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शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

हिन्दी का सफरनामा बनाम मैकाले नीति

सन् 1835 एक निर्णायक वर्ष था जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सरकार ने मैकाले की अनुशंसा पर 7 मार्च 1835 को अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार का प्रस्ताव पास कर दिया और धीरे-धीरे अंग्रेजी के स्कूल खुलने लगे। हिन्दी को अलग-थलग करने का एक अन्य कारण अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति भी थी। अंग्रेजी शिक्षा का प्रस्ताव पास होने के बाद भी अदालतों के कामकाज की भाषा फारसी ही रही। सर सैयद अहमद खान ने भी हिन्दी को एक गँवारी बोली बताकर अंग्रेजों को उर्दू की ओर झुकाने की लगातार चेष्टा की। इस बीच सन् 1893 में बनारस में ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ का गठन इन सबकी प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दी को एक भाषा के रूप में बढ़ावा देने हेतु किया गया। बनारस के राजा शिव प्रसाद भी हिन्दी की रक्षा के लिए उठ खड़े हुए और निरन्तर यत्नशील रहे। सन् 1913 में शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर के रूप में राजा शिवप्रसाद ने हिन्दी को विचलन से बचाने हेतु ठेठ हिन्दी का आश्रय लिया जिसमें फारसी-अरबी के चालू शब्द भी शामिल थे। सन् 1913 में ही हिन्दी में पहली मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ का निर्माण हुआ तो सन् 1931 में हिन्दी की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ का निर्माण किया गया।

6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

हिन्दी को अलग-थलग करने का एक अन्य कारण अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति भी थी....Bilkul sahi vishleshan.

Bhanwar Singh ने कहा…

बेहद सुन्दर जानकारी दी आपने...बधाई.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

मैकाले की नीतियों से एक बार फिर सावधान रहने की जरुरत है.

Amit Kumar Yadav ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

मैकाले नीति ने ही हिंदी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा आपने..बधाई.