तालाब व नदियाँ जल से लबालब भर उठते हैं तब ग्रामीणों और किसानों में उम्मीद और उल्लास तरंगित हो उठता है। फिर सारा देश उत्सवों की फुलवारी पर नववर्ष की बाट देखता है।
मानव इतिहास की सबसे पुरानी पर्व परम्पराओं में से एक नववर्ष है। नववर्ष के आरम्भ का स्वागत करने की मानव प्रवृत्ति उस आनन्द की अनुभूति से जुड़ी हुई है जो बारिश की पहली फुहार के स्पर्श पर, प्रथम पल्लव के जन्म पर, नव प्रभात के स्वागतार्थ पक्षी के प्रथम गान पर या फिर हिम शैल से जन्मी नन्हीं जलधारा की संगीत तरंगों से प्रस्फुटित होती है। विभिन्न विश्व संस्कृतियाँ इसे अपनी-अपनी कैलेण्डर प्रणाली के अनुसार मनाती हैं। वस्तुतः मानवीय सभ्यता के आरम्भ से ही मनुष्य ऐसे क्षणों की खोज करता रहा है, जहाँ वह सभी दुख, कष्ट व जीवन के तनाव को भूल सके। इसी के तद्नुरूप क्षितिज पर उत्सवों और त्यौहारों की बहुरंगी झांकियाँ चलती रहती हैं।
इतिहास के गर्त में झांकें तो प्राचीन बेबिलोनियन लोग अनुमानतः 4000 वर्ष पूर्व से ही नववर्ष मनाते रहे हैं। यह एक रोचक तथ्य है कि प्राचीन रोमन कैलेण्डर में मात्र 10 माह होते थे और वर्ष का शुभारम्भ 1 मार्च से होता था। बहुत समय बाद 713 ई0पू0 के करीब इसमें जनवरी तथा फरवरी माह जोड़े गये। सर्वप्रथम 153 ई0पू0 में 1 जनवरी को वर्ष का शुभारम्भ माना गया एवं 45 ई0पू0 में जब जूलियन कैलेण्डर का शुभारम्भ हुआ, तो यह सिलसिला बरकरार रहा। 1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ई0 के ग्रेगोरियन कैलेंडर के आरम्भ के बाद ही बहुतायत में हुआ।दुनिया भर में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगोरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था। इसाईयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडाॅक्स चर्च रोमन कैलेंडर को मानता है। इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। यही वजह है कि आर्थोडाक्स चर्च को मानने वाले देशों रूस, जार्जिया, यरूशलम और सर्बिया में नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस्लाम के कैलेंडर को हिजरी साल कहते हैं। इसका नववर्ष मोहर्रम माह के पहले दिन होता है। हिजरी कैलेंडर के बारे में दिलचस्प बात यह है कि इसमें दिनों का संयोजन चंद्रमा की चाल के अनुसार नहीं होता। लिहाजा इसके महीने हर साल करीब 10 दिन पीछे खिसक जाते हैं। चीन का भी कैलेंडर चंद्र गणना पर आधारित है, इसके मुताबिक चीनियों का नया साल 21 जनवरी से 21 फरवरी के मध्य पड़ता है।
भारत में फिलहाल विक्रम संवत, शक संवत, बौद्ध और जैन संवत, तेलगु संवत प्रचलित हंै। इनमें हर एक का अपना नया साल होता है। देश में सर्वाधिक प्रचलित विक्रम और शक संवत है। विक्रम संवत को सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने की खुशी में 57 ईसा पूर्व शुरू किया था। विक्रम संवत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। इस दिन गुड़ी पड़वा और उगादी के रूप में भारत के विभिन्न हिस्सों में नववर्ष मनाया जाता है।
नववर्ष आज पूरे विश्व में एक समृद्धशाली पर्व का रूप अख्तियार कर चुका है। इस पर्व पर पूजा-अर्चना के अलावा उल्लास और उमंग से भरकर परिजनों व मित्रों से मुलाकात कर उन्हें बधाई देने की परम्परा दुनिया भर में है। अब हर मौके पर ग्रीटिंग कार्ड भेजने का चलन एक स्वस्थ परंपरा बन गयी है पर पहला ग्रीटिंग कार्ड भेजा था 1843 में हेनरी कोल ने। हेनरी कोल द्वारा उस समय भेजे गये 10,000 कार्ड में से अब महज 20 ही बचे हैं। आज तमाम संस्थायंे इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करती हैं और लोग दुगुने जोश के साथ नववर्ष में प्रवेश करते हैं। पर इस उल्लास के बीच ही यही समय होता है जब हम जीवन में कुछ अच्छा करने का संकल्प लें, सामाजिक बुराईयों को दूर करने हेतु दृढ़ संकल्प लें और मानवता की राह में कुछ अच्छे कदम और बढ़ायें।

11 टिप्‍पणियां:

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

वर्ष नव
हर्ष नव
जीवन उत्कर्ष नव !

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

एक साल सिरहाने रख कर
एक याद पेतानें रख कर
चला गया ये साल ये चला गया
ख़ाली से पैमाने रख कर
भरे भरे अफसाने रख कर
चला गया ये साल ये चला गया
भूरे बिसरे गाने रख कर
गानों मै कुछ मानें रख कर
चला गया ये साल ये चला गया
नीली आखें चिठ्ठी रख कर
इमली कुछ खट्टी मीठी रख कर
शुभ संकेतों बाले मुह मै
बस तोढ़ी से मिटटी रख कर
बच्चों के दास्तानें रख कर
सच को सोलह आने रख कर
चला गया ये साल ये चला गया !
....नए साल की बधाई.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

‘‘इसकी फिक्र मत करो कि रीति-रिवाज का क्या अर्थ है? रीति-रिवाज मजा देता है, बस काफी है। जिन्दगी को सरल और नैसर्गिक रहने दो, उस पर बड़ी व्याख्यायें मत थोपो।’'.....प्रसिद्ध दार्शनिक लाओत्से की ये उक्ति प्रस्तुत कर आपने वाकई मुझे नई राह दिखाई...शुक्रगुजार हूँ.

बेनामी ने कहा…

.....और लो हम भी आ गए नए साल की सौगातें लेकर...खूब लिखो-खूब पढो मेरे मित्रों !!

Akanksha Yadav ने कहा…

नया साल...नया जोश...नई सोच...नई उमंग...नए सपने...आइये इसी सदभावना से नए साल का स्वागत करें !!! नव वर्ष-2010 की ढेरों मुबारकवाद !!!

Bhanwar Singh ने कहा…

आप सभी मित्रों और शुभचिंतकों को नए साल के आगमन पर बधाइयाँ.

Unknown ने कहा…

रोचक लेख ,नववर्ष की शुभकामनाएँ!

Shyama ने कहा…

नए साल पर इतना रोचक लेख पढ़कर मन गदगद हो गया.क्या लिखा है आपने, जादू है.

नववर्ष की शुभकामनाएँ!

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

नये वर्ष की शुभकामनाओं सहित

आपसे अपेक्षा है कि आप हिन्दी के प्रति अपना मोह नहीं त्यागेंगे और ब्लाग संसार में नित सार्थक लेखन के प्रति सचेत रहेंगे।

अपने ब्लाग लेखन को विस्तार देने के साथ-साथ नये लोगों को भी ब्लाग लेखन के प्रति जागरूक कर हिन्दी सेवा में अपना योगदान दें।

आपका लेखन हम सभी को और सार्थकता प्रदान करे, इसी आशा के साथ

डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

जय-जय बुन्देलखण्ड

विनोद पाराशर ने कहा…

नव-वर्ष के संबंध में,केवल भारतीय ही नहीं,विश्व की संस्कृतियों की इतनी महत्वपूर्ण जानकारी-वाह!मजा आ गया.आशा हॆ इस नये साल में भी आप इसी तरह नये-नये विषयों पर जानकारी देते रहेंगें.डा०कुमारेन्द्र जी की बात का भी मॆं समर्थन करता हूं.पिछले वर्ष विभागीय वेब-साईड-https://www.sahuliyat.com पर भी अपनी द्स्तक देने का वादा आपके किया था-मुझे उम्मीद हॆ-इस नये साल मुझे निराश नहीं होना पडेगा.आपको दिये आश्वासन के अनुसार-नये साल पर कविता तॆयार हॆ-इसको पढने के लिए तो हमारे ’नया घर’पर आना होगा.

sandhyagupta ने कहा…

‘इसकी फिक्र मत करो कि रीति-रिवाज का क्या अर्थ है? रीति-रिवाज मजा देता है, बस काफी है। जिन्दगी को सरल और नैसर्गिक रहने दो, उस पर बड़ी व्याख्यायें मत थोपो।’’

Sach hai.

Nav varsh ki dheron shuubkamnayen.